Thursday, July 2, 2020

किस्मत का अर्थ

किस्मत अर्थात किसकी मत पर चल कर कर्म किया, ईश्वर की मत पर, पर मत पर या मन मत पर, इन तीनों में से जिसकी सुनोगे वैसे ही भाग्य का निर्माण होगा।

        इसलिए किस्मत को दुहाई देना छोड़ अपने संकल्पों पर ध्यान दो और हमारे संकल्पों का आधार हैं हम इन्द्रियों से किसको सुनते, देखते हैं किसकी बात को मन पर लेते हैं और अपनी  सोच का आधार बनाते हैं, भगवान की बात,लोगों की बात या अपनी मन मर्ज़ी, जिस की बात को अपनी सोच का आधार बनाएँगे वैसा ही भाग्य निर्माण होगा।

         अर्थात जिसकी मत अपनाओगे वैसी ही किस्मत बनेगी, फैसला आपको करना है, फिर भगवान या person व परिस्थिती को दोष नहीं देना क्योंकि आपकी किस्मत आप खुद बनाते हो अपने संकल्पों द्वारा और अपने संकल्पों का आधार भी आप स्वयं ही निर्धारित करते हो!

         हर अच्छी बात को सुनना, सुनाना व फैलाना पुण्य कर्म में जमा होता है पर अच्छी बात वो जो भगवान की मत पर आधारित है अपने मन की मत पर नहीं, इसलिए यदि आप ईश्वर मुख से उच्चारित ज्ञान सुनते हो, सुनाते हो और फैलाते हो तो आप पुण्य कमा रहे हो क्योंकि इस से समाज में एक नई विचारधारा का प्रवाह होता है।

         एक ऐसी विचारधारा जो शरीर से जुड़ी किसी भी चीज़ पर आधारित नहीं है बल्कि आत्मा और परमात्मा के सत्य ज्ञान पर आधारित है इस विचारधारा से ही समाज से हर प्रकार की असमानता को मिटा कर कर्म सिद्धांत प्रधान समाज की रचना करने में सक्षम है यहां बाहरी पद प्रतिष्ठा तो अलग-अलग है भले पर आन्तरिक असमानता नहीं है।

        क्योंकि सबको यह ज्ञात है कि जो भी आज उन्के जीवन में है वह उन्के ही कर्मों अनुसार है अतः सभी केवल अपने कर्म पर ध्यान देते हैं और सबके लिए मन में प्रेम, सहयोग व सहानुभूति होती है कोई भी मन अशांत नहीं है ऐसे ही समाज की रचना करना ही धरा पर स्वर्ग को लाना है यह तभी सम्भव है जब हम सच्चा आत्म व परमात्म ज्ञान को जन जन तक पहुंचायें।

       भगवान न हमें क्षमा करता है और न ही सज़ा देता है क्योंकि वह हमारे कर्मों में कभी भी हस्तक्षेप करता ही नहीं  उसका तो काम है केवल ज्ञान और शक्ति देना! इसलिए डरना है यो केवल अपने कर्मों से डरो और भगवान से जी भर प्यार करो ताकि आपकी सोच, बोल और कर्म दिव्य बन सकें।

दूसरों की सराहना नहीं कर सकते तो आलोचना भी न करें

*“दूसरों की सराहना नहीं कर सकते तो अलोचना तो कभी न करें”*

       देखिये हम सब आत्माएं हैं, हमारा पहला कर्म है हमारे संकल्प! यदि हमारे संकल्प शुद्ध नहीं तो हमारा जीवन सुखदाई कभी नहीं हो सकता! 

        क्योंकि हम जो संकल्प करते हैं वह हमारे साथ ही हमारे सूक्ष्म शरीर में energy के रूप में रहता है और सबसे पहले हमें अनुभव होता है फिर उस संकल्प की उर्जा सामने वाली आत्मा तक पहुंचती है इसलिए जो गलत सोच रहा है वह उस नकारात्मक संकल्प की उर्जा से सबसे पहले प्रभावित हो रहा है।

        आपने देखा होगा कि एक company के head को अधिक बीमारियां लगती हैं जबकि workers को इतनी बीमारियां नहीं लगती क्यों, क्योंकि एक head officer अपने जितने workers को डांटेगा, उतनी ही बार वह उस negative thought से प्रभावित होगा जबकि हर worker एक एक बार और उसमें से भी जिसको उसकी बात को दिल पर लेने की आदत नहीं है तो वो तो बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होगा, इसलिए कभी भीगलत संकल्पों की रचना न करें न अपने लिए और न दूसरों के लिए ! कलयुग में हर किसी को अलोचना की आदत है ! 

        सराहना करना नहीं आता क्योंकि इससे आगे वाला सिर पर चढ़ जाएगा, फिर से अच्छा काम नहीं करेगा, हमसे डरेगा नहीं, हमारी इज्जत नहीं करेगा, या हमें उसके अच्छे काम से इर्ष्या है आदि आदि कारणों से हम किसी के अच्छे काम की  सराहना करना ही भूल गये हैं क्योंकि हम body conscious हैं हम यह जानते ही नहीं कि हम सब आत्माएं हैं हम सब एक दूसरे के साथ संकल्पों से जुड़ी हैं, समय वह चल रहा है जब दूसरे के गलत काम को भी आप गलत न कह कर प्रेम व सहानुभूति की अच्छी vibrations दे कर उसे उपर उठाना है ताकि वह आत्मा दिलशिकस्त न हो! 

        पर अब भी कई लोग अपने विकारों के कारण दूसरों के अच्छे काम में भी गल्तियां निकालते रहते हैं यह बहुत बड़ा विकार है जिसका सबसे पहला और हानिकारक असर खुद पर होता है। अपना मन और शरीर दोनों ही बीमार होते हैं और उस आत्मा के साथ भी हमारा हिसाब-किताब बनता है जो इस जन्म में चुक्तू नहीं हुआ तो अगले जन्म में चुक्तू करना पड़ेगा इसलिए जितना हो सके अपने संकल्पों को शुद्ध बनाएं खुद के लिए भी और औरों के लिए भी इस से आपका सूक्ष्म शरीर सुन्दर और साफ़ बनेगा, स्थूल शरीर भी स्वस्थ होगा!

       सदा याद रखें मन में नकारात्मक संकल्पों की गाठों से ही स्थूल शरीर में गांठें पड़ती हैं जो बिमारी का कारण बनती हैं।