Thursday, November 1, 2012

जीवन के सवाल


                                                   

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1-जिन्दगी के अहम सवाल-

 
          जिन्दगी में कई प्रश्न हमारे सामने उठते हैं कि-  जो मैने पाया है वह पाया है कि खोया है? जिसे में उपलब्धि समझ रहा हूं यह उपलब्धि है या गंवाना है?जिसे मैं सफलता समझ रहा हूं वह सफलता है या असफलता ? जिसे मैं जीत समझ रहा हूं वह जीत है या हार ?जिसे मैं ज्ञान समझ रहा हूं वह ज्ञान है या सिर्फ अज्ञान को ढक लेना है ?
         
          जिस जिन्दगी में ये सवाल न उठे वह जिन्दगी कभी भी धार्मिक नहीं हो सकती है। और होता यह है कि हम उस धर्म को जिन्दगी का हिस्सा बना लेते हैं,जबकि धर्म दूसरी जिन्दगी है,धर्म तो इस जिन्दगी की राख के ऊपर खिला हुआ दूसरा फूल है । और यह भी  उन्हीं के लिए खिल सकता है जिन्हैं यह आभास हो गया कि हम अभी तक राख बटोरने में लगे हैं या बच्चों की तरह नदी के किनारे पर कंकड-पत्थर बीनने में बिता रहे हैं ।
 
 

2- अनुभव और ज्ञान की कसौटी-

 
          अनुभव से आदमी सीखता नहीं है,अनुभव तो हम सबको होते हैं लेकिन सीखने की भावना पैदा नहीं होती है।अनुभव तो सबके पास है,लेकिन ज्ञान नहीं हो पाता । अनुभव से आदमी सीख लेता है,उसके जीवन में तो ज्ञान का आना शुरू हो जाता है। जो सिर्फ अनुभव को दोहराये चला जाता है। अनुभव से  उसके जीवन में ज्ञान का आना शुरू नहीं होता है। इसलिए इस बात को समझना होगा कि अनुभव स्वयं ज्ञान नहीं है, बल्कि अनुभव से सीख लेने का नाम ज्ञान है। ज्ञान तो अनुभवों का निचोड है। जैसे इत्र फूलों से निचोडा हुआ तत्व है,ऐसे ही समस्त अनुभवों से जो निचोड लिया जाता है  वह ज्ञान है । अनुभव सबके पास है लेकिन ज्ञान बहुत कम लोगों के पास है । क्योंकि अगर अनुभवों से हम सीखते नहीं तो ज्ञान कैसे पैदा होता ।
 
 

3-जन्म लेने का अर्थ पाना नहीं है-

 
          अगर हमने मान लिया कि इस जीवन का जन्म होने से हमें सबकुछ मिल गया तो यह हमारी भूल है,इस भूल को तोडने की जरूरत है। और यदि जीवन में यह भूल टूट जाय़, तो जीवन में इतना आनन्द है कि जिसकी अनुभूति करना असंभव है। और जीवन में जो यह अनुभव करता है,वहीं परमात्मा को भी अनुभव कर पाता है। क्योंकि परमात्मा का अर्थ सिर्फ जीवन की गहराई । जीवन की जितनी गहराई में उतर जाते हैं,उतना हम परमात्मा के निकट हो जाते हैं ।और जीवन से जितने दूर हम खडे रह जाते हैं उतने ही हम परमात्मा से दूर रहते हैं ।
 
 

4-धर्म हमें जीवन से दूर रखते हैं-

         
          अगर देखें तो धर्मों ने हमें जीवन से दूर रखा हुआ है,जिस कारण हम परमात्मा से दूर खडे हैं । ये महात्मा किसी न किसी अर्थ में परमात्मा के दुश्मन सिद्ध हुये हैं। क्योंकि वे कहते हैं कि जीवन को जियो ही मत ।जीवन को जीना गुनाह है। जीवन से बचो। जीवन से भाग जाओ । जहॉ -जहॉ भी जीवन हो वहॉ से भाग जाओ। वहॉ रुकना नहीं। कहीं जीवन बुला न ले,कहीं जीवन आमंत्रण न दे दे। धर्म ने तो हमेशा तोडने का काम किया है,मनुष्यों ने मनुष्यों से नाता तोडा है ,पत्नियों ने पति से,बेटों ने बाप से,धर्म ने जीवन से नाता तोडने का कार्य किया है। जबकि सच्चा धर्म जीवन से जोडने का कार्य करता है तोडने का नहीं। क्योंकि अगर कहीं कोई परमात्मा है तो निश्चित ही वह मृत्यु की शक्ल में नहीं हो सकता, वह जीवन की शक्ल में ही हो सकता है । और यदि कहीं परमात्मा है तो उसे हम जीवन-धारा की गहराई में उतर कर ही पहचान सकते हैं । उसे अपने ही नसों में  अनुभव करते हैं। अपने ही स्वासों में डोलता हुआ अनुभव करते हैं। अपने ही आंखों से उसे देखता हुआ अनुभव करते हैं, और अपने ही हाथों उसे प्रेम करता हुआ जान सकते हैं ।
 
 

5-परमात्मा की खोज नकल से-

 
          जी हॉ परमात्मा की ओर हम नकल करके जाते हैं।पिता को देखकर एक बेटा परमात्मा को खोजने लगता है। पडोस वालों को देखकर परमात्मा को खोजने लगते हैं। बडों को मन्दिर में जाते देख कर छोटे मन्दिर में चले जाते हैं । अब प्रश्न उटता है कि क्या किसी के पीछे चलकर परमात्मा को पा सकते हैं ? असंभव !इसलिए कि हमारे अन्दर यह प्यास अभी जगी नहीं है । यह झूठी प्यास है । झूठी प्यास से आदमी सरोबर तक नहीं पहुंच सकता है। और यदि पहुंच भी जाय तो पानी को पहचान नहीं पायेगा कि यह पानी है ।क्योंकि पानी को पहचानने के लिए अपनी प्यास चाहिए ।प्यास ही पानी की पहचान है!
 
 
          परमात्मा तो हर समय हमारे चारों ओर मौजूद है,लेकिन प्यास न होने से कोई उसे काशी खोजने जायेगा,कोई मक्का और कोई जेरुसलम,और कोई कैलाश में खोजने जायेगा। इसलिए कि हमें प्यास नहीं है । लेकिन यदि प्यास है तो हमारे श्वास-श्वास में,हवा के कण-कण में,,वृक्ष के पत्ते-पत्ते में वह मौजूद है । जहॉ भी देखो वहीं मौजूद रहेगा उसके अतिरिक्त और किसी का कोई अस्तित्व नहीं है ।
 
 

6-परमात्मा का स्वरूप-

 
          अगर हम नानक, कबीर, रैदास या महॉवीर को देखें तो इनकी जिन्दगी में हम दो मौके पायेंगे । वेदना और आनन्द ।लेकिन हम है कि उनमें एक मौके को देखना ही नहीं चाहते,सिर्फ दूसरे मौके को ही देखते हैं। नानक के जीवन में दो मौके पाएंगे, एक वह वक्त है जब वे रोते हैं और एक वक्त है जब वे आनन्द से भर जाते हैं। एक वक्त है जो पीडा और विरह का है और एक वक्त है जो प्रस्फुटित का है । अगर मीरा को देखें तो एक वक्त है जब मीरा रोती है और एक वक्त है जब मीरा नाचती है। लेकिन हम रोने की बात को भूल गये,और नाचने की बात याद रख ली । बुद्ध को देखें तो उनकी जिन्दगी में रोशनी आने की हमें याद है मगर अमावश की काली रात के वक्त की याद हम भूल गये ।हम रोशनी चाहते हैं, अमावश की काली रात कौन चाहेगा । हम परमात्मा के आनन्द में डूबना चाहते हैं मगर असकी पीडा नहीं।
 
 
          हमने गुरु नानक की मुस्कराती तस्वीर को तो खयाल में रख लिया मगर हमने वह तस्वीर छोड दी है जो रोते हुये खयालों में है। यह तो परमात्मा का आधा रूप है, इसे चुना नहीं जा सकता है। परमात्मा को पूरा ही चुनना होता है। फूल का तो कोई भी स्वागत कर सकता है लेकिन फूल के पौधे को बडा करने का भी संकल्प है। कहते हैं कि धर्म आनन्द का द्वार खोल देता है ,लेकिन उसके लिए ही खुलता है जिसके लिए पूरा जगत पीडा और दुख बन जाता है। जिसको अभी पीडा ही नहीं अनुभव हुई ,उसे् आनन्द का कोई अनुभव ही नहीं हो सकता। नानक ने आनन्द के लिए भजन गाये थे। लेकिन हमने बिना पीडा पाये उन भजनों को गाते हैं तो उनका कोई अर्थ नहीं रह जायेगा।
 
 
          अगर देखें तो कोई नर्तकी मीरा से अच्छा नाच सकती है। लेकिन उस नाचने में मीरा का आनन्द नहीं हो सकता है ,क्योंकि उस नाचने के पहले मीरा की पीडा,मीरा की लम्बी दुखद यात्रा नहीं है।
 
 
          परमात्मा के दो पहलू हैं । एक विरह का,दुख का,और आगे आनन्द का द्वार है ।वैसे विरह,दुख और पीडा अन्धकार का रास्ता है ,इस मार्ग पर हम कोई भी नहीं चलना चाहते हैं। हम सभी आनन्द चाहेंगे,हम सभी चाहेंगे कि परमात्मा मिल जाय। इसलिए हम सभी आधे परमात्मा की की खोज पर निकले हैं। हमारा मिलन नहीं हो सकता है।
 
 
          हम सुबह उठते हैं शॉम को सो जाते है ,जन्म लेते हैं और मर जाते हैं। कमाते हैं,गंवाते हैं,पूरी जिन्दगी की कथा बिना अर्थ के,बिना किसी प्रयोजन के-उस तिनके समान है जो लहरों पर डोलता हुआ कभी इस किनारे और कभी उस किनारे के थपेडों से जूझता है,और सोचता है मैं यात्रा कर रहा हूं।ठीक हम भी उसी प्रकार जिन्दगी को जीते हैं ,सोचते हैं कि यात्रा कर रहे हैं। यात्रा तो सिर्फ धार्मिक आदमी के जीवन में होती है। बाकी लोगों की जिन्दगी में तो बस इस किनारे से उस किनारे होना होता है।
 
 

7-खालीपन की पहचान है अधार्मिक होना-

 
          एक  फकीर ने रातभर परमात्मा से प्रार्थना की कि मेरे पडोस में एक आदमी रहता है वह बहुत ही अधार्मिक है,तू उसे इस दुनियॉ से उठा ले। वह एक चोर, बेइमान, और नास्तिक भी है। रात के सपने मे परमात्मा ने उसे कहा कि तू मुझसे ज्यादा समझदार मालूम होता है ! इस आदमी को मैं चालीस साल से स्वॉस दे रहा हूं,भोजन दे रहा हूं,इस आदमी से चालीस साल में मैने कोई शिकायत नहीं की! ,तू मुझसे ज्यादा धार्मिक हो गया मालूम होता है !क्योंकि तुझे यह आदमी अधार्मिक मालूम होने लगा है।
 
 
              दूसरे को अधार्मिक दिखने का खयाल,और दूसरे की चिन्ता करने का खयाल अधर्म है। लेकिन हम दूसरों की चिन्ता में इतने उलझे रहते हैं कि सिर्फ अपने को छोडकर सबके बावत सोचेंगे ।सुबह से शॉम तक दूसरे के बारे में सोचेंगे,सिर्फ अपने सम्बन्ध में नहीं सोचेंगे। जिन्दगी गुजर जाती है एक नहीं बहुत सारी जिन्दगियॉ उसकी गुजर सकती है। जो अपने सम्बन्ध में नहीं सोचेगा  ।वह अपने भीतर खालीपन का अनुभव भी नहीं कर सकेगा । और जिसे अपने भीतर खालीपन का अनुभव नहीं होगा उसकी जिन्दगी में परमात्मा की खोज शुरू नहीं होगी अपने भीतर खालीपन एक पहलू और परमात्मा की खोज उसी सिक्के का दूसरा पहलू है।
 
 
          क्या आपको लगता है कि आपके भीतर कोई कमी है ? लगता है भीतर कोई अभाव है ? लगता है भीतर कोई कुछ खाली-खाली है ? अगर यह अनुभव होता है तो आपकी जिन्दगी में परमात्मा की किरण उतर सकती है। लेकिन इस खालीपन को ठीक से समझना होगा,और समझकर इस खालीपन से भागने और बचने की कोशिश मत करना। क्योंकि बचने के बहुत उपाय हैं। एक आदमी अपने भीतर के खालीपन से बचने के लिए या तो सिनेमा देखता है दूसरा आदमी संगीत सुनता है ,तीसरा आदमी ताश खेल सकता है और अपने भीतर खालीपन को भूल जायेगा। चौथा आदमी कीर्तन-भजन करके खालीपन को भूलने की कोशिश करता है,यह असली भजन नहीं है,यह सिर्फ भुलावा है,यह अपने को भुलाना है,अपने को जानना नहीं है।
 
 
          बस अगर अपने भीतर खालीपन दिखाई पडे तो समझो परमात्मा की खोज का रास्ता खुल जाता है। उस खालीपन में खडे होने से पीडा शुरू हो जाती है,नीचे की जमीन खिसक जाती है ऊपर का आकाश खो जाता है ,एक आह उठेगी जो परमात्मा की खोज बन जाती है।