इस शब्द का प्रयोग और दरुपयोग व्यापक रूप में हो रहा है ।
सभी धर्म, सभा, सोसाइटिया तथा अनेको संस्थाए और प्रचारक विश्व बंधुत्व की भावना का प्रचार कर रहे है । परन्तु यह भावना धरातल पर नहीं दिखती ।
विश्व बंधुत्व की भावना की जितनी दुहाई देते है उतना ही अधिक अपने बंधुओ से दूर होते जा रहे हैंं ।
मुंह में राम और बगल में छुरी वाली बात चरितार्थ हो रही है ।
लोग धार्मिक संस्थाओ के जितना नजदीक है उतना ही विश्व बंधुत्व और परमात्मा से दूर होते जा रहे है ।
बंधुत्व के अभाव में सुखी संसार व परिवार की परिकल्पना नहीं की जा सकती है ।
अगर हम सिर्फ अपने परिवार या धर्म या अनुयाइयों के प्रति भाईचारे की भावना रखते है तॊ यह सकुंचित भावना है ।
ब्रह्मांड के कण कण का सुख दुःख जब हम अपना सुख दुःख समझेंगे तॊ यह वास्तविक बंधुत्व होगा ।
यह तभी हो सकता है अगर हम परमपिता परमात्मा शिव को याद करेंगे । क्योकि सारी सृष्टि भगवान की ही रची हुई है । जब हम सभी परमात्मा शिव को याद करेंगे तॊ हम सभी को एक जैसी प्रेरणाएं मिलेगी, जिनके धारण करने से हमारे मन में बंधुत्व की भावना आएगी ।
विश्व बंधुत्व की भावना अर्थात जो हमें प्रतिकूल लगता है वह दूसरों के साथ नहीं करना ।
उदार हृदय वाले व्यक्ति के लिये सारा संसार अपना परिवार होता है ।
साधारण व्यक्ति सिर्फ उन लोगो के लिये कार्य करता है जो उसके परिवार के है या उन पर निर्भर है ।
रोटी, कपड़ा और मकान विश्व के प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत जरूरत है । अगर हम दूसरों की यह जरूरत पूरी करेंगे तब विश्व बंधुत्व की भावना पूरी होगी ।
अग्नि का धर्म है दहकना और जल का गुण है शीतलता ।
अग्नि दहकना छोड़ दें तॊ अग्नि नहीं कहलाएगी ।
जल यदि शीतलता छोड़ दे तॊ वह जल ही नहीं रह जाएगा ।
ऐसे ही प्रत्येक मनुष्य का स्वधर्म है शांति और प्रेम ।
इस समय शांति और प्रेम मनुष्य में खत्म हो चुका है इसलिए विश्व बंधुत्व की भावना भी खत्म हो चुकी है ।
यदि सारा संसार राजयोग का अभ्यास करने लगे तॊ विश्व में बंधुत्व की भावना आ जाएगी ।
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