Monday, December 9, 2019

मन की शक्ति

   मन  के केन्द्र 

       प्रत्येक  व्यक्ति  एक पल मेंं  क्रोध,  दूसरे पल   लोभ, तीसरे पल  मोह और ऐसे ही  अहंकार,  ईर्ष्या ,  द्वेष या  अन्य कोई न कोई नकारात्मक विचार या बोल बोलता रहता हैं या सोचता रहता हैं  और उनकी पीड़ा महसूस करता रहता है़  । 

      इसी तरह  हम   कभी शांति,  कभी प्रेम,  कभी  आंनद,  कभी खुशी कभी दया के बोल बोलते या सोचते  रहते हैँ, और सुखद अनुभुति करते रहते है़ । 

       समझ नहीं आता  एक पल मेंं विचार और बोल  कैसे बदल जाते हैं  और कैसे उन से अलग अलग महसूसता होने लगती हैँ । 

      आज T  V , पंखा, कूलर, हीटर, A C ,   कंप्यूटर, मोबाइल  आदि   अनेकों यंत्र लगभग सभी घरो मेंं  हैं ।  ।

  ये सभी यंत्र विद्युत से चलते है ।

      विद्युत वही होती है परंतु  यंत्र अपनी बनावट अनुसार प्रभाव छोड़ने  लगते  है ।

      विद्युत पंखे को देते तो हवा होने लगती है,  यही विद्युत हीटर में देते है तो गर्मी होने लगती है, यही विद्युत टेप  रेकोर्डेर में देते तो संगीत बजने लगता  है....... आदि आदि.।

       क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य आदि और कुछ  नही हमारे मन में ऐसी कोशिकाएं है़ जिन्हें हम  यंत्र या  केन्द्र कह सकते है़ । 

      विचार विद्युत है़ । 

-       जब हमे क्रोध  का संकल्प   उठता  है तो वह  विचार क्रोध वाली कोशिका/ केन्द्र से गुजरने लगता है ।  इस केन्द्र से  जब विचार गुजरते हैं तो ये  केन्द्र   हीटर की तरह गर्मी  अर्थात   क्रोध रूपी आग उगलने लगता  है । 

-        संकल्प जब लोभ केन्द्र  से गुजरता  है तो ऐसी तरंगे निकलने लगती जिस से हम  लोभ मेंं आ जाते है़ और फंस जाते हैं । 

-        विचार जब  ईर्ष्या -द्वेष का होता है  तो यह उस केन्द्र से गुजरता है जिस  से मिर्ची के जलने जैसी दुर्गंध निकालती है और   हम बेचैन   होने लगते  है़  । 

        जब आलस्य के विचार होते है़ तो यह उस कोशिका/ केन्द्र से निकलते है़ जिस से सूक्ष्म रस्सियां  बनती है़ जो हमें जकड़ देती है़ और हम जकड़ जाते हैं उठा  नहीं जाता जिसे हम आलस्य कहते हैं । 

      हमारे मन में शांति, प्रेम, सुख, आनंद, दया वा करुणा  आदि के केन्द्र बने हुए है । जब विचार  इन से गुजरते है तो  वैसा ही प्रभाव छोड़ते है और हम उमंग उत्साह मेंं रहते हैं । 

      मन समय और परिस्थिति अनुसार अपने आप नये नये केन्द्र बनाता रहता  है । 

       योग और कुछ  नही सिर्फ शांति, प्रेम, सुख व  आनंद के केन्द्रों को  सक्रिय (activate )  करना है अर्थात उन का अधिकतम प्रयोग बढाना  है ।  हमे हर समय इन केन्द्रों से काम लेना है । अगर इन अच्छे  केन्द्रों  का हर समय प्रयोग करते है तो बाकी सब बुरे केन्द्र बँद हो जाते  है ।

        सतयुग  में पाँच विकार और उन से सम्बन्धित बुरे केन्द्र एक दम बंद हो जाते  है और सिर्फ अच्छे  केन्द्र जागृत रहते है ।

         जैसे ही हमे कोई विचार  उठता  है वह स्वयमेव (  automatically ) सम्बन्धित केन्द्र पर चला  जाता है और उसी अनुसार तरंगे प्रवाहित होने  लगती   हैं  ।

        आज मनुष्य का विचार  स्थिर   नही है़  । वह एक मिनिट में कभी शांति,  कभी दुख,  कभी नाराजगी,  कभी निराशा,   कभी कमजोरी के विचार  करता  है । 

       अगर हम   कूलर,   पंखा, एयर कंडीशनर,    हीटर,  ओवन सब इकठा  चला  दें  तो न हवा का सूख न   ठंडक का सूख  न  ही गर्मी का  सुख ख पा  सकेंगे क्योंकि पर्याप्त समय तक कोई भी यंत्र  नही चलाया  जिस से अनुकूल वातावरण बन सके । 

       ऐसे ही कोई भी श्रेष्ट संकल्प  जब तक पर्याप्त समय तक नही चलाएगे तो उससे सम्बन्धित बल पैदा  नही होगा ।

       अगर कोई भी साकारात्मक   संकल्प हम दस हजार  बार लगातार दिमाग में दोहराते   है तो उस से इतना मानसिक बल पैदा हो जाता है जो उस एक दिन कोई भी नकारात्मकता का हमारे पर प्रभाव नहीं होगा  । 

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