अपने जीवन में हमें विभिन्न प्रकार की प्यासों का अनुभव होता है। अगर हम यह देखें कि प्यास कैसे पैदा होती है तो उपयुक्त न होगा,बस उकसाने भर की देरी है। और कभी-कभी विना उकसाये भी पता चल जाता है,लेकिन हम उसे दबा देते हैं। अगर एक बाप का बेटा चोर हो जाय तो बाप इतना परेशान नहीं होता ,जितना कि बेटा सन्यासी हो जाने पर होता है।अगर पति शराब पीने लग जाय तो पत्नी इतनी चिंतित नहीं होती,जितना कि पति प्रार्थना में डूब जाने पर चिंतित होती है,इसलिए कि हमें धर्म बहुत डराता है,कि धर्म आदमी को बिल्कुल बदल देता है। शराब पीने वाला बिल्कुल नहीं बदलता, लेकिन सन्यासी बदल जाता है,उसे वापस खींचा नहीं जा सकता है।चोर बेटा बुरा है,मगर फिर भी चल सकता है, लेकिन सन्यासी तो बेटा ही नहीं रह जाता। इसलिए हम चोर बेटे को बर्दास्त कर लेते हैं, सन्यासी बेटे से दिक्कत होगी। अगर हम देखें तो बीज के भीतर अंकुर छिपा होता है,अगर हम बीज को पत्थर पर रख दें तो अंकुर कहॉ से आयेगा। लेकिन हमें देखना होगा कि हमारे आस-पास कहीं हमारी प्यास मिटाने का संयंत्र तो नहीं चल रहा है।अगर हम सजग हो जॉय तो बीज अंकुररित हो जायेगा। अगर एक पति अपनी पत्नी या पत्नी पति से यह कह दे कि तुमसे ज्यादा में परमात्मा को चाहता/चाहती हूं, तो आपस में झगडा हो जायेगा पति चाहता है कि पत्नी उसे परमात्मा समझे।ऐसे पति समझाते रहें कि हम परमात्मा हैं! और पत्नी भी चाहती है कि पति यह कहे कि तेरे सिवाय किसी को नहीं चाहता। यहॉ पर प्रतियोगिता नहीं चल सकती है। बस अपने चारों ओर देखने का प्रयास करें,प्यास को जगाने का उतना प्रश्न नहीं है.जितना कि प्यास को चारों ओर से दबाया हुआ है,इसी दबाव को देखना होता है। इस दबाव की बडी गहरी व्यवस्था है। और यही जीवन का सार है।
2-क्या जिन्दगी एक सपना है?-
अगर हम जिन्दगी के बारे में जानने का प्रयास करते हैं तो, लगता है वह सपने से भी ज्यादा सपना है। आपने यह महशूस किया होगा कि सपने में कभी याद नहीं आता है, कि जो भी में देख रहा हूं वह सपना है!और यदि याद आ जाय तो समझो सपना टूट गया,कि आप सो नहीं रहे हैं, जग गये हैं।और सपने में पता ही नहीं चलता है कि मैं सपना देख रहा हूं! बस सपना है। हर रोज हम सपने देखते हैं-पर रोज सुबह जागकर पाता हूं कि-सपना झूठा होता है। लेकिन फिर आज रात सपना देखेंगे। तब फिर सच मालूम पडेगा। सपने में सच मालूम पडता है और झूठ मालूम नहीं होता है। तो जिस जिन्दगी को आप जिन्दगी में सच मान रहे हैं,उसे सच मानने का कोई कारण है? हो सकता है उससे भी जागकर पता चल जाय कि वह भी झूठ है।जिन्होंने इस जिन्दगी को माया कहा है, उनका मतलब यह नहीं है कि यह नहीं है। उनका मतलब तो यह है कि जब उससे भी जागकर देखता है तो हैरान हो जाता है,फिर कहता है वह भी झूठ है। यह भी इसी तरह का एक सपना था। सपने में सत्यता थी।अगर आदमी सपने को समझलें तो जिन्दगी सपना हो जाती है।लेकिन उसे भी हम नहीं देख पाते हैं। कि कही सपने तखलीफ न देने लग जॉय।
3-अपने लिए रोना शुरू करो तो धर्म का आगमन होगा-
एक सम्राट की कहानी आपने सुनी होगी कि,उसका इकलौता बेटा बीमार मरणॉसन की स्थिति में था। पिता का इकलौता बेटे के दुख में कई दिनों से नहीं सोया था। एक दिन दो बजे रात्रि, कुर्सी में बैठा हुआ, नींद की झपकी आ गई, एकदम गहरी नींद। देखा तो उसके 12 लडके हैं,बहुत सुन्दर शक्तिशाली।सारी पृथ्वी पर उसका राज्य है।आनन्दमय जीवन है। उसी समय उसका बाहर का बेटा मर गया,भीतर के बेटे सब ठीक है। और पत्नी चीख पडी, सुनकर राजा की नींद टूट गई।जैसे ही नींद टूटी भीतर वाले बारह बेटे मर गये, सपना खत्म हो गया । राजा रोने के बजाय हंसने लगा। उसकी पत्नी के समझ में यही आया कि अधिक दुख से ये पागल हो गये ।पत्नी घबडाई और उन्हैं हिलाकर कहा हंसते क्यों हो? देखते नहीं बेटा मर गया !लेकिन वह हंसता रहा।पत्नी ने कहा,बात क्या है? उसने कहा ,मैं बडी मुश्किल में पड गया,कि किसके लिए पहले रोऊं? भीतर के लडकों के लिए कि बाहर के लडके के लिए । जब भीतर के लडकों को देखा तो बाहर झूठा था,इस लडके का तो मुझे पता ही नहीं था। और जब बाहर के लडके को देखता हूं तो भीतर के लडके झूठे हैं । कौन सच है? यही मैं जानना चाहता हूं। मैं किसके लिए रोऊं? लोगों ने उस सम्राट को सलाह दी कि इसका उत्तर च्वॉगत्से दे सकते हैं,तुम उसी के पास चले जाओ।सम्राट च्वॉगत्से के पास पहुंचा,पूरा वृतॉत सुनाकर कहने लगा कि ये बताइये कि मैं किसके लिए रोऊं । च्वॉगत्से ने कहा, अपने लिए रोओ! और किसी के लिए रोने की आवश्यकता नहीं है। अर्थात जो आदमी अपने लिए रोना शुरू कर देता है, उस आदमी की जिन्दगी में धर्म का आगमन हो जाता है। या जो आदमी अपने ऊपर हंसना शुरू कर दे तो उसकी जिन्दगी में भी धर्म का आगमन हो जाता है।लेकिन हम दूसरों पर हंसते हैं,अपने को बचा लेते हैं।
4-दिन और रात के सपने में कौन सच और कौन झूठ-
हम आप सभी सपने देखते है, लेकिन इन सपनों को हमने कभी अपना ज्ञान का आधार नहीं बनाया। और मजे की बात है कि रात के सपने को हम सुबह उठकर कहते हैं यह झूठ है, क्योंकि यह जिन्दगी किसी और तरह की दिखाई देती है,उसमें सपना गलत साबित हो जाता है।लेकिन कभी आपने खयाल किया कि रात के समय जब आप सपना देखते हैं तो जिसे आपने दिन भर को सच कहा था, वह भी इसी तरह झूठ हो जाता है। दोनों झूठों में कौन सच है, इसे सोचा आपने! लेकिन इससे अधिक मजे की बात तो यह है कि रात का सपना थोडा बहुत याद भी रह जाता है,मगर दिन का सपना रात के सपने में बुल्कुल भी याद नहीं रहता।यदि रात को सपने में हम सम्राट हो गये तो सुबह कुछ याद रह जाता है। मगर जो जिन्दगीभर सम्राट रहा है,उसको भी रात के सपने में याद नहीं रहता कि में सम्राट हूं। बस यह जिन्दगी भी सपना से भी बडा सपना है।
5-जीवन के सार्थक-
अगर विचार करें तो जीवन में लोभ,मोह, क्रोध,काम वासना आदि की भी सार्थकता है,इन्हैं हम नकार नहीं सकते हैं,वरना वे होते ही नहीं। इसी प्रकार जीवन में सैक्स की भी सार्थकता है।और सैक्स की एनर्जी यदि वासना से मुक्त हो जाय तो ब्रह्मचर्य बनती है।अगर देखें तो ब्रह्मचर्य और वासना में एक ही शक्ति काम करती है,अगर मनुष्य की काम वासना दूसरे के प्रति बहती है तो सेक्स बन जाता है,और यही ऊर्जा अपनी तरफ बहने लगे तो ब्रह्मचर्य बन जाता है।परमात्मा की तरफ बहने लगे तो भी ब्रह्मचर्य हो जाता है।अगर कोई मनुष्य कहता है कि हमने सेक्स को स्वयं से हटा दिया। यह तर्क अवैज्ञानिक और गलत होगा।जगत में कोई भी चीज नष्ट नहीं की जा सकती है,यह विज्ञान का आधारभूत सिद्धान्त भी है । इस जगत में सिर्फ चीजों को बदला जा सकता है,इसी प्रकार सेक्स को भी बदला जा सकता है,नष्ट नहीं किया जा सकता है।
6-आदमी नाम बदलकर स्वयं को धोखा देता है-
आदमी चीजों के नाम बदलकर स्वयं को धोखा देता रहता है। रोज वही कार्य। सिर्फ नाम बदल देता है।कभी धन,कभी यश,कभी पद, खोजता है,नाम ही तो बदले हैं,खोज तो उसी अहंकार की है। केवल नाम बदल जाता है। आज जो भूल करता है, फिर कल भी वही भूल। नाम बदलकर स्वयं को धोखा देता रहता है। जिन्दगीभर वही दोहराते चले जाते हैं,एक यंत्र की भॉति। एक कोल्हू के बैल की भॉति। कभी खयाल में भी भी नहीं आता कि सारी जिन्दगी में इस तरह जीकर हमें क्या मिला ।शायद हम डरते हैं, क्योंकि यह सवाल हमें परेशानी में डाल सकता है।जरा गौर से देखें तो सारी जिन्दगी दौडकर हमें मिला क्या? हमने पाया क्या? हमारे हाथ में क्या है? बडे-बडे पद पाकर क्या मिला? सारी सम्पत्ति पाकर कौन सी सम्पत्ति हमें मिल गई? सारा यश पाकर कौन सा यश मिल गया? अगर यदि ये सवाल आदमी के मन में उठने लगे तो उसकी जिन्दगी में धर्म दूर नहीं। लेकिन देखें तो ये सवाल भी नहीं उठते हैं। बस यह चक्र चलता रहता है।
7-परमात्मा की प्यास-
अगर यह कहें कि परमात्मा की प्यास को कैसे पैदा किया जा सकता है?तो इस सवाल के उत्तर के लिए हमें इस महत्वपूर्ण सवाल की ओर देखना होगा कि-जिसे हम जिन्दगी कहते हैं,क्या वह जिन्दगी है?जिसे हमने आज तक जिया है,वह जीने योग्य है? अगर आपको दुबारा इस जिन्दगी को जीने का मौका दिया जाय, जिसे आप पचास साल तक जी सकते हैं,तो आप राजी होंगे? लगता है कोई भी तैयार नहीं होगा, उसी जिन्दगी को जीने के लिए। आप नया जन्म लेना पसन्द करेंगे,लेकिन दुबारा उसी फिल्म को देखने को राजी नहीं होंगे। अगर जिन्दगी में कुछ था तो तब हजार बार जीने के लिए राजी हो जाना चाहिए था! लेकिन जिन्दगी में तो कुछ है ही नहीं। लेकिन हम इस सवाल को नहीं उठाते है तो यह जिन्दगी हमें व्यर्थ नहीं लगती। और जब सवाल उठता है तो यह जिन्दगी हमें व्यर्थ लगती है। परमात्मा की खोज पर तो वही जाते हैं जिन्हैं जिन्दगी व्यर्थ दिखाई देती है।तब वे नये जीवन की सार्थकता को खोजने को अग्रसर होते हैं। हम परमात्मा की बात इस जीवन के श्रृंगार के लिए करते हैं। मकान चाहिए,नौकरी चाहिए। परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हमें बच्चा चाहिए। इस जिन्दगी की सजावट के लिए परमात्मा खोजते हैं। लेकिन हमारी सब प्रार्थनाएं अनसुनी हो जाती हैं। इसलिए नहीं कि परमात्मा नहीं सुनता,बल्कि इसलिए कि हमारी प्रार्थना, प्रार्थना ही नहीं है। सिर्फ मॉगें हैं,इच्छाएं हैं,आकाक्षॉएं हैं।ये आकॉक्षॉएं उसी व्यर्थ जिन्दगी के लिए है। यह अगर समझ में आ जाये तो आदमी ऊपर उठ सकता है।
8-हर आदमी अपने ही पीछे चलता है-
हर व्यक्ति अपने पीछे चलता है भगवान या किसी महॉन जन के पीछे नहीं। किसी यदि किसी महॉन जन का निर्णय करना हो तो इसका निर्णय करना कठिन है,लेकिन जब भी आप इसका निर्णय करेंगे तो यह निर्णय आपका होगा। इसका मतलव आप महॉ जन से ऊपर हो गये,नीचे नहीं रहेंगे।आप राम को महॉन कहते हैं तो यह निर्णय आपका हो गया।और दूसरा कहता है बुद्ध महॉन हैं,तो यह निर्णय उसका है। जब भी आप कोई निर्णय लेते हैं उस समय आप परम निर्णायक होते हैं। कोई महॉन जन निर्णायक नहीं होता है। इनका निर्णय भी आप ही लेते हैं। इसमें आदमी हमेशा अपने विवेक के पीछे चलता है,किसी महॉन जन के पीछे नहीं चलता। दुनियॉ में हजारों महांन जन हैं,कैसे निर्णय करोगे कि कौन महॉन जन है।लेकिन आप जब भी निर्णय करते हो, इसका मतलब कि आप अपने पीछे चल रहे हैं। यदि आप कहते हैं कि मैं नानक के पीछे चलूंगा तो, यह भी आप अपने निर्णय के पीछे चल रहे हैं। नानक के पीछे नहीं चल रहे हैं। आदमी के पास तो कोई उपाय है ही नहीं कि अपने सिवाय औरों के पीछे चल सकें। ईसाइयों के लिए जीसस महॉन हैं तो हिन्दुओं के लिए कृष्ण।सच्चा शास्त्र कौन है यह भी आपका निर्णय है।और जब सभी निर्णय आपके हैं तो फिर महॉन जन तो आप ही हो गये।अर्थात जो महॉन जन है फिर वह आपकी ही आत्मा है।इसलिए आप उसकी आवाज का ही पीछा करें,फिर वह जो भी निर्णय दें, करें। लेकिन आप हमेशा अपने ही पीछे जाते हैं। इस धोखे में न रहें कि औरों के पीछे जा सकते हैं। अगर आप इस बात को नहीं मानते हैं तो,यह भी आपका ही निर्णय है। अर्थात व्यक्ति की चेतना ही अंतिम निर्णायक तत्व है,अगर एक व्यक्ति कहता है कि मैं भगवान को मानता हूं तो यह भी उसी का निर्णय है। भगवान का नहीं।
9-शास्त्र की सत्यता-
जब मैं कहता हूं कि शास्त्र में सत्य नहीं मिलेगा, लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि शास्त्र में सत्य नहीं है। कहने वाले के लिए शास्त्र में सत्य तो हैं मगर पढने वाले के लिए सत्य नहीं है। पढने वाले के लिए क्या हो सकता है? कोरे शव्द , जिनका उसके पास कोई अनुभव नहीं है।और यदि अनुभव होता तो वह गीता की फिक्र ही न करता। ।और यदि जिसके पास अपना अनुभव नहीं है, वह तो गीता को छाती से लगा लेगा। जो कि खतरनाक है ।यह कृष्ण तक पहुंचने में बाधक बनेगा। अगर गीता को पढना हो तो मुक्त मन से पढें। समझें,मुक्त मन से। इस बात को हम जान रहे हैं कि जिस बात को हम पढ रहे हैं वे शव्द हैं, अभी तो सत्यता की यात्रा नहीं हुई। सागर तक पहुंचना है,इतना खयाल रखना होगा। इसलिए शास्त्र से सावधान रहे। इससे भ्रॉति पैदा हो सकती है और आदमी चाहता है कि विना खोजे ही सत्य मिल जाय, खोजना न पडे।अगर चोट खाई है तो वह सोचता है कि गीता से मिल जा9-येगा,और जिन्दगीभर पढते रहेंगे तो मिल जायेगा। लेकिन चोट पहुंचती है तब जब यह कहता हूं कि खोजना पडेगा फिर मिल जायेगा। सत्य इतना सस्ता नहीं है कि जिसे कहें कि उसके लिए है। लेकिन आपको उसदिन मिलेगा जिस दिन तुम जानोगे, इससे पहले नहीं।