आंतरिक बल 702
व्यवहार कला से संसार परिवर्तन
जन्म से पहले व्यवहार का प्रभाव
अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए सीखी थी ।
खान-पान, स्वाद, आवाज़, ज़बान जैसी चीज़ें सीखने की बुनियाद हमारे अंदर तभी पड़ गई थीं, जब हम मां के पेट में पल रहे थे ।
इसलिए माताओं को नसीहतें मिलती हैं कि ज़्यादा मसालेदार चीज़ें न खाओ, ये न खाओ, वो न पियो, ऐसा न करो, वैसा न करो वरना अजन्मे बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा ।
माता जो कुछ भी खाती-पीती हैं, उसकी आदत उसके अजन्मे बच्चे को भी पड़ जाती है ।
गर्भ के दौरान लहसुन खाती है तो उस के बच्चे को भी लहसुन ख़ूब पसंद आएगा ।
जो महिलाएं गाजर ख़ूब खाती थीं तो उनके बच्चों को भी पैदाइश के बाद अगर गाजर मिला बेबी फूड दिया गया, तो वो स्वाद ज़्यादा पसंद आया, मतलब ये कि गाजर के स्वाद का चस्का उन्हें मां के पेट से ही लग गया था ।
पैदा होने के फौरन बाद बच्चे मां का दूध इसीलिए आसानी से पीने लगते हैं क्योंकि उसके स्वाद से वो गर्भ में रूबरू हो चुके होते हैं ।
मां बच्चों की परवरिश करती है, उनकी रखवाली करती हैं, इसलिए बच्चों को उससे ज़्यादा अच्छी बातें कौन सिखा सकता है? खाने के मामले में ख़ास तौर से ये कहा जा सकता है, दुनिया में आने पर कोई नुक़सानदेह चीज़ न अंदर चली जाए, इसीलिए क़ुदरत बच्चों को मां के पेट में ही सिखा देती है कि क्या चीज़ें उसके लिए सही होंगी ।
गर्भ में बच्चे उन आवाज़ों को ज़्यादा तवज्जो देते हैं जिनमें शब्द होते हैं, जैसे कि दो लोगों की बातचीत, या गीत, मां-बाप की आवाज़ को तो बच्चे सबसे ज़्यादा पहचानते हैं, इसी से उनकी ज़बान सीखने की बुनियाद पड़ती है, जो ज़बान मां-बाप बोलते हैं, उसे सीखना बच्चे के लिए सबसे ज़रूरी है । आख़िर पहला संवाद अपने मां-बाप से ही तो करते हैं ।
अगर मांएं ख़ास तरह का संगीत सुनती हैं, तो पैदा होने पर बच्चे भी उस आवाज़ को आसानी से पहचान लेते हैं ।
गर्भवती महिला के आस-पास के माहौल का सीधा असर बच्चे पर पड़ता है । इस बारे में सावधानी बरतना तो ठीक है । लेकिन, गर्भ में पल रहे बच्चों को ख़ास तरह की आवाज़ या संगीत का आदि बनाना ठीक नहीं ।
बच्चे पैदा होने से पहले ही स्वाद, ख़ुशबू और कुछ ख़ास आवाज़ों को पहचानना सीख जाते हैं ।
जब बच्चा गर्भ में होता है तो वह मां के प्रत्येक संकल्प और बोल को सुनता है ।
मां के साथ जो व्यवहार किया जाता है । उसका असर भी उस पर पड़ता है ।
अगर मां को घर के लोग डराते धमकाते हैं और वह हर समय डरती रहती है तो जन्म के बाद बच्चा भी डरपोक बनेगा ।
अगर मां निराशाजनक परिस्थिति में रहती है तो बच्चा निराशावादी बनेगा ।
अगर माता धर्मिक व सात्विक पुस्तके पढ़ती है तो बच्चा गुणवान बनेगा ।
अगर आसपास के लोग माता से प्रेम का व्यवहार करते है तो जन्म के बाद बच्चा स्नेही बनेगा ।
अगर हम श्रेष्ठ संसार बनाना चाहते है तो हमें माताओं के साथ श्रेष्ट व्यवहार करना है । क्योकि आप का व्यवहार उनके पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है ।
अगर योगी लोग भगवान के बिंदु रूप या इष्ट को सामने देखते हुए हर रोज जन्म लेने वाले बच्चों के लिए एक संकल्प करें क़ि भगवान आप प्यार के सागर है और आप का असीम बल अजन्मे बच्चों को प्राप्त हो रहा है । आप का यह संकल्प सब बच्चों को पहुचेगा ।
जन्म के बाद बच्चे स्नेही बनेगे और इस तरह धीरे धीरे नए संसार का निर्माण हो जाएगा ।
बच्चे और कुछ नहीँ यह भगवान की नई प्लेनिंग है । भगवान की इस प्लेनिंग में विश्व के सभी परिवारो के सहयोग की बहुत जरूरत है ।