Friday, June 12, 2020

सहस्रार -3

आंतरिक बल 
सहस्त्रार -3

सूर्य से सारे सौर मंडल को ऊर्जा मिलती है ।

         मिलों व  कारखानों में मोटर चलती है, परंतु मोटर को चलाने के लिये बिजली कहीं और से मिलती है ।

          मस्तिष्क रूपी कारखाने को बिजली  सहस्त्रार से मिलती है । इस चक्र में प्रकाश की  उछल कूद अगर बंद हो जाये  तो व्यक्ति की मृत्यु  हो जाती है ।

सहस्त्रार  में उठे संकल्प व्यक्ति का जीवन निर्धारित करते है ।

         पहाड़ो  से पानी की धारायें जब  छूटती  है तो वह पास पास होती है परंतु नीचे गिर कर नाले  नदी के रुप में बहते  हैं तब  नदी और नालो  की  आपस की दूरी बढ़ती जाती है ।

         स्टेशन पर रेल गाडियां साथ साथ खड़ी रहती है,  परंतु जब लीवर बदलने से वह अलग अलग लाइनों पर चलती है तो उन लाइनों की दूरी बढ़ती जाती है और गाडियां अलग अलग  जगह पहुंच जाती है ।

         सहस्त्रार  में अच्छे  व  बुरे संकल्प एक जगह उठते है परंतु व्यक्ति को अलग अलग परिणामों तक पहुँचा देते है ।

सहस्त्रार को दसवां  द्वार भी  कहते हैं।

         दो नथुने, दो  आंखे, दो कान, एक मुख और दो मल मूत्र  के स्थान ये 9 द्वार कहे जा सकते  है ।

        योगी जन इसी सहस्त्रार, दसवे  द्वार से प्राण  त्यागते  है ।

          गर्भ में बच्चे में आत्मा  इसी केन्द्र से प्रवेश करती है ।

       इसी केन्द्र की सीध में मस्तिष्क के रुप से ऊपर रहस्यमय  कही  जाने वाली मुख्य ग्रंथी पीनीयल   ग्लेंड  है । जिस में आत्मा का निवास है ।

         जब हम भगवान  को याद करते है तो इसी केन्द्र से शक्ति खींचते है ।

        जैसे वृक्ष अपनी चुम्बकीय शक्ति से वर्षा  खींचते है ।