Wednesday, September 9, 2020

आंतरिक बल-आज्ञा चक्र

आन्तरिक  बल 

आज्ञा चक्र 

        ‌हरेक मनुष्य का मन हर समय  कुछ  ना कुछ सोचता  रहता है । जब से मनुष्य ज्न्म लेता  है तब से सोचना शुरू करता है जब तक हम जीवित हैं  तब तक मन सोचता ही रहता है । नींद में भी  मन सोचता रहता है ।  मन सिर्फ सोचता है । उसे यह पता  नहीं कि अच्छा क्या है बुरा क्या है । 

          बुद्वि एक ऐसी शक्ति है जो हर संकल्प के बारे बताती है कि  संकल्प ठीक है या नहीं ।

          बुद्वि  निर्णय शक्ति है जो बताती है कि क्या करना है ।

          आप के घर  वाले भूखे हैं  । दूसरी तरफ़ स्कूल में बच्चो की फीस भरनी है । आप के पास इतने पैसे हैं  या तो घर  वालो को भोजन खिला सकते हैं  या बच्चो की फीस भर  सकते हैं  । इन दोनो कार्यों मैं कौन  सा कार्य करेगें ।

         स्पष्ट है कि आप घर  वालो को भोजन खिलायेगे । अगर घर  वाले जिंदा  होंगे तो फीस तो बाद में भी  भरी जा सकती  है ।

          अगर फीस भरते  हैं   तो घर  वाले भूखे मर जायेंगे । जब आदमी ही नहीं बचेंगे  तो फीस भरने का क्या फायदा ।

         इन दोनो  कार्यों  में कौन  सा कार्य  पहले करना है यह हमे बुद्वि ने  बताया  है ।

           जो जितना बुद्विमान है वह उतना ही सफल होता है । इस लिये बुद्वि को समझना  ज़रूरी है ।

समस्या को हल करने की योग्यता  ही बुद्वि  है ।

          नवीन परिस्थियों  के  अनुसार तालमेल करना ही बुद्वि  है ।

निर्णय एवं आलोचना की शक्ति ही बुद्वि  है ।

          उतम क्रिया करने की योग्यता को ही बुद्वि कहते हैं  ।

         वह शक्ति जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है  उसे बुद्वि  कहते हैं  ।

         प्रत्येक व्यक्ति कुछ  सीमा  तक कार्य करता है और  सीमा  का निर्णय   बुद्वि  करती है ।

           बुद्वि अनमोल है । इसके बिना हम सही काम नहीं कर सकते । बल्कि एक के बाद एक गलतियां करते जाते है ।

आंतरिक बल-क्लेश

आंतरिक बल 

क्लेश 

          अक्सर हमारी पूरी जिंदगी बीत जाती है,  उस एक आदमी के लिये   जो हमारी मदद नहीं करता,  जो हमें नहीं सुनता ।  जिसकी  याद में हम  तड़फते  रहते हैंं या दुश्मनी के कारण वह हमें भूत क़ी  तरह याद रहता है । 

         एक समय आता है जब हम उस से इतने हताश हो जाते हैं कि हमें महसूस होने लगता है क़ि सारी दुनिया में  कोई हमारी मदद नहीं करता/करती । 

          सब मुझे ही करना पड़ता है । मुझे ही मरना पड़ता हैं ।  सब मतलबी हैंं । दूसरो के  बहुत सहयोगी हैंं मेरा कोई सहयोगी नहीं हैंं । 

           हम यह भूल जाते हैंं क़ि काफी काम हमें ही करने पड़ते  है । 

जिंदा रहने के लिये हमारी सांस अकेली ही चल रही है । 

कुदरत हमें धूप,  हवा,   पानी  मुफ्त में सहयोग कर रही  

ऐसे और भी लोग हमें सहयोग कर रहे है । 

सब्जी वाला सब्जी ला कर दे रहा है । 

दूध वाला दूध ला कर दे रहा है । 

डॉक्टर हमारे को दवाई  देने के लिये तैयार  रहता है । 

             बसो  वाले,  टेक्सी वाले,  रेल गाड़ी वाले हमारे को दूसरे स्थानो पर यात्रा पर ले जाने  के लिये तैयार रहते  हैं । 

दुनिया से बात कराने के लिये मोबाइल कम्पनिया तैयार बैठी हैं  !

भगवान से मिलाने लिये लोग तैयार बैठे हैं  । 

हमें चारो दिशाओ से  सहयोग  मिलता रहता है । 

            लेकिन हम उसके लिये हर समय दुखी रहते हैं  जो हमें नहीं मिला है,  या कहें तो बस एक व्यक्ति का सहयोग नहीं मिला है और वह सहयोग नहीं करने वाला है,  फिर भी हम उसी में फंसे रहते हैं । 

             यही तो क्लेश है ।  यही तो राहु और केतु की दशा है ।  यही तो पाप कर्मो की निशानी है ।  यही तो कुते की हड्डी है । हम अपनी शांति,  सुख चैन उस एक से सहयोग की उमीद में नष्ट कर रहे  हैंं ।  

              भगवान तुम्हे उनसे महान बनाना चाहता है ।  आप इस चीज को क्यो नहीं समझ रहे  हैं  । 

              आप अपने विकास पर ध्यान दो खूब पुस्तके पढ़ो,  मनसा सेवा करो ।  उन लोगो पर ध्यान दो जो तुम्हे प्यार करते हैं  ।  उन लोगो के पीछे मत भागो जो तुमहारे से प्यार नहीं करते  ।  

             परमपिता तुम्हारे लिये बाहें  पसारे खड़ा है ।  आप उसे क्यो टाइम  नहीं देते ।  बस उसकी स्थूल में फोटॊ देखते रहो ।  वह आप की हर बात सुनता है । सुनने के लिये और मदद के लिये  तैयार  रहता हैं । 

             एक विद्यार्थी समझने लगे कि  सभी शिक्षक मेरे दुश्मन है क्योकि वह कड़क हैं ,  तो यह ठीक नहीं हैं । 

            हकीकत यह है क़ि सभी  विरोधी,  सभी दुश्मन हमारे शिक्षक  हैं  ।  उनके  रौद्र  रूप से हम बहुत कुछ सीखते हैं  । 

             सब से बड़ी गलती हम यह करते हैं  कि कोई कुछ  बोलता है तो हम उसे तुरंत उल्टी प्रतिक्रिया करते हैं  जिस से विरोध  खड़े हो जाते हैं  ! 

            जब भी कोई कुछ खराब  बोलता है उस का उतर देने से पहले  सोचा करो इसे ऐसा क्या जवाब दू कि  हमारी मित्रता बनी रहें  न कि बिगड़ जाए । इस से फालतू के क्लेश खत्म हो जाएंगे । 

        भगवान ने जो हमें विश्व कल्याण का कार्य दिया है,  उसी में व्यस्त रहो ।  मनसा सेवा करो,  लिखने क़ी  सेवा करो, नयनो से सब को निहाल करो ।  कुछ भी समझ नहीं आता तो भगवान के चित्र के सामने बैठ कर उसके गुण सिमरन करते रहो आप प्यार के सागर हैं ।  आपके सारे मनचाहे अच्छे कार्य  पूरे होंगे ।  सब क्लेश खत्म हो जायेगे ।