सहस्त्रार चक्र
धातुओ की खदानें अपने चुम्बकतव से अपनी जातीय धातु कणों को अपनी ओर खींचती और जमा करती है ।
मन में जो संकल्प उठते है उसी अनुसार सहस्त्रार चक्र उसी स्तर का वैभव आकाश से खींचता है । वैसा ही अनुभव वा फल मिलने लगता है ।
इसलिये चाहे कितनी विपरीत परिस्थिति हो मन सदा सकारात्मक चीजो पर लगाये रखो ।
सहस्त्रार को क्षीर सागर, शेष शया वा मानसरोवर भी कहते है ।
खोपडी के मध्य भरा हुआ वाइट और ग्रे मैटर ही क्षीर सागर है ।
पूरे शरीर में दौड़ने वाली विद्युत का नियंत्रण करने वाला यही सह्स्त्रांर केन्द्र है ।
इस केन्द्र को जितना ज्यादा जागृत करेगें उतना ज्यादा ईश्वरीय शक्तियां प्राप्त करेगें ।
इस केन्द्र को जागृत करने के लिये मन में शांति, प्रेम आनंद, दया के संकल्प दोहराते और महसूस करते रहो ।
शरीर की समस्त गति विधियों का यह मूल स्थान है ।
मनुष्य हर समय एक विद्युत दबाव से प्रति क्षण प्रभावित होता रहता है ।
पृथ्वी की सतह से ले कर वायुमंडल के आयनो सफ़ीयेर के मध्य लगभग तीन लाख बोल्ट की शक्ति की कुदरती विद्युत हर समय वातावरण में बहती रहती है ।
हमारे दिमाग में जो विद्युत बहती रहती है वह कुदरती विद्युत जो हमारे आसपास बह रही है उस से मेल खाती है ।
हमारा मस्तिष्क इस कुदरती विद्युत को हर समय जरूरत अनुसार लेता रहता है । जिस से हमारा शरीर अपने कार्य करता है । ये विद्युत लेने का कार्य सहस्त्रार केन्द्र ही करता है ।
एरियल या ऐनटीना ट्रांसमीटर द्वारा भेजे गये शब्द किरणो को पकड़ते है । ये इतने शक्तिशाली होते है कि बहुत दूर से आने वाली तरंगों को भी पकड़ करने उन्हे ध्वनि में बदल देते है ।
इसी तरह कोई व्यक्ति, चाहे विश्व में कही भी रहता हो, हमारे बारे जब कभी अच्छा व बुरा सोचते है, हमें उसी समय प्राप्त हो जाते है । यह काम सहस्त्रार केन्द्र करता है ।
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