Wednesday, August 8, 2012

आराम सत्य की कसौटी नहीं है

 
 
 
 
 
 
 
 
 
1-आराम सत्य की कसौटी नहीं है-
        अगर आप आराम चाहते हैं तो,सत्य से दूरी बढती जायेगी। यदि आप सचमुच सत्य की खोज चाहते हैं तो,आराम के प्रति आसक्त न हों। सत्य की प्राप्ति के लिए त्याग की आवश्यकता होती है। कामनाओं को मारना होगा,तभी आपके अन्तःकरण में उच्चत्तर सत्य प्रकाशित हो सकेगा। बलिदान आवश्यक है, आत्मत्याग का बलिदान ।सभी धर्मों में आत्मत्याग को एक अंग के रूप में स्वीकार किया गया है। ईश्वर के प्रति की जानी वाली सभी आहुतियॉ, आत्मत्याग ही तो है,जिसका कि कुछ मूल्य होता है।इस आत्मसमर्पण से ही तो हम यतार्थ आत्मसाक्षात्कार कर सकते हैं।एक सच्चे ज्ञानी को तो इस शरीर धारण के प्रति कोई चेष्ठा नहीं करनी चाहिए,और न इच्छा करनी चाहिए। चाहे ये संसार गिर पडे, मगर द्ढ होकर परम सत्य का अनुशरण करना चाहिए। वैसे बहुत कम लोग हैं जो अपने भीतर ईश्वर का साक्षात्कार करने का साहस करते हैं,क्योंकि इसे सिद्ध करने के लिए द्ढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है। हर मनुष्य स्वयं में पूर्ण है। हमें बोध होना चाहिए कि मैं विश्व हूं,मैं ब्रह्म हूं।और जब हम वास्तव में स्वयं उस आत्मा के साथ योग कर लेते है,तो फिर हमारे लिए सबकुछ सम्भव हो जाता है। सभी पदार्थ हमारे सेवक हो सकते हैं। जैसे मक्खन को पानी में रखने पर वह पानी से नहीं मिल सकता है। उसी प्रकार जब मनुष्य आत्मा का साक्षात्कार कर लेता है तो वह फिर इस संसार द्वारा दूषित नहीं हो सकता है।
 
2-भक्ति योग से धर्मांधता का जन्म होता है-
        भक्तियोग का सबसे बडा लाभ है कि हम ईश्वर की प्राप्त के चरम लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं। लेकिन जब भक्ति परिपक्व होकर उस अवस्था को प्राप्त हो जाती है,जिसे परा भी कहते हैं,उस स्थिति में भयानक कट्टरता,मतान्धता की आशंका बन जाती है।क्योंकि व्यक्ति उस ईश्वर के एकदम करीव पहुंच जाता है। इससे व्यक्ति मतान्ध और कट्टर बन जाता है। हिन्दू,इस्लाम या ईसाई धर्म में जहॉ इस प्रकार के दल है,वहॉ निम्न श्रेणी के भक्तों द्वारा गठित विचारों से ये दल बन बन जाते हैं,जो कि सम्प्रदाय से बाहर के लोगों के प्रति बुरा से बुरा कार्य करने में भी नहीं हिचकेगा। जोकि किसी देश,समाज के लिए उपयुक्त नहीं है। इसलिए भक्ति मार्ग के साथ व्यापक दृष्टिकोंण अपनाया जाना चाहिए। भक्य बने लेकिन उच्च श्रेणी का।
 
3-ध्यान-योग की शक्ति-
        हर महॉपुरुष ने ध्यान शक्ति को जीवन में अपनाकर महॉनता के लक्ष्य को प्राप्त किया है। अगर हम स्वामी विवेकानन्द के बारे में जानने का प्रयास करते हैं तो,पायेंगे कि, उन्होंने जो कुछ पूरे विश्व को दिया,वह उन्हैं ध्यान शक्ति से ही प्राप्त हुआ था। क्योंकि ध्यान से उस परम शक्ति के योग से वह चीज मिल जाती है,जिसे हम चाहते हैं।
        श्री रामकृष्ण ने भविष्यवॉणी की थी कि जब नरेन्द्र(स्वामी विवेकानन्द) अपना कार्य पूर्ण कर लेने के पश्चात यह जान लेगा कि वह कौन और क्या है! तो वह निर्विकल्प समाधि में लीन हो जायेगा। हमारे ग्रन्थों में लिखा है कि जब हमें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि मैं कौन हूं, तो फिर और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। और यह ज्ञान ध्यान -योग शक्ति से ही प्राप्त होता है।
        एक दिन मठ में किसी ने स्वामी जी से पूछा कि स्वामी जी,क्या आप जानते हैं कि आप कौन हैं? इस प्रश्न के उत्तर में चुप रहे, फिर मुंह से निकला “हॉ अब मैं जानता हूं।“ फिर उन्होंने अपने जीवन लीला को समाप्त करने का शुभ दिन चुना।
         4 जुलाई सन् 1902 का दिन। प्रातः 3 घण्टे का ध्यान किया,अपराह्न में युवा सन्यासियों को संस्कृत, व्याकरण,तथा वेदान्त दर्शन पढाया फिर अपने गुरु भाई के साथ लम्बी सैर की, सायं काल के समय सैर से लौटने पर सायंकालीन घण्टी बज रही थी, वे अपने कमरे में गये और गंगा की ओर मुंह करके ध्यान में बैठ गये,यह उनका अन्तिम ध्यान था।

        भले ही इससे पहले कई बार इसी तरह के ध्यान में बैठे,लेकिन इस बार लक्ष्य सामने था। बस उस ध्यान के पंखों पर बैठकर इतनी उच्च अवस्था में चले गये कि,जहॉ से पुनः प्रत्यावर्तन नहीं हो सकता था। और इस शरीर को तह लगाई पोषाक की तरह इस भूमि पर छोड दिया था।

       स्वामी विवेकानन्द के ध्यान की विशेषता यह थी कि,वे कहीं भी जाते थे,उनका ध्यान धारण शक्ति कुप्रभावित नहीं होती थी। हर जगह एक ही लय में ध्यान धारण की शक्ति प्राप्त होती थी। इसलिए हम-आप सभी लोग अपने सुखमय जीवन के लिए,प्रतिदिन सुबह ध्यान धारण का अभ्यास करें,इससे वह ऊर्जा,शक्ति मिलता हैं,जिससे हम अपने जीवन को आनन्दित बना सकते हैं।
 
4-अपनी भूलें-

        अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए,यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारें।भूल करने में पाप तो है ही मगर उसे छिपाने में उससे भी बडा पाप है।जो जान गया कि उसने भूल की है और उसे ठीक भी नहीं करता,वह एक और भूल करता है ।

No comments: