दुनिया का हर व्यक्ति सब से ज्यादा सिर्फ और सिर्फ अपने बारे सोचता है ।
मानवीय गुण यह है कि मनुष्य के हर कार्य का नियंत्रण उसके अपने हितो से होता है अर्थात मनुष्य हर काम में श्रेय लेना चाहता है ।
लोग आप की बात सुने और आप को सम्मान दें ।
आप किसी सभा या समारोह में जाए तो लोग खुले दिल से आप का स्वागत करें अथवा राह चलते लोग आपका स्वागत करें ।
राह चलते लोग सम्मान के साथ साथ आप को नमस्कार करें ।
दुनिया का हर व्यक्ति यही चाहता है ।
बड़े बड़े संत महात्मा जो विश्व को वैराग्य का उपदेश देते हैँ वह भी स्वंय को श्रेय देने के प्रलोभन से वंचित नहीं हैँ ।
मनुष्य की यह भावना क्यो है ।
पृथ्वी के दो ध्रुव हैँ । उतरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव ।
उतरी ध्रुव से धरती सूर्य से ऊर्जा लेती है ।
सूर्य की शक्तियां धरती के उतरी ध्रुव से प्रवेश करती हैँ और दक्षिणी ध्रुव से बाहर निकलती हैँ ।
दक्षिणी ध्रुव से जब तरंगे बाहर निकलती हैँ ती यह प्रेम में परिवर्तित हो चुकी होती है ।
दक्षिणी ध्रुव पार 50-60 किलोमीटर का क्षेत्र ऐसा है जहां सभी मनुष्य व जीव जन्तु अपना बैर भाव भुला कर एक दो से गले मिलते हैँ । उस जगह बहुत प्यार की तरंगे हैँ ।
ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति में भी दो ध्रुव हैँ ।
सिर को उतरी ध्रुव माना गया है और प्रजनन इन्द्रिय को दक्षिणी ध्रुव माना गया हैँ ।
सिर अर्थात सहस्त्रार चक्र और प्रजनन इन्द्रिय अर्थात मूल आधार चक्र ।
मनुष्य सूर्य से, भगवान से, प्राण से अर्थात श्वांस से या लोगो से विचार के रूप में जो ऊर्जा ग्रहण करते हैँ , वह एनेर्जी शरीर के विभिन चक्रों से होती हुई प्रजनन इन्द्रिय अर्थात मूल आधार से बाहर निकलती है तो यह एनेर्जी प्यार का रूप धारण कर लेती हैँ । जिसे हम काम विकार कहते हैँ ।
इस विकार से स्नेह महसूस होता है जैसे पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर होता है । यह स्नेह विकृत काम विकार का रूप ले चुका है इसलिए आज प्रत्येक व्यक्ति इस अपवित्रता के विकार से पीड़ित है । सारी दुनिया पागल हो रही है ।
वास्तव में मनुष्य स्नेह चाहता है ।
इस विकार से उत्पन्न संतान के लालन पालन में सारी जिंदगी लगा देता है ।
यह मूल अधार चक्र धरती तत्व से भी जुड़ा हुआ है ।
असल में आत्मा शांत स्वरूप और प्रेम स्वरूप है, जो कि भगवान को याद करने से मिलती है । परमात्मा उतरी ध्रुव से जुड़ा हैँ । परन्तु उतरी ध्रुव अर्थात सिर अर्थात दिमाग का हम कभी प्रयोग नहीं करते । अगर करते हैँ तो बहुत कम ।
दक्षिणी ध्रुव ( प्रजनन केन्द्र ) से उत्पन होने के कारण हम प्रजनन केन्द्र के इर्द गिर्द ही घूमते रहते हैँ । इसी केन्द्र से उत्पन होने के कारण हम अपने तथा अपनी संतान को कामयाब करने के लिये धरती के पदार्थो से जुड़े रहते हैँ । उन्ही से सब कुछ पाना चाहते हैँ । यही कारण हैँ कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक काम का श्रेय लेना चाहता है, ताकि सभी उस से प्यार करें ।
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