Saturday, March 21, 2020

साधना बिन्दु रूप की

बिंदु रूप की साधना 

1- बिंदु रूप में भगवान  को याद करना सब से आसान है । 

2-इस रूप को हरेक व्यक्ति,  बूढ़ा,  बच्चा और जवान,  अनपढ़ और पढ़ा  लिखा कोई भी याद कर सकता है । 

3-बिंदु रूप में याद करने से कोई साइड  एफेक्ट नहीं होता ।  इस का पुस्तकें पढ़ के भी अभ्यास कर सकते हैंं  । 

4-आप मन में बिंदु देखते रहो  । 

5-अपनी आंखों के आगे जितनी नजदीक या दूर कल्पना में एक  बिंदु  जैसा  आकाश  में सितारा देखते है,  देखते रहो । 

6-अगर कल्पना में बिंदु नहीं देख सकते है तो अपने सामने  शिव बाबा  का किरणों  वाला चित्र रख ले । 

7-अगर आप के पास  चित्र नहीं है तो कोई कागज पर एक बिंदु बना ले । 

-मोमबती या दीपक प्रयोग नहीं करना है । 

8-बस बिंदु को देखते हुये भाव  रखो यह परमपिता परमात्मा का दिव्य और अलौकिक रूप है । 

9-बिंदु को देखते हुये  मन में कहो आप शांति के सागर है ।  इसी संकल्प को दोहराते रहना है । 

या 

10-इस बिंदु को मन में देखते हुये कहो  आप प्यार  के सागर  है,  प्यार  के सागर  है । 

11-इन दो गुणों में से जो आप को पसंद है उसको मन में धीरे धीरे दोहराते रहो । 

12-जैसे ही हम भगवान  को याद करते है,  हमारा  मन परमात्मा से जुड़ जाता  है और परमात्मा की शक्ति हमारे  में आने लगती है । 

13-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

14एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

15-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को संदेश भेजने और उंहे शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

16-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

17-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो अनुभूति नहीं होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

18-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

19-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

 20-  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

21-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

      ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

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