Saturday, March 21, 2020

साधना बिन्दु रूप की

बिंदु रूप की साधना 

1- बिंदु रूप में भगवान  को याद करना सब से आसान है । 

2-इस रूप को हरेक व्यक्ति,  बूढ़ा,  बच्चा और जवान,  अनपढ़ और पढ़ा  लिखा कोई भी याद कर सकता है । 

3-बिंदु रूप में याद करने से कोई साइड  एफेक्ट नहीं होता ।  इस का पुस्तकें पढ़ के भी अभ्यास कर सकते हैंं  । 

4-आप मन में बिंदु देखते रहो  । 

5-अपनी आंखों के आगे जितनी नजदीक या दूर कल्पना में एक  बिंदु  जैसा  आकाश  में सितारा देखते है,  देखते रहो । 

6-अगर कल्पना में बिंदु नहीं देख सकते है तो अपने सामने  शिव बाबा  का किरणों  वाला चित्र रख ले । 

7-अगर आप के पास  चित्र नहीं है तो कोई कागज पर एक बिंदु बना ले । 

-मोमबती या दीपक प्रयोग नहीं करना है । 

8-बस बिंदु को देखते हुये भाव  रखो यह परमपिता परमात्मा का दिव्य और अलौकिक रूप है । 

9-बिंदु को देखते हुये  मन में कहो आप शांति के सागर है ।  इसी संकल्प को दोहराते रहना है । 

या 

10-इस बिंदु को मन में देखते हुये कहो  आप प्यार  के सागर  है,  प्यार  के सागर  है । 

11-इन दो गुणों में से जो आप को पसंद है उसको मन में धीरे धीरे दोहराते रहो । 

12-जैसे ही हम भगवान  को याद करते है,  हमारा  मन परमात्मा से जुड़ जाता  है और परमात्मा की शक्ति हमारे  में आने लगती है । 

13-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

14एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

15-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को संदेश भेजने और उंहे शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

16-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

17-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो अनुभूति नहीं होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

18-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

19-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

 20-  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

21-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

      ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

Monday, March 9, 2020

मनचाही शक्तियों की प्राप्ति और कुदरती नियम -शक्ति पात

मनचाही प्राप्ति  और कुदरती नियम 

शक्तिपात 

1-शक्तिपात अर्थात अपनी शक्ति का हस्तांतरण करना । 

2-अगर हमारे पास  पदार्थ है तो हम दूसरों को भोजन कराते  हैं ।  लंगर चलाते  है । दूसरों को कपड़े दान  करते है ।   जरूरत मंदो को हर माह  कुछ ना कुछ  पदार्थ दान  करते रहते है । यह एक प्रकार का शक्तिपात  है । 

3-हम जिस भी धार्मिक  संस्था से जुड़े होते है,  उसको तन, मन और धन से यथा शक्ति सहयोग देते है ,  यह सहयोग भी एक शक्तिपात  है । 

4- अगर हमारे पास  धन है तो हम स्व इच्छा से स्कूल ,  कॉलेज,  यूनिवर्सिटी और फ्री हस्पताल खोल देते है या गरीब विद्यार्थियों की आर्थिक मदद करते है तो यह  भी शक्तिपात  है । 

5-हम गरीब लोगों को अपना मकान,  प्लाट,  कार ,  स्कूटर,  साइकल  आदि दान  दे देते है तो यह भी शक्तिपात  है । 

6-जब जब   प्राकृति  की तरफ से कोई  आपदा  आती है तो हम मानवता की भलाई के लिये आगे आते है और बिना स्वार्थ  सहयोग देते है । यह सहयोग भी शक्तिपात  है । 

7-स्थूल पदार्थों से जो हम दूसरों को सहयोग देते है यह पहले   स्तर का शक्तिपात  है ।  अगर यह ना हो तो समाज  नष्ट हो जायेगा । 

8-दूसरे स्तर का शक्तिपात  है लोगों को रोजी रोटी कमाने की कला सिखाना । 

9-हर व्यक्ति में कोई ना कोई कला होती है ।  संगीत कला,  पाक कला  उपचार कला,  इंजिनियरिंग की कला,  टीचिंग की कला अर्थात आप गायक है,  अच्छे कुक है,   इंजिनियर है,  अच्छे मेकेनिक है,  अच्छे डांसर है,  अच्छे पहलवान है,  अच्छे कोच है,  वकील है,  शिक्षक  है,  किसान  है,  प्रॉपर्टी डीलर है,  प्रचारक है ।  हम अपनी यह कला दूसरों को सिखा कर उन्हें  रोजी रोटी के लायक बनाते है ।  यह दूसरी तरह  का शक्तिपात  है । 

10-हम सक्षम है और लोगों को रोजगार देते है ।  घर में ,  दुकान में ,  फेक्टरी  में लोगों को रोजगार देते है ।  यह   भी शक्तिपात  है । 

11-हम मेहनत कर के  अच्छी पढ़ाई से सरकार  में उंच नौकरी आई  ए  एस या आई पी एस बन जाते  है तो सरकार  हमें बहुत  सारी शक्तिया  दे देती है । इसे भी शक्तिपात  कह सकते   हैं । 

12-हम समज सेवा करते करते पार्षद,  महापौर,  एम एल ए,  एम पी,  -  मुख्यमंत्री,  मंत्री,  प्रधान मंत्री  और राष्ट्रपति बन जातें  है ।  इस से हमें अथाह शक्तियां  मिल जाती  है ।  ये भी शक्तिपात  कहते  है । 

13-पवित्रता,  योग साधना  और सेवा करते करते जब हम आंतरिक रूप से योग्य बन जाते  है  तो ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न  महापुरुष या भगवान  हमें अपनी शक्तियां  दे देते है ।  असल में यही वास्तविक शक्ति पात  है । जिसका बहुत  महिमा मंडन है ।

Friday, February 21, 2020

मानसिक शक्ति संकल्प


1-शांति और प्रेम यह आत्मा के मूल गुण है । सारा संसार इसी पर खड़ा  है । इन्ही दो शव्दो में अथाह बल है । इसे ही डेवेलप करना है ।

2-कौन से शब्द व गुण का  अभ्यास करना चाहिये । जिस से हमे अपने जीवन में  मन इच्छित फल मिले तथा ईश्वरीय शक्तियों प्राप्त कर सके ।

3-आप अपने को देखो आपको क्या पसंद है । शांति या प्रेम । अगर शांति पसंद है तो शांति का  अभ्यास हर समय करो अगर प्रेम पसंद है तो प्रेम  का  अभ्यास  करो ।

4-शांति सब को प्रिय है इसलिये हम शांति के संकल्प  को ले कर चलते है ।

5-मै शांत हूं शांत हूँ सदा  इस भाव में टिके  रहो ।  परमात्मा को देखते हुए आप शांति के सागर  है , इस गुण से याद करो । कोई व्यक्ति देखो या याद आयें तो उसको कहो आप शांत स्वरूप है । जब इस तरह एक ही संकल्प मन में रखेगे तो उस का एक गति चक्र बन जायेगा ।

6-इसी तरह के और भी  अच्छे  शव्दो को हम ले सकते है । इन शव्दो को  बार बार  दोहराते  रहे तो उस  से उत्पन्न हुई  ध्वनि या कम्पन की तरंगे सीधी या साधारण नहीं रह जाती । वह एक वृत बन  जाती हैँ  और  वह  तरंगे घूमने लगती हैँ 

7- इन तरंगो का   वृताकार रूप में  घूमना उस व्यक्ति और ब्रह्माण्ड में एक असाधारण शक्ति प्रवाह उत्पन करता है । उस के फल स्वरूप उत्पन्न  हुए   परिणामों  को चमत्कार कहेंगे  ।

8--इस शब्द की शक्ति को दूसरे प्रकार  से समझा  जा सकता है ।

9--शेर की दहाड़ से हम डर जाते  है ।

10--कोयल की कूक सुनते ही मनुष्य में प्यार उमड़ने लगता है ।

11-दही को मथने से माखन निकलता है ।

   12-शुध्द संकल्प को रीपीट करने से ऐसी शक्ति निकलती है जो रोग ठीक कर देती है । अलग अलग रोगॊ को ठीक करने के लिये कौन से शब्द और कितनी मात्रा में हो जो रोग ठीक हो जाये यह खोज करनी है ।

  13-अल्ट्रा साउंड तरंगों  से  तरह तरह के इलाज सम्भव हो रहे है ।

  14-बिजली, भाप, एटम,बारूद आदि सूक्ष्म में कम्पन शक्ति ही  है ।

  15- संकल्प से भी  कम्पन पैदा  होते हैंं   तथा  इस से हम सर्व श्रेष्ट ईशवरीय शक्तियों को पकड़ सकते है ।

16-संगीत से पशु अधिक दूध देते है ।

 17-बीन  बजा  कर हम साँप को वश में कर सकते है ।

 18-संगीत से दीपक जला  सकते है ।

 19- बादलों  से वर्षा  करवा सकते है ।

  20- ऐसे ही हम अलग अलग  संकल्पों से उपलब्धिया पा सकते है । परंतु यह खोज करनी है । इस से संसार का कल्याण होगा ।

Thursday, January 23, 2020

मानव के प्रकृति से सम्बन्ध

 वृक्ष पर्यावरण की दृष्टि से हमारे  परम रक्षक और मित्र है। 

वृक्ष हमें अमृत प्रदान करते  है। 

     हमारी दूषित वायु को स्वयं ग्रहण करके हमें प्राण वायु देते  है।

      वृक्ष हर प्रकार से पृथ्वी के रक्षक हैं जो मरूस्थल पर नियंत्रण करते हैं, नदियों की बाढ़ो की रोकथाम व जलवायु को स्वच्छ रखते हैं । 

        पेड़ों की एक और विशेषता  है जिस की तरफ संसार का अभी ध्यान नहीं गया  है । 

प्रत्येक पेड़-पौधा एक छोटा-सा विद्युत गृह भी है । 

       जैसे ही हम किसी पेड़ को देखते है उस पेड़ की विद्युत हमें मिलने लगती है ।  हमारे  रोग ठीक हो जाते  है ।  हमारी  आत्मिक शक्ति बढ़ जाती  है । 

      यही कारण है कि  ऋषि जंगलों वा  पहाड़ों पर तपस्या करते थे । 

        कई  ऐसे रोग होते है जिनके हो जाने  पर डॉक्टर्स पहाड़ों पर पेड़ों के बीच रहने के लिये भेज देते है । क्योंकि वहां  वृक्षों से पर्याप्त मात्र  में विद्युत मिलती है । 

       जब हम थके हुये होते है और  किसी हरे भरे बाग  में जाने  पर या हरियाली वाले  स्थान पर जाने  से थकावट दूर हो जाती  है ।  

        असल में हमें  पौधों से विद्युत मिलती है जिस से हमारी थकावट उतर जाती  है । 

        रंग बिरंगे फूलों और हरे पतों को देख कर खुशी होती है क्योंकि उनमें  प्रचुर  विद्युत होती  है । 

         अगर हम किसी पौधे को देखते ही यह सोचे   कि आप   कल्य़ाणकारी  है या कोई और सकारात्मक शब्द बोलते हैं    तो उस की विद्युत  हमारे  में आने लगती है और हमें अच्छा अच्छा लगने लगता है  । 

      कोई गुलाब के फूलों से स्वागत करे  तो हमें कितना अच्छा  लगता  है । अक्सर  स्नेह प्रकट करने का यही उतम ढंग है दूसरों को फूल देना ।  परंतु इसके पीछे फूलों की विद्युत है जो हमें आकर्षित करती है । सकून देती है । 

         जिन पेड़-पौधों से  प्रचुर मात्रा में बिजली  मिलती है -वह है  केला, कैक्टस, गुलाब, अगिया घास, आक, बैगन, आलू, मूली, प्याज, टमाटर, पपीता, हरी मिर्च, अमरूद आदि वृक्ष एवं सब्जियों के पौधे हैं। इन पौधों की विद्युत से हम बल्ब तक जला सकते हैं । 

         आपके आसपास जो भी पौधे है या कहीं  आते जाते  देखते हैं  तो उन पौधों को सकारात्मक विचार दिया करो ।  इस से उनकी विद्युत आप में आने लगेगी  और आप की खुशी बढ़ेगी ।  जितना  ज्यदा पौधों को तरंगें देंगे उतना ही आप का मानसिक  बल बढेगा और आप सहज योगी बन जायेंगे ।

Wednesday, January 22, 2020

प्रेम और क्षमा


प्रेम और क्षमा 

           प्रेम की कमी के कारण तथा शारीरिक  कमजोरी के कारण  भी डर लगता  है । जब शरीर मे किसी खास  किस्म के  विटामिन  और मिनरल कम हो जाते  है तो खास  कमजोरी हो जाती है जिस से डर लगने लगता  है । लोग सोचते हैं यह  किसी पाप के कारण होता है । पाप भी एक कारण  है । परंतु ज्यादा  कारण  कुपोषण  है । बुढापे मे मनुष्य लाठी को सहारा समझता है जब कि  लाठी मे कोई ताकत नहीं होती । इसलिये भय महसूस होने पर नीच कर्म  समझ माफिया न  माँगते रहो । परंतु शरीर को उम्र अनुसार स्थूल  खुराक   और प्यार दो ।

         आत्मा  मे शक्ति भरती  है शांति और  प्रेम से । परमपिता परमात्मा  को याद करने से आत्मिक बल बढ़ता है । तथा  जो भी मनुष्य सामने  दिखाई  दे या याद आये उसे देखते ही मन मे कहो आप शांत है या कहे आप स्नेही है । इस से हमारे अन्दर शांति और प्रेम के भाव  बढेगे और परमात्मा  से भी जुड़ते जायेगे । धीरे धीरे आत्मा शक्तिशाली बन  जायेगी और भय ख़त्म हो  जायेगा ।

         प्रेम मे ऐसी शक्ति है जो हमारे ऐसे रिशतेदार  और मित्र वा सम्बन्धी  जो शरीर छोड़ चुके  है उनके पास भी पहुँचता  है । असल मे वे सभी इस संसार मे जन्म ले  चुके  हैँ और एक अलग फ्रेक्वेन्सी  पर रह रहे है इसलिये वे दिखाई  नहीं देते । प्रेम एक ऐसी फ्रेक्वेन्सी  है जो उन आत्माओ  को भी ढूँढ़ लेती  है । सिर्फ उन की शक्ल को कल्पना मे देखते ही हमारा मन उनसे जुड़ जाता है । वह चाहे कहीं भी रह रहे हो । उनके पास स्थूल भोजन, स्थूल पदार्थ और पैसे नहीं पहुंचते । इसलिये अगर हम उनकी मदद करना चाहते  है  तो उनके प्रति प्रेम और शांति की तरंगे भेजो जो उन्हे शक्तिशाली  व  मालामाल कर देंगी  । वे चाहे कैसे भी थे उन्हे दुआयें दो शुभ भावनायें  दो । यही एक विधि है जिस से उनकी मदद कर सकते हैँ ।  यही सच्ची क्षमा  भी है ।

        फलाने व्यक्ति ने आत्म हत्या कर ली, फलाना व्यक्ति एक्सीडेंट मे मर गया,   कोई बीमारी से मर गया, जब भी आप कोई ऐसा समाचार सुने, बेशक आप उसे जानते हो या न जानते   हो, उसके लिये भी परमात्मा से  शांति और प्रेम की कामना करो। ऐसे महसूस करो जैसे आप उन्हे प्यार से पुचकार रहे है । आप का यह भाव  उनको भी पहुंचेगा ॥

          निर्जीव वस्तुओं, यंत्रों एवम पानी आदि पर भी भावनाओ  और विचारो का प्रभाव पड़ता  है । प्रत्येक पदार्थ एक तरंग है ।  इस लिये आप अपनी वस्तुओं, उपकरणों आदि निर्जीव  चीजो को एक नई दृष्टि से देखो । हमारी मानसिक शांति, दैनिक जीवन मे काम आने वाली वस्तुओं और उपकरणों पर भी निर्भर है । उन्हे भी प्यार दो, धन्यवाद दो, उनका पूरा  रख रखाव रखो वे आपके लिये भाग्यशाली सिध्द  होगे । उन्हे ऐसे रखो जैसे हम घर  के सदस्यों की देखभाल करते है ।

Friday, January 10, 2020

संगीत का असर

 संगीत से  जादू जैसा  असर होता है । 

        बरसात क़ी नन्ही नन्ही बूंदो का रिमझिम राग  सुनते ही कोयल कूक  उठती है । 

       पपीहे गा उठते हैं ।  मोर नाचने लगते हैं  । 

        लहलहाते खेतों को देख कर किसान आनंद विभोर हो उठते हैं । 

         मधुर संगीत का असर  तो प्रत्येक जीवधारी,  पेड़ पौधो और प्राकृति  पर भी  होता हैं । 

        संगीत का  मन पर बहुत असर होता हैं ।  हम अक्सर मधुर गीतो क़ी तरफ खींचे चले जाते हैं । 

       यही कारण हैं कि  संतो और देवताओ ने भक्ति में वाद्य यंत्रो को     महत्वपूर्ण माना  है । 

       शिव के हाथ में डमरू दिखाया  जाता है । 

      श्री  कृष्ण के हाथ में मुरली दिखाई जाती है  । 

        यदि कोई वाद्य यंत्र ना हो तो ताली बजा कर भगवान क़ी याद  में खो जाते है ।

       संगीत को ईश्वर का दर्जा प्राप्त  है । 

     जब कभी तनाव,  उदासी,  हीनता आने लगे तो तुरंत मधुर संगीत सुनना  चाहिए ।
ओम शान्ति..

Monday, December 30, 2019

शिव शक्ति का परिचय

1-भगवान का सिमरण करते ही हमें  रूहानी  शक्ति मिलने लगती है़ 

2-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

3-एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर शरीर की प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

4-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को  शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

5-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

6-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो कम अनुभूति  होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

7-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

8-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

9 -  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

10-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

  11-    ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

Thursday, December 26, 2019

विचारों या मानसिक तरंगों से सर्व प्राप्तियां

1-मानसिक तरंगों से   शांति और शक्ति बढ़ती है़  । 

2-हमारे सभी विचारो , भावनाओ , व्यवहार , सुख- दुःख की अनुभूति हमारे दिमाग में मौजूद न्यूरान्स  की वजह से होती है ! इन न्यूरान्स की  गतिशीलता ही हमारी मनोदशा को निर्धारित करती है !

3-अच्छी  और उच्च  तरंगो को दिमाग तक पंहुचाकर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है या यूँ  कहे की मूड को बदला जाता है !  

4-संगीत वाद्य यंत्रो की ध्वनियों को मिलाकर अलग अलग फ्रेक्वेन्सी की तरंगें बनाई जाती   है । 

5-हम जो भी क्रिया करते है या जो महसूस करते है उसके हिसाब से हमारे दिमाग में तरंगें  बदलती रहती है ! 

6-जब धीमी तरंगें  हमारे दिमाग पर हावी होती है तब हम थका हुआ , सुस्त, या नींद का अनुभव करते है ! जरा  सा  हिंसक  या विध्वंस्क विचार  आने से धीमी तरंगें बनती  हैं  । ड्रम बीट  से भी धीमी तरंगें  पैदा  होती हैं । 

7-जब तेज तरंगें  हावी होती है तब हम अति सावधान और सक्रिय महसूस करते है । 

8-अच्छी तरंगें   बहुत तेजी से चलने वाली होती है । बांसुरी जैसी  आवाज,  कोयल जैसी आवाज,  पपीहे जैसी आवाज  से ये तरंगें बनती  है  । इन तरंगों से बुद्धिमता , करुणा , मजबूत आत्म नियंत्रण , स्मरण शक्ति और ख़ुशी बढ़ती  है । 

9- जब हमारा शरीर अच्छी  तरंगो के संपर्क में आता है तब तब हमेंं  देखने , सूंघने, सुनने और खाने में अच्छे स्वाद का अनुभव होता है ! जहां और जब  हमें अच्छा  अच्छा लगता है वहां  ऐसी तरंगें होती है । 

10-जब हमारा दिमाग इन तरंगो के संपर्क में आता  है तो  हमारे दिमाग को नई नई  सूचनाये याद रखने में सहायता मिलती है !

11- ये तरंगें हमारे दिमाग तक  मेडिटेशन  के अभ्यास से भी  पहुंचती  है ।   

12- जब हम अपनी पसंद का कोई कार्य कर रहे होते है तब  भी हमारा दिमाग अपने आप ऐसी  शक्तिशाली  तरंगें पैदा करता है ! जिस काम  को हम खुशी खुशी करते है उस से अच्छी अच्छी तरंगें बनती  है । 

13-जब हम दूसरों का  कल्याण सोचते है तो उस समय मन से निकलने वाली तरंगें बहुत तेज़ और गतिशील होती है ! जब हम बहुत सजग अवस्था में किसी गंभीर समस्या का समाधान खोज रहे होते है या कोई निर्णय ले रहे होते है तब भी हमारे दिमाग की  कोशिकाओं  में ये तरंगें पैदा होती है  तथा बहुत ज्यादा उर्जा और उत्तेजना पैदा करती है । 

14-कई  बार  बाबा के गीत   या अन्य  धार्मिक  गीत हमें सकून देते है ।   उस  समय शक्तिशाली तरंगें बनती  है जिनके सुनने से हमें  लाभ होता है । जब हमें  बहुत उर्जा की आवश्यकता होती है तब भी ऐसी आवाजों के सुनने से लाभ होता है । 

15-अल्फ़ा  तरंगें  हमारे दिमाग सेल्स में तब उत्पन्न होती है जब शांति से सोच रहे होते है!  मैडिटेशन की अवस्था में भी  अल्फ़ा तरंगें बनती  है ।   अल्फा तरंगें  दिमाग को  आराम देने में सहायक होती है इसलिए अल्फा तरंगों  को पूरे मानसिक समन्वय , शांति और शरीर के सभी अंगो के  एकीकरण करने  के लिये  इस्तेमाल किया जाता है !

16-जब हम निंद्रा या गहरे ध्यान में होते है तब थीटा तरंगें  उत्पन्न होती है ! ये तरंगें कुछ नया सीखने और स्मृति को बढ़ाने वाली होती है !

17- जब हमारा दिमाग थीटा तरंगों  के संपर्क में आता है तब हमारे दिमाग का संपर्क बाहरी दुनिया से कम हो जाता है तथा हमारा ध्यान उस पर केन्द्रित हो जाता है जिस विषय पर हम सोच रहे  होते है ।

Wednesday, December 25, 2019

प्रेम और परिणाम

1-आप अपने सम्बन्धों में जो भी भावना दे रहे हो,  वही आप को वापिस मिलेगी ।

2- आप के जीवन में कोई नकारात्मक चीज़ हुई  है तो आप उसे बदल सकते है । सिर्फ उसके बदले मन चाही अच्छी  चीज़ का अहसास करो ।

3-लोग भावनाओ की शक्ति से   अनजान होते है  इस लिये अपने साथ होने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया करते रहते है ।

4-वे अपनी भावनाओ  पर लगाम नही लगाते ।

5-किसी घटना पर प्रतिक्रिया करते समय उनके मन में नकारात्मक  परिणाम  होते है ।

6-अगर प्रतिक्रिया करते समय सकारात्मक भावना  होती है तो सकारात्मक  परिणाम होते है ।

7-अपनी भावना  की वजह से बुरे चक्र में फँस जाते  है ।

8-जीवन उसी  गोले  में घूमता  रहता  है ।

9-आप के साथ जो होता है  वह मायने नही रखता  । मायने यह रखता है कि  आप प्रतिक्रिया कैसे करते है ।

10-महसूसता  को बदलने से आप अलग फ्रीक्वेंसी पर पहुँच  जाते है और ब्रह्माण्ड वैसी ही प्रतिक्रिया करता है ।

11-अफसोस करने में  एक पल भी न गंवाओ । अतीत की गलतियों के बारे गहरी भावना  रखना   अर्थात खुद को फ़िर से बीमार करना है ।

12-अगर आप के जीवन में हर प्रिय और मनचाही चीज़ नही है तो इसका  मतलब यह नही है की आप अच्छे  और प्रेमपूर्ण व्यक्ति नही है ।

13-असल में होता क्या है? वह यह कि  हम लगातार प्यार नही देते ।

14--थोड़ी देर किसी को प्यार देते है । फ़िर नही देते, क्यों कि हमे और और काम आ जाते है ।

15-निश्चित समय पर कोई नही पहुँचता है तो हम उसे दोष देने लगते है । दोष देना अर्थात प्रेम न देने का  बहाना  है ।

16-अगर आप जीवन में भिन्न  भिन्न  समय या स्थितियो में  दोष देते है तो आप को दोषपूर्ण स्थितियॉ  ही मिलेगी ।

17-दोष देना, आलोचना करना, गलती खोजना, और शिकायत  करना ये सभी नकारात्मक आदतें है ।

18-मौसम,  ट्रेफिक,  सरकार, जीवन साथी, ग्राहक शोरगुल, महँगाई  आदि हानि रहित दिखने वाली इन छोटी  छोटी बातो  की  वजह से अनेकों बुरी चीजे जीवन में आ जाती है ।

19-हम दूसरो के जीवन में जो कुछ  भेजते है वही हमारे जीवन में लौट कर आता है ।

20-ज़माना गंदा है, लोग बेइमान  है,  चरित्रहीनता  है, भ्रष्टाचार  है, ये शब्द कहने से आप का जीवन भी वैसा ही बन जायेगा ।

21-सब अच्छे  है, सब बढ़िया  है, ठीक हो जायेगा, इस में भी और सकारात्मक  विचार  लाओ  तो देखना  जीवन कितना सुंदर बन जायेगा  ।

22-आप ने किसी का नुकसान कर दिया । कुछ  दिनो बाद आप के घर  चोरी हो गई । इन दोनो घटनाओं में डायरेक्ट सम्बन्ध नही है  । परंतु यह आप के विचारो के कारण हुआ है ।  आप ने नुकसान किया  अर्थात प्यार नही दिया, आप के चोरी हो गई अर्थात दुख के बदले दुख मिला ।

Monday, December 16, 2019

शब्द और चरित्र

1-हमारे मुख और मन  से निकला हुआ प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कम्पन्न  उत्पन करता है । 

2-उस कम्पन्न  से लोगो में अद्रश्य प्रेरणाये जागृत होती है ।

3-प्रत्येक शब्द/संकल्प  को चित्रित किया जा सकता है ।

 4-ध्वनि कम्पनो  के इस चित्रण को स्पेक्ट्रोग्राफ कहते है ।

5-आप  जो   कुछ भी  बोलते है स्पेकट्रोग्राफ  उसे टेढ़ी मेढ़ी  लकीरों में दिखाता  है ।

6-हर व्यक्ति के ध्वनि तरंगो की जो रेखाये बनती है, वे चाहे एक ही वाक्य बोलें,  उस से बनी रेखाओं का रुप अलग अलग होगा ।
7-एक व्यक्ति बीमारी में, सर्दी में,  गर्मी में,  तूफान  में जब भी  बोलेंगे उन की  आवाज़  से एक जैसी रेखाये बनेगी अर्थात जो बोलते है, उन रेखाओं पर प्रकृति का प्रभाव नहीं  पड़ता   ।

8-हर व्यक्ति  अगर कोई  एक ही वाक्य बोले जैसे कोयल काली  होती है, तो इस वाक्य की हर व्यक्ति की आवाज़ से अलग अलग लाइन्स बनेगी ।

9-शरीर में कुछ  ऐसे चक्र होते है जो शव्दो वा संकल्पों को अपने अपने ढंग से प्रभावित और प्रसारित  करते है । स्वर की  लहरों को रोग निवारण  में प्रयोग किया  जा सकता है ।

10-हम जो कुछ  भी पढ़ते सुनते या  करते है़ दिमाग उन सब के चित्र बना कर स्मृति में रख लेता है़ । 

11-अगर हम सभी चीजो का बातों का सोच कर कोई चित्र बनाते है़ तो उसे  सहज ही याद रख सकते हैं  । 

12-`दो लड़ते हुए व्यक्ति ज्यादा याद रहते है़ ।  खड़ा हुआ  व्यक्ति ज्यादा याद नहीं आता । 

13-फिल्मे ज़्यादा याद रहती है़ ।  नाटक ज्यादा याद रहते है़ । 

14-चलते हुए जीव जंतु,  चलती हुई गाड़ियां ज्यादा याद रहती हैं  । 

15-आप जीवन मेंं जो भी याद रखना चाहते है़ उसे पांच इन्द्रियों से जोड़े । 

16-ये इन्द्रियां हैं,  आंख,  नाक,  कान,  मुख और स्पर्श । 

17-जो चीजे हम आंखो से देखते है़ वह हमें सहज ही याद आती रहती है़ ।  उसके लिये मेहनत नहीं करनी  पड़ती । 

18-जो चीज याद रखनी है़, उसे देखते ही  दिमाग में कोई शक्ल बना लो,  या  कोई फूल,  पेड़,  कार आदि बना लें । 

19-कोई भी बुक पढ़ें उसके अंदर सभी पायंट्स क़ी आकृति बना लें । 

20-अगर आप योगी हैं तो  आध्यात्मिक  शक्तियों  का  मन में  चित्र बना लें । 

21-सर्व गुण सम्पन्न बनना है़ तो मन में  लक्ष्मी नारायण  का चित्र देखते रहो । 

22-स्वर्ग का चित्र मन में देखते रहो । 

23-शिव बाबा,  ब्रह्मा बबा या  किसी ईष्ट का चित्र मन में देखते रहो । 

24-जो भी चित्र स्थूल या   मन में देख  रहे हैं , आप को उस जैसा बनने क़ी  प्रेरणा  मिलेगी ।

Monday, December 9, 2019

मन की शक्ति

   मन  के केन्द्र 

       प्रत्येक  व्यक्ति  एक पल मेंं  क्रोध,  दूसरे पल   लोभ, तीसरे पल  मोह और ऐसे ही  अहंकार,  ईर्ष्या ,  द्वेष या  अन्य कोई न कोई नकारात्मक विचार या बोल बोलता रहता हैं या सोचता रहता हैं  और उनकी पीड़ा महसूस करता रहता है़  । 

      इसी तरह  हम   कभी शांति,  कभी प्रेम,  कभी  आंनद,  कभी खुशी कभी दया के बोल बोलते या सोचते  रहते हैँ, और सुखद अनुभुति करते रहते है़ । 

       समझ नहीं आता  एक पल मेंं विचार और बोल  कैसे बदल जाते हैं  और कैसे उन से अलग अलग महसूसता होने लगती हैँ । 

      आज T  V , पंखा, कूलर, हीटर, A C ,   कंप्यूटर, मोबाइल  आदि   अनेकों यंत्र लगभग सभी घरो मेंं  हैं ।  ।

  ये सभी यंत्र विद्युत से चलते है ।

      विद्युत वही होती है परंतु  यंत्र अपनी बनावट अनुसार प्रभाव छोड़ने  लगते  है ।

      विद्युत पंखे को देते तो हवा होने लगती है,  यही विद्युत हीटर में देते है तो गर्मी होने लगती है, यही विद्युत टेप  रेकोर्डेर में देते तो संगीत बजने लगता  है....... आदि आदि.।

       क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य आदि और कुछ  नही हमारे मन में ऐसी कोशिकाएं है़ जिन्हें हम  यंत्र या  केन्द्र कह सकते है़ । 

      विचार विद्युत है़ । 

-       जब हमे क्रोध  का संकल्प   उठता  है तो वह  विचार क्रोध वाली कोशिका/ केन्द्र से गुजरने लगता है ।  इस केन्द्र से  जब विचार गुजरते हैं तो ये  केन्द्र   हीटर की तरह गर्मी  अर्थात   क्रोध रूपी आग उगलने लगता  है । 

-        संकल्प जब लोभ केन्द्र  से गुजरता  है तो ऐसी तरंगे निकलने लगती जिस से हम  लोभ मेंं आ जाते है़ और फंस जाते हैं । 

-        विचार जब  ईर्ष्या -द्वेष का होता है  तो यह उस केन्द्र से गुजरता है जिस  से मिर्ची के जलने जैसी दुर्गंध निकालती है और   हम बेचैन   होने लगते  है़  । 

        जब आलस्य के विचार होते है़ तो यह उस कोशिका/ केन्द्र से निकलते है़ जिस से सूक्ष्म रस्सियां  बनती है़ जो हमें जकड़ देती है़ और हम जकड़ जाते हैं उठा  नहीं जाता जिसे हम आलस्य कहते हैं । 

      हमारे मन में शांति, प्रेम, सुख, आनंद, दया वा करुणा  आदि के केन्द्र बने हुए है । जब विचार  इन से गुजरते है तो  वैसा ही प्रभाव छोड़ते है और हम उमंग उत्साह मेंं रहते हैं । 

      मन समय और परिस्थिति अनुसार अपने आप नये नये केन्द्र बनाता रहता  है । 

       योग और कुछ  नही सिर्फ शांति, प्रेम, सुख व  आनंद के केन्द्रों को  सक्रिय (activate )  करना है अर्थात उन का अधिकतम प्रयोग बढाना  है ।  हमे हर समय इन केन्द्रों से काम लेना है । अगर इन अच्छे  केन्द्रों  का हर समय प्रयोग करते है तो बाकी सब बुरे केन्द्र बँद हो जाते  है ।

        सतयुग  में पाँच विकार और उन से सम्बन्धित बुरे केन्द्र एक दम बंद हो जाते  है और सिर्फ अच्छे  केन्द्र जागृत रहते है ।

         जैसे ही हमे कोई विचार  उठता  है वह स्वयमेव (  automatically ) सम्बन्धित केन्द्र पर चला  जाता है और उसी अनुसार तरंगे प्रवाहित होने  लगती   हैं  ।

        आज मनुष्य का विचार  स्थिर   नही है़  । वह एक मिनिट में कभी शांति,  कभी दुख,  कभी नाराजगी,  कभी निराशा,   कभी कमजोरी के विचार  करता  है । 

       अगर हम   कूलर,   पंखा, एयर कंडीशनर,    हीटर,  ओवन सब इकठा  चला  दें  तो न हवा का सूख न   ठंडक का सूख  न  ही गर्मी का  सुख ख पा  सकेंगे क्योंकि पर्याप्त समय तक कोई भी यंत्र  नही चलाया  जिस से अनुकूल वातावरण बन सके । 

       ऐसे ही कोई भी श्रेष्ट संकल्प  जब तक पर्याप्त समय तक नही चलाएगे तो उससे सम्बन्धित बल पैदा  नही होगा ।

       अगर कोई भी साकारात्मक   संकल्प हम दस हजार  बार लगातार दिमाग में दोहराते   है तो उस से इतना मानसिक बल पैदा हो जाता है जो उस एक दिन कोई भी नकारात्मकता का हमारे पर प्रभाव नहीं होगा  । 

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Saturday, November 2, 2019

हाथ की पांच अंगुलियों से जानकारी

हमारे हाथ की पांचो उंगलिया शरीर के अलग अलग अंगों से जुडी होती है | 

शायद आप को पता न हो, हमारे हाथ की उंगलिया चिंता, डर और चिड़चिड़ापन दूर करने की क्षमता रखती है | उंगलियों पर धीरे से दबाव डालने से शरीर के कई अंगो पर प्रभाव पड़ेगा |

• 1. अंगूठा - The Thumb.

हाथ का अंगूठा हमारे फेफड़ो से जुड़ा होता है | अगर आप की दिल की धड़कन तेज है तो हलके हाथो से अंगूठे पर मसाज करे और हल्का सा खिचे | इससे आप को आराम मिलेगा |

• 2. तर्जनी - The Index Finger.

ये उंगली आंतों  gastro intestinal tract से जुडी होती है | अगर आप के पेट में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा रगड़े , दर्द गयब हो जायेगा।

• 3. बीच की उंगली - The Middle Finger.

ये उंगली परिसंचरण तंत्र तथा circulation system से जुडी होती है | अगर आप को चक्कर या  आपका जी घबरा रहा है तो इस उंगली पर मालिश करने से तुरंत रहत मिलेगी |

• 4. तीसरी उंगली - The Ring Finger.

ये उंगली आपकी मनोदशा से जुडी होती है | अगर किसी कारण आपका मनोदशा अच्छा नहीं है या शांति चाहते हो तो इस उंगली को हल्का सा मसाज करे और खिचे, आपको जल्द ही इस के अच्छे नतीजे प्राप्त हो जयेगे, आप का मूड खिल उठे गा।

• 5. छोटी उंगली - The Little Finger.

छोटी उंगली का किडनी और सिर के साथ सम्बन्ध होता है | अगर आप को सिर में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा दबाये और मसाज करे, आप का सिर दर्द गायब हो जायेगा | इसे मसाज करने से किडनी भी तंदरुस्त रहती  है |

Monday, March 11, 2019

अंसतुष्टि ही हमारे दुःख का कारण

                 एक बार की बात है, किसी जंगल में एक कौवा रहता था,वो बहुत ही खुश था,क्योंकि उसकी ज्यादा इच्छाएं नहीं थीं। वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट था,लेकिन एक बार उसने जंगल में किसी हंस को देख लिया और उसे देखते ही सोचने लगा कि ये प्राणी कितना सुन्दर है, ऐसा प्राणी तो मैंने पहले कभी नहीं देखा!इतना साफ और सफेद।यह तो इस जंगल में औरों से बहुत सफेद और सुंदर है, इसलिए यह तो बहुत खुश रहता होगा।
                    कोवा हंस के पास गया और पूछा,भाई तुम इतने सुंदर हो, इसलिए तुम बहुत खुश होगे?इस पर हंस ने जवाब दिया, हां मैं पहले बहुत खुश रहता था, जब तक मैंने तोते को नहीं देखा था।उसे देखने के बाद से लगता है कि तोता धरती का सबसे सुंदर प्राणी है।
                     हम दोनों के शरीर का तो एक ही रंग है लेकिन तोते के शरीर पर दो-दो रंग है,उसके गले में लाल रंग का घेरा और वो सूर्ख हरे रंग का था,सच में वो बेहद खूबसूरत था।अब कौवे ने सोचा कि हंस तो तोते को सबसे सुंदर बता रहा है,तो फिर उसे देखना होगा।
                     कौवा तोते के पास गया और पूछा, भाई तुम दो-दो रंग पाकर बड़े खुश होगे?इस पर तोते ने कहा,हां मैं तब तक खुश था जब तक मैंने मोर को नहीं देखा था।मेरे पास तो दो ही रंग हैं लेकिन मोर के शरीर पर तो कई तरह के रंग हैं।अब कौवे ने सोचा सबसे ज्यादा खुश कौन है,यह तो मैं पता करके ही रहूंगा।इसलिए अब मोर से मिलना ही पड़ेगा। 
                        कौए ने मोर को जंगल में ढूंढा लेकिन उसे पूरे जंगल में एक भी मोर नहीं मिला और मोर को ढूंढते-ढूंढते वह चिड़ियाघर में पहुंच गया,तो देखा मोर को देखने बहुत से लोग आए हुए हैं और उसके आसपास अच्छी खासी भीड़ है। 
                         सब लोगों के जाने के बाद कौवे ने मोर से पूछा,भाई तुम दुनिया के सबसे सुंदर जीव हो और रंगबिरंगे हो, तुम्हारे साथ लोग फोटो खिंचवा रहे थे।तुम्हें तो बहुत अच्छा लगता होगा और तुम तो दुनिया के सबसे खुश जीव होगे? इस पर मोर ने दुखी होते हुए कहा, भाई अगर सुंदर हूं तो भी क्या फर्क पड़ता है! मुझे लोग इस चिड़ियाघर में कैद करके रखते हैं, लेकिन तुम्हें तो कोई चिड़ियाघर में कैद करके नहीं रखता और तुम जहां चाहो अपनी मर्जी से घूम-फिर सकते हो। इसलिए दुनिया के सबसे संतुष्ट और खुश जीव तो तुम्हें होना चाहिए, क्योंकि तुम आज़ाद रहते हो। 
                          कौवा हैरान रह गया, क्योंकि उसके जीवन की अहमियत कोई दूसरा बता गया। ऐसा ही हम लोग भी करते हैं। हम अपनी खुशियों और गुणों की तुलना दूसरों से करते हैं, ऐसे लोगों से जिनका रहन-सहन का माहौल हमसे बिलकुल अलग होता है। 
                          हमारी जिंदगी में बहुत सारी ऐसी चीज़ें होती हैं, जो केवल हमारे पास हैं, लेकिन हम उसकी अहमियत समझकर खुश नहीं होते। लेकिन दूसरों की छोटी ख़ुशी भी हमें बड़ी लगती है, जबकि हम अपनी बड़ी खुशियों को इग्नोर कर देते हैं|

नाराजगी और व्यवहार

                 जब भी हम नाराज होते है तो हमें यह पता होता हैं कि हम किस वजह से नाराज है । कोई पेड़ या पौधा, भौंरा या कीड़ा... दूसरों को मारने की साजिश नहीं रचता ।
                  मनुष्य अपने विचारो को दूसरों पर थोपने का प्रयास करता है। जो लोग उससे सहमत नहीं होते, उनसे नाराज रहना शुरू कर देता है । जब दूसरे लोग ऐसे काम करते हैं, जो आप को पसंद नहीं हैं, तब आप उन्हें सहन नहीं कर पाते। आप उन से नाराज हो जाएंगे, उन्हें धमकी देंगे... कभी-कभी कोई सजा भी देंगे।
                आप की नाराजगी चट्टान से हो सकती है, भगवान से हो सकती है, किसी मित्र से हो सकती है , गुरु से भी हो सकती है। आप सोचते हैं क़ि नाराजगी एक शक्ति है। उसके द्वारा कई चीजों को प्राप्त कर सकते हैं। इसे आप एक हथियार समझते हैं । लेकिन इस हथियार का दूसरों पर प्रयोग करते समय, वह उन पर जो असर डालता है, उससे ज्यादा असर आप पर ही डालता है।
                 जब आप नाराज होते हैं आपकी अक्ल उल्टा-सीधा काम करने लगती है और उसका नतीजा हमेशा बुरा ही होता हैं । नाराजगी का कारण आप के मन में है । यदि आप इस तथ्य का अनुभव कर लें तो आपकी समझ में आ जाएगा, कि नाराज रहना कितनी बड़ी मूर्खता है।
                दुनिया में जहाँ-जहाँ शासन चलाने की नीयत हावी रहेगी, उन जगहों पर बगावतें और क्रांतियाँ फूट पड़ेगी । हम उन लोगों को पसंद नहीं करते और नाराज हो जाते है जो हमारे पर हकूमत चलाना चाहते है । जो हमें सहयोग करते है उन्हे पसंद करते है ।
                जब लोगो से मिलते है उनके प्रति शांति, प्रेम और अपनेपन की भावना रखा करो । यही तो सभी लोग चाहते है । अगर यह नहीं होगा तो लोग नाराज हो जाएंगे । दूसरो की अपेक्षा स्वयं को ऊँचा देखना, यह रेवैया आप को उन्नति नहीं करने देगा । लोग नाराज होते रहेंगे ।
              तुझे माफ कर दिया, तुझे छोड़ दिया बस काम करो, यह बोल दिखाते है क़ि आप भूले नहीं है आप चाह रहे है क़ि गुलाम बनो नहीं तो छोडूंगा नहीं । दिमाग में एक विशेष प्रकार का विटामिन कम हो जाता है जिस से मनुष्य छोटी छोटी बातो पर नाराज हो जाताहै और क्रोध करने लगता है ।
              यह विटामिन सिर्फ भगवान की याद से ही बनता है । अगर 3 घंटे हर रोज योग का अभ्यास करते है तब मनुष्य इस कमजोरी पर विजय पा सकता है । यही कारण है क़ि बड़े बड़े संत भी नाराज हो जाते है और क्रोध करते है क्योकि वह पर्याप्त साधना नहीं करते ।

कल्पना क्या है

                     आप कोई पत्र लिख रहे है । आप का दिमाग लिखने में लगा हुआ है । आप दिमाग में शब्द सोच रहे है कि क्या लिखना है । इसके साथ सड़क से गुजरती गाड़ियों की आवाज सुनाई दे रही है । 
                     गली में कुत्ते भौंक रहे हैँ । बीच में घर के सदस्यो को शोर मचाने से मना भी किया । इन सब हंगामों के बीच में अपना पत्र पूरा किया । आप के पास ऐसी कौन सी शक्ति थी जिसने यह काम करवाया । इसे जागृत मन कहते है जो बाहरी शक्तियो को अपनी शक्ति से पराजित कर देता है और आप अपना कार्य सफलता पूर्वक कर पाते हैंं । मन हमारे जीवन का बहुत बड़ा साथी हैंं । 
                     मन दो तरह के कार्य करता हैंं । कुछ कार्य हम बिना इच्छा के करते हैंं । किसी गर्म चीज पर हाथ लगने पर हम तुरंत हाथ उठा लेते हैँ , इस के लिये हमें सोचना नहीं पड़ता । हमें चोट लग जाए तॊ बिना सोचे मुंह में डाल लेते हैँ, उस स्थान पर फूंक मारने लगते हैँ । 
                     अचानक कोइ जानवर हम पर हमला कर दें हमारी आवाज भारी हो जाती हैँ हमारे हाथ में जो कुछ भी आये हम उठा कर उस पर फेंक देते हैँ । यह रीएक्शन बिना सोचे ही हो जाता है । कुछ कर्म ऐसे होते है जिन्हें हम सोच समझ कर करते हैँ । 
                     हमें मकान बनाने का विचार आया । हमें कितने कमरे, कितने बाथ रूम, स्टडी रूम, ड्राइंग रूम, किचन आदि चाहिये और भविष्य में क्या क्या चाहिये, यह सब सोचते हैँ । यही कल्पना है । अब हम अपनी आवश्यकता आर्किटेक्ट को बताते हैँ । वह हमारी आवश्कता अनुसार एक सुन्दर नक्शा बनाता है । यही कल्पना है । 
             कल्पना अर्थात जो चीज हम चाहते हैँ उसे पहले मन में सोचते हैँ । .

कल्पना और उत्साह

                 पृथ्वी के हृदय में अनेक बहुमूल्य खनिज और रत्न छिपे हुए है । जो बाहर से दिखते नहीं जब इन बहूमूल्य तत्वों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते है तॊ पृथ्वी हमें अनेको उपहारो से पुरस्कृत कर देती है । आप के मस्तिष्क में भी अनंत प्रतिभाओं का खजाना भरा हुआ है । 
                इस खजाने को पाने के लिये आप को प्रयास करना होगा । वह प्रयास है आप को उत्साह में रहना होगा । उत्साह वह हाथ है जो मन के बंद दरवाजे खोल देता है । कल्पना में बिंदु को देखो और मन में कहते रहो मै चुस्त हूं मै चुस्त हूं आप में थोडी देर में उत्साह आ जाएगा । 
                कल्पना में उगते हुए सूर्य को देखते रहे आप को सूर्य से ऊर्जा आने लगेगी और उत्साह आने लगेगा । अगर हो सके तॊ सुबह उगते सूर्य को 5 मिनिट देखा करें । भगवान को याद करते हुए कल्पना में भागते हुए घोडो को देखा करो आप में उत्साह आ जाएगा । 
               अपने घर में या कार्य स्थल पर भागते हुए घोडो की फोटॊ लगा ले और उसे देखतें रहे । आप में उत्साह बना रहेगा । भगवान को याद करते हुए कल्पना में या वास्तव में खेल खेलते खिलाडियो को देखतें रहा करो आप में उत्साह बना रहेगा । कल्पना में छोटे बच्चों को देखते रहा करो । बच्चे निर्दोष होते है । आप को बच्चों से ऊर्जा मिलेगी और आप में उत्साह बना रहेगा । 
                काम करते हुए किसी स्नेही व्यक्ति को मन से तरंगे देते रहो । आप में उत्साह बना रहेगा । हमें कोइ न कोइ रोग लगा रहता है । दवाई तॊ लेनी ही है परन्तु कार्य में लगे रहो इस से आप को आर्थिक हानि नहीं होगी । काम करने से उत्साह बनता है और रोग भी ठीक हो जाता है । उन लोगो से संबंध सम्पर्क रखो जो खुशदिल है और विकास की बाते करते है । निराश लोगो से बचा करो जी । 
                हरे पेड़ो और पौधो में जा कर बैठने से उनकी विद्युत हमें विपुल मात्रा में मिलती है जिस से उत्साह बना रहता है । अगर आप के आस पास हरे पेड़ पौधे नहीं है तॊ उन्हे कल्पना में देखते रहा करो । दोनो दशाओं में एक जैसा लाभ होगा । मधुर और प्रेम से भरे गीत सुनने से उत्साह बना रहता है । वीर रस की कविताए सुनने से मन में जोश हिलोरे लेने लगता है ।

Sunday, February 10, 2019

आँसुओ की इमोशन

              प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी रोता है । पुरषों की अपेक्षा महिलाए ज्यादा रोती है । आंसुओं का संबंध हमारी मनोदशा से होता है। सदमे में रहने वाले लोग ज्यादा रोते है । 
             जब हम अपने प्रियजनों से दूर होते हैं तो अक्सर रोने लगते हैं। प्रिय व्यक्ति से रिश्ता टूटने या प्रेम में पड़ने पर या उस के दूर जाने या उसके निधन पर हम रोते हैं। डरने, घायल होने और ज्यादा खुश होने पर भी हम रोते हैं। 
            कोई क्रोध करता है और लगतार गुस्सा दिखाता है तो हम रोने लगते है । टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन हमारे शरीर में कम बने तो हम अधिक रोते हैं। 
            हम सालों से किसी ख्वाहिश को मन में लिए मेहनत करते रहते हैं, लेकिन अंत में जब वह ख्वाहिश पूरी नहीं होती है तो फिर हमारी आंखों में आंसू आ ही जाते हैं.। 
            लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों से भी परेशान होकर रो पड़ते हैं विटामिनस की कमी, स्ट्रोक, थायरॉयड समस्या, लो बल्ड शुगर लेवल के कारण भी रोना आता है । 
            कभी कभी कुछ उत्तेजित करने वाली चीजें या घटनाएं होती है जो रुला देती हैं । 
            डिप्रेशन के कारण भी रोना आता है । अपने अंदर की भावनाओं को छुपा कर रखने से भी रोना आता है । रोने को मन करें तो तो किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के गले मिलना बहुत आराम पहुंचाता है वास्तव में उस व्यक्ति से जिसके कारण आप उदास हुए है, शांत भाव से अपने उदास होने के कारण पर बात करें। अपने बचपन की कोई खुशनुमा और सुकून देने वाली बात याद करें । 
             ऐसे तरीकों के बारें में पढ़े या किसी से बात करें जिनसे आप अपनी भावनाओं को नियंत्रण कर सकें, और उन तरीकों को अपनाये। 
             अपनी पसंद के किसी शांत स्थान पर जाये और अपने विचार स्थिर करने की लिए कुछ समय अकेले बिताएं। संभव हो तो किसी नजदीकी मित्र को बुला लें जो आपकी मदद कर सके या आपको आराम पहुंचा सके। 
             जब रोने को मन करें उस समय थोड़ा सा कुछ खा लें । अपने सबसे अच्छे दोस्त या माता-पिता से बात करें, और उन्हें सब कुछ बता दें। वे निश्चित रूप से आपको खुश कर देंगे। 
             यदि आप खुद को या किसी और को चोट पहुँचाना चाह रहे हों तो ऐसा न करें, किसी और चीज में व्यस्त हो के अपना ध्यान हटायें । 
             यदि आपको लगे कि ऐसा कोई नहीं है जिससे बात की जा सके तो पेशेवर सलाह लें या चिकित्सक के पास जाएँ। कोई न कोई ऐसा जरूर होगा जो सुनना चाहेगा। 
             किसी ऐसे वयस्क से बात करना भी आपकी मदद कर सकता है जिस पर आप विश्वास करते हो, भले ही वो आपके परिवार का सदस्य न हो । 
          अपना पसंदीदा गाना बजाये और उस पर नाचें । अगर नच ना सके तब 24 घंटे उमंग उत्साह वाले गीत सुने । 
           नीद के समय आवाज इतनी कम हो की आप की नीद डिस्टर्ब न हो । भगवान के गुण गाते रहो आप प्यार के सागर है । 
            अगर याद न कर सके तो शिव बाबा या अपने इष्ट का चित्र देखतें रहें । कोई न कोई बुक पढ़ते रहो ।

प्रेम और सम्बन्ध

                जीवन की महानता उपलब्धियों मे नहीं बल्कि सम्बन्धों मे है । परंतु आज का संसार सम्बन्धो की प्रवाह नहीं करता । वह करोड़पति बनना चाहता है ।वह किसी भी सम्बन्ध को धोखा दे सकता है ।यही कारण है कि आज चारो तरफ़ अशांति छाई हुई है । घर घर मे कलह है । आप के साथी/साथियों मे जो प्रितिभा छिपी है उसे बाहर निकालने के लिये प्रेरित करो । 
              अगर आप में प्रितिभा है और उन मे नहीं तो गाड़ी एक पहिये से नहीं चलेगी । उन्हे भी अपने जैसा महान बनाओ । यह ना सोचो की वह हमे छोड़ जायेगे । मिस्त्री लोगो वाली मानसिकता त्याग दो । मिस्त्री लोग अपने कर्मचारियों को अपना हुन्नर नहीं सिखाते । इसलिये वे सारी उम्र मिस्त्री ही रहते है । मुखिया किसी को आगे नहीं आने देते है। वह बूढे और लाचार हो जाते है तब भी वह किसी दूसरे को चान्स नहीं देते। ये प्रेम नहीं है।
               ऐसी संस्थायें खूब बढ़ती है परंतु उनके देहांत के बाद टूट जाती है क्यों कि उनके सदस्य दूसरे लोगो की कमांड स्वीकार नहीं करते तथा ना ही उन्हे कोई संस्था चलाने का अनुभव होता है । 
              अपने जैसे अगली पीढी से सक्षम नेता वा साथी तैयार करो । हम सभी किसी ना किसी स्तर पर मुखिया है । इसलिये अपने साथियों की प्रितिभा को नीखारो । कैसे ? प्रेम से । पति-पत्नी मे अगर आप का साथी मोटा है, मोटी है, उसे आप बार बार कहते है पतला बनो, उसके लिये आप उन्हे कहते हो यह करो वह करो, परंतु करते नहीं । 
               याद रखो यह सिर्फ भाषण रह जायेगा । आप कहेगे मै उसे अपने जैसा बना रहा हूँ । नहीं यह चिढ़ बन जायेगा । वह जब खुद पतला होने की इच्छा करे तब उसे यह वा वोह करने की सलाह दे । नहीं तो आप के सुझाव प्रेम के रुप मे आलोचना और निंदा ही सिध्द होगे । 
               साथी के नजरिये से दुनिया देखो, उसके लिये क्या महत्वपूर्ण है। तब प्यार बढेगा और हर वह काम करेगा । जो चीज़ हमे अपने सपनो को हकीकत मे बदलने से रोकती है, वह है साहस की कमी । दूसरो का साहस बढ़ाओ तब आप जा साहस बढ़ जायेगा और सब का दिल का प्यार भी मिलेगा । उत्साह भरे शब्द बोलना आप के लिये मुश्किल हो सकता है । इसे सीखने मे मेहनत करनी पड़ती है । आलोचना और निंदा के बजाय उत्साह बढ़ाने मे मेहनत करते है तो आप को सार्थक परिणाम मिलेंगे ।

टेढ़े लोगो से व्यवहार

                 टेढा व्यक्ति जब गुस्से में हो तब शांतिपूर्वक जवाब दो या चुप रहो या वहां से चले जाओ तो वह खुद ही शांत हो जाएगा। यदि आप वहां से जा नहीं सकते तो मन में ईश्वर को याद करते रहो या किसी स्नेही आत्मा को तरंगे देते रहो । 
                 आप ने खुद को मानसिक तौर पर उसके प्रभाव से मुक्त रखना है । टेढ़े व्यक्ति से निपटने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है उससे दूर रहना । यदि आप उससे बच नहीं सकते तो कम से कम भूल तो सकते ही हैं। नए दोस्त बनाइये, नई-नई चीज़ें सीखिये और करिए। इस तरह आप उसके बारे में सोच-सोच कर समय बर्बाद नहीं करेंगे । 
                 टेढ़े व्यक्ति के साथ बिताया गया वक़्त आपके लिए कीमती सीख है। ऐसे व्यक्ति को संभालने के बाद हर टेढ़े व्यक्ति से बात-चीत करना आसान रहेगा । टेढ़े व्यक्ति को शांत करने का सबसे आसान तरीका है उस पर ध्यान नहीं देना। जब उसे आपसे तवज्जो नहीं मिलेगी तो वो आपको छोड़ देगा। ऐसे लोगों को गुस्सा नहीं दिलाएँ। 
                 क्रोध में उनका व्यवहार और भी टेढ़ा हो जाएगा और आप परेशानी में पड़ेंगे। टेढ़ा व्यक्ति अगर बीमार है और इसे आपकी सहानुभूति की ज़रूरत है तो उसका सहयोग करें । टेढ़े व्यक्ति के साथ बहस में न पड़ें। वाद-विवाद से आपकी सोच भी धुंधली हो जाएगी।अपनी बात व्यक्त करने का सकारात्मक तरीका निकालें। किसी के दुर्व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करते रहना है। सही समय पर उन्हें शांतिपूर्वक समझाने का प्रयास करें । ऐसे व्यक्ति के साथ दोस्ती और प्रेम से पेश आयें। यदि वे प्रताड़ित करने वाले लोगों में से हैं तो वे समझ जाएंगे कि आप पर उनका बस नहीं चलेगा और आपको फिर तंग नहीं करेंगे। 
                हर स्थिति में प्रेम-भाव बनाए रखना आवश्यक है, भले वो मुश्किल हो । अपने दृष्टिकोण को सही रखें क्योकि आपको अन्य लोगों के साथ रहना है, जिनके बुद्धि या विवेक का स्तर आपसे अलग हो सकता है। टेढ़े व्यक्ति के साथ रहना शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से थकाऊ है। इसलिए मन से उनसे अलग होना शुरू कर दें अर्थात अपना मन भगवान या मन पसंद व्यक्तियों या कार्यो में लगाए रखें । आप ऐसे लोगों को बदल नहीं सकते। आप उनके व्यवहार या बात पर सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया बदल सकते हैं। इसलिए ऐसे लोगों से शांतिपूर्वक निपटने पर ध्यान दीजिये।

कथनी और करनी एक कैसे हो

               मन में जो भीअच्छे विचार या योजना आये उसे तुरंत कर देना चाहिए । अगर ऐसा नहीं करेंगे तो श्रेष्ट विचार जिस तेजी से मन में आता है, वैसे ही गायब भी हो जाएगा और आप उस के लाभ से वंचित हो जायेगे । ऐसे विचार अचानक से आते हैँ इसलिए उसे तुरंत लिख लो । रात को कागज और पेंसिल साथ रखना चाहिए क्योकि कई बार सपनो में बड़े अच्छे विचार आते हैँ जो सुबह तक भूल जाते हैँ । उन्हे तुरंत लिख लेना चाहिए । 
              आप ऐसे विचार को मोबाइल में भी रेकॉर्ड कर सकते हैँ । अच्छे विचार कभी भी और अचानक आते हैँ इस लिये उन्हे तुरंत लिख लेना चाहिए । समस्या यह नहीं कि हमारे पास विचार या सुंदर योजनाएं नहीं हैं।                         योजनाएं तो हम बहुत बनाते हैं। अपने बनाए उत्तम से उत्तम विचारों से प्रसन्न भी हम बहुत होते हैं, किंतु उन पर हम कार्य नहीं करते हैं। यही हमारी दुर्बलता है। हमें किन बातों से बचना चाहिए? हमें क्या कार्य करना चाहिए? क्या उचित है, क्या अनुचित है? हम सब इस संबंध में बहुत कुछ जानते हैं। 
                समस्या यह है कि सब जानते-बुझते हुए अंतत: हम कार्य करते कितना हैं? व्यवहार में, दैनिक जीवन में, उन्नति की योजनाओं को कहां तक उतारते हैं? नवीन विचारों पर व्यवहार कितना करते हैं? जो हम सोचते हैं, क्या वह करते भी हैं? हमें विचार के पश्चात सतत कार्य करना चाहिए। कार्य करना ही सफलता का मूल-मंत्र है। सोचो चाहे जो कुछ, पर कहो वही, जो तुम्हें करना चाहिए। 
                जो व्यक्ति मन से, वचन से, कर्म से एक जैसा हो, वही पवित्र और सच्चा महात्मा माना जाता है। कथनी और करनी समान होना अमृत समान उत्तम माना जाता है। जो काम नहीं करते, कार्य के महत्व को नहीं जानते, कोरा चिंतन ही करते हैं, वे निराशावादी हो जाते हैं। 
               कार्य करने से हम कार्य को एक स्वरूप प्रदान करते हैं। काल करे सो आज कर में भी क्रियाशीलता का संदेश छिपा है। जब कोई अच्छी योजना मन में आए, तो उसे कार्यान्वित करने में देरी नहीं करनी चाहिए। अपनी अच्छी योजनाओं में लगे रहिए, जिससे आपकी प्रवृत्तियां शुभ कार्यों में लगी रहें। कथनी और करनी में सामंजस्य ही आत्म-सुधार का श्रेष्ठ उपाय है।

मानसिक शांति -संकल्प

                संकल्प जो मन में रिपीट करते है उसके कम्पन अंतरिक्ष में बिखरते हुये परिस्थितियो को अनुकूल बनाते है । वह संकल्प शब्द भेदी बाण की तरह सूक्ष्म जगत के उन संस्थानों से टकराता है जिन्हे प्रभावित करना साधना का लक्ष्य है । 
                 उच्चारित होने के बाद संकल्प अंतःकरण के मर्म स्थलों की गहरायी में उतरता है और वहाँ से उस शक्ति स्त्रोत की उर्जा से सम्पन्न होकर ऊपर आता है । मर्म स्थल अर्थात संकल्प के पीछे प्यार, विरोध, दुख, उलाहना, दया, नफरत आदि की जो भावना होती है, उस भावना के एनर्जी केन्द्र से शक्ति लेता है और जब बोलते है तो वैसा ही सुनने वाला अनुभव करता है । 
                 मशीने टूटती फूटती है, उनकी सम्भाल के लिये कुशल कारीगर रखने पड़ते है । ज़रूरी ईंधन भी देना पड़ता है । हमारा शरीर एक मशीन है, जिस में अथाह शक्तियां है, परंतु इस की देखभाल का पता नहीं, इसलिये यह भी हमे ज्ञान होना चाहिये कि शरीर को कौन सा ईंधन देना है । 
                 शरीर में प्रचंड शक्तियां है । इसका भौतिक उपयोग सभी जानते है, आहार वा पालन पोषण, काम धँधा, परिवार की उत्पति आदि में कहां शक्ति खर्च करनी है सब जानते है । आत्मा में सूक्ष्म शक्तियों है जो संकल्प से प्राप्त की जा सकती है, परंतु ये कोई बिरला ही जानता है । इसी की खोज करनी है ।

श्रेय लेने की होड़

              दुनिया का हर व्यक्ति सब से ज्यादा सिर्फ और सिर्फ अपने बारे सोचता है । मानवीय गुण यह है कि मनुष्य के हर कार्य का नियंत्रण उसके अपने हितो से होता है अर्थात मनुष्य हर काम में श्रेय लेना चाहता है । लोग आप की बात सुने और आप को सम्मान दें । 
             आप किसी सभा या समारोह में जाए तो लोग खुले दिल से आप का स्वागत करें अथवा राह चलते लोग आपका स्वागत करें । राह चलते लोग सम्मान के साथ साथ आप को नमस्कार करें । दुनिया का हर व्यक्ति यही चाहता है । 
               बड़े बड़े संत महात्मा जो विश्व को वैराग्य का उपदेश देते हैँ वह भी स्वंय को श्रेय देने के प्रलोभन से वंचित नहीं हैँ । मनुष्य की यह भावना क्यो है । पृथ्वी के दो ध्रुव हैँ । उतरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव । उतरी ध्रुव से धरती सूर्य से ऊर्जा लेती है । 
              सूर्य की शक्तियां धरती के उतरी ध्रुव से प्रवेश करती हैँ और दक्षिणी ध्रुव से बाहर निकलती हैँ । दक्षिणी ध्रुव से जब तरंगे बाहर निकलती हैँ ती यह प्रेम में परिवर्तित हो चुकी होती है । दक्षिणी ध्रुव पार 50-60 किलोमीटर का क्षेत्र ऐसा है जहां सभी मनुष्य व जीव जन्तु अपना बैर भाव भुला कर एक दो से गले मिलते हैँ । उस जगह बहुत प्यार की तरंगे हैँ । ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति में भी दो ध्रुव हैँ । 
              सिर को उतरी ध्रुव माना गया है और प्रजनन इन्द्रिय को दक्षिणी ध्रुव माना गया हैँ । सिर अर्थात सहस्त्रार चक्र और प्रजनन इन्द्रिय अर्थात मूल आधार चक्र । मनुष्य सूर्य से, भगवान से, प्राण से अर्थात श्वांस से या लोगो से विचार के रूप में जो ऊर्जा ग्रहण करते हैँ , वह एनेर्जी शरीर के विभिन चक्रों से होती हुई प्रजनन इन्द्रिय अर्थात मूल आधार से बाहर निकलती है तो यह एनेर्जी प्यार का रूप धारण कर लेती हैँ । जिसे हम काम विकार कहते हैँ । इस विकार से स्नेह महसूस होता है जैसे पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर होता है । यह स्नेह विकृत काम विकार का रूप ले चुका है इसलिए आज प्रत्येक व्यक्ति इस अपवित्रता के विकार से पीड़ित है । सारी दुनिया पागल हो रही है । 
              वास्तव में मनुष्य स्नेह चाहता है । इस विकार से उत्पन्न संतान के लालन पालन में सारी जिंदगी लगा देता है । यह मूल अधार चक्र धरती तत्व से भी जुड़ा हुआ है । असल में आत्मा शांत स्वरूप और प्रेम स्वरूप है, जो कि भगवान को याद करने से मिलती है । परमात्मा उतरी ध्रुव से जुड़ा हैँ । परन्तु उतरी ध्रुव अर्थात सिर अर्थात दिमाग का हम कभी प्रयोग नहीं करते । अगर करते हैँ तो बहुत कम । 
               दक्षिणी ध्रुव ( प्रजनन केन्द्र ) से उत्पन होने के कारण हम प्रजनन केन्द्र के इर्द गिर्द ही घूमते रहते हैँ । इसी केन्द्र से उत्पन होने के कारण हम अपने तथा अपनी संतान को कामयाब करने के लिये धरती के पदार्थो से जुड़े रहते हैँ । उन्ही से सब कुछ पाना चाहते हैँ । यही कारण हैँ कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक काम का श्रेय लेना चाहता है, ताकि सभी उस से प्यार करें ।

Sunday, June 10, 2018

डिप्रेशन फ्री लाइफ कोर्स

                आठवां दिन पंडा पुजारी, व ढोंगी बाबाओ से सदा के लिए छुटकारे पाए,ये प्रयोग कीजिये आने वाली समस्याओं से बचने के लिए, स्वास्थ्य के लिए जल चार्जिंग और सुझावों के लिए टिप्स किसी भी प्रकार की बीमारी के इलाज के लिए,नीचे दिए गए 4 विधियों का पालन करें जब हम सो जाते हैं, हमारा अवचेतन मन जाग्रत हो जाता है, तो अवचेतन मन में इस विचार के साथ 5 बार भरें -मैं इस बीमारी से मुक्त ही हूँ। 
                 मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूँ।" अगर आप इन शब्दों को आत्मविश्वास से कहते हैं, तो आपका अवचेतन मन उन्हें स्वीकार कर लेगा। जैसे- "मेरा बीपी सामान्य हो गया है। मेरा दिल बिल्कुल ठीक हो गया है या मेरी गुर्दे पूरी तरह ठीक हो गए हैं.. आदि।" इन विचारों को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहें, तब अवचेतन मन उन्हें स्वीकार कर लेगा।  पानी को कम से कम 5 बार एक दिन में चार्ज करें और इसे पी लो। पानी चार्ज करने का तरीका है - पानी में दृष्टि दें और 5 बार संकल्प करें- "मैं सर्वशक्तिमान आत्मा हूं।"  (आप ब्रह्माकुमारीज सेवा केंद्र में शिव बाबा के योग कक्ष में पानी की बोतल / जग को रखकर भी यह प्रयोग कर सकते हैं या घर पर शिव बाबा की तस्वीर के सामने योग के दौरान पानी में दृष्टि दें और शिवबाबा की किरणों को पानी पर पड़ते और इसे शुद्ध करते हुए देखें । महसूस करें कि पानी पूरी तरह से सकारात्मक, सक्रिय रूप से चार्ज है और इस चार्ज पानी को पीने पर मेरे विचार शुद्ध विचार हो गए हैं मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूं। यह पानी शरीर में प्रत्येक कोशिका को पूरी तरह से चार्ज कर रहा है और सभी अशुद्धियों को निकाल रहा है. आपके शरीर (मस्तिष्क, गुर्दा, हृदय, आदि) के किसी भी अंग को कुछ समस्या हो तो, उस अंग को सुबह, दोपहर और शाम 5 मिनट हर बार ऊर्जा दें। ऊर्जा देने का तरीका है- दोनों हथेलियों को रगड़ें और संकल्प करें- "मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूं।" और फिर हथेलियों को शरीर के प्रभावित हिस्से पर हथेलियां रखो । कुछ समय बाद, इस प्रक्रिया को वापिस दोहराएं। शरीर को ऊर्जा देने के दौरान सोचें कि शरीर का यह हिस्सा सही हो रहा है, यह पूरी तरह ठीक हो रहा है। इस शरीर का हिस्सा बनता जा रहा है यह सही है, यह पूरी तरह से ठीक होता जा रहा है है। 🌺 अमृतवेले विशेष योग करें। रोग से छुटकारा पाने के लिए, एक घंटे का योग करने के लिए, दिन के दौरान कुछ समय तय (Fix) करें। इसे 21 दिनों के लिए करें। यदि योग करने का स्थान और समय एक निश्चित समय पर हर रोज होता है, तो यह अच्छा होगा। यदि बीमारी पुरानी है और लंबे समय से फील होती है, तो इस योग को 3 महीने के लिए करें। ⁉️ भट्टी कैसे करें (विशेष, गहन योग) समस्या मुक्त बनने के लिए, विघ्नों से मुक्ति : अमृतवेला योग के अलावा, यह योग 21 दिनों के लिए भी करने हैं। योग शुरू करने से पहले ये दो स्वमान 5 बार अभ्यास करने हैं - "मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूं। मैं विघ्न विनाशक आत्मा हूं।" उसके बाद एक घंटे के लिए शक्तिशाली योग करें। योग के दौरान, शिवबाबा से किरणों को लें / अवशोषित करते रहें। 🌸 नौकरी में सफलता के लिए🌸 किसी भी नौकरी करने में सफल होने के लिए, जैसे ही आप सुबह उठते हैं, ये दो स्वमान 7 बार अभ्यास करें : "मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूं। विजय मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।" एक घंटे के लिए एक शक्तिशाली योग करें और योग शुरू करने से पहले 5 बार स्वमान का अभ्यास करें।  बुरी आदतों से मुक्त होने के लिए किसी भी व्यसन, क्रोध से छुटकारा पाने के लिए, बच्चों को अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए, दूसरों को शुद्ध बनाने के लिए... आदि - भोजन तैयार करते समय, खाना पकाने के दौरान, 100 बार संकल्प करें, "मैं सम्पूर्ण पवित्र आत्मा हूं।" *डिप्रेशन फ्री लाइफ कोर्स टेली पेथी योगी अपने विचार: बिना ऊचारण किये दूसरो तक भेज सकता है । 
                         आगे समय ऐसा आने वाला है जो हम अपने संदेश मन द्वारा ही भेजेगे* । -चींटियां बहुत दूर से एक दूसरे से बात कर लेती है । -कुत्ते, बिल्लीया घर से दूर छोड़े जाने पर वापिस आ जाते है । -हर स्थान, हर व्यक्ति, हर वस्तु से सूक्ष्म तरंगे निकलती रहती है । पक्षी इन्ही तरंगों को पकड़ कर सही जगह पहुँच जाते है । 
                    शहद की मक्खी शहद इकट्ठा करने बहुत दुर चली जाती है, किंतु पर्वत, नदिया अनेक स्थानों के ऊपर हो कर मानसिक शक्ति से अपने छत्ते तक पहुँच जाती है । -मनुष्य की मानसिक शक्ति इन सब से बहुत शक्तिशाली होती है । -विचारो में वह शक्ति है जो हजारो मील दूर मनुष्य पर असर करती है 
         । - हजारो मील दूर की आवाजे ऐसे सुन सकते है जैसे हमारे पास कोई बोल रहा हो । -हम सभी थोड़े बहुत विचार भेजते है और प्राप्त करते है । -किसी को स्मरण करते ही व्यक्ति घर आ जाता है या उसी समय उस का फोन आ जाता है । -हम कह उठते है हम आप को याद ही कर रहे थे । -आने वाला व्यक्ति आते आते अपने मस्तिष्क द्वारा विचार तरंगे भेज रहा है । ये तरंगे आकाश में व्याप्त ईथर में हो कर हमारे मस्तिष्क में आ जाती है । हमारा मन उन तरंगों को ग्रहण कर लेता है । मस्तिष्क में आ कर तरंगे पुन्य शव्दो में बदल जाती है   
           । - जिस व्यक्ति को संदेश देना चाहते है वह चाहे कहीं भी हो उस की शक्ल को कल्पना में अपने सामने देखो और उस से बात करो, आप के विचार उस तक पहुँच रहे है । ये विचार बहुत सूक्ष्म होते है । वह सही शव्दो में नही समझेगा परंतु उसको अच्छा व बुरा महसूस होगा जैसा आप का भाव था । वह वैसा ही रिअकट करेगा । अगर दोनो तरफ़ सूक्ष्म व शुद्ध और शक्तिशाली मन है तो हम शब्द भी पकड़ सकते है । इसलिये सदा शुध्द ही सोचो । आप जो चाहते है वह सोचो । उसके वर्तमान के अवगुणों पर ध्यान न दे । -अगर ऐसा व्यक्ति आपके आसपास है तो भी मुख से कम बोलो उसके साथ मन से सकून भरी बातें करो । उसे भी सकून मिलेगा । -याद रखो विजय शुध्द विचार की ही होगी चाहे कितनी देर लग जाये. जैसे आग चाहे कितनी तेज हो और उस पर बूँद बूँद पानी डाले तो विजय पानी की ही होगी आग को बूझना ही होगा । ऐसा अपना विचार दृढ़ रखे । - याद रहे व्यक्ति सिर्फ प्यार से बदलता है । -बड़े बड़े तानाशाह जोर से, दबाव से, मानव को नही बदल सके, एक सधारण मनुष्य की औकात ही क्या है । - इस लिये चेक करो आप के विचारो में उसके प्रति प्यार है या नही जिसे आप संदेश दे रहे है 
                        । - सर्व शक्तिवान बाप भी हमे प्यार से ही बदल रहा है । उनके महावाक्यों में कितनी निर्मानता है । - जिसे हम बदलना चाहते है, उनके प्रति संदेश देने वाले हमारे विचारो में कोमलता व निरमानता हो । मरोड़, धौंस व नाराजगी या नफरत न हो नही तो ये और बढ़ जायेगी । -जो लोग हमारे आस पास है उन पर प्रयोग करो । नई खोज करो । विश्व को इस की जरूरत है । अपना समय सूक्ष्म सेवा में ज्यादा लगाओ । सूक्ष्म बल में निपुण बनो । जो कहते हो बोलते हो वह सब मन से करो तब सब कुछ ठीक हो जायेगा । - सदा याद रखो मैं दाता आत्मा हूँ । यह भाव सब को बदल देगा । आवश्यक सूचना यह निःशुल्क कोर्स है,अपने परिवार के सदस्यों को इस ग्रुप में ऐड करा सकते हो। इस ग्रुप में आप किसी भी प्रकार का कोई मैसेज नही भेज सकते,अन्यथा रिमूव किया जाएगा।* 3: इस कोर्स में जो भी होमवर्क आपको दिया जाएगा उसे फ़ॉलो करना अनिवार्य है। 4 :तीन से चार दिन में ही आपको महसूस होने लगेगा ,और दवाईया अपने आप छूट जाएगी।

ॐ के उच्चारण के 11 शारीरिक लाभ :

              ॐ : ओउम् तीन अक्षरों से बना है। अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानिए ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग. उच्चारण की विधि प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। 
            ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।

01- ॐ और थायराॅयड- ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

02- ॐ और घबराहटः- अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

03- ..ॐ और तनावः- यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

04- ॐ और खून का प्रवाहः- यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

5-ॐ और पाचनः- ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

06-ॐ लाए स्फूर्तिः- इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

07- ॐ और थकान:- थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

08- .ॐ और नींदः- नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है।रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

09- .ॐ और फेफड़े:- कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

10- ॐ और रीढ़ की हड्डी:- ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है।इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

11- ॐ दूर करे तनावः- ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है। आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण करेंगे । साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है ।

अपनी खुशी का गेयर सदा अपने हाथ में रखें

            प्रसन्नता का गेयर हमेशा अपने हाथ में रखें वैवाहिक जीवन पर आधारित एक लाईफ स्किल सेशन में स्पिकर ने दर्शकों में उपस्थित एक महिला से पुछा..... "क्या आपके पति आपको खुश रखते हैं?इस प्रश्न पर उस महिला का पति बड़ा ही आश्वस्त था क्योंकि उनका वैवाहिक जीवन काफी सफल था। 
          उसे पता था कि उसकी पत्नी क्या बोलेगी.. क्योंकि पुरी शादी शुदा जिंदगी में उसकी पत्नी ने कभी भी किसी भी बात के लिए कोई शिकायत नहीं कि थी। महिला ने बड़ी ही गंभीर आवाज में जवाब दिया - "नहीं मेरे पति मुझे प्रसन्न नहीं रखते।
           पति बहुत ही चकित था और वहाँ मौजूद बहुत से दूसरे लोग भी ! परन्तु उसकी पत्नी ने बोलना जारी रखा - "मेरे पति ने मुझे कभी खुश नहीं किया.... और ना ही वे कर सकते है पर फिर भी मैं खुश हूँ"। 
           मैं खुश हूँ या नहीं यह मेरे पति पर नहीं है बल्की मुझ पर निर्भर है। मैं ही एकमात्र व्यक्ति हूं जिस पर मेरी खुशी निर्भर करती है। मेरी जिन्दगी की हर परिस्थिति और हर पल में... मै खुश रहना पसंद करती हूँ, क्योंकि अगर मेरी खुशी.... किसी दूसरे व्यक्ति, किसी वस्तु या किसी हालात पर निर्भर करती है तो यह मुझे पसंद नहीं और इससे मुझे बहुत तकलीफ होती है। 
           जीवन में जो कुछ भी है वह हर पल बदलता रहता है व्यक्ति, समृद्धि, पैसा, शरीर, मौसम, ऑफिस में बास, सुख-दुख, दोस्त और मेरी शारीरिक व मानसिक अवस्था भी। यह अन्तहीन सूची है और यही हमें प्रभावित करना चाहती है। मुझे खुश रहने का फैसला करना होगा... चाहे जीवन में कुछ भी हो। 
          मेरे पास साडियाँ ज्यादा है या कम पर मैं खुश हूँ। चाहे मैं घर में अकेली रहूँ या बाहर घुमने जाऊँ, मैं खुश हूँ। चाहे मेरे पास बहुत पैसा हो या नहीं पर मैं खुश हूँ। चाहे टीवी पर मेरा पसन्दीदा सीरियल आ रहा है या क्रिकेट मैच, पर मै सदा खुश हूँ। मैं शादी-शुदा हूँ पर मैं तब भी खुश थी... जब मैं सिंगल थी। 
           मैं अपने स्वयं के लिए खुश हूँ। मैं अपने जीवन को इसलिए प्यार नहीं करती की वह दुसरो से आसान है बल्कि इसलिए कि मैने स्वयं खुश रहने का फैसला किया है। जब प्रसन्न रहने का दायित्व मैं अपने आप पर लेती हूँ तब मैं अपने पति के कंधों से अपनी देखभाल करने का बोझ हल्का करती हूँ। 
           यह सोच मेरे जीवन को बहुत आसान बनाती है और "यह हर किसी को भी बना सकती है।" और यही एक मात्र कारण है, हम बहुत सालों से सफल और प्रसन्न वैवाहिक जीवन का आनन्द ले रहे है।  
           अपनी प्रसन्नता का गेयर किसी के हाथ में मत दीजिए। प्रसन्न रहीये चाहे जीवन में बहुत गर्मी हो या बरसात। चाहे आपके पास बहुत पैसा न हो... *चाहे कोई आपको हर्ट करे।* पति चाहे स्टेयरिंग सिट पर बेठे हो और गाड़ी सपाट रोड पर दौड़ रही हो या ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खा रही हो, गियर हमेशा प्रसन्नता मॉड में ही रखे।                     आपको कोई प्यार भी नहीं करेगा.... कोई भी सम्मान नहीं देगा जब तक आप स्वयं अपने आप को महत्व नहीं देगी। इसलिये आपको स्वयं को जानना बहुत जरूरी है *"स्वयं के महत्व" की जानकारी बेहद जरूरी हैं।*

Friday, May 27, 2016

मनुष्य ईश्वर के प्रति भ्रमित होता जा रहा है

                ईश्वर के सम्बन्ध में मनुष्य भ्रमित होता जा रहा है अगर देखें तो जीवन में कुछ न कुछ अनुभव हर एक को होते रहते है. कि जैसे कोई जन्म से ही बीमार पैदा हो तो उसे स्वास्थ्य का कभी कोई पता नहीं चलता। जैसे कोई जन्म से ही अंधा पैदा हो, तो जगत में कहीं प्रकाश भी है, इसका उसे कोई पता नहीं चलता। इसका मतलव हुआ कि वे एक अदभुत अनुभव से जन्म के साथ ही जैसे वंचित हो गए हैं। धीरे-धीरे मनुष्य-जाति को यह खयाल भी भूलता गया है कि वैसा कोई अनुभव है भी। उस अनुभव को इंगित करने वाले सब शब्द झूठे और थोथे मालूम पड़ने लगे हैं। ईश्वर शब्द थोथा दिखाई देने लगा है,मनुष्य के जीवन से परमात्मा का सम्बन्द समाप्त सा दिखाई देने लगा है।
              इस दुर्भाग्य के कारण मनुष्य किस भांति जी रहा है, किस चिंता में, दुख में, पीड़ा में, परेशानी में, उसका भी हमें कोई अनुभव नहीं हो रहा है। और जब भी इस तरह की बात उठती है तो क्या ईश्वर से मनुष्य का संबंध क्यों टूटता जा रहा है? पशु-पक्षी ही ज्यादा आनंदित मालूम होते हैं। पौधों पर खिलने वाले फूल भी आदमी की आंखों से ज्यादा प्रफुल्लित मालूम होते हैं। आकाश में उगे हुए चांद तारे भी, समुद्र की लहरें भी, हवाओं के झोंके भी आदमी से ज्यादा आनंदिमत मालूम होते हैं।
            आदमी को क्या हो गया है? अकेला आदमी भर इस जगत में रुग्ण, बीमार मालूम पड़ता है। लेकिन अगर हम पूछें कि ऐसा क्यों हो गया है? ईश्वर से संबंध क्यों टूट गया है? तो जिन्हें हम धार्मिक कहते हैं, वे कहेंगे-नास्तिकों के कारण, वैज्ञानिकों के कारण, भौतिकवाद के कारण, पश्चिम की शिक्षा के कारण ईश्वर से मनुष्य का संबंध टूट गया है। ये बातें एकदम ही झूठी हैं।किसी नास्तिक की कोई सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य का संबंध परमात्मा से तोड़ सके। यह वैसा ही है-और किसी भौतिकवादी की यह सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य के जीवन से अध्यात्म को अलग कर दे। किसी पश्चिम की कोई शक्ति नहीं कि उस दीये को बुझा सके, जिसे हम धर्म कहते हैं। यह वैसा ही है जैसे मेरे घर में अंधेरा हो और आप मुझसे पूछें आकर कि दीये का क्या हुआ?

           मैं कहता हूं, दीया तो मैंने जलाया, लेकिन अंधेरा आ गया और उसने दीये को बुझा दिया! तो आप हंसेंगे और कहेंगे, अंधेरे की क्या शक्ति है कि प्रकाश को बुझा दे! अंधेरे ने आज तक कभी किसी प्रकाश को नहीं बुझाया। मिट्टी के एक छोटे से दीये में भी उतनी ताकत है कि सारे जगत का अंधकार मिलकर भी उसे नहीं बुझा सकता।

क्या अंधेरे की ताकत उजाले की ताकत से अधिक है--
            हां, दीया बुझ जाता है तो अंधेरा जरूर आ जाता है। अंधेरे के आने से दीया नहीं बुझता; दीया बुझ जाता है, तो अंधेरा आ जाता है। नास्तिकता के कारण धर्म का दीया नहीं बुझाया बल्कि धर्म का दीया बुझ गया इसलिए नास्तिकता आ गई है। भौतिकवाद के कारण अध्यात्म नहीं बुझ गया है; अध्यात्म बुझा है, इसलिए भौतिकवाद है। फिर किसके कारण? क्योंकि जब कोई यह कहता है कि नास्तिकता, भौतिकवाद ये धर्म को मिटा रहे हैं, वह तो पता नहीं है उसे कि वह धर्म को कमजोर और नास्तिकता को मजबूत कह रहा है।

             उसे पता नहीं कि वह धर्म के पक्ष में बोल रहा है या धर्म के विपक्ष में बोल रहा है। वह यह स्वीकार कर रहा है कि अंधेरे की ताकत ज्यादा बड़ी हैं, उजाले की ताकतों से। और अगर अंधेरे की ताकत बड़ी है तो वह प्रकाश को बुझा सकती है, तो फिर हमें यह भी समझना होगा कि प्रकाश के जलने की दुनिया में कभी कोई संभावना नहीं है। क्योंकि अंधेरा हमेशा बुझा देगा; आप जलाइए और अंधेरा बुझा देगा।

            अगर नास्तिकता धर्म को मिटा सकती है, तो धर्म के जन्म की अब कोई संभावना नहीं है।
आइने का एक सच
            एक पागल आदमी था। वह अपने को बहुत ही सुंदर समझता था। जैसा कि सभी पागल समझते हैं, वैसा वह समझता था कि पृथ्वी पर उस जैसा सुंदर और कोई भी नहीं है। यही पागलपन के लक्षण हैं। लेकिन वह आईने के सामने जाने से डरता था। और जब कभी कोई उसके सामने आईना ले आता तो तत्क्षण आईने को फोड़ देता था।
            लोग पूछते, क्यों? तो वह कहता कि मैं इतना सुंदर हूं और आईना कुछ ऐसी गड़बड़ करता है कि आईना मुझे कुरूप बना देता है! आईना मुझे कुरूप बनाने की कोशिश करता है! मैं किसी आईने को बरदाश्त नहीं करूंगा, मैं सब आईने तोड़ दूंगा! मैं सुंदर हूं, और आईने मुझे कुरूप करते हैं! वह कभी आईने में न देखता। लोग आईना ले आते तो तत्क्षण तोड़ देता!
          मनुष्य भी उस पागल की तरह व्यवहार करता रहा है। नहीं सोचता कि आईना वही दिखाता है? जो मेरी तस्वीर है। आईना वही बताता है? जो मैं हूं।

         आईने का कोई प्रयोजन भी नहीं कि मुझे कुरूप करे। आईने को कोई मेरा पता भी नहीं। मैं जैसा हूं, आईना वैसा बता देता है। लेकिन बजाय यह देखने के कि मैं कुरूप हूं, आईने को तोड़ने में लग जाता हूं!

          संसार को छोड़कर भाग जाने वाले लोग आईने को तोड़ने वाले लोग हैं। अगर संसार दुखद मालूम पड़ता है? तो स्मरण रखना कि संसार एक दर्पण से ज्यादा नहीं। वही दिखायी पड़ता है? जो हम हैं।