Saturday, May 16, 2020

सांस और विद्युत


         जब हम गुस्से मे होते है तो सांस तेज हो जाते है और जब आराम की अवस्था मे होते है सांस धीमी हो जाती है ।

       हमारा मन हमारी सांसे, हमारे सारे ऊर्जा चक्र सभी आन्तरिक रूपों  से एक दूसरे से जुड़े हुये है ।

         हमारे मन की अवस्था शरीर  मे उपस्थित जीवनी विद्युत पर निर्भर करती है जो हम सांस लेते समय प्राप्त करते है ।

       जब हमें अचानक घबराहट,  अस्थिरता या भ्रम महसूस होने लगता है,  उत्साह की कमी, अवसाद व लक्ष्यहीनता के लक्षण सामने आते है तो  यह दर्शाता है कि हमें सांस लेते समय  कम मानसिक विद्युत  प्राप्त हो रही है ।

श्वास मन का भौतिक रुप है ।

        यदि सांस पर नियंत्रण हो जाये तो हम शरीर और मन पर  नियंत्रण कर सकते है।

        क्या आप लगातार थकान का अनुभव करते है ?  दोपहर होते होते  कार्य की शक्ति जवाब दे  जाती है । थकान होने का  कारण जानने के  लिये टेस्ट कराते  कराते थक गये है ।  सब कुछ  ठीक है परंतु थकान जाती ही नहीं ।

       हमारी सांस लेने की प्रक्रिया की कमजोरी ही इन लक्षणों को जन्म  दे रही है । पेशियों मे खिंचाव या दर्द, सीने मे दर्द, माहवारी से पहले होने वाला तनाव वा दर्द इसी श्रेणी मे आता है ।

        थकावट वा उपरोक्त लक्षणों मे गहरी गहरी सांस लो और मुख से छोडो । इस के साथ साथ मन मे कोमल भावनायें, स्नेह की भावना  रखो, स्वीकार भावना  रखो,  मधुर संगीत  मन  मे गुनगुनाते या सुनते रहो । आराम करो तथा  मन से दूसरो को तरंगे दो ।

        जब हम सांस की गति धीमी करते है तो इस से हमारे विचारो को फैलने के लिये स्थान मिलता है । हम सांस मे जितना अंतराल रखते है विचारो को उतना ही स्थान मिलता जाता है  जिस से विचारो मे बुद्विमता  और स्पष्टता आने लगती है ।

       गहरी सांस भावनाओ को शांत करती है तथा  परिस्थितियो को समझने मे मदद करती है ।

इडा तथा पिंगला नाड़ी


इडा तथा पिंगला नाड़ी और सांस 

कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

        जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

          हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

          बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

        यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

        मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

        जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

        ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

      हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।