आंतरिक बल
सांस और दोष
अग्नि मे तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं की अशुध्दता नष्ट हो जाती है । ऐसे सांस पर नियंत्रण या योग से मन के दोष दूर होते है ।
निरंतर सांस नियंत्रण तथा प्रभु के गुणों का चिंतन करने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते है ।
सूक्ष्म और स्थूल शरीर दोनो ही शुध्द होते है ।
जो प्राणी जिस गति से सांस लेता है उसी के अनुसार उसकी आयु होती है ।
कछुआ एक मिनिट मे 4-5 सांस लेता है उसकी आयु 200 से 400 वर्ष होती है ।
मनुष्य औसत 12 से 18 सांस लेता है अतः औसत सांस 16 होती है । उसकी औसत आयु 100 वर्ष होती है ।
अगर योगी औसत एक मिनिट मे 4 सांस ले तो उसकी औसत आयु 400 साल हो सकती है ।
वायु ही जीवन है, वायु ही बल है । धीरे धीरे सांस से वायु खींचने पर सर्व रोगॊ का नाश होता है । तेज गति से सांस लेने पर रोग आ धमकते है ।
दिमाग के दो भाग है । कुछ कार्य या विचार दिमाग का बाया भाग करता है, कुछ विचार दाया भाग करता है । जब कभी हमें कोई नाकारात्मक विचार परेशान कर रहा हो तो हमें यह पता नहीं होता कि दिमाग का कौन सा भाग विचार कर रहा है ।
उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस ले रहे है उसे हाथ की अँगुली से दबा ले तथा दूसरे नथुने से धीरे धीरे सांस लेने लग जाओ । इस से आप का दिमाग दूसरे गोलार्द्ध से सोचने लग जायेगा । मान लो आप बायें भाग से सोच रहे है तो दायें भाग से सोचने लगेगें और अगर दायें भाग से सोच रहे है तो बायें भाग से सोचने लगेगें । इस तरह आप के नाकारात्मक विचार बदल जायेगे ।
सांस का सुर बदलने के लिये आप जिस नथुने से सांस ले रहे है उस करवट लेट जाये । थोड़ी देर बाद अपने आप दूसरे नथुने से सांस चालू हो जायेगा ।
ऐसा करते समय जो आप चाहते है वह संकल्प सोचो । मान लो आप को निराशा आ रही है तो सोचो मै खुश हूं खुश हूं खुश हूं । भगवान आप खुशीओ के सागर है । थोड़ी देर मे नाकारात्मकता बंद हो जायेगी ।
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