Thursday, May 30, 2013

संजीवनी पथ

                 http://raghubirnegi.wordpress.com/author/raghubirnegi/
                                                            http://bookdotwordpressdotcom.wordpress.com/
1- ज़रा अपनी ओर देखो| कितने दोष हैं तुममें! प्रकृति ने, ईश्वर ने तुम्हें सभी दोषों के साथ भी स्वीकार कर लिया है| उसने तुम्हें अपनी बाहों में ले लिया है| वह कभी नहीं कहती, "तुमने आज बहुत बुरा बर्ताव किया, मुझे बुरा भला कहा, मैं तुममें श्वास नहीं जाने दूँगी| तुम्हारा दिल धड़काना बंद कर दूँगी|" प्रकृति कभी तुम्हें आंककर तुम पर निर्णय नहीं लेती|
 

2-एक अंकुर फूटकर पुष्प हो जाता है| एक दिल टूटकर दिव्य हो जाता है।
 

3-कठोर शब्द मत कहो, शब्दों से चोट मत पंहुचाओ क्योंकि ईश्वर हर दिल में बसते हैं।
 

4- यदि तुम पहचानते हो कि तुममें अहंकार है, उससे छुटकारा पाने की चेष्टा न करो, उसे जेब में रखो। यदि उससे छुटकारा पाने की चेष्टा करोगे तो वह एक बड़े अहंकार का कारण हो सकता है। अहंकार की एकमात्र दवा सहजता है। तुम अहंकार से छुटकारा इसलिए चाहते हो क्योंकि वह दूसरों से अधिक तुम्हें परेशान कर रहा है। तो यदि तुम्हें स्वयं में अहंकार दिखे, उसे रहने दो। वह आता है, तो आने दो।

 
5- तुम जिसका भी सम्मान करते हो, वह तुमसे बड़ा हो जाता है| यदि तुम्हारे सभी सम्बन्ध सम्मान से युक्त हैं, तो तुम्हारी अपनी चेतना का विकास होता है| छोटी चीज़ें भी महत्त्वपूर्ण लगती हैं| हर छोटा प्राणी भी गौरवशाली लगता है| जब तुममें सरे विश्व के लिए सम्मान है, तो तुम ब्रह्माण्ड के साथ लय में हो


6- कृतज्ञ हो जाओ अपने अस्तित्व, अपने शरीर, जो कुछ तुम्हें मिला है, जितना प्रेम तुम्हें मिला है उसके लिए। यह कृतज्ञता तुमपर समृद्धि और आनंद की वर्षा कर देगी।
 

7- एक दूसरे के प्रति भगवान बन जाओ। भगवान को आकाश में मत ढूँढो, भगवान को नयनों के हर जोड़े में, पर्वतों में, वृक्षों में, पशुओं में देखो। कैसे? जब तुम स्वयं में भगवान को देखो। केवल भगवान ही भगवान की पूजा कर सकते हैं।

 
8- तुम एक आज़ाद पंछी हो, पूरी तरह खुले हुए| उड़ना सीखो| यह तुम्हें अपने भीतर ही अनुभव करना होगा| यदि तुम स्वयं को बाध्य समझते हो, तो तुम बंधन में ही रहोगे| तुम मुक्ति का अनुभव कब करोगे? इसी क्षण मुक्त हो जाओ| बस बैठो और तृप्त हो जाओ| थोड़ा समय ध्यान और सत्संग में बिताओ जिससे तुम्हारा अंतरात्म चुनौतियों से जूझने के लिए दृढ़ हो जाये।
 

9- अहंकार पूर्णतः बुरा नहीं होता। उसका एक सकारात्मक पहलू भी है। अहंकार तुम्हें कर्म करने के लिए प्रेरित करता है। एक व्यक्ति कोई कर्म या तो दया से करेगा या अहंकार से, और समाज में अधिकतर कर्म अहंकार से होता है। ऐसा होने पर भी, अहंकार भिन्नता और अलगाव की भावना है। वह सिद्ध करने और अधिकार जमाने की इच्छा करता है और कर्तापन की परछाईं है। वह स्वयं में न अच्छा है न बुरा। वह केवल जो है वही है।
 

1o- जागो और देखो, क्या सच में तुम्हारा नियंत्रण है? किसपर तुम्हारा नियंत्रण है? संभवतः जाग्रत अवस्था के एक छोटे से भाग पर! निद्रा या स्वप्न अवस्था में तुम्हारा नियंत्रण नहीं है। अपने विचारों या भावनाओं पर तुम्हारा नियंत्रण नहीं है। उन्हें प्रकट करने या न करने का निर्णय तुम्हारा है पर वे तुम्हारी अनुमति लेकर नहीं आते। चाहे तुम यह जानो या न जानो, पर जब तुम अपना नियंत्रण छोड़ देते हो, तभी तुम विश्राम कर पाते हो।
 

11- जब तुम अपना दुःख बांटते हो, तो वह कम नहीं होता, पर जब तुम अपनी प्रसन्नता नहीं बांटते, तो वह कम हो जाती है। अपनी समस्याएं केवल इश्वर के साथ बांटो - किसी और से बांटने से वे केवल बढती ही हैं। अपना आनंद सब के साथ बांटो।

 
12- जब तुम जीवन में कठिनाई का सामना करते हो, तुम्हारी शांति और स्थिरता तुम्हारी श्रद्धा पर निर्भर करता है। श्रद्धा न होना ही दुखदायी है; श्रद्धा तुरंत सांत्वना देती है। यद्यपि बुद्धि तुम्हें संतुलित रखती है, श्रद्धा के बिना कोई चमत्कार नहीं हो सकता। वह तुम्हें सीमाओं के परे ले जाती है। श्रद्धा से तुम प्रकृति के नियमों को भी पार कर जाते हो, पर वह शुद्ध होनी चाहिए। श्रद्धा है यह जानना कि तुम्हें जो भी आवश्यकता है, तुम्हें मिलेगा। ईश्वर को कुछ करने का अवसर देना श्रद्धा है।

 
'13- Ra' means Radiance; 'Ma' means myself. 'Rama' means ‘the Light inside me’. Happy Ram Navami!'रा' का अर्थ है 'प्रकाश'। 'म' का अर्थ है 'मैं'। 'राम' का अर्थ है 'मुझमें जो प्रकाश है'। राम नवमी पर सबको आशीर्वाद और शुभकामनायें।


14- अपनी गलती का बोध तुम्हें तब होता है जब तुम निर्दोष होते हो। जो भी गलती हुई, स्वयं को दोषी मत ठहराओ, क्योंकि वर्तमान क्षण में तुम पुनः नवीन, शुद्ध और निर्मल हो। गलतियां भूतकाल की होती हैं। जब यह ज्ञान तुम्हें होता है, तब तुम पुनः पूर्ण हो जाते हो।