Wednesday, August 8, 2012

कर्तव्यों का पालन ही स्वर्ग है

 

1–चरित्र जितना ही अधिक परिस्कृत होगा उतना ही अधिक भगवान का प्यार मिलेगा -
        परमात्मा तक पहुचने के लिए जीवन का शोधन करना होगा,पाप और पतन सरल है, घर में आग लगा दीजिए और दस हजार रुपये जला दीजिए यह हो सरल है, लेकिन मकान बनाना और दस हजार रुपये कमाना कठिन है। आत्मा को परमात्मा तक पहुंचाने के लिए रास्ता सरल नहीं है,संयमी- सदाचारी और ईमानदार बनिए कीमत को चुकाङये ।


2–कर्तव्यों का पालन ही स्वर्ग है -
         कर्तव्यों का पालन करना स्वर्ग की अनुभूति है, कर्तव्य पालन से आंखों में एक नईं ज्योति आती है, यह आत्म बल से उत्पन्न हुई शॉति होती है, कर्तव्य करते हुये यदि हम असफल हो भी जाते हैं तो कोई बात नहीं गॉधी, सुकरात,या ईसामसीह भी असफल हो गये थे, मगर यह असफलता सफलता से सौ गुनी अच्छी है ।


3–स्मरण शक्ति का विकास करें-
         आध्यात्म में विस्मरण का निवारण ध्यान योग है, ध्यान योग का उद्देश्य मूलभूत स्थिति के बारे में,सोच विचार कर सकने योग्य स्मृति को वापिस लौटाना है,जीव का ब्रह्म के साथ मिलन से स्मृति ताजा हो जाती है, ध्यान योग हमें ङसी लक्ष्य की पूर्ति में सहायता करता है, ङससे आत्म बोध होता है, जो कि जीवन में सबसे बडी उपलब्धि है ।यही रास्ता हमें ईश्वर तक ले जाता है ।


4–मानसिक असंतुलन से मुक्ति के उपाय-
         मानसिक असंतुलन को सन्तुलन में बदलने के लिए ध्यान साधना से बढकर और कोई उपयुक्प उपाय नहीं है,ङसका सीधा लाभ आत्मिक और भौतिक दोनों रूपों में मिलता है, कई बार मन क्रोध, शोक, प्रतिशोध, कामुकता, विक्षोभ जैसे उद्वेगों में उलझ जाता है, ङससे कुछ भी अनर्थ हो सकता है, मस्तिष्क को ङन विक्षोभों से कैसे उबारा जाय ङसका समाधान ध्यान साधना से सम्भव है ।


5–मुसीबत अपने साथ विपत्तियों का नया परिवार समेटकर लाती है –
         जिन्दगी में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं कि एक मुसीबत के साथ कई मुसीबतें आ जाती हैं, ङसका कारण जब व्यक्ति आवेश में आता है तो संतुलन खो बैठता है, फिर न सोचने योग्य बातें सोचने लगता है,न कहने योग्य कहता है, न करने योग्य करता है, उनके दुष्परिणाम निश्चित रूप से होते हैं। जिन कारणों से मानसिक संतुलन बिगडा था, उससे तो हानि के क्रम बनते चले जाते हैं ।


6–देवता कभी बूढे नहीं होते हैं -
         आपने राम,कृष्ण या किसी देवी माता की शक्ल को बूढी नहीं देखी होगी।बूढे तो वे होते हैं जिनके अन्दर उत्साह उमंग नहीं रहता है ।श्रीकृष्ण भगवान 108 वर्ष मे मरे थे, उनके बाल सफेद हो गये थे दॉत उखड गये थे लेकिन उनको बूढा नहीं कहा गया,क्योंकि जिनके अन्दर उमंग ,उत्साह है और जो निराश नहीं होते हैं हर पल उत्साहित रहते हैं उन्हैं जवान कहते हैं ।


7–ईश्वर भक्ति का नशा -
         जिस प्रकार शराबी को शराब का नशा होता है, उसी प्रकार भक्त को भक्ति का नशा होता है,हनुमान ने सारा जीवन भगवान के काम लगाया, सुग्रीव ने भी यही किया,बुद्ध ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया था,स्वामी विवेकानन्द तथा गॉधी जी ने अपना जीवन भगवान के सुपुर्द कर दिया था, विभीषण तथा शिवाजी की भक्ति को देखिए सारा जीवन भगवान कोसमर्पित कर दिया था ।


8-आध्यात्म जीवन के लिए आवश्यक है -
           आध्यात्म से शारीरिक,मानसिक,आर्थिक समस्याओं का समाधान हो जाता है।आध्यात्म का जीवन में आने से परिवारों में राम-कृष्ण, भीम-अर्जुन, हनुमान जैसी सन्तानें पैदा होंगी ,व्यक्ति,परिवार,समाज एवं राष्ट का कल्याण होगा जिस प्रकार रामलीला के लिए पहले रिहर्सल करते हैं उसी प्रकार आध्यात्म को जीवन में अपनाने के लिए हमें प्रेक्टकल करना होता है,ठीक उसी प्रकार जैसे डाक्टर बनने के लिए डाक्टर अभ्यास करता है ।


9–श्रेष्ठ परम्पराओं को बढाना ही वंश परम्परा है -
        वंश परम्परा का मतलव औलाद से नहीं है बल्कि श्रेष्ठ परम्पराओं को आगे बढाना है हमारे पूर्वजों द्वारा आाध्यात्म की जो नीव रखी है उसे हमें संजोकर तथा परिष्कृत करके रखना है, ताकि अगली पीढी को ङसमें सन्देह न हो ,महान श्रृषि गुफा में ही नहीं बैठते थे बल्कि लोगों को अपना ज्ञान बॉटते थे, ईसा मसीह, मुहम्मद साहब,गॉधी जी ने सारा जीवन दुनियॉ की सेवा में अर्पित किया ।


10–सम्पत्ति जमा करने से अहंकार बढता है-
        जहॉ सम्पत्ति होती है वहॉ कलह होता है प्रशन्नता नहीं होगी । जब शरीर मोटा होता है तो वह कुछ भी काम नहीं कर सकता है, उसी प्रकार बडा आदमी बनने से कोई फायदा नहीं,अहंकार बढता है, जो कि जीवात्मा को पसन्द नहीं है। महात्मॉ गॉधी जी ने जब आंतरिक महानता को स्वीकार किया तो पूरे विश्व में अपनी छाप छोड गये । बडप्पन से महानता बडी है।


11–सुख और शॉन्ति का जीवन-
        ङस शरीर को सुख चाहिए जबकि आत्मा के लिए शॉन्ति । सुख का सम्बन्ध भौतिक सम्पदा से है जैसे बीबी बच्चे,मकान, मोटर गाडी,रुपये पैसे अगर हैं तो कहते हैं सुखी है, लेकिन आत्मॉ के लिए ये चीजें व्यर्थ हैं ङन चीजों से शॉन्ति नहीं मिल सकती है,सुखों को बॉटने से शॉन्ति मिलती है,रावण हो या कंस या सिकन्दर सभी सुखी थे, मगर शॉन्ति नहीं थी अच्छा भोजन करने से सुख मिल सकता है शॉति नहीं


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