Thursday, June 11, 2020

सहस्त्रार चक्र -4


सहस्त्रार  चक्र 

           धातुओ  की खदानें  अपने  चुम्बकतव से अपनी जातीय धातु कणों को अपनी ओर खींचती  और जमा करती है ।

          मन में जो संकल्प उठते है उसी अनुसार सहस्त्रार  चक्र उसी स्तर का वैभव आकाश से खींचता है । वैसा ही अनुभव वा फल मिलने लगता है ।

        इसलिये चाहे कितनी विपरीत परिस्थिति हो मन सदा सकारात्मक चीजो पर लगाये रखो ।

        सहस्त्रार को क्षीर सागर, शेष  शया वा मानसरोवर भी  कहते है ।

        खोपडी के मध्य भरा  हुआ  वाइट  और ग्रे  मैटर ही क्षीर सागर है ।

        पूरे शरीर में दौड़ने वाली विद्युत का नियंत्रण करने वाला यही सह्स्त्रांर  केन्द्र है ।

          इस केन्द्र को जितना ज्यादा जागृत करेगें  उतना ज्यादा ईश्वरीय शक्तियां  प्राप्त करेगें ।


        इस केन्द्र को जागृत करने के लिये मन में शांति, प्रेम आनंद, दया  के संकल्प दोहराते और महसूस करते रहो ।

शरीर की समस्त गति विधियों का यह मूल स्थान है ।

         मनुष्य हर समय एक विद्युत दबाव  से प्रति क्षण  प्रभावित होता रहता है ।

          पृथ्वी की  सतह से ले कर वायुमंडल के आयनो सफ़ीयेर के मध्य लगभग तीन लाख  बोल्ट की शक्ति की कुदरती विद्युत हर समय वातावरण में बहती रहती है ।

         हमारे दिमाग में जो विद्युत बहती रहती है वह कुदरती विद्युत जो हमारे आसपास बह रही है उस से मेल खाती  है ।

         हमारा मस्तिष्क इस कुदरती विद्युत को हर समय जरूरत अनुसार लेता रहता है । जिस से हमारा शरीर अपने कार्य करता है । ये विद्युत लेने का कार्य सहस्त्रार  केन्द्र ही करता  है ।
 
           एरियल या ऐनटीना  ट्रांसमीटर द्वारा भेजे  गये शब्द किरणो को पकड़ते है । ये इतने शक्तिशाली होते है कि बहुत दूर  से  आने वाली तरंगों को भी  पकड़ करने उन्हे ध्वनि में बदल देते है ।

         इसी तरह कोई व्यक्ति, चाहे विश्व में कही भी  रहता  हो, हमारे बारे जब कभी अच्छा  व  बुरा  सोचते है, हमें उसी समय प्राप्त  हो  जाते है । यह काम  सहस्त्रार  केन्द्र   करता है ।