Saturday, May 16, 2020

सांस और विद्युत


         जब हम गुस्से मे होते है तो सांस तेज हो जाते है और जब आराम की अवस्था मे होते है सांस धीमी हो जाती है ।

       हमारा मन हमारी सांसे, हमारे सारे ऊर्जा चक्र सभी आन्तरिक रूपों  से एक दूसरे से जुड़े हुये है ।

         हमारे मन की अवस्था शरीर  मे उपस्थित जीवनी विद्युत पर निर्भर करती है जो हम सांस लेते समय प्राप्त करते है ।

       जब हमें अचानक घबराहट,  अस्थिरता या भ्रम महसूस होने लगता है,  उत्साह की कमी, अवसाद व लक्ष्यहीनता के लक्षण सामने आते है तो  यह दर्शाता है कि हमें सांस लेते समय  कम मानसिक विद्युत  प्राप्त हो रही है ।

श्वास मन का भौतिक रुप है ।

        यदि सांस पर नियंत्रण हो जाये तो हम शरीर और मन पर  नियंत्रण कर सकते है।

        क्या आप लगातार थकान का अनुभव करते है ?  दोपहर होते होते  कार्य की शक्ति जवाब दे  जाती है । थकान होने का  कारण जानने के  लिये टेस्ट कराते  कराते थक गये है ।  सब कुछ  ठीक है परंतु थकान जाती ही नहीं ।

       हमारी सांस लेने की प्रक्रिया की कमजोरी ही इन लक्षणों को जन्म  दे रही है । पेशियों मे खिंचाव या दर्द, सीने मे दर्द, माहवारी से पहले होने वाला तनाव वा दर्द इसी श्रेणी मे आता है ।

        थकावट वा उपरोक्त लक्षणों मे गहरी गहरी सांस लो और मुख से छोडो । इस के साथ साथ मन मे कोमल भावनायें, स्नेह की भावना  रखो, स्वीकार भावना  रखो,  मधुर संगीत  मन  मे गुनगुनाते या सुनते रहो । आराम करो तथा  मन से दूसरो को तरंगे दो ।

        जब हम सांस की गति धीमी करते है तो इस से हमारे विचारो को फैलने के लिये स्थान मिलता है । हम सांस मे जितना अंतराल रखते है विचारो को उतना ही स्थान मिलता जाता है  जिस से विचारो मे बुद्विमता  और स्पष्टता आने लगती है ।

       गहरी सांस भावनाओ को शांत करती है तथा  परिस्थितियो को समझने मे मदद करती है ।

इडा तथा पिंगला नाड़ी


इडा तथा पिंगला नाड़ी और सांस 

कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

        जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

          हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

          बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

        यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

        मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

        जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

        ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

      हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Friday, May 15, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

सांस और दोष


आंतरिक बल   
सांस  और दोष 

        अग्नि मे तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं की अशुध्दता नष्ट हो जाती  है । ऐसे सांस पर नियंत्रण या योग से मन के    दोष दूर होते है ।

        निरंतर सांस नियंत्रण  तथा  प्रभु के गुणों का चिंतन करने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते है । 

सूक्ष्म और स्थूल शरीर दोनो ही शुध्द होते है ।

      जो प्राणी जिस गति से सांस लेता  है उसी के अनुसार उसकी आयु होती है ।

        कछुआ  एक मिनिट मे 4-5 सांस लेता  है उसकी आयु 200 से 400 वर्ष होती है ।

       मनुष्य औसत 12 से 18 सांस लेता है अतः  औसत सांस 16 होती है । उसकी औसत आयु 100 वर्ष होती है ।

अगर योगी औसत एक मिनिट मे 4 सांस ले तो उसकी औसत आयु 400 साल हो सकती है ।

         वायु ही जीवन है, वायु ही बल है । धीरे धीरे सांस से वायु खींचने पर सर्व रोगॊ का नाश  होता है । तेज गति से सांस लेने पर  रोग आ धमकते  है ।

        दिमाग के दो भाग  है । कुछ  कार्य या विचार   दिमाग का बाया भाग  करता  है, कुछ  विचार  दाया भाग  करता है । जब कभी हमें कोई नाकारात्मक विचार परेशान कर रहा हो तो हमें यह पता नहीं होता कि  दिमाग का कौन सा भाग  विचार  कर रहा है । 

         उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस ले रहे है उसे हाथ  की अँगुली से दबा ले तथा  दूसरे नथुने से धीरे धीरे  सांस लेने लग जाओ । इस से आप का दिमाग   दूसरे  गोलार्द्ध  से सोचने लग जायेगा । मान लो आप बायें भाग से सोच  रहे है तो दायें भाग  से सोचने लगेगें और अगर दायें भाग  से सोच  रहे है तो बायें भाग से सोचने लगेगें । इस तरह आप के नाकारात्मक विचार  बदल जायेगे ।

          सांस का सुर बदलने के लिये आप जिस नथुने से सांस ले रहे है उस करवट  लेट जाये । थोड़ी देर बाद अपने आप दूसरे नथुने से सांस चालू हो जायेगा । 

       ऐसा करते समय जो आप चाहते  है वह संकल्प सोचो । मान  लो आप को निराशा  आ रही है तो सोचो मै खुश हूं खुश हूं खुश हूं । भगवान  आप खुशीओ  के सागर है । थोड़ी देर मे नाकारात्मकता बंद  हो जायेगी ।

Wednesday, May 13, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

Wednesday, May 6, 2020

गीता के मूल मंत्र


अध्याय १
मोह ही सारे तनाव व विषादों का कारण होता है।

अध्याय २
शरीर नहीं आत्मा को मैं समझो और आत्मा अजन्मा-अमर है।

अध्याय ३
कर्तापन और कर्मफल के विचार को ही छोड़ना है, कर्म को कभी नहीं।

अध्याय ४
सारे कर्मों को ईश्वर को अर्पण करके करना ही कर्म संन्यास है।

अध्याय ५
मैं कर्ता हूँ- यह भाव ही अहंकार है, जिसे त्यागना और सम रहना ही ज्ञान मार्ग है।

अध्याय ६
आत्मसंयम के बिना मन को नहीं जीता जा सकता, बिना मन जीते योग नहीं हो सकता।

अध्याय ७
त्रिकालज्ञ ईश्वर को जानना ही भक्ति का कारण होना चाहिये, यही ज्ञानयोग है।

अध्याय ८
ईश्वर ही ज्ञान और ज्ञेय हैं- ज्ञेय को ध्येय बनाना योगमार्ग का द्वार है ।

अध्याय ९
जीव का लक्ष्य स्वर्ग नहीं ईश्वर से मिलन होना चाहिये ।

अध्याय १०
परम कृपालु सर्वोत्तम नहीं बल्कि अद्वितीय हैं।

अध्याय ११
यह विश्व भी ईश्वर का स्वरूप है, चिन्ताएँ मिटाने का प्रभुचिन्तन ही उपाय है।

अध्याय १२
अनन्यता और बिना पूर्ण समर्पण भक्ति नहीं हो सकती और बिना भक्ति भगवान् नहीं मिल सकते।

अध्याय १३
हर तन में जीवात्मा परमात्मा का अंश है- जिसे परमात्मा का प्रकृतिरूप भरमाता है, यही तत्व ज्ञान है।

अध्याय १४
प्रकृति प्रदत्त तीनों गुण बंधन देते हैं, इनसे पार पाकर ही मोक्ष संभव है ।

अध्याय १५
काया तथा जीवात्मा दोनों से उत्तम पुरुषोत्तम ही जीव का लक्ष्य हैं ।

अध्याय १६
काम-क्रोध-लोभ से छुटकारा पाये बिना जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा नहीं मिल सकता ।

अध्याय १७
त्रिगुणी जगत् को देखकर दु:खी नहीं होना चाहिये, बस स्वभाव को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिये ।

अध्याय १८
शरणागति और समर्पण ही जीव का धर्म है और यही है गीता का सार।

आन्तरिक बल -कान


            हरेक मनुष्य में ऐसे दिव्य कान  है जो कि  कर्ण इन्द्रिय के मूल में है । जिस के द्वारा  हम कहां  क्या हो रहा  है, सूक्ष्म लोक में क्या हो रह है, यह सब सुन   सकते है ।

             परंतु यह इन्द्रिय बहुत कमजोर हो गई  है, जिस कारण से दूर की आवाज़   नहीं सुन सकते ।

          सूक्ष्म नाकारात्मकता,   सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय  को कमजोर करती है । यह कार्य बच्चे के  ज्न्म  से ही आरम्भ हो जाता है ।

            हमारे मां बाप तथा  बड़े भाई  बहिन, चाचा  चाची हमें छोटी छोटी  बातो पर डांट  डपट करते थे और हम मन मसोस कर रह  जाते थे । अन्दर ही अन्दर घुटते रहते थे ।

         बड़े होने पर मित्रों  ने या  जहां  काम किया, वहां  के बोस ने गलत व्यवहार किये, घर  में पत्नी ने जो टोका टिपणी की जो कि  अनुचित थी, उन से  सूक्ष्म कर्ण  इन्द्रिय कमजोर होती रही तथा  अब बहुत ज्यादा कमजोर हो  गई  है ।

           आज हम यदा  कदा  उपरोक्त सब अनुचित व्यवहारों को मन में रिपीट करते रहते है, जब  यॆ रिपीट करते है तो सूक्ष्म कान इन्हे सुनते रहते है, जिस से आज तक भी  इस इन्द्रिय को अनजाने में  कमजोर करते रहते है ।

          हम जो फिल्में, नाटक  आदि टी  वी पर देखते है, उस  में दूसरो पर जो अत्याचार  होता है, शोषण होता है, बुरे बोल होते है, वह हम मन में याद रखते है, सूक्ष्म में बोलते रहते है, जिसे कान सुनते रहते है और दिव्य कर्ण इन्द्रिय कमजोर होती रहती है ।

            व्यक्ति अपनी सुंदरता, अपनी सेहत को लेकर निरंतर  चिंतित रहता  है जिसे सूक्ष्म कान का केन्द्र सुन लेता है और कमजोर होता रहता है ।

              हर  व्यक्ति कोई ना कोई भूल करता है, तथा  मनचाहे  लक्ष्य प्राप्त ना कर सकने के कारण अपने बारे हीन भावना  से ग्रस्त हो जाता है । यह हीन भावना  मानव की  सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय  को कमजोर करती  है ।

            कोई हमें किसी के बारे बताता  है कि फलाना  व्यक्ति में यॆ यॆ अवगुण है और हम उसे मान  लेते है । इसे पूर्वा  आग्रह कहते है । वह व्यक्ति चाहे कितना गुणवान हो उसके मिलने पर या उसकी उपस्थिति में उसके प्रति बुरा सोचते है जिसे सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय सुनती रहती  है और कमजोर होती रहती है ।

             सार यह है कि  स्थूल वा सूक्ष्म नाकारात्मक विचार, वह चाहे अब की  परिस्थितियो या भूतकाल के कारण हो, वह चाहे सच्चे हो या झूटे  हो, वह हमारे से सम्बन्ध  रखते हो या ना रखते हो, जब जब मन में आयेंगे   उसे हम सूक्ष्म में सुनते भी  है,   जिस से  सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय कमजोर होती है और दूर  दराज की  हल चल नहीं सुन सकती ।

           अगर हमें सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय को जागृत करना है  तो बापू के तीन बंदरों में से तीसरे बंदर की शिक्षा  याद रखो कि  कानो से बुरा  मत सुनो ।

         याद रखो हम जो बोलते है, देखते है, पढ़ते है, महसूस करते है , उसे सूक्ष्म में सुनते भी  है । हर नकारात्मकता दिव्य कर्ण  इन्द्री  को कमजोर करती है ।

Saturday, April 18, 2020

बिन्दु रूप का अभ्यास 48संगीत

          भगवान  के बिंदु रूप का अभ्यास करते हुए जो संगीत में डूब जाता है उसे संगीत से बदला जा सकता है । 

        मोजार्ट के पियानो सोनाटा  K 448 को सुनने से मिर्गी के मरीज में दौरों की संख्या कम हो जाती है । 

          कोई कितना भी बीमार क्यों ना हो वह  संगीत पर प्रतिक्रिया  देता है । 

मधुर संगीत योग की तरह  कार्य करता है । 

संगीत भावनात्मक असंतुलन को जीत लेता है । 

चाहे कुछ भी रोग हो संगीत मस्तिष्क को प्रभावित  करता ही है । 

          जो लोग हृदय रोग से पीड़ित है उन्हे भगवान के बिंदु रूप को याद करते हुए  निम्न गीत सुनने चाहिये । 

तोरा  मन दर्पण कहलाए  - काजल फिल्म 

राधिका तूने बांसुरी चुराई -.बेटी बेटे फिल्म । 

झनक झनक तेरी बजे पायलिया-  मेरे हजूर  फिल्म 

-ओ दुनिया के रखवाले  - बैजू बावरा फिल्म  । 

मुहब्बत की झूठी कहानी पर रोए  -  मुगले  आजम  फिल्म 

          सिर दर्द को ठीक करने लिये भैरव संगीत सुनना  चाहिये । इस संगीत से  संबंधित निम्न गाने  सुनने चाहिये तथा भगवान को भी याद करते रहना चाहिये । 

मोहे भूल गए सावरिया  - बैजू बावरा फिल्म 

   राम  तेरी गंगा मैली -टाईटल  सॉंग 

       पूछो ना कैसे मैने रैन बिताई  - फिल्म तेरी सूरत मेरी आंखे 

       सोलह वर्ष की बलि उम्र को सलाम  - फिल्म एक दूजे के लिये

हर संकल्प एक पेड है

               आप जिस भी  शब्द का इस्तेमाल करते है वह एक पेड़ का बीज है । सोचते ही बीज से एक  छोटा  सा अंकुर   बन जाता है ।जिस व्यक्ति के बारे आप सोच  रहें है यह अंकुर   उस दिशा  में बढ़ता और फैलता जाता  है । 

         जितना ज्यादा आप सोचेगे यह अंकुर /पौधा  उतना ही फैलता जायेगा  और उस व्यक्ति को अपने लपेटे में ले लेगा । जो आप सोच  रहें है उसी अनुसार इस से निकल रही सुगंध या दुर्गंध वह व्यक्ति अनुभव करेगा ।

           यह पौधा  जितना दूसरे व्यक्ति की  तरफ़ बढ़ता  है उतनी ही इसकी जड़े आप के अंतर में भी  गहरी होती जायेगी और वैसा ही सुख या दुख आप को होगा जैसा दूसरे को हो रहा है ।

          अगर हम किसी के प्रति शांति, प्रेम, सुख,सहयोग, सम्मान, शाबाश, मुबारक आदि शब्द प्रयोग करते है तो  समझो  उसको ऐसे पेड़ों ने घेर लिया है जिन से वह हर समय आनंदित होता रहेगा । आप भी  आनंदित होते रहेंगे क्यों कि  इनकी जड़ आप में ही है ।

              अगर आप दूसरे या दूसरों के प्रति सोचते है वह गंदे है, बुरे है, झूटे है, बेईमान है,दगाबाज है, क्रोधी है, अहंकारी है, जिद्दी है, खोटे है, तो समझ लो  उन के चारो तरफ़ ऐसे पौधे उग आयें है जिन से उन्हे  दुख अनुभव होता रहेगा । तथ आप भी  ऐसा ही दुख अनुभव करते रहेंगे क्योंकि जड़ तो आप में ही फैलती गई है ।

              आनंद शब्द को मन में लगातार और जोर दे कर  दोहरायें  और एक समय ऐसा आयेगा जब आप का जीवन आनंदमय हो जाता  है । यह कोरी कल्पना नही, बल्कि एक सत्य है ।

           यदि आपके जीवन में ऐसी चीजे आ रही है जिन्हे आप नही चाहते, तो यह तय है कि आप अपने विचारो या अपनी भावनाओ के बारे जागरुक  नही रहते । इसलिये विचारो के प्रति जागरुक बनो ताकि आप अच्छा  महसूस कर सके और बदलाव ला सके ।

          याद रखो यह सम्भव ही नही कि आप अच्छॆ  विचार सोचे और बुरा महसूस  करें  ।

          जितने भी  महान लोग हुये है उन्होने ने हमें दया और प्यार का मार्ग दिखाया और इसकी मिसाल बन कर ही वे  हमारे इतिहास के प्रकाश स्तम्भ बने ।

         नाकारात्मक सोचने, बोलने और दुख अनुभव करने में बहुत एनर्जी खर्च हो जाती है ।

-सबसे आसान रास्ता है, अच्छा  सोचना, बोलना और करना ।

Friday, April 17, 2020

विश्व बंधुत्व की भावना

                      इस शब्द का प्रयोग और दरुपयोग व्यापक रूप में हो रहा है । सभी धर्म, सभा, सोसाइटिया तथा अनेको संस्थाए और प्रचारक विश्व बंधुत्व की भावना का प्रचार कर रहे है । परन्तु यह भावना धरातल पर नहीं दिखती । विश्व बंधुत्व की भावना की जितनी दुहाई देते है उतना ही अधिक अपने बंधुओ से दूर होते जा रहे हैंं । मुंह में राम और बगल में छुरी वाली बात चरितार्थ हो रही है । लोग धार्मिक संस्थाओ के जितना नजदीक है उतना ही विश्व बंधुत्व और परमात्मा से दूर होते जा रहे है ।
                      बंधुत्व के अभाव में सुखी संसार व परिवार की परिकल्पना नहीं की जा सकती है । अगर हम सिर्फ अपने परिवार या धर्म या अनुयाइयों के प्रति भाईचारे की भावना रखते है तॊ यह सकुंचित भावना है । ब्रह्मांड के कण कण का सुख दुःख जब हम अपना सुख दुःख समझेंगे तॊ यह वास्तविक बंधुत्व होगा । यह तभी हो सकता है अगर हम परमपिता परमात्मा शिव को याद करेंगे । क्योकि सारी सृष्टि भगवान की ही रची हुई है ।                        जब हम सभी परमात्मा शिव को याद करेंगे तॊ हम सभी को एक जैसी प्रेरणाएं मिलेगी, जिनके धारण करने से हमारे मन में बंधुत्व की भावना आएगी । विश्व बंधुत्व की भावना अर्थात जो हमें प्रतिकूल लगता है वह दूसरों के साथ नहीं करना ।
                         उदार  हृदय वाले व्यक्ति के लिये सारा संसार अपना परिवार होता है । साधारण व्यक्ति सिर्फ उन लोगो के लिये कार्य करता है जो उसके परिवार के है या उन पर निर्भर है । रोटी, कपड़ा और मकान विश्व के प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत जरूरत है । अगर हम दूसरों की यह जरूरत पूरी करेंगे तब विश्व बंधुत्व की भावना पूरी होगी ।
                           अग्नि का धर्म है दहकना और जल का गुण है शीतलता । अग्नि दहकना छोड़ दें तॊ अग्नि नहीं कहलाएगी । जल यदि शीतलता छोड़ दे तॊ वह जल ही नहीं रह जाएगा । ऐसे ही प्रत्येक मनुष्य का स्वधर्म है शांति और प्रेम । इस समय शांति और प्रेम मनुष्य में खत्म हो चुका है इसलिए विश्व बंधुत्व की भावना भी खत्म हो चुकी है । यदि सारा संसार राजयोग का अभ्यास करने लगे तॊ विश्व में बंधुत्व की भावना आ जाएगी ।

ईर्ष्या


           प्रायः भाई  भाईयो से और बहिनें बहिनों से या भाई  बहिनों से, बहिनें भाईयो से,  ईर्ष्या  करते रहते है,  एक दूसरे की निंदा करते है, पीठ पीछे  चुगली करते है, एक दूसरे को आगे नही बढ़ने देते, एक दूसरे को बदनाम करते रहते है, एक दूसरे के कामों में कमियां ढूँढते रहते है, एक दूसरों के प्रति नाकारात्मक भाव  उठते रहते है, विचारो में शुद्वता नही आती, क्या करें ?

ईर्ष्या अर्थात उस व्यक्ति की जगह आप लेना चाहते  है जिस की आप निंदा कर रहें है ।

        दूसरे में कोई ऐसी विशेषता है, पदवी है, सुविधा है जो आप के पास नही है, आप सोचते है वह सब कुछ  आप के पास हो, इसलिये आप ईर्ष्या, निंदा चुगली आदि करते है ।

ईर्ष्या अर्थात मेरे पास इस वस्तु व  गुण व  विशेषता का अभाव है ।

ईर्ष्या अर्थात आप दूसरे से अपने को हीन समझते है ।

मन के नियम का  दरूपयोग कर रहें है, आप अप्राप्ति  को बढ़ा  रहें है । 

       लम्बे समय तक इन विचारो में रहेंगे तो आप में ऐसे हार्मोन बनने लगेगें जो आप को कोई न  कोई रोग लग़ा देंगे ।

-ईर्ष्या भाव आप के जीवन को खा  जायेगा ।

आप को हीन बना देगा । 

        कई  बार आप में ईर्ष्या नही होते, सब को अपना समझते है, परंतु अचानक  किसी किसी के  प्रति  मन  में  ईर्ष्या के विचार आने लगेगे,  उसकी शक्ल भी  सामने आने लगेगी । कई बार ऐसे व्यक्ति घर  में होते हैं  । आप अपने को दोषी मानने  लगते है ।

         यहां आप का कसूर नही होता दूसरा  व्यक्ति जो आप से परेशान है वह ऐसा सोच  रहा होता है । सुबह अमृत वेले ऐसे व्यक्ति परेशान करते है, योग नही लगने देते । आप का मन बार बार ईर्ष्या में भटकेगा । ऐसी स्थिति में बाबा  की  मुरली पढ़ा  करो या कोई और पुस्तक जो आप को पसंद हो पढ़ो । इस से आप उनसे डिस कनेक्ट हो जायेगे तब योग बहुत अच्छा  लगेगा ।

        ऐसे व्यक्ति के प्रति सदा स्नेह का भाव  रखो । कई  बार स्नेह का भाव  उनके प्रति नही निकलता । इस अवस्था में किसी स्नेही आत्मा  को स्नेह दो और उस ईर्ष्यालू  आत्मा  को देखो  कि वह स्नेही आत्मा के पास खड़ी है । आप का फोकस स्नेही पर रहें । आप के प्यार की  तरंगे वह आत्मा भी  सुन रही है और आप डिसट्रब नही होगे ।

       ऐसा व्यक्ति  आप का पति व स्कूल टीचर व  बोस भी हो सकता है जिसे आप को सुनना  होता है , उनके बोलने  से आप को अन्दर ही अन्दर बहुत दुख होता  है । ऐसी स्थिति में जब आमना  सामना हो तो आप अपने मन में तुरंत मम्मा बाबा या किसी भी  स्नेही आत्मा को देखो  और सकाश दो,  आप को अच्छा लगेगा ।

       अपना मन किसी  पॉज़िटिव सोच  में लगाये रखो, तो ईर्ष्यालु व्यक्ति डिसट्रब  नही कर सकेगा ।

आत्म हत्या


        कई  बार  मा - बाप, भाई - बहिन, पति -पत्नी, बोस और कर्मचारी, किसी संस्था  से जुड़े लोग या पड़ोसी - पड़ोसी से हर समय आपस में हर रोज़ झगड़ते   रहते   है ।  नौबत यहां  तक आ जाती है कि   मार दे या मर जाये । क्या करें ? 

         अगर आप के सिर में दर्द हो रहा  है तो  क्या इस दर्द से छुटकारा  पाने के  लिये सिर को ही काट देंगे.।

       किसी भी  समस्या के लिये आत्म हत्या कोई समाधान नही होता ।

            सामाज में थोड़ी थोड़ी भिन्नता रखी गई है । नही तो तू भी  रानी मै भी  रानी कौन भरेगा घर  का पानी । अगर सभी एक समान होते तो संसार का काम ही रुक जाता । इस लिय भिन्नता ज़रूर रहेगी इस सच को स्वीकार करना ही चाहिये  ।

         असल में हम ने मतभेदों को सकारात्मक रुप से हल  करना   सीखा ही नही है । हम एक दूसरे को दबाते है ।

       मन में भी किसी से   ना कहे तुम्हारा विचार  मूर्खतापूर्ण है, चाहे वह कुछ  भी  कहे । उसे मुख से नही केवल मन में  अच्छा  करने के लिये सुझाव दो । 

         जब व्यक्ति मुश्किल दौर से गुजर रहा होता है तो वह चाहता  है कि  उसके बड़े उसे सिर या पीठ पर स्पर्श करें दूसरा मनुष्य चाहता  है कि उसके साथ मिठास  भरे  बोल बोले जाये । उसे सात्विक ऊर्जा की जरूरत होती है । 

         गहराई में समझो बहिनें चाहती है कि  उनसे विस्तार से बात की  जाये। बातचीत से सम्बन्ध अच्छे  बनते है  समस्या का हल निकलता है । 

         बहिनें भले ही कितनी भी  सफल या आजाद क्यों ना हो, वे बहुत गहरे में, भाईयो से अभिभावक की  तरह संरक्षण चाहती  है । वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन तभी दे पाती है जब वह किसी पुरुष की  उपस्थिति में सुरक्षित अनुभव करती है ।

         ऐसे ही सूक्ष्म तल पर आदमी जीवन में बहिनों को खुश देखना  चाहते  है । वह अपना बेहतरीन तभी दे पाते  है जब कोई महिला जिसका संरक्षण प्राप्त है वह जीवन में बहुत खुश हो । अगर ऐसा ना हो तो वह पलायन करता है ।

       स्वयं को बदलो  और वह जैसा व जैसी भी  है उसे स्वीकार करें ।

         आप उसकी ओर से जैसा व्यवहार अपने लिये नही चाहते, उस के साथ उसी रुप में पेश न आयें ।

         प्रेम की  ताकत पर भरोसा रखे । अगर प्रेम से कुछ  सम्भव नही हो सका  तो किसी दूसरी चीज़ से नही हो सकता । प्रेम ही मुक्ति का  द्वार  है । 

        जब बहिनों को यह  लगता है कि उन्हे दुनिया में कोई भी  भाई प्यार नही करता और भाईयो को लगता है दुनिया में कोई भी  बहिन प्यार नही करती, सब स्वार्थी है,  तब वह  जीवन ख़त्म करने का सोचते है ।

         असल में हर आत्मा  प्यार की  भूखी  है । इस इच्छा को केवल मन के द्वारा  पूरा कर सकते है । साधनों व  सुविधाओं से आप एक बच्चे को भी  खुश नही कर सकते ।इस लिए सभी के प्रति मन में स्नेह का भाव  रखो ।

          प्रेम का  नियम उल्टा चलता  है । अगर आप सोचें  कि वह मुझ से प्यार करें तो प्यार नही होगा क्योंकि वह इस के विपरीत   सोचेगा कि पहले  आप उस से प्यार करें ।

        मन में उसे कहे आई लव यू  लाइक यू तो वह वह भी  आप को कहेगा  आई लव यू  लाइक यू ।

        आप अपने मन में देखो  उसके जीवन में क्या चाहिये  जो मै उसे दूँ  उसकी  मदद करूँ । तब वह भी  बदले में आप के बारे ऐसे ही सोचेगा । इस से दोनो पक्षों में प्यार हो जायेगा और आत्म हत्या का  बीज   ही ख़त्म  हो जायेगा । आप की अमूल्य मानसिक उर्जा नष्ट होने से बच जायेगी ।

       यही नियम बोस वा कर्मचारी, गुरु वा चेला या पड़ोसी पड़ोसी में भी  लागू होता है ।

        एक शब्द मन में रिपीट करते रहो आप स्नेही है । चाहे वह डीजरव ( deserve ) करता हो या नही  करता /करती हो । जिंदगी में सदा आगे ही बढ़ते  रहेंगे ।

गुरु क्या है?


           स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कर्क रोग से पीड़ित थे। उन्हें खाँसी बहुत आती थी और वे खाना भी नहीं खा सकते थे। स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु जी की हालत से बहुत चिंतित थे।

         एक दिन की बात है स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने विवेकानंद जी को अपने पास बुलाया और बोले -

"नरेंद्र, तुझे वो दिन याद है, जब तू अपने घर से मेरे पास मंदिर में आता था ? तूने दो-दो दिनों से कुछ नहीं खाया होता था। परंतु अपनी माँ से झूठ कह देता था कि तूने अपने मित्र के घर खा लिया है, ताकि तेरी गरीब माँ थोड़े बहुत भोजन को तेरे छोटे भाई को परोस दें। हैं न ?"

नरेंद्र ने रोते-रोते हाँ में सर हिला दिया।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस फिर बोले - "यहां मेरे पास मंदिर आता, तो अपने चेहरे पर ख़ुशी का मुखौटा पहन लेता। परन्तु मैं भी झट जान जाता कि तेरा शरीर क्षुधाग्रस्त है। और फिर तुझे अपने हाथों से लड्डू, पेड़े, माखन-मिश्री खिलाता था। है ना ?"

नरेंद्र ने सुबकते हुए गर्दन हिलाई।

अब रामकृष्ण परमहंस फिर मुस्कुराए और प्रश्न पूछा - "कैसे जान लेता था मैं यह बात ? कभी सोचा है तूने ?"

नरेंद्र सिर उठाकर परमहंस को देखने लगे।

"बता न, मैं तेरी आंतरिक स्थिति को कैसे जान लेता था ?"

नरेंद्र - "क्योंकि आप अंतर्यामी हैं गुरुदेव"।

राम कृष्ण परमहंस - "अंतर्यामी, अंतर्यामी किसे कहते हैं ?"

नरेंद्र - "जो सबके अंदर की जाने" !!

परमहंस - "कोई अंदर की कब जान सकता है ?"

नरेंद्र - "जब वह स्वयं अंदर में ही विराजमान हो।"

परमहंस - "अर्थात मैं तेरे अंदर भी बैठा हूँ। हूँ ना ?"

नरेंद्र - "जी बिल्कुल। आप मेरे हृदय में समाये हुए हैं।"

परमहंस - "तेरे भीतर में समाकर मैं हर बात जान लेता हूँ। हर दुःख दर्द पहचान लेता हूँ। तेरी भूख का अहसास कर लेता हूँ, तो क्या तेरी तृप्ति मुझ तक नहीं पहुँचती होगी ?"

नरेंद्र -  "तृप्ति ?"

परमहंस - "हाँ तृप्ति! जब तू भोजन करता है और तुझे तृप्ति होती है, क्या वो मुझे तृप्त नहीं करती होगी ? अरे पगले, गुरु अंतर्यामी है, अंतर्जगत का स्वामी है। वह अपने शिष्यों के भीतर बैठा सबकुछ भोगता है। मैं एक नहीं हज़ारों मुखों से खाता हूँ।"
             याद रखना, गुरु कोई बाहर स्थित एक देह भर नहीं है। वह तुम्हारे रोम-रोम का वासी है। तुम्हें पूरी तरह आत्मसात कर चुका है। अलगाव कहीं है ही नहीं। अगर कल को मेरी यह देह नहीं रही, तब भी जीऊंगा, तेरे माध्यम से जीऊंगा। मैं तुझमें रहूँगा।

Saturday, March 21, 2020

साधना बिन्दु रूप की

बिंदु रूप की साधना 

1- बिंदु रूप में भगवान  को याद करना सब से आसान है । 

2-इस रूप को हरेक व्यक्ति,  बूढ़ा,  बच्चा और जवान,  अनपढ़ और पढ़ा  लिखा कोई भी याद कर सकता है । 

3-बिंदु रूप में याद करने से कोई साइड  एफेक्ट नहीं होता ।  इस का पुस्तकें पढ़ के भी अभ्यास कर सकते हैंं  । 

4-आप मन में बिंदु देखते रहो  । 

5-अपनी आंखों के आगे जितनी नजदीक या दूर कल्पना में एक  बिंदु  जैसा  आकाश  में सितारा देखते है,  देखते रहो । 

6-अगर कल्पना में बिंदु नहीं देख सकते है तो अपने सामने  शिव बाबा  का किरणों  वाला चित्र रख ले । 

7-अगर आप के पास  चित्र नहीं है तो कोई कागज पर एक बिंदु बना ले । 

-मोमबती या दीपक प्रयोग नहीं करना है । 

8-बस बिंदु को देखते हुये भाव  रखो यह परमपिता परमात्मा का दिव्य और अलौकिक रूप है । 

9-बिंदु को देखते हुये  मन में कहो आप शांति के सागर है ।  इसी संकल्प को दोहराते रहना है । 

या 

10-इस बिंदु को मन में देखते हुये कहो  आप प्यार  के सागर  है,  प्यार  के सागर  है । 

11-इन दो गुणों में से जो आप को पसंद है उसको मन में धीरे धीरे दोहराते रहो । 

12-जैसे ही हम भगवान  को याद करते है,  हमारा  मन परमात्मा से जुड़ जाता  है और परमात्मा की शक्ति हमारे  में आने लगती है । 

13-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

14एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

15-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को संदेश भेजने और उंहे शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

16-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

17-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो अनुभूति नहीं होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

18-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

19-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

 20-  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

21-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

      ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

Monday, March 9, 2020

मनचाही शक्तियों की प्राप्ति और कुदरती नियम -शक्ति पात

मनचाही प्राप्ति  और कुदरती नियम 

शक्तिपात 

1-शक्तिपात अर्थात अपनी शक्ति का हस्तांतरण करना । 

2-अगर हमारे पास  पदार्थ है तो हम दूसरों को भोजन कराते  हैं ।  लंगर चलाते  है । दूसरों को कपड़े दान  करते है ।   जरूरत मंदो को हर माह  कुछ ना कुछ  पदार्थ दान  करते रहते है । यह एक प्रकार का शक्तिपात  है । 

3-हम जिस भी धार्मिक  संस्था से जुड़े होते है,  उसको तन, मन और धन से यथा शक्ति सहयोग देते है ,  यह सहयोग भी एक शक्तिपात  है । 

4- अगर हमारे पास  धन है तो हम स्व इच्छा से स्कूल ,  कॉलेज,  यूनिवर्सिटी और फ्री हस्पताल खोल देते है या गरीब विद्यार्थियों की आर्थिक मदद करते है तो यह  भी शक्तिपात  है । 

5-हम गरीब लोगों को अपना मकान,  प्लाट,  कार ,  स्कूटर,  साइकल  आदि दान  दे देते है तो यह भी शक्तिपात  है । 

6-जब जब   प्राकृति  की तरफ से कोई  आपदा  आती है तो हम मानवता की भलाई के लिये आगे आते है और बिना स्वार्थ  सहयोग देते है । यह सहयोग भी शक्तिपात  है । 

7-स्थूल पदार्थों से जो हम दूसरों को सहयोग देते है यह पहले   स्तर का शक्तिपात  है ।  अगर यह ना हो तो समाज  नष्ट हो जायेगा । 

8-दूसरे स्तर का शक्तिपात  है लोगों को रोजी रोटी कमाने की कला सिखाना । 

9-हर व्यक्ति में कोई ना कोई कला होती है ।  संगीत कला,  पाक कला  उपचार कला,  इंजिनियरिंग की कला,  टीचिंग की कला अर्थात आप गायक है,  अच्छे कुक है,   इंजिनियर है,  अच्छे मेकेनिक है,  अच्छे डांसर है,  अच्छे पहलवान है,  अच्छे कोच है,  वकील है,  शिक्षक  है,  किसान  है,  प्रॉपर्टी डीलर है,  प्रचारक है ।  हम अपनी यह कला दूसरों को सिखा कर उन्हें  रोजी रोटी के लायक बनाते है ।  यह दूसरी तरह  का शक्तिपात  है । 

10-हम सक्षम है और लोगों को रोजगार देते है ।  घर में ,  दुकान में ,  फेक्टरी  में लोगों को रोजगार देते है ।  यह   भी शक्तिपात  है । 

11-हम मेहनत कर के  अच्छी पढ़ाई से सरकार  में उंच नौकरी आई  ए  एस या आई पी एस बन जाते  है तो सरकार  हमें बहुत  सारी शक्तिया  दे देती है । इसे भी शक्तिपात  कह सकते   हैं । 

12-हम समज सेवा करते करते पार्षद,  महापौर,  एम एल ए,  एम पी,  -  मुख्यमंत्री,  मंत्री,  प्रधान मंत्री  और राष्ट्रपति बन जातें  है ।  इस से हमें अथाह शक्तियां  मिल जाती  है ।  ये भी शक्तिपात  कहते  है । 

13-पवित्रता,  योग साधना  और सेवा करते करते जब हम आंतरिक रूप से योग्य बन जाते  है  तो ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न  महापुरुष या भगवान  हमें अपनी शक्तियां  दे देते है ।  असल में यही वास्तविक शक्ति पात  है । जिसका बहुत  महिमा मंडन है ।

Friday, February 21, 2020

मानसिक शक्ति संकल्प


1-शांति और प्रेम यह आत्मा के मूल गुण है । सारा संसार इसी पर खड़ा  है । इन्ही दो शव्दो में अथाह बल है । इसे ही डेवेलप करना है ।

2-कौन से शब्द व गुण का  अभ्यास करना चाहिये । जिस से हमे अपने जीवन में  मन इच्छित फल मिले तथा ईश्वरीय शक्तियों प्राप्त कर सके ।

3-आप अपने को देखो आपको क्या पसंद है । शांति या प्रेम । अगर शांति पसंद है तो शांति का  अभ्यास हर समय करो अगर प्रेम पसंद है तो प्रेम  का  अभ्यास  करो ।

4-शांति सब को प्रिय है इसलिये हम शांति के संकल्प  को ले कर चलते है ।

5-मै शांत हूं शांत हूँ सदा  इस भाव में टिके  रहो ।  परमात्मा को देखते हुए आप शांति के सागर  है , इस गुण से याद करो । कोई व्यक्ति देखो या याद आयें तो उसको कहो आप शांत स्वरूप है । जब इस तरह एक ही संकल्प मन में रखेगे तो उस का एक गति चक्र बन जायेगा ।

6-इसी तरह के और भी  अच्छे  शव्दो को हम ले सकते है । इन शव्दो को  बार बार  दोहराते  रहे तो उस  से उत्पन्न हुई  ध्वनि या कम्पन की तरंगे सीधी या साधारण नहीं रह जाती । वह एक वृत बन  जाती हैँ  और  वह  तरंगे घूमने लगती हैँ 

7- इन तरंगो का   वृताकार रूप में  घूमना उस व्यक्ति और ब्रह्माण्ड में एक असाधारण शक्ति प्रवाह उत्पन करता है । उस के फल स्वरूप उत्पन्न  हुए   परिणामों  को चमत्कार कहेंगे  ।

8--इस शब्द की शक्ति को दूसरे प्रकार  से समझा  जा सकता है ।

9--शेर की दहाड़ से हम डर जाते  है ।

10--कोयल की कूक सुनते ही मनुष्य में प्यार उमड़ने लगता है ।

11-दही को मथने से माखन निकलता है ।

   12-शुध्द संकल्प को रीपीट करने से ऐसी शक्ति निकलती है जो रोग ठीक कर देती है । अलग अलग रोगॊ को ठीक करने के लिये कौन से शब्द और कितनी मात्रा में हो जो रोग ठीक हो जाये यह खोज करनी है ।

  13-अल्ट्रा साउंड तरंगों  से  तरह तरह के इलाज सम्भव हो रहे है ।

  14-बिजली, भाप, एटम,बारूद आदि सूक्ष्म में कम्पन शक्ति ही  है ।

  15- संकल्प से भी  कम्पन पैदा  होते हैंं   तथा  इस से हम सर्व श्रेष्ट ईशवरीय शक्तियों को पकड़ सकते है ।

16-संगीत से पशु अधिक दूध देते है ।

 17-बीन  बजा  कर हम साँप को वश में कर सकते है ।

 18-संगीत से दीपक जला  सकते है ।

 19- बादलों  से वर्षा  करवा सकते है ।

  20- ऐसे ही हम अलग अलग  संकल्पों से उपलब्धिया पा सकते है । परंतु यह खोज करनी है । इस से संसार का कल्याण होगा ।

Thursday, January 23, 2020

मानव के प्रकृति से सम्बन्ध

 वृक्ष पर्यावरण की दृष्टि से हमारे  परम रक्षक और मित्र है। 

वृक्ष हमें अमृत प्रदान करते  है। 

     हमारी दूषित वायु को स्वयं ग्रहण करके हमें प्राण वायु देते  है।

      वृक्ष हर प्रकार से पृथ्वी के रक्षक हैं जो मरूस्थल पर नियंत्रण करते हैं, नदियों की बाढ़ो की रोकथाम व जलवायु को स्वच्छ रखते हैं । 

        पेड़ों की एक और विशेषता  है जिस की तरफ संसार का अभी ध्यान नहीं गया  है । 

प्रत्येक पेड़-पौधा एक छोटा-सा विद्युत गृह भी है । 

       जैसे ही हम किसी पेड़ को देखते है उस पेड़ की विद्युत हमें मिलने लगती है ।  हमारे  रोग ठीक हो जाते  है ।  हमारी  आत्मिक शक्ति बढ़ जाती  है । 

      यही कारण है कि  ऋषि जंगलों वा  पहाड़ों पर तपस्या करते थे । 

        कई  ऐसे रोग होते है जिनके हो जाने  पर डॉक्टर्स पहाड़ों पर पेड़ों के बीच रहने के लिये भेज देते है । क्योंकि वहां  वृक्षों से पर्याप्त मात्र  में विद्युत मिलती है । 

       जब हम थके हुये होते है और  किसी हरे भरे बाग  में जाने  पर या हरियाली वाले  स्थान पर जाने  से थकावट दूर हो जाती  है ।  

        असल में हमें  पौधों से विद्युत मिलती है जिस से हमारी थकावट उतर जाती  है । 

        रंग बिरंगे फूलों और हरे पतों को देख कर खुशी होती है क्योंकि उनमें  प्रचुर  विद्युत होती  है । 

         अगर हम किसी पौधे को देखते ही यह सोचे   कि आप   कल्य़ाणकारी  है या कोई और सकारात्मक शब्द बोलते हैं    तो उस की विद्युत  हमारे  में आने लगती है और हमें अच्छा अच्छा लगने लगता है  । 

      कोई गुलाब के फूलों से स्वागत करे  तो हमें कितना अच्छा  लगता  है । अक्सर  स्नेह प्रकट करने का यही उतम ढंग है दूसरों को फूल देना ।  परंतु इसके पीछे फूलों की विद्युत है जो हमें आकर्षित करती है । सकून देती है । 

         जिन पेड़-पौधों से  प्रचुर मात्रा में बिजली  मिलती है -वह है  केला, कैक्टस, गुलाब, अगिया घास, आक, बैगन, आलू, मूली, प्याज, टमाटर, पपीता, हरी मिर्च, अमरूद आदि वृक्ष एवं सब्जियों के पौधे हैं। इन पौधों की विद्युत से हम बल्ब तक जला सकते हैं । 

         आपके आसपास जो भी पौधे है या कहीं  आते जाते  देखते हैं  तो उन पौधों को सकारात्मक विचार दिया करो ।  इस से उनकी विद्युत आप में आने लगेगी  और आप की खुशी बढ़ेगी ।  जितना  ज्यदा पौधों को तरंगें देंगे उतना ही आप का मानसिक  बल बढेगा और आप सहज योगी बन जायेंगे ।

Wednesday, January 22, 2020

प्रेम और क्षमा


प्रेम और क्षमा 

           प्रेम की कमी के कारण तथा शारीरिक  कमजोरी के कारण  भी डर लगता  है । जब शरीर मे किसी खास  किस्म के  विटामिन  और मिनरल कम हो जाते  है तो खास  कमजोरी हो जाती है जिस से डर लगने लगता  है । लोग सोचते हैं यह  किसी पाप के कारण होता है । पाप भी एक कारण  है । परंतु ज्यादा  कारण  कुपोषण  है । बुढापे मे मनुष्य लाठी को सहारा समझता है जब कि  लाठी मे कोई ताकत नहीं होती । इसलिये भय महसूस होने पर नीच कर्म  समझ माफिया न  माँगते रहो । परंतु शरीर को उम्र अनुसार स्थूल  खुराक   और प्यार दो ।

         आत्मा  मे शक्ति भरती  है शांति और  प्रेम से । परमपिता परमात्मा  को याद करने से आत्मिक बल बढ़ता है । तथा  जो भी मनुष्य सामने  दिखाई  दे या याद आये उसे देखते ही मन मे कहो आप शांत है या कहे आप स्नेही है । इस से हमारे अन्दर शांति और प्रेम के भाव  बढेगे और परमात्मा  से भी जुड़ते जायेगे । धीरे धीरे आत्मा शक्तिशाली बन  जायेगी और भय ख़त्म हो  जायेगा ।

         प्रेम मे ऐसी शक्ति है जो हमारे ऐसे रिशतेदार  और मित्र वा सम्बन्धी  जो शरीर छोड़ चुके  है उनके पास भी पहुँचता  है । असल मे वे सभी इस संसार मे जन्म ले  चुके  हैँ और एक अलग फ्रेक्वेन्सी  पर रह रहे है इसलिये वे दिखाई  नहीं देते । प्रेम एक ऐसी फ्रेक्वेन्सी  है जो उन आत्माओ  को भी ढूँढ़ लेती  है । सिर्फ उन की शक्ल को कल्पना मे देखते ही हमारा मन उनसे जुड़ जाता है । वह चाहे कहीं भी रह रहे हो । उनके पास स्थूल भोजन, स्थूल पदार्थ और पैसे नहीं पहुंचते । इसलिये अगर हम उनकी मदद करना चाहते  है  तो उनके प्रति प्रेम और शांति की तरंगे भेजो जो उन्हे शक्तिशाली  व  मालामाल कर देंगी  । वे चाहे कैसे भी थे उन्हे दुआयें दो शुभ भावनायें  दो । यही एक विधि है जिस से उनकी मदद कर सकते हैँ ।  यही सच्ची क्षमा  भी है ।

        फलाने व्यक्ति ने आत्म हत्या कर ली, फलाना व्यक्ति एक्सीडेंट मे मर गया,   कोई बीमारी से मर गया, जब भी आप कोई ऐसा समाचार सुने, बेशक आप उसे जानते हो या न जानते   हो, उसके लिये भी परमात्मा से  शांति और प्रेम की कामना करो। ऐसे महसूस करो जैसे आप उन्हे प्यार से पुचकार रहे है । आप का यह भाव  उनको भी पहुंचेगा ॥

          निर्जीव वस्तुओं, यंत्रों एवम पानी आदि पर भी भावनाओ  और विचारो का प्रभाव पड़ता  है । प्रत्येक पदार्थ एक तरंग है ।  इस लिये आप अपनी वस्तुओं, उपकरणों आदि निर्जीव  चीजो को एक नई दृष्टि से देखो । हमारी मानसिक शांति, दैनिक जीवन मे काम आने वाली वस्तुओं और उपकरणों पर भी निर्भर है । उन्हे भी प्यार दो, धन्यवाद दो, उनका पूरा  रख रखाव रखो वे आपके लिये भाग्यशाली सिध्द  होगे । उन्हे ऐसे रखो जैसे हम घर  के सदस्यों की देखभाल करते है ।

Friday, January 10, 2020

संगीत का असर

 संगीत से  जादू जैसा  असर होता है । 

        बरसात क़ी नन्ही नन्ही बूंदो का रिमझिम राग  सुनते ही कोयल कूक  उठती है । 

       पपीहे गा उठते हैं ।  मोर नाचने लगते हैं  । 

        लहलहाते खेतों को देख कर किसान आनंद विभोर हो उठते हैं । 

         मधुर संगीत का असर  तो प्रत्येक जीवधारी,  पेड़ पौधो और प्राकृति  पर भी  होता हैं । 

        संगीत का  मन पर बहुत असर होता हैं ।  हम अक्सर मधुर गीतो क़ी तरफ खींचे चले जाते हैं । 

       यही कारण हैं कि  संतो और देवताओ ने भक्ति में वाद्य यंत्रो को     महत्वपूर्ण माना  है । 

       शिव के हाथ में डमरू दिखाया  जाता है । 

      श्री  कृष्ण के हाथ में मुरली दिखाई जाती है  । 

        यदि कोई वाद्य यंत्र ना हो तो ताली बजा कर भगवान क़ी याद  में खो जाते है ।

       संगीत को ईश्वर का दर्जा प्राप्त  है । 

     जब कभी तनाव,  उदासी,  हीनता आने लगे तो तुरंत मधुर संगीत सुनना  चाहिए ।
ओम शान्ति..

Monday, December 30, 2019

शिव शक्ति का परिचय

1-भगवान का सिमरण करते ही हमें  रूहानी  शक्ति मिलने लगती है़ 

2-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

3-एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर शरीर की प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

4-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को  शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

5-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

6-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो कम अनुभूति  होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

7-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

8-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

9 -  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

10-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

  11-    ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

Thursday, December 26, 2019

विचारों या मानसिक तरंगों से सर्व प्राप्तियां

1-मानसिक तरंगों से   शांति और शक्ति बढ़ती है़  । 

2-हमारे सभी विचारो , भावनाओ , व्यवहार , सुख- दुःख की अनुभूति हमारे दिमाग में मौजूद न्यूरान्स  की वजह से होती है ! इन न्यूरान्स की  गतिशीलता ही हमारी मनोदशा को निर्धारित करती है !

3-अच्छी  और उच्च  तरंगो को दिमाग तक पंहुचाकर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है या यूँ  कहे की मूड को बदला जाता है !  

4-संगीत वाद्य यंत्रो की ध्वनियों को मिलाकर अलग अलग फ्रेक्वेन्सी की तरंगें बनाई जाती   है । 

5-हम जो भी क्रिया करते है या जो महसूस करते है उसके हिसाब से हमारे दिमाग में तरंगें  बदलती रहती है ! 

6-जब धीमी तरंगें  हमारे दिमाग पर हावी होती है तब हम थका हुआ , सुस्त, या नींद का अनुभव करते है ! जरा  सा  हिंसक  या विध्वंस्क विचार  आने से धीमी तरंगें बनती  हैं  । ड्रम बीट  से भी धीमी तरंगें  पैदा  होती हैं । 

7-जब तेज तरंगें  हावी होती है तब हम अति सावधान और सक्रिय महसूस करते है । 

8-अच्छी तरंगें   बहुत तेजी से चलने वाली होती है । बांसुरी जैसी  आवाज,  कोयल जैसी आवाज,  पपीहे जैसी आवाज  से ये तरंगें बनती  है  । इन तरंगों से बुद्धिमता , करुणा , मजबूत आत्म नियंत्रण , स्मरण शक्ति और ख़ुशी बढ़ती  है । 

9- जब हमारा शरीर अच्छी  तरंगो के संपर्क में आता है तब तब हमेंं  देखने , सूंघने, सुनने और खाने में अच्छे स्वाद का अनुभव होता है ! जहां और जब  हमें अच्छा  अच्छा लगता है वहां  ऐसी तरंगें होती है । 

10-जब हमारा दिमाग इन तरंगो के संपर्क में आता  है तो  हमारे दिमाग को नई नई  सूचनाये याद रखने में सहायता मिलती है !

11- ये तरंगें हमारे दिमाग तक  मेडिटेशन  के अभ्यास से भी  पहुंचती  है ।   

12- जब हम अपनी पसंद का कोई कार्य कर रहे होते है तब  भी हमारा दिमाग अपने आप ऐसी  शक्तिशाली  तरंगें पैदा करता है ! जिस काम  को हम खुशी खुशी करते है उस से अच्छी अच्छी तरंगें बनती  है । 

13-जब हम दूसरों का  कल्याण सोचते है तो उस समय मन से निकलने वाली तरंगें बहुत तेज़ और गतिशील होती है ! जब हम बहुत सजग अवस्था में किसी गंभीर समस्या का समाधान खोज रहे होते है या कोई निर्णय ले रहे होते है तब भी हमारे दिमाग की  कोशिकाओं  में ये तरंगें पैदा होती है  तथा बहुत ज्यादा उर्जा और उत्तेजना पैदा करती है । 

14-कई  बार  बाबा के गीत   या अन्य  धार्मिक  गीत हमें सकून देते है ।   उस  समय शक्तिशाली तरंगें बनती  है जिनके सुनने से हमें  लाभ होता है । जब हमें  बहुत उर्जा की आवश्यकता होती है तब भी ऐसी आवाजों के सुनने से लाभ होता है । 

15-अल्फ़ा  तरंगें  हमारे दिमाग सेल्स में तब उत्पन्न होती है जब शांति से सोच रहे होते है!  मैडिटेशन की अवस्था में भी  अल्फ़ा तरंगें बनती  है ।   अल्फा तरंगें  दिमाग को  आराम देने में सहायक होती है इसलिए अल्फा तरंगों  को पूरे मानसिक समन्वय , शांति और शरीर के सभी अंगो के  एकीकरण करने  के लिये  इस्तेमाल किया जाता है !

16-जब हम निंद्रा या गहरे ध्यान में होते है तब थीटा तरंगें  उत्पन्न होती है ! ये तरंगें कुछ नया सीखने और स्मृति को बढ़ाने वाली होती है !

17- जब हमारा दिमाग थीटा तरंगों  के संपर्क में आता है तब हमारे दिमाग का संपर्क बाहरी दुनिया से कम हो जाता है तथा हमारा ध्यान उस पर केन्द्रित हो जाता है जिस विषय पर हम सोच रहे  होते है ।

Wednesday, December 25, 2019

प्रेम और परिणाम

1-आप अपने सम्बन्धों में जो भी भावना दे रहे हो,  वही आप को वापिस मिलेगी ।

2- आप के जीवन में कोई नकारात्मक चीज़ हुई  है तो आप उसे बदल सकते है । सिर्फ उसके बदले मन चाही अच्छी  चीज़ का अहसास करो ।

3-लोग भावनाओ की शक्ति से   अनजान होते है  इस लिये अपने साथ होने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया करते रहते है ।

4-वे अपनी भावनाओ  पर लगाम नही लगाते ।

5-किसी घटना पर प्रतिक्रिया करते समय उनके मन में नकारात्मक  परिणाम  होते है ।

6-अगर प्रतिक्रिया करते समय सकारात्मक भावना  होती है तो सकारात्मक  परिणाम होते है ।

7-अपनी भावना  की वजह से बुरे चक्र में फँस जाते  है ।

8-जीवन उसी  गोले  में घूमता  रहता  है ।

9-आप के साथ जो होता है  वह मायने नही रखता  । मायने यह रखता है कि  आप प्रतिक्रिया कैसे करते है ।

10-महसूसता  को बदलने से आप अलग फ्रीक्वेंसी पर पहुँच  जाते है और ब्रह्माण्ड वैसी ही प्रतिक्रिया करता है ।

11-अफसोस करने में  एक पल भी न गंवाओ । अतीत की गलतियों के बारे गहरी भावना  रखना   अर्थात खुद को फ़िर से बीमार करना है ।

12-अगर आप के जीवन में हर प्रिय और मनचाही चीज़ नही है तो इसका  मतलब यह नही है की आप अच्छे  और प्रेमपूर्ण व्यक्ति नही है ।

13-असल में होता क्या है? वह यह कि  हम लगातार प्यार नही देते ।

14--थोड़ी देर किसी को प्यार देते है । फ़िर नही देते, क्यों कि हमे और और काम आ जाते है ।

15-निश्चित समय पर कोई नही पहुँचता है तो हम उसे दोष देने लगते है । दोष देना अर्थात प्रेम न देने का  बहाना  है ।

16-अगर आप जीवन में भिन्न  भिन्न  समय या स्थितियो में  दोष देते है तो आप को दोषपूर्ण स्थितियॉ  ही मिलेगी ।

17-दोष देना, आलोचना करना, गलती खोजना, और शिकायत  करना ये सभी नकारात्मक आदतें है ।

18-मौसम,  ट्रेफिक,  सरकार, जीवन साथी, ग्राहक शोरगुल, महँगाई  आदि हानि रहित दिखने वाली इन छोटी  छोटी बातो  की  वजह से अनेकों बुरी चीजे जीवन में आ जाती है ।

19-हम दूसरो के जीवन में जो कुछ  भेजते है वही हमारे जीवन में लौट कर आता है ।

20-ज़माना गंदा है, लोग बेइमान  है,  चरित्रहीनता  है, भ्रष्टाचार  है, ये शब्द कहने से आप का जीवन भी वैसा ही बन जायेगा ।

21-सब अच्छे  है, सब बढ़िया  है, ठीक हो जायेगा, इस में भी और सकारात्मक  विचार  लाओ  तो देखना  जीवन कितना सुंदर बन जायेगा  ।

22-आप ने किसी का नुकसान कर दिया । कुछ  दिनो बाद आप के घर  चोरी हो गई । इन दोनो घटनाओं में डायरेक्ट सम्बन्ध नही है  । परंतु यह आप के विचारो के कारण हुआ है ।  आप ने नुकसान किया  अर्थात प्यार नही दिया, आप के चोरी हो गई अर्थात दुख के बदले दुख मिला ।

Monday, December 16, 2019

शब्द और चरित्र

1-हमारे मुख और मन  से निकला हुआ प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कम्पन्न  उत्पन करता है । 

2-उस कम्पन्न  से लोगो में अद्रश्य प्रेरणाये जागृत होती है ।

3-प्रत्येक शब्द/संकल्प  को चित्रित किया जा सकता है ।

 4-ध्वनि कम्पनो  के इस चित्रण को स्पेक्ट्रोग्राफ कहते है ।

5-आप  जो   कुछ भी  बोलते है स्पेकट्रोग्राफ  उसे टेढ़ी मेढ़ी  लकीरों में दिखाता  है ।

6-हर व्यक्ति के ध्वनि तरंगो की जो रेखाये बनती है, वे चाहे एक ही वाक्य बोलें,  उस से बनी रेखाओं का रुप अलग अलग होगा ।
7-एक व्यक्ति बीमारी में, सर्दी में,  गर्मी में,  तूफान  में जब भी  बोलेंगे उन की  आवाज़  से एक जैसी रेखाये बनेगी अर्थात जो बोलते है, उन रेखाओं पर प्रकृति का प्रभाव नहीं  पड़ता   ।

8-हर व्यक्ति  अगर कोई  एक ही वाक्य बोले जैसे कोयल काली  होती है, तो इस वाक्य की हर व्यक्ति की आवाज़ से अलग अलग लाइन्स बनेगी ।

9-शरीर में कुछ  ऐसे चक्र होते है जो शव्दो वा संकल्पों को अपने अपने ढंग से प्रभावित और प्रसारित  करते है । स्वर की  लहरों को रोग निवारण  में प्रयोग किया  जा सकता है ।

10-हम जो कुछ  भी पढ़ते सुनते या  करते है़ दिमाग उन सब के चित्र बना कर स्मृति में रख लेता है़ । 

11-अगर हम सभी चीजो का बातों का सोच कर कोई चित्र बनाते है़ तो उसे  सहज ही याद रख सकते हैं  । 

12-`दो लड़ते हुए व्यक्ति ज्यादा याद रहते है़ ।  खड़ा हुआ  व्यक्ति ज्यादा याद नहीं आता । 

13-फिल्मे ज़्यादा याद रहती है़ ।  नाटक ज्यादा याद रहते है़ । 

14-चलते हुए जीव जंतु,  चलती हुई गाड़ियां ज्यादा याद रहती हैं  । 

15-आप जीवन मेंं जो भी याद रखना चाहते है़ उसे पांच इन्द्रियों से जोड़े । 

16-ये इन्द्रियां हैं,  आंख,  नाक,  कान,  मुख और स्पर्श । 

17-जो चीजे हम आंखो से देखते है़ वह हमें सहज ही याद आती रहती है़ ।  उसके लिये मेहनत नहीं करनी  पड़ती । 

18-जो चीज याद रखनी है़, उसे देखते ही  दिमाग में कोई शक्ल बना लो,  या  कोई फूल,  पेड़,  कार आदि बना लें । 

19-कोई भी बुक पढ़ें उसके अंदर सभी पायंट्स क़ी आकृति बना लें । 

20-अगर आप योगी हैं तो  आध्यात्मिक  शक्तियों  का  मन में  चित्र बना लें । 

21-सर्व गुण सम्पन्न बनना है़ तो मन में  लक्ष्मी नारायण  का चित्र देखते रहो । 

22-स्वर्ग का चित्र मन में देखते रहो । 

23-शिव बाबा,  ब्रह्मा बबा या  किसी ईष्ट का चित्र मन में देखते रहो । 

24-जो भी चित्र स्थूल या   मन में देख  रहे हैं , आप को उस जैसा बनने क़ी  प्रेरणा  मिलेगी ।

Monday, December 9, 2019

मन की शक्ति

   मन  के केन्द्र 

       प्रत्येक  व्यक्ति  एक पल मेंं  क्रोध,  दूसरे पल   लोभ, तीसरे पल  मोह और ऐसे ही  अहंकार,  ईर्ष्या ,  द्वेष या  अन्य कोई न कोई नकारात्मक विचार या बोल बोलता रहता हैं या सोचता रहता हैं  और उनकी पीड़ा महसूस करता रहता है़  । 

      इसी तरह  हम   कभी शांति,  कभी प्रेम,  कभी  आंनद,  कभी खुशी कभी दया के बोल बोलते या सोचते  रहते हैँ, और सुखद अनुभुति करते रहते है़ । 

       समझ नहीं आता  एक पल मेंं विचार और बोल  कैसे बदल जाते हैं  और कैसे उन से अलग अलग महसूसता होने लगती हैँ । 

      आज T  V , पंखा, कूलर, हीटर, A C ,   कंप्यूटर, मोबाइल  आदि   अनेकों यंत्र लगभग सभी घरो मेंं  हैं ।  ।

  ये सभी यंत्र विद्युत से चलते है ।

      विद्युत वही होती है परंतु  यंत्र अपनी बनावट अनुसार प्रभाव छोड़ने  लगते  है ।

      विद्युत पंखे को देते तो हवा होने लगती है,  यही विद्युत हीटर में देते है तो गर्मी होने लगती है, यही विद्युत टेप  रेकोर्डेर में देते तो संगीत बजने लगता  है....... आदि आदि.।

       क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य आदि और कुछ  नही हमारे मन में ऐसी कोशिकाएं है़ जिन्हें हम  यंत्र या  केन्द्र कह सकते है़ । 

      विचार विद्युत है़ । 

-       जब हमे क्रोध  का संकल्प   उठता  है तो वह  विचार क्रोध वाली कोशिका/ केन्द्र से गुजरने लगता है ।  इस केन्द्र से  जब विचार गुजरते हैं तो ये  केन्द्र   हीटर की तरह गर्मी  अर्थात   क्रोध रूपी आग उगलने लगता  है । 

-        संकल्प जब लोभ केन्द्र  से गुजरता  है तो ऐसी तरंगे निकलने लगती जिस से हम  लोभ मेंं आ जाते है़ और फंस जाते हैं । 

-        विचार जब  ईर्ष्या -द्वेष का होता है  तो यह उस केन्द्र से गुजरता है जिस  से मिर्ची के जलने जैसी दुर्गंध निकालती है और   हम बेचैन   होने लगते  है़  । 

        जब आलस्य के विचार होते है़ तो यह उस कोशिका/ केन्द्र से निकलते है़ जिस से सूक्ष्म रस्सियां  बनती है़ जो हमें जकड़ देती है़ और हम जकड़ जाते हैं उठा  नहीं जाता जिसे हम आलस्य कहते हैं । 

      हमारे मन में शांति, प्रेम, सुख, आनंद, दया वा करुणा  आदि के केन्द्र बने हुए है । जब विचार  इन से गुजरते है तो  वैसा ही प्रभाव छोड़ते है और हम उमंग उत्साह मेंं रहते हैं । 

      मन समय और परिस्थिति अनुसार अपने आप नये नये केन्द्र बनाता रहता  है । 

       योग और कुछ  नही सिर्फ शांति, प्रेम, सुख व  आनंद के केन्द्रों को  सक्रिय (activate )  करना है अर्थात उन का अधिकतम प्रयोग बढाना  है ।  हमे हर समय इन केन्द्रों से काम लेना है । अगर इन अच्छे  केन्द्रों  का हर समय प्रयोग करते है तो बाकी सब बुरे केन्द्र बँद हो जाते  है ।

        सतयुग  में पाँच विकार और उन से सम्बन्धित बुरे केन्द्र एक दम बंद हो जाते  है और सिर्फ अच्छे  केन्द्र जागृत रहते है ।

         जैसे ही हमे कोई विचार  उठता  है वह स्वयमेव (  automatically ) सम्बन्धित केन्द्र पर चला  जाता है और उसी अनुसार तरंगे प्रवाहित होने  लगती   हैं  ।

        आज मनुष्य का विचार  स्थिर   नही है़  । वह एक मिनिट में कभी शांति,  कभी दुख,  कभी नाराजगी,  कभी निराशा,   कभी कमजोरी के विचार  करता  है । 

       अगर हम   कूलर,   पंखा, एयर कंडीशनर,    हीटर,  ओवन सब इकठा  चला  दें  तो न हवा का सूख न   ठंडक का सूख  न  ही गर्मी का  सुख ख पा  सकेंगे क्योंकि पर्याप्त समय तक कोई भी यंत्र  नही चलाया  जिस से अनुकूल वातावरण बन सके । 

       ऐसे ही कोई भी श्रेष्ट संकल्प  जब तक पर्याप्त समय तक नही चलाएगे तो उससे सम्बन्धित बल पैदा  नही होगा ।

       अगर कोई भी साकारात्मक   संकल्प हम दस हजार  बार लगातार दिमाग में दोहराते   है तो उस से इतना मानसिक बल पैदा हो जाता है जो उस एक दिन कोई भी नकारात्मकता का हमारे पर प्रभाव नहीं होगा  । 

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Saturday, November 2, 2019

हाथ की पांच अंगुलियों से जानकारी

हमारे हाथ की पांचो उंगलिया शरीर के अलग अलग अंगों से जुडी होती है | 

शायद आप को पता न हो, हमारे हाथ की उंगलिया चिंता, डर और चिड़चिड़ापन दूर करने की क्षमता रखती है | उंगलियों पर धीरे से दबाव डालने से शरीर के कई अंगो पर प्रभाव पड़ेगा |

• 1. अंगूठा - The Thumb.

हाथ का अंगूठा हमारे फेफड़ो से जुड़ा होता है | अगर आप की दिल की धड़कन तेज है तो हलके हाथो से अंगूठे पर मसाज करे और हल्का सा खिचे | इससे आप को आराम मिलेगा |

• 2. तर्जनी - The Index Finger.

ये उंगली आंतों  gastro intestinal tract से जुडी होती है | अगर आप के पेट में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा रगड़े , दर्द गयब हो जायेगा।

• 3. बीच की उंगली - The Middle Finger.

ये उंगली परिसंचरण तंत्र तथा circulation system से जुडी होती है | अगर आप को चक्कर या  आपका जी घबरा रहा है तो इस उंगली पर मालिश करने से तुरंत रहत मिलेगी |

• 4. तीसरी उंगली - The Ring Finger.

ये उंगली आपकी मनोदशा से जुडी होती है | अगर किसी कारण आपका मनोदशा अच्छा नहीं है या शांति चाहते हो तो इस उंगली को हल्का सा मसाज करे और खिचे, आपको जल्द ही इस के अच्छे नतीजे प्राप्त हो जयेगे, आप का मूड खिल उठे गा।

• 5. छोटी उंगली - The Little Finger.

छोटी उंगली का किडनी और सिर के साथ सम्बन्ध होता है | अगर आप को सिर में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा दबाये और मसाज करे, आप का सिर दर्द गायब हो जायेगा | इसे मसाज करने से किडनी भी तंदरुस्त रहती  है |

Monday, March 11, 2019

अंसतुष्टि ही हमारे दुःख का कारण

                 एक बार की बात है, किसी जंगल में एक कौवा रहता था,वो बहुत ही खुश था,क्योंकि उसकी ज्यादा इच्छाएं नहीं थीं। वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट था,लेकिन एक बार उसने जंगल में किसी हंस को देख लिया और उसे देखते ही सोचने लगा कि ये प्राणी कितना सुन्दर है, ऐसा प्राणी तो मैंने पहले कभी नहीं देखा!इतना साफ और सफेद।यह तो इस जंगल में औरों से बहुत सफेद और सुंदर है, इसलिए यह तो बहुत खुश रहता होगा।
                    कोवा हंस के पास गया और पूछा,भाई तुम इतने सुंदर हो, इसलिए तुम बहुत खुश होगे?इस पर हंस ने जवाब दिया, हां मैं पहले बहुत खुश रहता था, जब तक मैंने तोते को नहीं देखा था।उसे देखने के बाद से लगता है कि तोता धरती का सबसे सुंदर प्राणी है।
                     हम दोनों के शरीर का तो एक ही रंग है लेकिन तोते के शरीर पर दो-दो रंग है,उसके गले में लाल रंग का घेरा और वो सूर्ख हरे रंग का था,सच में वो बेहद खूबसूरत था।अब कौवे ने सोचा कि हंस तो तोते को सबसे सुंदर बता रहा है,तो फिर उसे देखना होगा।
                     कौवा तोते के पास गया और पूछा, भाई तुम दो-दो रंग पाकर बड़े खुश होगे?इस पर तोते ने कहा,हां मैं तब तक खुश था जब तक मैंने मोर को नहीं देखा था।मेरे पास तो दो ही रंग हैं लेकिन मोर के शरीर पर तो कई तरह के रंग हैं।अब कौवे ने सोचा सबसे ज्यादा खुश कौन है,यह तो मैं पता करके ही रहूंगा।इसलिए अब मोर से मिलना ही पड़ेगा। 
                        कौए ने मोर को जंगल में ढूंढा लेकिन उसे पूरे जंगल में एक भी मोर नहीं मिला और मोर को ढूंढते-ढूंढते वह चिड़ियाघर में पहुंच गया,तो देखा मोर को देखने बहुत से लोग आए हुए हैं और उसके आसपास अच्छी खासी भीड़ है। 
                         सब लोगों के जाने के बाद कौवे ने मोर से पूछा,भाई तुम दुनिया के सबसे सुंदर जीव हो और रंगबिरंगे हो, तुम्हारे साथ लोग फोटो खिंचवा रहे थे।तुम्हें तो बहुत अच्छा लगता होगा और तुम तो दुनिया के सबसे खुश जीव होगे? इस पर मोर ने दुखी होते हुए कहा, भाई अगर सुंदर हूं तो भी क्या फर्क पड़ता है! मुझे लोग इस चिड़ियाघर में कैद करके रखते हैं, लेकिन तुम्हें तो कोई चिड़ियाघर में कैद करके नहीं रखता और तुम जहां चाहो अपनी मर्जी से घूम-फिर सकते हो। इसलिए दुनिया के सबसे संतुष्ट और खुश जीव तो तुम्हें होना चाहिए, क्योंकि तुम आज़ाद रहते हो। 
                          कौवा हैरान रह गया, क्योंकि उसके जीवन की अहमियत कोई दूसरा बता गया। ऐसा ही हम लोग भी करते हैं। हम अपनी खुशियों और गुणों की तुलना दूसरों से करते हैं, ऐसे लोगों से जिनका रहन-सहन का माहौल हमसे बिलकुल अलग होता है। 
                          हमारी जिंदगी में बहुत सारी ऐसी चीज़ें होती हैं, जो केवल हमारे पास हैं, लेकिन हम उसकी अहमियत समझकर खुश नहीं होते। लेकिन दूसरों की छोटी ख़ुशी भी हमें बड़ी लगती है, जबकि हम अपनी बड़ी खुशियों को इग्नोर कर देते हैं|

नाराजगी और व्यवहार

                 जब भी हम नाराज होते है तो हमें यह पता होता हैं कि हम किस वजह से नाराज है । कोई पेड़ या पौधा, भौंरा या कीड़ा... दूसरों को मारने की साजिश नहीं रचता ।
                  मनुष्य अपने विचारो को दूसरों पर थोपने का प्रयास करता है। जो लोग उससे सहमत नहीं होते, उनसे नाराज रहना शुरू कर देता है । जब दूसरे लोग ऐसे काम करते हैं, जो आप को पसंद नहीं हैं, तब आप उन्हें सहन नहीं कर पाते। आप उन से नाराज हो जाएंगे, उन्हें धमकी देंगे... कभी-कभी कोई सजा भी देंगे।
                आप की नाराजगी चट्टान से हो सकती है, भगवान से हो सकती है, किसी मित्र से हो सकती है , गुरु से भी हो सकती है। आप सोचते हैं क़ि नाराजगी एक शक्ति है। उसके द्वारा कई चीजों को प्राप्त कर सकते हैं। इसे आप एक हथियार समझते हैं । लेकिन इस हथियार का दूसरों पर प्रयोग करते समय, वह उन पर जो असर डालता है, उससे ज्यादा असर आप पर ही डालता है।
                 जब आप नाराज होते हैं आपकी अक्ल उल्टा-सीधा काम करने लगती है और उसका नतीजा हमेशा बुरा ही होता हैं । नाराजगी का कारण आप के मन में है । यदि आप इस तथ्य का अनुभव कर लें तो आपकी समझ में आ जाएगा, कि नाराज रहना कितनी बड़ी मूर्खता है।
                दुनिया में जहाँ-जहाँ शासन चलाने की नीयत हावी रहेगी, उन जगहों पर बगावतें और क्रांतियाँ फूट पड़ेगी । हम उन लोगों को पसंद नहीं करते और नाराज हो जाते है जो हमारे पर हकूमत चलाना चाहते है । जो हमें सहयोग करते है उन्हे पसंद करते है ।
                जब लोगो से मिलते है उनके प्रति शांति, प्रेम और अपनेपन की भावना रखा करो । यही तो सभी लोग चाहते है । अगर यह नहीं होगा तो लोग नाराज हो जाएंगे । दूसरो की अपेक्षा स्वयं को ऊँचा देखना, यह रेवैया आप को उन्नति नहीं करने देगा । लोग नाराज होते रहेंगे ।
              तुझे माफ कर दिया, तुझे छोड़ दिया बस काम करो, यह बोल दिखाते है क़ि आप भूले नहीं है आप चाह रहे है क़ि गुलाम बनो नहीं तो छोडूंगा नहीं । दिमाग में एक विशेष प्रकार का विटामिन कम हो जाता है जिस से मनुष्य छोटी छोटी बातो पर नाराज हो जाताहै और क्रोध करने लगता है ।
              यह विटामिन सिर्फ भगवान की याद से ही बनता है । अगर 3 घंटे हर रोज योग का अभ्यास करते है तब मनुष्य इस कमजोरी पर विजय पा सकता है । यही कारण है क़ि बड़े बड़े संत भी नाराज हो जाते है और क्रोध करते है क्योकि वह पर्याप्त साधना नहीं करते ।

कल्पना क्या है

                     आप कोई पत्र लिख रहे है । आप का दिमाग लिखने में लगा हुआ है । आप दिमाग में शब्द सोच रहे है कि क्या लिखना है । इसके साथ सड़क से गुजरती गाड़ियों की आवाज सुनाई दे रही है । 
                     गली में कुत्ते भौंक रहे हैँ । बीच में घर के सदस्यो को शोर मचाने से मना भी किया । इन सब हंगामों के बीच में अपना पत्र पूरा किया । आप के पास ऐसी कौन सी शक्ति थी जिसने यह काम करवाया । इसे जागृत मन कहते है जो बाहरी शक्तियो को अपनी शक्ति से पराजित कर देता है और आप अपना कार्य सफलता पूर्वक कर पाते हैंं । मन हमारे जीवन का बहुत बड़ा साथी हैंं । 
                     मन दो तरह के कार्य करता हैंं । कुछ कार्य हम बिना इच्छा के करते हैंं । किसी गर्म चीज पर हाथ लगने पर हम तुरंत हाथ उठा लेते हैँ , इस के लिये हमें सोचना नहीं पड़ता । हमें चोट लग जाए तॊ बिना सोचे मुंह में डाल लेते हैँ, उस स्थान पर फूंक मारने लगते हैँ । 
                     अचानक कोइ जानवर हम पर हमला कर दें हमारी आवाज भारी हो जाती हैँ हमारे हाथ में जो कुछ भी आये हम उठा कर उस पर फेंक देते हैँ । यह रीएक्शन बिना सोचे ही हो जाता है । कुछ कर्म ऐसे होते है जिन्हें हम सोच समझ कर करते हैँ । 
                     हमें मकान बनाने का विचार आया । हमें कितने कमरे, कितने बाथ रूम, स्टडी रूम, ड्राइंग रूम, किचन आदि चाहिये और भविष्य में क्या क्या चाहिये, यह सब सोचते हैँ । यही कल्पना है । अब हम अपनी आवश्यकता आर्किटेक्ट को बताते हैँ । वह हमारी आवश्कता अनुसार एक सुन्दर नक्शा बनाता है । यही कल्पना है । 
             कल्पना अर्थात जो चीज हम चाहते हैँ उसे पहले मन में सोचते हैँ । .

कल्पना और उत्साह

                 पृथ्वी के हृदय में अनेक बहुमूल्य खनिज और रत्न छिपे हुए है । जो बाहर से दिखते नहीं जब इन बहूमूल्य तत्वों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते है तॊ पृथ्वी हमें अनेको उपहारो से पुरस्कृत कर देती है । आप के मस्तिष्क में भी अनंत प्रतिभाओं का खजाना भरा हुआ है । 
                इस खजाने को पाने के लिये आप को प्रयास करना होगा । वह प्रयास है आप को उत्साह में रहना होगा । उत्साह वह हाथ है जो मन के बंद दरवाजे खोल देता है । कल्पना में बिंदु को देखो और मन में कहते रहो मै चुस्त हूं मै चुस्त हूं आप में थोडी देर में उत्साह आ जाएगा । 
                कल्पना में उगते हुए सूर्य को देखते रहे आप को सूर्य से ऊर्जा आने लगेगी और उत्साह आने लगेगा । अगर हो सके तॊ सुबह उगते सूर्य को 5 मिनिट देखा करें । भगवान को याद करते हुए कल्पना में भागते हुए घोडो को देखा करो आप में उत्साह आ जाएगा । 
               अपने घर में या कार्य स्थल पर भागते हुए घोडो की फोटॊ लगा ले और उसे देखतें रहे । आप में उत्साह बना रहेगा । भगवान को याद करते हुए कल्पना में या वास्तव में खेल खेलते खिलाडियो को देखतें रहा करो आप में उत्साह बना रहेगा । कल्पना में छोटे बच्चों को देखते रहा करो । बच्चे निर्दोष होते है । आप को बच्चों से ऊर्जा मिलेगी और आप में उत्साह बना रहेगा । 
                काम करते हुए किसी स्नेही व्यक्ति को मन से तरंगे देते रहो । आप में उत्साह बना रहेगा । हमें कोइ न कोइ रोग लगा रहता है । दवाई तॊ लेनी ही है परन्तु कार्य में लगे रहो इस से आप को आर्थिक हानि नहीं होगी । काम करने से उत्साह बनता है और रोग भी ठीक हो जाता है । उन लोगो से संबंध सम्पर्क रखो जो खुशदिल है और विकास की बाते करते है । निराश लोगो से बचा करो जी । 
                हरे पेड़ो और पौधो में जा कर बैठने से उनकी विद्युत हमें विपुल मात्रा में मिलती है जिस से उत्साह बना रहता है । अगर आप के आस पास हरे पेड़ पौधे नहीं है तॊ उन्हे कल्पना में देखते रहा करो । दोनो दशाओं में एक जैसा लाभ होगा । मधुर और प्रेम से भरे गीत सुनने से उत्साह बना रहता है । वीर रस की कविताए सुनने से मन में जोश हिलोरे लेने लगता है ।