सूक्ष्म शरीर और दिव्य दृष्टि
मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा में है ।
हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता रहता है ।
जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।
हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न भिन्न वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा विभिन्न कर्म करते रहते है इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो के द्वारा नष्ट होती रहती है ।
स्थूल आँखे कुछ दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर देख सकती है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा है यह नहीं देख सकती । दूसरे कमरे में क्या हो रहा है, शहर के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।
महा भारत के युध्द के समय संजय घर बैठे बैठे युध्द का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।
यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।
यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।
हम एक पल में कोलकाता पहुंच जाते है, कभी समुन्दर पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा है ।
अच्छा वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है ।
अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया कल्प हो जायेगा ।