Saturday, November 10, 2012

अपने मन से स्वयं को वश में करें

 
 

 
 
 
 
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अपने मन से स्वयं को वश में करें
 
 
          अगर आपका मन आपके वश में नहीं है तो दूसरे की इच्छा से प्रेरित होकर अपने मन को संयमित करने की चेष्ठा न करें,इससे उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी । क्योंकि प्रत्येक जीवात्मा का लक्ष्य मुक्ति या स्वाधीनता,या दासत्व से स्वयं को मुक्त करके उसपर प्रभुत्व स्थापित करना होता है,ताकि अपनी वाह्य तथा आन्तरिक प्रकृति पर अधिकार जमा सके। अगर दूसरे व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त इच्छाशक्ति का प्रवाह हम स्वयं पर लागू करने का प्रयास करते हैं तो हमारे अन्दर पुराने संस्कारों और धारणॉओं में भ्रॉति की बेडी की एक और कडी जुड जाती है ।
         
          इसलिए सावधान रहें ।अपने ऊपर ऐसी इच्छाशक्ति का संचालन न करने देना होगा ।अथवा दूसरे पर इस प्रकार की इच्छाशक्ति का प्रयोग अनजाने में न करें । यह बात सही है कि कुछ लोग कुछ व्यक्तियों की प्रवृत्ति को मोडकर कुछ दिनों के लिए उनका कल्याण करने में सफल हो जाते हैं, लेकिन वे दूसरों पर सम्मोहन का प्रयोग करके बिना जाने समझे उन्हैं विकृत जडावस्थापन्न कर डालते हैं,जिससे उन लोगों की आत्मा का अस्तित्व मानो लुप्त हो जाता है । इसलिए कोई भी व्यक्ति तुमसे अन्धविश्वास करने को कहता है,या अपनी श्रेष्ठ इच्छाशक्ति के बल से वशीभूत करके अपना अनुशरण करने के लिए बाध्य करता है,तो उपयुक्त नहीं है ।वह मनुष्य जाति के लिए एक अनिष्ठ कार्य माना जाता है ।
         
          हमेशा इस बात को ध्यान में रखना होगा कि अपने मन को संयतित करने के लिए सदा अपने ही मन की सहायता लें । और इस बात को भी आपको समझ लेना होगा कि अगर आप रोगग्रस्त नहीं हैं तो कोई भी बाहरी इच्छाशक्ति आप पर कार्य नहीं कर सकेगी । जो व्यक्ति आपसे अन्धे के समान विश्वास करने के लिए कहता है हमेशा उससे दूर रहना चाहिए , वह चाहे कितना ही बडा आदमी या महात्मा क्यों न हो । इस संसार में कितने ही सम्प्रदाय हैं,जिनके धर्म का प्रधान अंग नाच-गाना,संगीत,नृत्य है । वे जब अपना संगीत नॉत्य और प्रचार प्रारम्भ करते हैं तो उनके भाव मानो संक्रामक रोग की तरह लोगों के अन्दर फैल जाता है । वे भी एक प्रकार के सम्मोहनकारी होते हैं । परिणॉम यह होता है कि सारी जाति अधःपतित हो जाती है ।
 
          इस प्रकार के धर्मोन्मत व्यक्तियों का उद्देश्य भले ही अच्छा हो मगर इन्हैं किसी उत्तरदायित्व का ज्ञान नहीं होता है । इन लोगों से मनुष्य जाति का अनिष्ठ होता है । वे नहीं जानते कि उनकी इस शक्ति के प्रभाव से लोग जड विकृतग्रस्त और शक्तिहीन होकर सहज ही उनके वश में हो जाते हैं,चाहे वह भाव कितना ही बुरा क्यों न हो । उन लोगों में उसका प्रतिरोध करने की जरा भी शक्ति नहीं रह जाती है । और वे सम्मोहन करने वाले लोग सोचने लगते हैं कि उनमें अद्भुत शक्ति है । वे सोचते हैं कि उन्हैं यह उस परमात्मा के द्वारा अद्भुत शक्ति प्रदान की गई है । बस इसी भावना से वे भावी मानसिक अवन्नति की ओर बढने लगते हैं,यही पाप,उन्मत्तता और मृत्यु के बीज हैं ।
 
          मन को संयमित करना बहुत कठिन होता है ।और इसी मन को हमें सबसे पहले संयमित करना होता है,इसके लिए कई प्रकार की विधियों का उल्लेख विद्वानों ने किया है मगर जो हमारे लिए उपयुक्त है उसे हम अपना सकते हैं । हम अपना सकते हैं ।प्रतिदिन प्रणॉयाम करने के बाद हम एक अभ्यास से अपने इस मन को संयमित करने का प्रयास करते हैं -अपने स्थान पर कुछ समय के लिए चुप्पी साधकर बैठ जॉय और मन को अपने अनुसार चलने दें ।मन चंचल होता है एक बन्दर की तरह । हमारा मन उछल-कूद मचायेगा कोई हानि नहीं है ,धीरज रखें ,प्रतीक्षा करें और मन की गति देखते रहें ।यह बात भी सत्य है कि जबतक आप अपने मन पर नजर रखोगे तबतक मन संयमित नही रह सकेगा ।
 
          यह अभ्यास आपको हर दिन करना होगा । आप देखेंगे कि मन में ऐसी भली-बुरी बातें आयेंगी कि आपको आश्चर्य होगा ।प्रारम्भ में हजारों विचार आयेंगे । फिर घटकर सेकडों में होंगे । फिर कम होते जायेंगे फिर कुछ महीने बाद आपके मन में एक भी विचार नहीं आयेगा,आप शॉत चित्त होंगे अब आपका मन अपने वश में आ जायेगा । इससे आपका मन शॉत होगा,विषयों के प्रति समझने शक्ति बढेगी,आपका मिजाज अच्छा होगा.स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, इनमें शरीर की स्वस्थता का पहला लक्षण दिखता है ।लेकिन हर दिन हमें धैर्य के साथ अभ्यास करना होगा । हमें यह साबित करना होगा और दिखाना होगा कि वह किसी के अधीन नहीं है । इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता होगी । अकेले रहने का प्रयत्न करना चाहिए ।
 
          विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ रहने से चित्त विक्षिप्त हो जाता है ,उनसे अधिक बात-चीत करना उचित नहीं है,इससे मन अधिक चंचल हो जाता है ।अधिक काम करना भी अच्छा नहीं है,क्योंकि इससे मन डॉवाडोल रहता है ।सारे दिन की कडी मेहनत के बाद मन संयत नहीं हो सकता है । इसके लिए योगी का होना आवश्यक है । इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि अभ्यास के समय अपने भोजन को संयमित कर दें ।प्रारम्भ में हल्का भोजन और दूध उपयुक्त होगा । जबतक मन पर पूर्ण अधिकार न हो जाता तबतक अभ्यास करते रहें,और अल्पाहार करते रहें ।लेकिन जब मन एकाग्र हो जाता है तो आपको मस्तिष्क की सूक्ष्म अनुभूतियॉ होना प्रारम्भ हो जायेगा,जैसा कि मस्तिष्क से वज्र पार हो गया हो,सूक्ष्म अनुभूतियॉ होने लगेंगी । यह भ ध्यान रखना होगा कितर्क और चित्त में विक्षेप उत्पन्न करने वाली बातों को यथा शीघ्र दूर कर दें ।आपका संकल्प कैसा है उसी प्रकार से आपको आगे का रास्ता मिलेगा ।