Friday, May 15, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

सांस और दोष


आंतरिक बल   
सांस  और दोष 

        अग्नि मे तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं की अशुध्दता नष्ट हो जाती  है । ऐसे सांस पर नियंत्रण या योग से मन के    दोष दूर होते है ।

        निरंतर सांस नियंत्रण  तथा  प्रभु के गुणों का चिंतन करने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते है । 

सूक्ष्म और स्थूल शरीर दोनो ही शुध्द होते है ।

      जो प्राणी जिस गति से सांस लेता  है उसी के अनुसार उसकी आयु होती है ।

        कछुआ  एक मिनिट मे 4-5 सांस लेता  है उसकी आयु 200 से 400 वर्ष होती है ।

       मनुष्य औसत 12 से 18 सांस लेता है अतः  औसत सांस 16 होती है । उसकी औसत आयु 100 वर्ष होती है ।

अगर योगी औसत एक मिनिट मे 4 सांस ले तो उसकी औसत आयु 400 साल हो सकती है ।

         वायु ही जीवन है, वायु ही बल है । धीरे धीरे सांस से वायु खींचने पर सर्व रोगॊ का नाश  होता है । तेज गति से सांस लेने पर  रोग आ धमकते  है ।

        दिमाग के दो भाग  है । कुछ  कार्य या विचार   दिमाग का बाया भाग  करता  है, कुछ  विचार  दाया भाग  करता है । जब कभी हमें कोई नाकारात्मक विचार परेशान कर रहा हो तो हमें यह पता नहीं होता कि  दिमाग का कौन सा भाग  विचार  कर रहा है । 

         उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस ले रहे है उसे हाथ  की अँगुली से दबा ले तथा  दूसरे नथुने से धीरे धीरे  सांस लेने लग जाओ । इस से आप का दिमाग   दूसरे  गोलार्द्ध  से सोचने लग जायेगा । मान लो आप बायें भाग से सोच  रहे है तो दायें भाग  से सोचने लगेगें और अगर दायें भाग  से सोच  रहे है तो बायें भाग से सोचने लगेगें । इस तरह आप के नाकारात्मक विचार  बदल जायेगे ।

          सांस का सुर बदलने के लिये आप जिस नथुने से सांस ले रहे है उस करवट  लेट जाये । थोड़ी देर बाद अपने आप दूसरे नथुने से सांस चालू हो जायेगा । 

       ऐसा करते समय जो आप चाहते  है वह संकल्प सोचो । मान  लो आप को निराशा  आ रही है तो सोचो मै खुश हूं खुश हूं खुश हूं । भगवान  आप खुशीओ  के सागर है । थोड़ी देर मे नाकारात्मकता बंद  हो जायेगी ।