Monday, September 28, 2020

मन की शान्ति का संगम -- टेलिग्राम के लोकप्रिय चेनल

1-मन की शान्ति का संगम--

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2-G.K Bank--                                              6-संजीवनी-  @s_anjivani

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3-भारतीय संगीत-                                         @physical_medical_fitness_corner

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4-हिन्दी मूबीज-

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5-दिल की आवाज-

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Wednesday, September 9, 2020

आंतरिक बल-आज्ञा चक्र

आन्तरिक  बल 

आज्ञा चक्र 

        ‌हरेक मनुष्य का मन हर समय  कुछ  ना कुछ सोचता  रहता है । जब से मनुष्य ज्न्म लेता  है तब से सोचना शुरू करता है जब तक हम जीवित हैं  तब तक मन सोचता ही रहता है । नींद में भी  मन सोचता रहता है ।  मन सिर्फ सोचता है । उसे यह पता  नहीं कि अच्छा क्या है बुरा क्या है । 

          बुद्वि एक ऐसी शक्ति है जो हर संकल्प के बारे बताती है कि  संकल्प ठीक है या नहीं ।

          बुद्वि  निर्णय शक्ति है जो बताती है कि क्या करना है ।

          आप के घर  वाले भूखे हैं  । दूसरी तरफ़ स्कूल में बच्चो की फीस भरनी है । आप के पास इतने पैसे हैं  या तो घर  वालो को भोजन खिला सकते हैं  या बच्चो की फीस भर  सकते हैं  । इन दोनो कार्यों मैं कौन  सा कार्य करेगें ।

         स्पष्ट है कि आप घर  वालो को भोजन खिलायेगे । अगर घर  वाले जिंदा  होंगे तो फीस तो बाद में भी  भरी जा सकती  है ।

          अगर फीस भरते  हैं   तो घर  वाले भूखे मर जायेंगे । जब आदमी ही नहीं बचेंगे  तो फीस भरने का क्या फायदा ।

         इन दोनो  कार्यों  में कौन  सा कार्य  पहले करना है यह हमे बुद्वि ने  बताया  है ।

           जो जितना बुद्विमान है वह उतना ही सफल होता है । इस लिये बुद्वि को समझना  ज़रूरी है ।

समस्या को हल करने की योग्यता  ही बुद्वि  है ।

          नवीन परिस्थियों  के  अनुसार तालमेल करना ही बुद्वि  है ।

निर्णय एवं आलोचना की शक्ति ही बुद्वि  है ।

          उतम क्रिया करने की योग्यता को ही बुद्वि कहते हैं  ।

         वह शक्ति जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है  उसे बुद्वि  कहते हैं  ।

         प्रत्येक व्यक्ति कुछ  सीमा  तक कार्य करता है और  सीमा  का निर्णय   बुद्वि  करती है ।

           बुद्वि अनमोल है । इसके बिना हम सही काम नहीं कर सकते । बल्कि एक के बाद एक गलतियां करते जाते है ।

आंतरिक बल-क्लेश

आंतरिक बल 

क्लेश 

          अक्सर हमारी पूरी जिंदगी बीत जाती है,  उस एक आदमी के लिये   जो हमारी मदद नहीं करता,  जो हमें नहीं सुनता ।  जिसकी  याद में हम  तड़फते  रहते हैंं या दुश्मनी के कारण वह हमें भूत क़ी  तरह याद रहता है । 

         एक समय आता है जब हम उस से इतने हताश हो जाते हैं कि हमें महसूस होने लगता है क़ि सारी दुनिया में  कोई हमारी मदद नहीं करता/करती । 

          सब मुझे ही करना पड़ता है । मुझे ही मरना पड़ता हैं ।  सब मतलबी हैंं । दूसरो के  बहुत सहयोगी हैंं मेरा कोई सहयोगी नहीं हैंं । 

           हम यह भूल जाते हैंं क़ि काफी काम हमें ही करने पड़ते  है । 

जिंदा रहने के लिये हमारी सांस अकेली ही चल रही है । 

कुदरत हमें धूप,  हवा,   पानी  मुफ्त में सहयोग कर रही  

ऐसे और भी लोग हमें सहयोग कर रहे है । 

सब्जी वाला सब्जी ला कर दे रहा है । 

दूध वाला दूध ला कर दे रहा है । 

डॉक्टर हमारे को दवाई  देने के लिये तैयार  रहता है । 

             बसो  वाले,  टेक्सी वाले,  रेल गाड़ी वाले हमारे को दूसरे स्थानो पर यात्रा पर ले जाने  के लिये तैयार रहते  हैं । 

दुनिया से बात कराने के लिये मोबाइल कम्पनिया तैयार बैठी हैं  !

भगवान से मिलाने लिये लोग तैयार बैठे हैं  । 

हमें चारो दिशाओ से  सहयोग  मिलता रहता है । 

            लेकिन हम उसके लिये हर समय दुखी रहते हैं  जो हमें नहीं मिला है,  या कहें तो बस एक व्यक्ति का सहयोग नहीं मिला है और वह सहयोग नहीं करने वाला है,  फिर भी हम उसी में फंसे रहते हैं । 

             यही तो क्लेश है ।  यही तो राहु और केतु की दशा है ।  यही तो पाप कर्मो की निशानी है ।  यही तो कुते की हड्डी है । हम अपनी शांति,  सुख चैन उस एक से सहयोग की उमीद में नष्ट कर रहे  हैंं ।  

              भगवान तुम्हे उनसे महान बनाना चाहता है ।  आप इस चीज को क्यो नहीं समझ रहे  हैं  । 

              आप अपने विकास पर ध्यान दो खूब पुस्तके पढ़ो,  मनसा सेवा करो ।  उन लोगो पर ध्यान दो जो तुम्हे प्यार करते हैं  ।  उन लोगो के पीछे मत भागो जो तुमहारे से प्यार नहीं करते  ।  

             परमपिता तुम्हारे लिये बाहें  पसारे खड़ा है ।  आप उसे क्यो टाइम  नहीं देते ।  बस उसकी स्थूल में फोटॊ देखते रहो ।  वह आप की हर बात सुनता है । सुनने के लिये और मदद के लिये  तैयार  रहता हैं । 

             एक विद्यार्थी समझने लगे कि  सभी शिक्षक मेरे दुश्मन है क्योकि वह कड़क हैं ,  तो यह ठीक नहीं हैं । 

            हकीकत यह है क़ि सभी  विरोधी,  सभी दुश्मन हमारे शिक्षक  हैं  ।  उनके  रौद्र  रूप से हम बहुत कुछ सीखते हैं  । 

             सब से बड़ी गलती हम यह करते हैं  कि कोई कुछ  बोलता है तो हम उसे तुरंत उल्टी प्रतिक्रिया करते हैं  जिस से विरोध  खड़े हो जाते हैं  ! 

            जब भी कोई कुछ खराब  बोलता है उस का उतर देने से पहले  सोचा करो इसे ऐसा क्या जवाब दू कि  हमारी मित्रता बनी रहें  न कि बिगड़ जाए । इस से फालतू के क्लेश खत्म हो जाएंगे । 

        भगवान ने जो हमें विश्व कल्याण का कार्य दिया है,  उसी में व्यस्त रहो ।  मनसा सेवा करो,  लिखने क़ी  सेवा करो, नयनो से सब को निहाल करो ।  कुछ भी समझ नहीं आता तो भगवान के चित्र के सामने बैठ कर उसके गुण सिमरन करते रहो आप प्यार के सागर हैं ।  आपके सारे मनचाहे अच्छे कार्य  पूरे होंगे ।  सब क्लेश खत्म हो जायेगे ।

Wednesday, August 12, 2020

आंतरिक बल- मन नकारात्मक विचारों का रूप

मन नाकारात्मक विचारो का रुप 

        आलस्य जब आता  है तो  हमारे मन से ऐसी तरंगे निकलती हैं  जो जंजीर या रस्सी का रुप धारण  कर हमे जकड़ देती हैं हमे बांध  देती  हैं । जैसे किसी  को जकड़ दिया जाता है  तो वह लाचार  हो जाता है  यही कारण  है कि  आलसी चाहते हुये भी  कुछ नहीं कर सकता ।

        आलस्य जब  मन में आये तो एक वाक्य मैं चुस्त हूं चुस्त हूं यह मन में दोहराते रहें  या कोई  ज्ञान सिमरन करते रहें । कुछ  ना कुछ  मन से पढ़ने लिखने का काम करें । 

        निराशा  एक बेरहम घुसपैठिया है । अर्थात हमारे दिमाग से ऐसी तरंगे निकलती हैं जो एक बेरहम आतंकवादी का रुप धारण  कर हमारे मन में घुस जाता  है । जिसके कारण हम डर, उलझन, बैचेनी और गहरे दुख में फंस जाते हैं ।

       निराशा  में नींद नहीं आती । कुछ  भी  गड़बड़ हों जाये उसके लिये खुद को जुम्मेवार समझते हैं  । किसी से बात करने को मन नहीं करता  । बात बात पर चिढ़ होती है ।

       निराशा व्यक्ति को डिप्रेशन में ले जाती है,  व्यक्ति सब से कटने लगता है । ऐसे लगता है जैसे किसी कैदी को कालेपानी में कैद की  सजा दे दी हो ।

        जिन  चीजो की वजह से निराश है, मन में सोचो वह सब आपके पास हैं आप उनके साथ जी  रहे हैं । 

      एक जेल में बंदियों को हर रोज़  टार्चर  किया जाता था, बहुत से लोग डर से मर गये । एक कैदी  सजा के समय सोचता था वह अपने परिवार  के साथ है सब लोग मिल कर रहते हैं तथा  दूसरे लोगो को सुखी  बनाने का सोचता रहता था । केवल वह व्यक्ति जीवित रहा और सदा खुश दिखता था । उसकी खुशी देख कर प्रशासन  ने उसे बरी  कर दिया ।

      श्रश्रमोह होने पर हम गुलाम बन जाते  हैं  । वास्तव में हमारे दिमाग से निकले  विचार हमे दूसरे व्यक्ति के सामने   गुलाम     बना देते हैं  ।  समझो गुलाम की चेतना  घुस जाती  है । हम हथियार डाल देते हैं. । हमे मालिक से सुख मिलने की उमीद  होती है । मोह में आदान प्रदान की शर्त  जुड़ी होती है । मोह में हम पिसते रहते हैं । मालिक की हर अच्छी बुरी इच्छा पुरी करने में लगे रहते हैं । मोह में हर दुख सहन  करते हैं । मोह हमें कमजोर कर देता है ।

       असल में हम दूसरे का अटेनशन चाहते  हैं । यह ईश्वरीय नियम उल्टा चलता है । आप  जिसे चाहते हैं मन में उसके बारे कहते  रहें आप मुझे पसंद हैं।

       चुगली करने वाले लोग दूसरो के बीच  फूट  डालते हैं, जुदाई और मतभेद पैदा करते हैं । घर  बर्बाद हों जाते  हैं । रिश्ते टूट  जाते  हैं । दोस्त शत्रु बन जाते हैं । भाई  भाई  का दुश्मन बन जाता  है । चुगली एक घातक  हथियार है । वास्तव में जब हम चुगली करते हैं तो हमारे मनसे निकले संकल्प एक ख़ंज़र का रुप धारण  कर लेते हैं । इसलिये सभी व्यक्ति जो सुनते हैं वह घायल हो जाते हैं जिस से उन्हे दुख मिलता है । 

      श्रचुगली अर्थात जो सुख उनके पास है वह हमारे पास नहीं है इसलिये चुगली करते हैं । जो लोग तुम्हे पसंद हैं या जिनकी चुगली करते हैं  या भगवान  के बारे  मन में अच्छा  अच्छा  ( कल्याण हो ) सोचते रहें   तो चुगली की आदत छूट जायेगी ।

      अपवित्रता के विचारो से एक नशेड़ी जैसा व्यक्ति हम बन जाते हैं । जैसे शराबी शराब के बिना तड़फ़ता है । ऐसे ही व्यक्ति काम विकार के कारण बेचैन रहता है और अपराध कर बैठता है ।

      अपवित्रता का मूल कारण है प्यार की कमी । हरेक व्यक्ति को मन में स्नेह देते रहो उन्हे मन में अपना भाई  या बहिन समझो तो अपवित्रता परेशान नहीं करेगी ।

      कोई भी  नाकारात्मक विचार  मन में आता  है तो वह कोई आकृति या रेखा  बना देता   है और हमारे व्यक्तित्व को बांध देता है । इसलिये सदैव कोई ना कोई अच्छा  विचार  मन में रखें  ।  

     मैं कल्याणकारी हूं यह विचार  मन में रहे तो कोई भी  नाकारात्मक विचार नहीं आयेगा ।

आंतरिक बल -आज्ञा चक्र-मन विचारों की दुर्गंध

आज्ञा चक्र -मन -विचारो की  दुर्गंध 

 दुर्गंध :-

हमारे बुरे विचारो से  दुर्गंध निकलती रहती है ।

         कई लोग कुतो  से बहुत डरते है और वह चाहे कहीं चले जाये वहां  के कुत्ते उनके पीछे लग जाते हैं ।

         जब व्यक्ति डरता  है तो डर के कारण उस के विचारो से दुर्गंध निकलती है । वह दुर्गंध ऐसी होती है जैसे कहीं मास का टूकड़ा  जलाया जा रहा हो । मास की  दुर्गंध कुतो  को बहुत अच्छी  लगती है वह समझते है यह उनका  शिकार है। इसलिये वह उस व्यक्ति को काटने को दौड़ते  हैं ।

        निराशा के विचारो से बुदबू पैदा होती है । जिस से सभी लोग दूर भागते हैं। निराश व्यक्ति को सभी असहयोग करते हैं । भिखारी उदास होते हैं  इसलिये लोग तवजो  नही देते  । शराबी सड़को पर पड़े रहते हैं उन्हे  कोई उठाता  नही ।

        जब क्रोध  करते है तो उस से जो तरंगे निकलती है  वह आग जैसी तीखी होती है उनसे बहुत गर्मी लगती है यही कारण है क्रोधी से हर कोई बचने की कोशिश  करता है । 

        पाँच सूक्ष्म विकारों से अलग अलग प्रकार की दुर्गंध  निकलती है, जिस से तन मन  बेचैन हो जाता  है ।

           वर्तमान समय मानव सूक्ष्म विकारों से पीडित है । लोग बोलते अच्छा हैं । ऊंच  पदों  पर हैं। प्रबंधक अच्छे हैं । नामी ग्रामी है । परंतु उनसे जब मिलते है तो अच्छी  महसूसता  नही होती । सूक्ष्म  विकारों की बदबू महसूस होती है । अपनापन नही लगता  । इसलिये  मानसिक  रोग बढ़ रहे हैं।

        जिन विचारो से बुरा बुरा महसूस हो तो समझो बदबू निकल रही है !

       लोभ में बुरा बुरा सा लगता है, पच्छाताप सा होने लगता है, ऐसा लगता है जैसे कुछ  गलत होने वाला है, परंतु लोभ के वश फंस  जाते हैं और लेनदेन कर लेते हैं ।

         ईर्ष्या के विचारो से ऐसी बदबू पैदा  होती है जैसे कोई मिर्ची  जल रही हो । जिसे आम भाषा  में कहते है किसी का दिल जल रहा है । जिस व्यक्ति का  दिल जलता है उस व्यक्ति को देखते ही अपना मुंह  फेर लेते हैं । वहां से भागने को मन करता  है । ईर्ष्यालू  व्यक्ति  सदा  निन्दा ही करेगें ।

        आलस्य से ऐसी तरंगे निकलती है जो  उसे  उदासीन कर देती है । किसी भी  काम करने को मन नहीं करेगा । हमेशा  कहेगा कल करूंगा ।  उस की तरंगे ऐसी होती है कि  कोई भी  व्यक्ति  उसे पसंद नहीं करता सब उस से कन्नी काटने लगते है । कोई उसे काम नहीं देता ।

        हरेक व्यक्ति को पसीना आता है । जिस व्यक्ति के नाकारात्मक विचार  ज्यादा आते  है उनके पसीने वा कपडो से बहुत गंदी बदबू आती है ।  श्रेष्ट योगियों  के  विचार  शुध्द होते है उनसे चंदन जैसी खुशबू आती है ।

         कोई भी  हीनता, कोई भी  इच्छा पुरी न  होने की  कसक, धोखे, बेवफ़ाई, पच्छाताप,  शारीरिक वा मानसिक दुख, योग ना लगने का दुःख , गरीबी का दुख, दुर्व्यवहार का दुख, सम्मान  ना मिलने का दुख,  अनपढ़ होने का दुख , या कोई भी  सूक्ष्म में ज़रा सा भी  बुरा महसूस करते है तो ये सब नाकारात्मक विचार   है । जैसे ही नाकारात्मक विचार  आते है हमारे से बदबू निकलती है । यह ऐसी बदबू है जो नष्ट नहीं होती और पूरे वातावरण में फैल जाती है और जो भी  सामने आयेगा प्रभावित होगा ।  

        अपने चाहे दूसरे के कारण ज्यों ही नाकारात्मक विचार  का बीज पैदा  हो उसे तुरंत सकारात्मक विचार  से बदल दो । 

        जब भी नाकारात्मकता  आयें तुरंत मन को विश्व सेवा में लगा दो । किसी दूसरी आत्मा को मन से स्नेह वा शांति की तरंगे दो । जिस व्यक्ति से नाकारात्मकता आ रही है उसके पीछे कल्पना में किसी स्नेही आत्मा को देखो और मन ही मन उसे कहो आप स्नेही हो स्नेही हो । आप के यह  विचार  विरोधी.को बदलेंगे और आप को भी  सकून मिलेगा ।

Monday, August 3, 2020

रक्षा बंधन। पार्ट -२

 “राखी मज़बूत करती है मर्यादाओं की डोर” 
(Part:~2)
        यदि ज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो रक्षाबंधन एक बहुत ही रहस्ययुक्त पर्व है। यदि इसकी पूरी जानकारी हो और ज्ञान-युक्त रीति से इस बंधन को निभाया जाए तो मनुष्य को मुक्ति और जीवन मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। 

          इसके बारे में एक जगह यह भी वर्णन आता है कि जब असुरों से हारकर इंद्र ने अपना राज्य-भाग्य गंवा दिया था तो उसने भी इंद्राणी से यह रक्षाबंधन बंधवाया था और इसके फलस्वरूप उसने अपना खोया हुआ स्वराज्य पुनः प्राप्त कर लिया था। 

         इसी प्रकार, एक दूसरे आख्यान में यह वर्णन मिलता है कि यम ने भी अपनी बहन यमुना से यह रक्षाबंधन बंधवाया था और कहा था कि इस बंधन को बांधने वाले मनुष्य यमदूतों से छूट जाएंगे। 

        स्पष्ट है कि ऐसा रक्षाबंधन जिससे कि स्वर्ग का स्वराज्य प्राप्त हो अथवा मनुष्य यम के दंडों से बच जाए, पवित्रता का ही बंधन हो सकता है, अन्य कोई बंधन नहीं। अब प्रश्न उठता है कि इस त्योहार से इतनी बड़ी प्राप्ति कैसे होती है? इसका उत्तर हमें इस त्योहार के अन्यान्य नामों से ही मिल जाता है। 

        रक्षा बंधन को ‘विष तोड़क पर्व’ ‘पुण्य प्रदायक’ पर्व भी कहा जाता है, जो इसके अन्य- अन्य नाम हैं उससे यह सिद्ध होता है कि यह त्योहार रक्षा करने, पुण्य करने और विषय-विकारों की आदत को तोड़ने की प्रेरणा देने वाला त्योहार है।

       सचमुच भारत-भूमि की मर्यादायें और यहाँ की रस्में एक बहुत ही गहरे दर्शन को स्वयं में छिपाये हुए है। यह स्वयं में एक जागृति का प्रतीक है और एक महान संस्कृति का द्योतक है

        यह वृतांत विश्व ज्ञात है कि शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में जहां हर धर्म के प्रतिनिधि श्रोताओं को ‘प्रिय भाइयों’ कहकर संबोधित कर रहे थे, तब भारतीय संस्कृति और परम्परा के प्रतिनिधि स्वामी विवेककानंद ने सम्बोधन में कहा था- ‘प्रिय भाइयों और बहनों’ तब वहाँ का हाल (Hall) तालियों से गूंज उठा था और चहुं ओर से आवाज़ आई “वाह! वाह!” 

      क्योंकि निश्चय ही बहन और भाई के सम्बन्ध में जो स्नेह है, वह एक अपनी ही प्रकार का निर्मल स्नेह है जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं। इसमें एक विशेष प्रकार की आत्मीयता का भाव है, निकटता है और एक दूसरे के प्रति हित की भावना है।

        “प्रिय बहनों और भाइयों”- इन शब्दों में वहाँ के विश्व धर्म सम्मेलन के श्रोताओं ने सब प्रकार के झगड़ों का हल निहित महसूस किया था। इन शब्दों ने ही भारतीय संस्कृति के झंडे को सबके समक्ष बुलंद किया था। परंतु स्नेह-सिक्त शब्दों में, जिनमें बड़े-बड़े दार्शनिकों ने गूढ़ दर्शनिकता पायी थी और धार्मिक नेताओं ने धर्म का सार पाया था। 

       बहन और भाई के निर्मल स्नेह का स्वरूप था, जो इस त्योहार का मूल था, वे अपने अनादि स्थान भारत से प्रायः लुप्त होते जा रहे हैं। अतः आज के संदर्भ में राखी की पुरानी रस्म की बजाय एक नए दृष्टिकोण से इस त्योहार को मनाने की ज़रूरत है। 

      दूसरे शब्दों में कहें, अर्थ-बोध के बिना राखी मनाने की बजाय अब राखी के मर्म को समझकर इसे मानते हुए, वातावरण को बदलने की आवश्यकता है। तभी इसकी सार्थकता सिद्ध होगी।

रक्षा बंधन पार्ट -१

राखी मज़बूत करती है मर्यादाओं की डोर
(Part:~1)

        रक्षाबंधन का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। चिरातीत काल से ही बहनें भाई की कलाई पर श्रावणी पूर्णिमा को राखी बांधती चली आ रही हैं। 

        भारत का यह त्योहार विश्व भर में अपनी प्रकार का एक अनूठा ही त्योहार है। भाई को स्नेह के सूत्र में बांधने वाली यह एक बहुत ही मर्मस्पर्शी और भावभीनी भस्म है। यह त्योहार बहन और भाई के पारस्परिक स्नेह और सम्बन्ध के रूप में मनाया जाता है। 

        इस दिन बहनें भाई को राखी बांधती है और उनका मुख मीठा कराती है। कैसी है भारत की यह अद्भुत परम्परा कि भाई अपने हृदय में अपनी बहन के प्रति स्नेह-समुद्र को बटोरे हुए सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लेता है। 

        4-10 मिनट की इस रस्म में भारतीय संस्कृति की वह झलक देखने को मिलती है कि किस प्रकार यहाँ बहन और भाई में एक मासूम उम्र से लेकर जीवन के अंत तक एक-दूसरे से प्यार का यह सम्बन्ध अटूट बना रहता है। यह धागा तो एक दिन टूट भी जाता है, परंतु मन को मिलाने वाला स्नेह के सूक्ष्म सूत्र नहीं टूटते। 

        यदि वह तार किसी पारिवारिक तूफान के झटके से टूट भी जाता है, तो फिर अगली राखी पर फिर से नया सूत्र उस स्नेह में एक नयी ज़िंदगी और एक नयी तरंग भर देता है। इस प्रकार यह स्नेह की धारा जीवन के अंत तक ऐसे ही बहती रहती है जैसे कि गंगा, अपने उद्गम स्थल से लेकर सागर के संगम तक कहीं तीव्र और कहीं मधुर गति से प्रवाहित होती रहती है। 

       रक्षाबंधन को केवल कायिक अथवा आर्थिक रक्षा का प्रतीक मानना इस त्योहार के महत्व को कम कर देने के बराबर है। 

        भारत एक मुख्यतः एक आध्यात्मिक प्रधान देश है। यहाँ मनाए जाने वाला हर त्योहार आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को लिए हुए है। 

       यदि उसी परिपेक्ष्य में देखा जाए तो रक्षाबंधन का भी आध्यात्मिक महत्व है। भारत में सूत्र सदा किसी आध्यात्मिक भाव को लेकर ही बाँधे जाते हैं। 

        दूसरों शब्दों में कहें, सूत्र बांधने की रस्म शुद्ध धार्मिक है और हर धार्मिक कार्य को शुरू करने के समय कुछ व्रतों अथवा नियमों को ग्रहण करने के लिए यह रस्म अदा की जाती है। जब भी किसी व्यक्ति से कोई संकल्प कराया जाता है तो उसे सूत्र बांधा जाता है और तिलक भी दिया जाता है। 

        सूत्र बांधना और संकल्प करना तथा तिलक देना - इन तीनों का सहचर्य आध्यात्मिक संकल्प का ही प्रतीक है क्योंकि यह रस्म सदा किसी धार्मिक अथवा पवित्र व्यक्ति द्वारा ही कराई जाती है और सूत्र बँधवाने वाला व्यक्ति संकल्प करने वाले को दक्षिणा भी देता है- इसी का रूपांतर यह ‘रक्षा बंधन’ त्योहार है। यह त्योहर एक धार्मिक त्योहार है और यह इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के संकल्प का सूचक है, अर्थात भाई और बहन के नाते में जो मन, वचन कर्म की पवित्रता समाई हुई है, यह उसका बोधक है। 

        पुनश्च, यह ऐसे समय की याद दिलाता है, जब परमपिता परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा कन्याओं-माताओं को ब्राह्मण पद पर आसीन किया, उन्हें ज्ञान का कलश दिया और उन द्वारा भाई-बहन के सम्बन्ध की पवित्रता की स्थापना का कार्य किया जिसके फलस्वरूप सतयुगी पवित्र सृष्टि की स्थापना हुई। उसी पुनीत कार्य की आज पुनरावृति हो रही है।

Saturday, August 1, 2020

आंतरिक बल- आज्ञा चक्र- मन की गति

आन्तरिक बल 
आज्ञा चक्र
मन की गति 

      सारा संसार एक निश्चित गति से चल रहा है ।

       धरती 29 कीलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से चल रही है ।

       सौर मंडल के सभी ग्रह तथा  उपग्रह अपनी अपनी निछचित  गति के अनुसार  अपनी धुरी पर घूम रहे हैं । 

      ऐसे ही सूर्य एवम आकाश  गंगा भी  एक निर्धारित गति से चल  रही है ।

        पांचो  तत्व भी  हर समय चलते  रहते हैं । इनकी भी अलग अलग गति हैं । 

       कोई भी  ठोस वस्तु के सूक्ष्म अणु एलेक्ट्रोंन, न्युट्रान और प्रोटोन एक निर्धारित गति से घूमते रहते हैं ।

       सूक्ष्म शक्तियां,  विद्युत तथा  चुम्बकीय शक्ति,  रेडियो तरंगे, लेज़र तरंगे और अनेकों बलशाली सूक्षम  और स्थूल गैसे    भिन्न  भिन्न  गति से हर समय चलती रहती हैं ।

       आज तक जितनी भी  खोजे  हुई हैं उन के अनुसार प्रकाश की गति सब से तेज   है । प्रकाश  तीन लाख 
  किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से चलता  है ।

      यह माना गया है कि  मन भी  उसी तत्व से बना है जिस तत्व से सूर्य बना हुआ है । इस हिसाब से  मन की गति भी तीन लाख  किलोमीटर प्रति सेकेंड होनी चाहिये । 

        सूर्य से प्रकाश को धरती पर पहुचने मे आठ मिनिट लगते है । परंतु वास्तव मे मन   द्वारा  हम  एक सेकेंड से  कम समय मे सूर्य को देख लेते हैं । इस से भी  अधिक मन एक सेकेंड से कम समय में  ब्रह्मांड में  कहीं भी  आ जा  सकता है । यह सिध्द  करता है की मन की गति प्रकाश की  गति से भी  बहुत तेज  है ।  

        वास्तव मे इस ब्रह्मांड मे एक सबसे सूक्ष्म  तत्व है जिसे ईथर कहते हैं । यह तत्व सभी ग्रहों, आकाश  गंगा, ब्लैक होल, सूक्ष्म लोक और परमधाम  जहां परमात्मा  रहते हैं, वहां   तक व्यापक है । यह तत्व संकल्पों का सुचालक है ।

         हमारा मन अर्थात जहां  हमे विचार  उठते है वहां  पर ईथर तत्व है । हम जो भी  संकल्प करते है वह ईथर मे ही करते है, जिस कारण हमारे विचार  ईथर के द्वारा सारे ब्रह्मांड मे सोचते ही  फैल  जाते  है । यही कारण है कि  सोचते ही हम कहीं भी  पहुंच  जाते है ।

       मन की गति  कितनी है यह जानना बहुत ज़रूरी है । यह जानने से अनजाने में मन द्वारा किये जा रहे  नुकसानों से बच सकेंगे तथा  मन द्वारा  सहज ही विश्व का कल्याण कर पायेंगे ।  आगे चर्चा  करेगें ।

Friday, July 24, 2020

जन्म से पहले का व्यवहार और कला से संसार परिवर्तन

आंतरिक बल 702

व्यवहार कला से संसार परिवर्तन 

जन्म से पहले व्यवहार का प्रभाव 

      अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए सीखी थी । 

       खान-पान, स्वाद, आवाज़, ज़बान जैसी चीज़ें सीखने की बुनियाद हमारे अंदर तभी पड़ गई थीं, जब हम मां के पेट में पल रहे थे । 

      इसलिए माताओं को  नसीहतें मिलती हैं कि ज़्यादा मसालेदार चीज़ें न खाओ,  ये न खाओ, वो न पियो,  ऐसा न करो, वैसा न करो वरना अजन्मे  बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा । 

      माता   जो कुछ भी खाती-पीती हैं, उसकी आदत उसके  अजन्मे  बच्चे  को भी पड़ जाती है । 

       गर्भ के दौरान लहसुन खाती है तो  उस के  बच्चे  को भी लहसुन ख़ूब पसंद आएगा । 

       जो महिलाएं  गाजर ख़ूब खाती थीं तो उनके बच्चों को भी पैदाइश के बाद अगर गाजर मिला बेबी फूड दिया गया, तो वो स्वाद ज़्यादा पसंद आया,  मतलब ये कि गाजर के स्वाद का चस्का उन्हें मां के पेट से ही लग गया था । 

        पैदा होने के फौरन बाद बच्चे मां का दूध इसीलिए आसानी से पीने लगते हैं क्योंकि उसके स्वाद से वो गर्भ में रूबरू हो चुके होते हैं । 

       मां  बच्चों की परवरिश करती है,  उनकी रखवाली करती हैं, इसलिए बच्चों को उससे ज़्यादा अच्छी बातें कौन सिखा सकता है? खाने के मामले में ख़ास तौर से ये कहा जा सकता है,  दुनिया में आने पर कोई नुक़सानदेह चीज़ न अंदर चली जाए, इसीलिए क़ुदरत बच्चों को मां के पेट में ही सिखा देती है कि क्या चीज़ें उसके लिए सही होंगी । 

       गर्भ में  बच्चे उन आवाज़ों को ज़्यादा तवज्जो देते हैं जिनमें शब्द होते हैं,  जैसे कि दो लोगों की बातचीत, या गीत,  मां-बाप की आवाज़ को तो बच्चे सबसे ज़्यादा पहचानते हैं,  इसी से उनकी ज़बान सीखने की बुनियाद पड़ती है,  जो ज़बान मां-बाप बोलते हैं, उसे सीखना बच्चे के लिए सबसे ज़रूरी है ।  आख़िर पहला संवाद अपने मां-बाप से ही तो करते हैं । 

       अगर मांएं ख़ास तरह का संगीत सुनती हैं, तो पैदा होने पर बच्चे भी उस आवाज़ को आसानी से पहचान लेते हैं । 

      गर्भवती महिला के आस-पास के  माहौल का  सीधा असर बच्चे पर पड़ता है । इस बारे में सावधानी बरतना तो ठीक है ।  लेकिन, गर्भ में पल रहे बच्चों को ख़ास तरह की आवाज़ या संगीत का आदि बनाना ठीक नहीं । 

        बच्चे पैदा होने से पहले ही स्वाद, ख़ुशबू और कुछ ख़ास आवाज़ों को पहचानना सीख जाते हैं ।

       जब बच्चा गर्भ में होता है तो वह मां  के प्रत्येक संकल्प और बोल को सुनता है । 

      मां के साथ जो व्यवहार किया जाता है ।  उसका असर भी उस पर पड़ता है । 

      अगर मां को घर के लोग डराते  धमकाते  हैं और वह हर समय डरती रहती है तो जन्म के बाद बच्चा भी डरपोक बनेगा ।

        अगर मां निराशाजनक परिस्थिति में रहती है तो  बच्चा निराशावादी बनेगा । 

      अगर माता धर्मिक व सात्विक पुस्तके पढ़ती है तो बच्चा  गुणवान बनेगा । 

      अगर आसपास के लोग माता से प्रेम का व्यवहार करते है तो जन्म के बाद बच्चा स्नेही बनेगा । 

       अगर हम श्रेष्ठ संसार बनाना चाहते है तो हमें माताओं के साथ श्रेष्ट व्यवहार करना है ।  क्योकि आप का व्यवहार उनके पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है । 

       अगर योगी लोग भगवान के बिंदु रूप या  इष्ट को सामने देखते हुए हर रोज जन्म लेने वाले बच्चों के लिए एक संकल्प करें क़ि  भगवान आप प्यार के सागर है और आप का असीम बल अजन्मे  बच्चों को प्राप्त हो रहा है ।  आप का यह  संकल्प सब  बच्चों को पहुचेगा । 

       जन्म के बाद बच्चे स्नेही बनेगे और इस तरह धीरे धीरे नए संसार का निर्माण हो जाएगा । 

       बच्चे और कुछ नहीँ यह भगवान की  नई प्लेनिंग है ।   भगवान की इस प्लेनिंग में विश्व के सभी परिवारो  के सहयोग की बहुत जरूरत है ।

Thursday, July 2, 2020

किस्मत का अर्थ

किस्मत अर्थात किसकी मत पर चल कर कर्म किया, ईश्वर की मत पर, पर मत पर या मन मत पर, इन तीनों में से जिसकी सुनोगे वैसे ही भाग्य का निर्माण होगा।

        इसलिए किस्मत को दुहाई देना छोड़ अपने संकल्पों पर ध्यान दो और हमारे संकल्पों का आधार हैं हम इन्द्रियों से किसको सुनते, देखते हैं किसकी बात को मन पर लेते हैं और अपनी  सोच का आधार बनाते हैं, भगवान की बात,लोगों की बात या अपनी मन मर्ज़ी, जिस की बात को अपनी सोच का आधार बनाएँगे वैसा ही भाग्य निर्माण होगा।

         अर्थात जिसकी मत अपनाओगे वैसी ही किस्मत बनेगी, फैसला आपको करना है, फिर भगवान या person व परिस्थिती को दोष नहीं देना क्योंकि आपकी किस्मत आप खुद बनाते हो अपने संकल्पों द्वारा और अपने संकल्पों का आधार भी आप स्वयं ही निर्धारित करते हो!

         हर अच्छी बात को सुनना, सुनाना व फैलाना पुण्य कर्म में जमा होता है पर अच्छी बात वो जो भगवान की मत पर आधारित है अपने मन की मत पर नहीं, इसलिए यदि आप ईश्वर मुख से उच्चारित ज्ञान सुनते हो, सुनाते हो और फैलाते हो तो आप पुण्य कमा रहे हो क्योंकि इस से समाज में एक नई विचारधारा का प्रवाह होता है।

         एक ऐसी विचारधारा जो शरीर से जुड़ी किसी भी चीज़ पर आधारित नहीं है बल्कि आत्मा और परमात्मा के सत्य ज्ञान पर आधारित है इस विचारधारा से ही समाज से हर प्रकार की असमानता को मिटा कर कर्म सिद्धांत प्रधान समाज की रचना करने में सक्षम है यहां बाहरी पद प्रतिष्ठा तो अलग-अलग है भले पर आन्तरिक असमानता नहीं है।

        क्योंकि सबको यह ज्ञात है कि जो भी आज उन्के जीवन में है वह उन्के ही कर्मों अनुसार है अतः सभी केवल अपने कर्म पर ध्यान देते हैं और सबके लिए मन में प्रेम, सहयोग व सहानुभूति होती है कोई भी मन अशांत नहीं है ऐसे ही समाज की रचना करना ही धरा पर स्वर्ग को लाना है यह तभी सम्भव है जब हम सच्चा आत्म व परमात्म ज्ञान को जन जन तक पहुंचायें।

       भगवान न हमें क्षमा करता है और न ही सज़ा देता है क्योंकि वह हमारे कर्मों में कभी भी हस्तक्षेप करता ही नहीं  उसका तो काम है केवल ज्ञान और शक्ति देना! इसलिए डरना है यो केवल अपने कर्मों से डरो और भगवान से जी भर प्यार करो ताकि आपकी सोच, बोल और कर्म दिव्य बन सकें।

दूसरों की सराहना नहीं कर सकते तो आलोचना भी न करें

*“दूसरों की सराहना नहीं कर सकते तो अलोचना तो कभी न करें”*

       देखिये हम सब आत्माएं हैं, हमारा पहला कर्म है हमारे संकल्प! यदि हमारे संकल्प शुद्ध नहीं तो हमारा जीवन सुखदाई कभी नहीं हो सकता! 

        क्योंकि हम जो संकल्प करते हैं वह हमारे साथ ही हमारे सूक्ष्म शरीर में energy के रूप में रहता है और सबसे पहले हमें अनुभव होता है फिर उस संकल्प की उर्जा सामने वाली आत्मा तक पहुंचती है इसलिए जो गलत सोच रहा है वह उस नकारात्मक संकल्प की उर्जा से सबसे पहले प्रभावित हो रहा है।

        आपने देखा होगा कि एक company के head को अधिक बीमारियां लगती हैं जबकि workers को इतनी बीमारियां नहीं लगती क्यों, क्योंकि एक head officer अपने जितने workers को डांटेगा, उतनी ही बार वह उस negative thought से प्रभावित होगा जबकि हर worker एक एक बार और उसमें से भी जिसको उसकी बात को दिल पर लेने की आदत नहीं है तो वो तो बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होगा, इसलिए कभी भीगलत संकल्पों की रचना न करें न अपने लिए और न दूसरों के लिए ! कलयुग में हर किसी को अलोचना की आदत है ! 

        सराहना करना नहीं आता क्योंकि इससे आगे वाला सिर पर चढ़ जाएगा, फिर से अच्छा काम नहीं करेगा, हमसे डरेगा नहीं, हमारी इज्जत नहीं करेगा, या हमें उसके अच्छे काम से इर्ष्या है आदि आदि कारणों से हम किसी के अच्छे काम की  सराहना करना ही भूल गये हैं क्योंकि हम body conscious हैं हम यह जानते ही नहीं कि हम सब आत्माएं हैं हम सब एक दूसरे के साथ संकल्पों से जुड़ी हैं, समय वह चल रहा है जब दूसरे के गलत काम को भी आप गलत न कह कर प्रेम व सहानुभूति की अच्छी vibrations दे कर उसे उपर उठाना है ताकि वह आत्मा दिलशिकस्त न हो! 

        पर अब भी कई लोग अपने विकारों के कारण दूसरों के अच्छे काम में भी गल्तियां निकालते रहते हैं यह बहुत बड़ा विकार है जिसका सबसे पहला और हानिकारक असर खुद पर होता है। अपना मन और शरीर दोनों ही बीमार होते हैं और उस आत्मा के साथ भी हमारा हिसाब-किताब बनता है जो इस जन्म में चुक्तू नहीं हुआ तो अगले जन्म में चुक्तू करना पड़ेगा इसलिए जितना हो सके अपने संकल्पों को शुद्ध बनाएं खुद के लिए भी और औरों के लिए भी इस से आपका सूक्ष्म शरीर सुन्दर और साफ़ बनेगा, स्थूल शरीर भी स्वस्थ होगा!

       सदा याद रखें मन में नकारात्मक संकल्पों की गाठों से ही स्थूल शरीर में गांठें पड़ती हैं जो बिमारी का कारण बनती हैं।

Friday, June 19, 2020

मूल आधार चक्र

आंतरिक बल 
मूल आधार  चक्र -3
         मूल आधार  चक्र धरती से जुड़ा हुआ है । इस चक्र का जागरण  ही विश्व को जीतना है  । इस चक्र का जागरण ही कुंडलनी जागरण है ।

          इस चक्र को जीतने के लिये ब्रह्मचर्य पहली शर्त  है । मन में भी  अपवित्र संकल्प न उठे जिसके लिये बहुत अटेन्शन की जरूरत है वह यह  कि  विपरीत लिंग के लोग   सिर्फ और सिर्फ हमारे भाई  है या बहिनें है केवल यह याद रखे और कर्म में लाये ।

        मान, शान  और  शोहरत पाने   की  भावना  दूसरी बडी   चुनौती   है । ये ऐसी बाधा है जैसे धरती  से ऊपर उड़ना  है । बिना हवाई जहाज या राकेट के आप   उड़  नहीं     सकते है ।

           ऐसे ही इस चक्र को  जागृत करने के  लिये नियमों  को समझना  होगा । जैसे हवाई   जहाज या राकेट के नियम  को जानते है ।

         पवित्रता के संकल्प ही बल है, पवित्रता के संकल्प ही उर्जा है, पवित्रता के  संकल्प ही ईंधन है ।

         हवाई जहाज या राकेट को उड़ाने के  लिये शुध्द ईंधन की जरूरत होती है ।

-          मूल आधार  चक्र को जागृत करने या उडाने के लिये  पवित्र  संकल्प रूपी ईंधन की  जरूरत होती है  । 

         आंधी  , तूफान, सर्दी,  गर्मी , हवा वा तापमान  सभी यान पर प्रभाव  डालते है  । परंतु शुध्द इंधन  से बल उत्पन्न होता रहता है जिस से यान  सब बाधाओ को पार कर जाता  है ।

         ऐसे ही  दुख , विरोध, पांच  विकार तथा सांसारिक व पारिवारिक परेशानिया  मूल चक्र को जागृत नहीं होने देती क्योंकि ये अपवित्रता है ।

         परंतु शांति, प्रेम, सुख व  आनंद  के संकल्प विपरीत हालात  होने पर भी अगर   हम मन में दोहराते रहें तो मन में बल  उत्पन्न होता रहेगा क्योंकि ये पवित्रता है  जिस से  मूल अधार चक्र  जागृत हो जायेगा  ।

         हम जो संकल्प करते है वही घूम कर वापिस आते है और हमारे लिये परिस्थिति का निर्माण करते हैं । हमारी सोच अनुसार व्यक्ति आते जायेगे और परिस्थिति  बनती   जायेगी और हम सफल होते जाएंगे । जितना पवित्रता   के संकल्पों  में रहेंगे उतना ही शक्तिशाली हालात बनेंगे और यह चक्र जागृत होता जायेगा ।

         मूल आधार चक्र  को  जागृत करने की  मेहनत  नहीं करो लेकिन पवित्रता के संकल्प कि  मै स्नेही  हूं और परमात्मा आप प्यार के सागर है ऐसे संकल्पों  को मन में रखो । इसे ही दृढ़ता से सिमरन करो  । संसार  की हर वस्तु व व्यक्ति को प्यार दो, तब आप को पता  ही नहीं चलेगा कि कब  यह चक्र जागृत हो गया  ।

Friday, June 12, 2020

सहस्रार -3

आंतरिक बल 
सहस्त्रार -3

सूर्य से सारे सौर मंडल को ऊर्जा मिलती है ।

         मिलों व  कारखानों में मोटर चलती है, परंतु मोटर को चलाने के लिये बिजली कहीं और से मिलती है ।

          मस्तिष्क रूपी कारखाने को बिजली  सहस्त्रार से मिलती है । इस चक्र में प्रकाश की  उछल कूद अगर बंद हो जाये  तो व्यक्ति की मृत्यु  हो जाती है ।

सहस्त्रार  में उठे संकल्प व्यक्ति का जीवन निर्धारित करते है ।

         पहाड़ो  से पानी की धारायें जब  छूटती  है तो वह पास पास होती है परंतु नीचे गिर कर नाले  नदी के रुप में बहते  हैं तब  नदी और नालो  की  आपस की दूरी बढ़ती जाती है ।

         स्टेशन पर रेल गाडियां साथ साथ खड़ी रहती है,  परंतु जब लीवर बदलने से वह अलग अलग लाइनों पर चलती है तो उन लाइनों की दूरी बढ़ती जाती है और गाडियां अलग अलग  जगह पहुंच जाती है ।

         सहस्त्रार  में अच्छे  व  बुरे संकल्प एक जगह उठते है परंतु व्यक्ति को अलग अलग परिणामों तक पहुँचा देते है ।

सहस्त्रार को दसवां  द्वार भी  कहते हैं।

         दो नथुने, दो  आंखे, दो कान, एक मुख और दो मल मूत्र  के स्थान ये 9 द्वार कहे जा सकते  है ।

        योगी जन इसी सहस्त्रार, दसवे  द्वार से प्राण  त्यागते  है ।

          गर्भ में बच्चे में आत्मा  इसी केन्द्र से प्रवेश करती है ।

       इसी केन्द्र की सीध में मस्तिष्क के रुप से ऊपर रहस्यमय  कही  जाने वाली मुख्य ग्रंथी पीनीयल   ग्लेंड  है । जिस में आत्मा का निवास है ।

         जब हम भगवान  को याद करते है तो इसी केन्द्र से शक्ति खींचते है ।

        जैसे वृक्ष अपनी चुम्बकीय शक्ति से वर्षा  खींचते है ।

Thursday, June 11, 2020

सहस्त्रार चक्र -4


सहस्त्रार  चक्र 

           धातुओ  की खदानें  अपने  चुम्बकतव से अपनी जातीय धातु कणों को अपनी ओर खींचती  और जमा करती है ।

          मन में जो संकल्प उठते है उसी अनुसार सहस्त्रार  चक्र उसी स्तर का वैभव आकाश से खींचता है । वैसा ही अनुभव वा फल मिलने लगता है ।

        इसलिये चाहे कितनी विपरीत परिस्थिति हो मन सदा सकारात्मक चीजो पर लगाये रखो ।

        सहस्त्रार को क्षीर सागर, शेष  शया वा मानसरोवर भी  कहते है ।

        खोपडी के मध्य भरा  हुआ  वाइट  और ग्रे  मैटर ही क्षीर सागर है ।

        पूरे शरीर में दौड़ने वाली विद्युत का नियंत्रण करने वाला यही सह्स्त्रांर  केन्द्र है ।

          इस केन्द्र को जितना ज्यादा जागृत करेगें  उतना ज्यादा ईश्वरीय शक्तियां  प्राप्त करेगें ।


        इस केन्द्र को जागृत करने के लिये मन में शांति, प्रेम आनंद, दया  के संकल्प दोहराते और महसूस करते रहो ।

शरीर की समस्त गति विधियों का यह मूल स्थान है ।

         मनुष्य हर समय एक विद्युत दबाव  से प्रति क्षण  प्रभावित होता रहता है ।

          पृथ्वी की  सतह से ले कर वायुमंडल के आयनो सफ़ीयेर के मध्य लगभग तीन लाख  बोल्ट की शक्ति की कुदरती विद्युत हर समय वातावरण में बहती रहती है ।

         हमारे दिमाग में जो विद्युत बहती रहती है वह कुदरती विद्युत जो हमारे आसपास बह रही है उस से मेल खाती  है ।

         हमारा मस्तिष्क इस कुदरती विद्युत को हर समय जरूरत अनुसार लेता रहता है । जिस से हमारा शरीर अपने कार्य करता है । ये विद्युत लेने का कार्य सहस्त्रार  केन्द्र ही करता  है ।
 
           एरियल या ऐनटीना  ट्रांसमीटर द्वारा भेजे  गये शब्द किरणो को पकड़ते है । ये इतने शक्तिशाली होते है कि बहुत दूर  से  आने वाली तरंगों को भी  पकड़ करने उन्हे ध्वनि में बदल देते है ।

         इसी तरह कोई व्यक्ति, चाहे विश्व में कही भी  रहता  हो, हमारे बारे जब कभी अच्छा  व  बुरा  सोचते है, हमें उसी समय प्राप्त  हो  जाते है । यह काम  सहस्त्रार  केन्द्र   करता है ।


 

Tuesday, June 9, 2020

ORAC के बारे में जानें


          ORAC का अर्थ  ऑक्सीजन रेडिकल एब्सॉरबेन्ट केपेसिटी  (Oxygen Radical Absorbance Capacity.) 
          जितना अधिक ORAC, होगा उतनी ही ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता हमारे  फेफड़ो  को और  रक्त को होगी।
          भविष्य में हमें हमारे अस्तित्व, जीवन बचाने के लिए हमे हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति(Immunity) को बढ़ानी होगी। 
           हमारे जीवन में मसालों और जड़ीबूटियों का रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत महत्व है। मसाले और जड़ीबूटियों का अमूल्य धरोहर प्रकृति से हमे मिला है।  
          आइए कुछ जड़ीबूटियों और मसालों के ORAC क्षमता (values) पर नजर डाले :
     1. लौंग Clove :
           314,446 ORAC 
    2. दालचीनी Cinnamon :
           267,537 ORAC 
     3. कॉफी Coffee. :
           243000  ORAC
     4. हल्दी Turmeric :
           102,700 ORAC 
     5. कोका Cocoa :
           80,933    ORAC 
     6. जीरा Cumin : 
          76,800  ORAC 
     7. अजवाइन Parsley :
           74,349 ORAC 
     8. तुलसी Tulsi : 
          67,553 ORAC 
     9. अजवायन के फूल Thyme : 
           27,426ORAC
     10. अदरक Ginger :
           28,811 ORAC 

          अदरक, तुलसी, हल्दी आदि के *सत्व(रस)* की ORAC की क्षमता दस गुणी ज्यादा होती है। इसलिए इनका प्रयोग करना चाहिए।
          खून में ऑक्सीजन ग्रहण की क्षमता को (OXYGEN CARRYING CAPACITY OF THE BLOOD)  प्रकृति  में मिलने वाले विभिन्न फलों, 
हरी शाकसब्ब्जी,  पत्तेदार सब्जियों, मसालों, वनस्पतियों, जड़ीबूटियों आदि से भरपूर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है।
        उत्तम क्षमता वाले ORAC खाद्यपदार्थ (आहार) और पोषक तत्व (Nutrients) जैसे कि  *Iron, Vitamin C, Zinc, Omega 3, Magnesium and Vitamin D* आदि शारिरिक क्षमता और सुरक्षा कवच को सुदृढ़ तथा मजबूत करते हैं। 
           तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, हल्दी, दालचीनी, लोंग के अतिरिक्त जड़ीबूटी जैसे *ब्राह्मी, अश्वगंधा, सतावरी, मुलेठी, अर्जुनारिष्ट, पीपर, धनिया, काला जीरा, इलाइची* आदि वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। 
          अतः यह किसी भी वेक्सीन या टीके से बहुत ज्यादा प्रभावशाली है वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट्स के।
         130 करोड़ आबादी वाले देश में सबका टेस्ट करना असंभव है। प्रति दिन यदि दस लाख टेस्ट करे तो भी 35 वर्ष लग जाएगें।
          उपरोक्त सभी बातों का निष्कर्ष निकलता है कि हमारे शरीर में इम्युनिटी उतनी ही आवश्यक है जितनी जरूरत कंप्यूटर में इंटेल (Intel) की है।

Saturday, June 6, 2020

कुछ अपने दिल की बात

कुछ अपने दिल की --

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
हम सीख न पाये 'फरेब',
और दिल बच्चा ही रह गया।।

बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे,जहां चाहा रो लेते थे,
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई।।

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से,
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में,
चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं,
तुम हमें ढुंढो,
हम तुम्हे ढुंढते हैं।।


समझ ज्ञान से ज्यादा गहरी होती है,बहुत से लोग आपको जानते हैं,
परंतु कुछ ही आपको समझते है|

हमें अक्सर महसूस होता है कि दूसरों का जीवन अच्छा है लेकिन,,,,,
हम ये भूल जाते है कि उनके लिए हम भी दूसरे ही है,,

मुस्कराना जिन्दगी का वो खुबसूरत लम्हा है,,,, 
जिसका अंदाज सब रिश्तों से अलबेला है..
जिसे मिल जाये वो तन्हाई में भी खुश,,,,,
और जिसे ना मिले वो भीड़ में भी अकेला है..

अगर आपको वह "फसल" पसन्द नहीं है,*
जो आप काट रहे हैं,,
तो बेहतर होगा उन "बीजों" की जांच करें,,,,
जो आप बो रहे हैं,,,,,,

जीवन की सफलता का
पहला राज की सबसे पहले ख़ुद पर यक़ीन करना सीखो,,,,,

सद्गुणों की शुरूआत स्वयं से ही करनी पड़ती है,,,,
क्योंकि जब तक आपकी अँगुली पर कुमकुम नहीं लगेगी तब तक सामने वाले के ललाट पर तिलक नहीं लग पायेगा,,,,

हमारी परम्पराएं और विज्ञान


       सनातन धर्म की बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जिसे हम जानते और पालन तो करते तो हैं पर उसके तार्किक महत्व को नहीं जानते।

आइए जानते हैं, अपने दैनिक जीवन के शिस्टाचार में आने वाले इन पहलुओं को।

        हिन्दू परम्पराओं के पीछे छिपे 20 वैज्ञानिक तर्क ताकि अगर भविष्य में कोई आपसे यह पूछे कि महिलाएं बिछिया क्यों पहनती हैं, तो आप उसका सही तर्क दे सकें।

हिंदू परम्पराओं के पीछे का विज्ञान:-

1. हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

2. पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

3. माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

4. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

5. कान छिदवाने की परम्परा

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

6. जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

7. दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8. सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9. सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10. व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11. चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12. क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13. तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

14. मूर्ति पूजन

हिंदू धर्म में मूर्ति का पूजन किया जाता है।

वैज्ञानिक तर्क- यरि आप पूजा करते वक्त कुछ भी सामने नहीं रखेंगे तो आपका मन अलग-अलग वस्तु पर भटकेगा। यदि सामने एक मूर्ति होगी, तो आपका मन स्थ‍िर रहेगा और आप एकाग्रता ठीक ढंग से पूजन कर सकेंगे।

15. चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएं हाथों में चूड़‍ियां पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- हाथों में चूड़‍ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़‍ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

16. मंदिर क्यों जाते हैं

मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आप इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, तो आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है। मस्त‍िष्क शांत रहता है।

17. हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है।

       वैज्ञानिक तर्क- हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआं उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़े दूर भागते हैं।

18. महिलाएं क्यों पहनती हैं बिछिया

हमारे देश में शदीशुदा महिलाएं बिछिया पहनती हैं।

         वैज्ञानिक तर्क- पैर की दूसरी उंगली में चांदी का बिछिया पहना जाता है और उसकी नस का कनेक्शन बच्चेदानी से होता है। बिछिया पहनने से बच्चेदानी तक पहुंचने वाला रक्त का प्रवाह सही बना रहता है। इसे बच्चेदानी स्वस्थ्य बनी रहती है और मासिक धर्म नियमित रहता है। चांदी पृथ्वी से ऊर्जा को ग्रहण करती है और उसका संचार महिला के शरीर में करती है।

19. क्यों बजाते हैं मंदिर में घंटा

          हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाना शुभ होता है। इससे बुरी शक्त‍ियां दूर भागती हैं।

          वैज्ञानिक तर्क- घंटे की ध्वनि हमारे मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिय एकाग्रता बनती है। घंटे की आवाज़ 7 सेकेंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है। और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं। हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।

20. हाथों-पैरों में मेंहदी

        शादी-ब्याह, तीज-त्योहार पर हाथों-पैरों में मेंहद लगायी जाती है, ताकि महिलाएं सुंदर दिखें।

           वैज्ञानिक तर्क- मेंहदी एक जड़ी बूटी है, जिसके लगाने से शरीर का तनाव, सिर दर्द, बुखार, आदि नहीं आता है। शरीर ठंडा रहता है और खास कर वह नस ठंडी रहती है, जिसका कनेक्शन सीधे दिमाग से है। लिहाजा चाहे जितना काम हो, टेंशन नहीं आता।

रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व

          भारतीय संस्कृति मे रीति-रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व है.जैसे हमारे बुजुर्ग प्रातः उठकर अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमें ईश्वर का दर्शन करते हैं। धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते हैं क्योंकि जो धरती माँ धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, हमारा पालनपोषण करती है, उसी पर हम पैर रखते हैं.इसीलिए धरती पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम कर उससे माफ़ी मांगते हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऐसा प्रसंग है।

           सूर्य ग्रहण  के समय घर से बाहर  न निकलने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा हुआ है। दरअसल सूर्य ग्रहण के समय सूर्य से बहुत ही हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तरह कहा जाता है  कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता।

        हमारे वेद पुराणों में प्रकृति को माता और इसके हर रूप को देवी -देवताओं का रूप दिया गया है-हमने कुछ पेड़ों को जैसे-बरगद,पीपल को देवताओं और तुलसी, नदियों को देवी का रूप दिया है। यह कोई अन्धविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत  बड़ा तथ्य छुपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने इन्हें देवी-देवताओं का दर्जा इसलिए दिया क्योंकि कोई व्यक्ति किसी की पूजा करता है तो वह कभी भी  उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

          घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरवत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख-ध्वनि जहाँ तक जाती  है वहां तक की वायु से जीवाणु -कीटाणु सभी नष्ट हो जाते हैं .

        हमारे यहाँ चारो धाम घूमने की परंपरा है इस परंपरा के पालन करने से हमें देश के भूगोल का ज्ञान होता है ,पर्यावरण के सौंदर्य का बोध होता है और साथ में ये यात्रायें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी  लाभकारी हैं क्योंकि इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है.

        हमारे सभी रीति-रिवाज़ और त्यौहार हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं जैसे-रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाता है.करवाचौथ दाम्पत्य जीवन  में मधुरता लाता है.ऐसे ही छठ में माँ अपने बच्चे की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है.

         विदेशी लोग भारत  आकर यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परम्पराओं को देख रहे हैं और अपना रहे हैं भारतीय संस्कृति से प्रभावित विदेशी पर्यटक मन की शांति के लिए भारत आते हैं और यहाँ आने पर उन्हें एक अजीब से सुकून का अनुभव होता है।

         हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा  है माता-पिताऔर बड़ों  को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजे बढती हैं -आयु, विद्या ,यश और बल.

अभिवादन शीलस्य नित्यं बृद्ध-उपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलंII
    
         सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल  होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों  के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ  अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं.
       
       आज हम अपनी परम्पराएँ और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं और समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है ऐसे में आवश्यकता है की हम अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बनायें.

हमारी परम्पराएं और विज्ञान


       सनातन धर्म की बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जिसे हम जानते और पालन तो करते तो हैं पर उसके तार्किक महत्व को नहीं जानते।

आइए जानते हैं, अपने दैनिक जीवन के शिस्टाचार में आने वाले इन पहलुओं को।

        हिन्दू परम्पराओं के पीछे छिपे 20 वैज्ञानिक तर्क ताकि अगर भविष्य में कोई आपसे यह पूछे कि महिलाएं बिछिया क्यों पहनती हैं, तो आप उसका सही तर्क दे सकें।

हिंदू परम्पराओं के पीछे का विज्ञान:-

1. हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

2. पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

3. माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

4. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

5. कान छिदवाने की परम्परा

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

6. जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

7. दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8. सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9. सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10. व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11. चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12. क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13. तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

14. मूर्ति पूजन

हिंदू धर्म में मूर्ति का पूजन किया जाता है।

वैज्ञानिक तर्क- यरि आप पूजा करते वक्त कुछ भी सामने नहीं रखेंगे तो आपका मन अलग-अलग वस्तु पर भटकेगा। यदि सामने एक मूर्ति होगी, तो आपका मन स्थ‍िर रहेगा और आप एकाग्रता ठीक ढंग से पूजन कर सकेंगे।

15. चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएं हाथों में चूड़‍ियां पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- हाथों में चूड़‍ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़‍ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

16. मंदिर क्यों जाते हैं

मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आप इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, तो आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है। मस्त‍िष्क शांत रहता है।

17. हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है।

       वैज्ञानिक तर्क- हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआं उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़े दूर भागते हैं।

18. महिलाएं क्यों पहनती हैं बिछिया

हमारे देश में शदीशुदा महिलाएं बिछिया पहनती हैं।

         वैज्ञानिक तर्क- पैर की दूसरी उंगली में चांदी का बिछिया पहना जाता है और उसकी नस का कनेक्शन बच्चेदानी से होता है। बिछिया पहनने से बच्चेदानी तक पहुंचने वाला रक्त का प्रवाह सही बना रहता है। इसे बच्चेदानी स्वस्थ्य बनी रहती है और मासिक धर्म नियमित रहता है। चांदी पृथ्वी से ऊर्जा को ग्रहण करती है और उसका संचार महिला के शरीर में करती है।

19. क्यों बजाते हैं मंदिर में घंटा

          हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाना शुभ होता है। इससे बुरी शक्त‍ियां दूर भागती हैं।

          वैज्ञानिक तर्क- घंटे की ध्वनि हमारे मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिय एकाग्रता बनती है। घंटे की आवाज़ 7 सेकेंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है। और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं। हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।

20. हाथों-पैरों में मेंहदी

        शादी-ब्याह, तीज-त्योहार पर हाथों-पैरों में मेंहद लगायी जाती है, ताकि महिलाएं सुंदर दिखें।

           वैज्ञानिक तर्क- मेंहदी एक जड़ी बूटी है, जिसके लगाने से शरीर का तनाव, सिर दर्द, बुखार, आदि नहीं आता है। शरीर ठंडा रहता है और खास कर वह नस ठंडी रहती है, जिसका कनेक्शन सीधे दिमाग से है। लिहाजा चाहे जितना काम हो, टेंशन नहीं आता।

रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व

          भारतीय संस्कृति मे रीति-रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व है.जैसे हमारे बुजुर्ग प्रातः उठकर अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमें ईश्वर का दर्शन करते हैं। धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते हैं क्योंकि जो धरती माँ धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, हमारा पालनपोषण करती है, उसी पर हम पैर रखते हैं.इसीलिए धरती पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम कर उससे माफ़ी मांगते हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऐसा प्रसंग है।

           सूर्य ग्रहण  के समय घर से बाहर  न निकलने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा हुआ है। दरअसल सूर्य ग्रहण के समय सूर्य से बहुत ही हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तरह कहा जाता है  कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता।

        हमारे वेद पुराणों में प्रकृति को माता और इसके हर रूप को देवी -देवताओं का रूप दिया गया है-हमने कुछ पेड़ों को जैसे-बरगद,पीपल को देवताओं और तुलसी, नदियों को देवी का रूप दिया है। यह कोई अन्धविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत  बड़ा तथ्य छुपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने इन्हें देवी-देवताओं का दर्जा इसलिए दिया क्योंकि कोई व्यक्ति किसी की पूजा करता है तो वह कभी भी  उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

          घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरवत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख-ध्वनि जहाँ तक जाती  है वहां तक की वायु से जीवाणु -कीटाणु सभी नष्ट हो जाते हैं .

        हमारे यहाँ चारो धाम घूमने की परंपरा है इस परंपरा के पालन करने से हमें देश के भूगोल का ज्ञान होता है ,पर्यावरण के सौंदर्य का बोध होता है और साथ में ये यात्रायें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी  लाभकारी हैं क्योंकि इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है.

        हमारे सभी रीति-रिवाज़ और त्यौहार हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं जैसे-रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाता है.करवाचौथ दाम्पत्य जीवन  में मधुरता लाता है.ऐसे ही छठ में माँ अपने बच्चे की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है.

         विदेशी लोग भारत  आकर यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परम्पराओं को देख रहे हैं और अपना रहे हैं भारतीय संस्कृति से प्रभावित विदेशी पर्यटक मन की शांति के लिए भारत आते हैं और यहाँ आने पर उन्हें एक अजीब से सुकून का अनुभव होता है।

         हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा  है माता-पिताऔर बड़ों  को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजे बढती हैं -आयु, विद्या ,यश और बल.

अभिवादन शीलस्य नित्यं बृद्ध-उपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलंII
    
         सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल  होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों  के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ  अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं.
       
       आज हम अपनी परम्पराएँ और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं और समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है ऐसे में आवश्यकता है की हम अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बनायें.

Thursday, May 28, 2020

मन एक रेडियो स्टेशन है भाग -2


एंटी टाइम तरंगे और विश्व सेवा 

       बाबा ने कहा  है जो विश्व सेवा करेगा वह विश्व महाराजा बनेगा  और नए बच्चे भी नंबर लें सकते है ।  यह भी  इशारा दिया  है कि  मंसा  सेवा पर विशेष ध्यान देने से होगा । 

          सभी राजयोगी विश्व सेवा के कार्य में लगे हुए है परन्तु 81 साल में अभी तक 20-25 लाख लोगो को हम राजयोगी बना सके है ।  सवाल उठता है आखिर विश्व की सेवा कैसे करें कि  सभी जल्दी  जल्दी भगवान को पहचान सके । 

        हमारे दिमाग  में एक ऐसा केन्द्र है जिस से एंटी टाइम तरंगे निकलती है जो एक क्षण में कहीं भी पहुंच जाती है और तुरंत परिवर्तन आरम्भ कर देती है । इन तरंगो का प्रयोग हमें सीखना चाहिऐ । 

          अगर हम भारत के लोगो का जीवन बदलना  चाहते है तो हमें भारत के प्रधान मंत्री को तरंगे देनी चाहिऐ ।  प्रधान मंत्री  की सोच सारे भारत को प्रभावित करती है ।  प्रधान मंत्री देश के कल्याण के लिए सोचता रहता है ।  इसलिए प्रधान मंत्री की फोटॊ कल्पना में देखो और बीच में बाबा या इष्ट को देखो और बाबा को कहो आप प्यार के सागर है प्यार के सागर है शांति के सागर है शांति के सागर है ।  ये तरंगे प्रधान  मंत्री को पहुंचेगी और वह ऐसी कल्याणकारी स्कीमें  बनाएगा जिस से पूरा भारत खुशहाल बनेगा । 

         ऐसे ही  दूसरे  देशो  के प्रधान ममंत्रियो  को जिन्हे आप ने टी .वी याँ अखबार आदि में देखा है उन्हे  तरंगे दो ।  आप की इन तरंगो से वह  प्रेरित होगे और अपने देश के लिए कल्याण का सोचेंगे और विश्व बदलने लगेगा  । 

           भारत के प्रधान मंत्री को सामने देखो और मन में कहो  आप जैसे विश्व के सभी प्रधान मंत्री शांत स्वरूप है,  प्रेम स्वरूप है,  आप सभी कल्याणकारी है ।  ऐसा करते समय बाबा को भी बीच में रखना है ।  आप के यह विचार एंटी टाइम तरंगे बन कर सभी प्रधान मंत्रियो और उनसे जुड़े सभी व्यक्तियों को प्रेरित करेगे ।  इस विधि  से आप के विचार विश्व की प्रत्येक आत्मा को प्रभावित  करेगे   । 

        ये तरंगे व्हा्ट्सअप ग्रुप की तरह सब को पहुचती है ।  सभी प्रधान मंत्री एक ग्रुप  है । 

          अब भारत के राष्ट्रपति को सामने इमर्ज  करो और कहो  आप जैसे विश्व के सभी राष्ट्रपति शांत स्वरूप है,  प्रेम स्वरूप है कल्याणकारी है ।  क्योकि आप बाबा  को याद करते हुए ये कह  रहें हैं तो बाबा की शक्ति आप की एंटी टाइम तरंगो में प्रवेश कर जाती हैं और पूरे विश्व की आत्माओ को प्रेरित करती हैं तथा राष्ट्रपति कल्याणकारी कानून  बनाते हैं और कल्याणकारी स्कीम पास करते हैं । 

         अपने राज्य का कल्याण करने लिए अपने राज्य के मुख्यमंत्री को तरंगे दे ।  मुख्य मंत्री अपने राज्य को प्रभावित करेगा । 

       अपने जिले का कल्याण करने के लिए अपने जिले के डिप्टी कमीशनर को तरंगे दो ।  आप अपने क्षेत्र में जो करवाना चाहते हैं तो  डी . सी  को कल्पना  में कहे ।  आप के विचार उस तक पहुंचेगे और वह सही  कार्य करेगा । 

           शिक्षा का स्तर सुधारने के  लिए  अपने क्षेत्र के शिक्षा मंत्री और विश्व   विद्यालयो  के वाइस चांसलरस को तरंगे दो ।  आप के विचार उन्हे शिक्षा में सुधार  के लिए प्रेरित करेगे । 

         कानून व्यवस्था को सुधारने लिए राज्य के पोलीस डायरेक्टर और  ग्रहमंत्री को बाबा  के  सामने रखते हुए तरंगे दो ।  आप के विचार उन्हे प्रेरित करेगे और कानून का पालन करेगे । 

       दुनिया में कोई भी सुधार आप चाहते हैं,  उस काम के लिए कौन जिम्मेवार हैं उन्हे तरंगे देते रहो ।  आप के मनचाहे  कार्य होने लगेगे । 

हिमालय में बैठे योगी आज भी अपने योग बल से विश्व को प्रेरित कर रहें हैं । 

ऐसे ही आप भी विश्व में किसी ना किसी को प्रेरित करते रहो जी । 

आप जितने लोगो को प्रेरित करते हैं उतने क्षेत्र के राजा बनेगे । 

यह संसार मेल और फीमेल  से बना हैं । 

         बाबा को सामने  देखतें हुए कहें विश्व की सभी बहिनें आप  शांत स्वरूप हैं प्रेम स्वरूप हैं  । आप का यह संकल्प विश्व की सभी बहिनो को पहुंचेगी । 

         बाबा को याद करते हुए कहें विश्व  के सभी  भाई   आप शांत स्वरूप हैं,  प्रेम स्वरूप हैं और विश्व के भाइयो की लंबी लाइन अपने सामने देखे ।  आप का संकल्प विश्व कि हरेक आत्मा को पहुंच रहा हैं । 

         उपरोक्त दो विधियां  सर्व श्रेष्ट हैं ।  इस से आप का प्रत्येक संकल्प विश्व की प्रत्येक आत्मा को माइंड की एंटी टाइम तरंगो के  कारण से  मिलता   रहेगा   । इन तरंगो पर खोज की जरूरत हैं ।  परन्तु यह सचमुच में पहुचती हैं ।  आप को संशय में नहीँ  होना की ऐसे कैसे होता हैं ।  इस विधि से आप मनसा सेवा करो देखना एक दिन में ही बहुत अच्छा लगेगा ।  आप के ये संकल्प बहुत गहरे तल पर काम करते हैं ।  उन लोगो को शब्द तो समझा नहीँ आएंगे परन्तु उन्हे अच्छा अच्छा लगेगा,  खुशी होगी,  कल्याणकारी विचार उठने लगेगे ।

Friday, May 22, 2020

मन एक रेडियो स्टेशन है भाग -1

आंतरिक बल 

मन एक रेडियो स्टेशन हैं 

एंटी टाइम तरंगे और विश्व सेवा 

जो लोग हमारे आसपास रहते हैं उन्हे कोई बात कहनी हो या संदेश देना हो तो हम मुह से धीरे धीरे  शब्द बोलते हैं 1

व्यक्ति थोड़ा सा दूर हो तो हम जोर से बोलते हैं । 

ज्यादा  लोगो को कोई 'बात कहनी   हो तो हम लाउड  .स्पीकर का प्रयोग करते हैं । 

दूसरे शहर या दूसरे  देश में संदेश भेजना  हो तो हम मोबाइल,  वायरलेस,  इंटेरनेट या रेडियो,  टी .वी .आदि प्रयोग करते हैं । 

रेडियो तरंगो से हम स्पेस में राकेट में बैठे लोगो को संदेश लेते और देते हैं । 

ऐसे ही लोगो को भगवान का परिचय हम व्यक्तिगत रूप से देते हैं ।  क्लास या पब्लिक  प्रोगाम में माइक प्रयोग करते हैं ।  

इन विधियों  से हम बहुत कम संदेश दे पा  रहें हैं । 

81 वर्ष में हम करीब 20-25 लाख  लोगो को ईश्वरीय ज्ञान समझा  पाए  । 

लगभग 800 करोड़ आत्माओ को संदेश देना और उनकी पालना  करना आसान  काम नहीँ हैं । 

जो लोग योग का अभ्यास कर रहें हैं वह भी  अपना आंतरिक बदलाव बहुत कम कर पाए हैं । 

हमारे  मन में  एंटी टाइम ट्रावेलिंग तरंगे हैं जिनके द्वारा हम घर बैठे पूरे विश्व की सेवा कर सकते हैं 

Thursday, May 21, 2020

पाँच तत्व और सांस


        प्रत्येक व्यक्ति हर  घंटे जब  सांस  लेता है तो 16 मिनिट वह   जल तत्व से जुड़ा रहता है ।

         मनुष शरीर में  80 % जल है । अतः  जल का जीवन मे बहुत महत्व है । हर मनुष्य जल पीता रहता है ताकि इस की मात्रा  शरीर मे कम न  हो जाये । ज्यों  ही जल कम होता है हमें प्यास लगती है ।

         हम सांस के द्वारा भी  जल खींचते रहते है । मानव जो जल पीता  है उस मे कोई न कोई  अशुद्धि  होती है । उस मे सूक्ष्म रोगाणु  होते है जो अभी तक मनुष्य की  पकड़ मे नहीं आयें । हमारा  सूक्ष्म मन उन कीटाणुओं को पहचानता  है ।  

          इन रोगणुओ  के इलाज के लिये मन  उस जल को सांस के द्वारा   उन जड़ी  बूटियों से खींच लेता है,  जो औषधि  का काम करती है और जल से टकराती रहती है जो  झरनों के रुप मे गिरता  रहता है चाहे वह हिमालय पर हो या कहीं और  हो । 

       एक शेर को टांग पर बहुत चोट लग गई और वह  एक गुफा मे घुस गया । 2-3 दिन बाहर नहीं निकला तो शिकारियों  ने उस गुफा मे घुस कर देखा  कि गुफा मे एक नाला बह रहा  है तथा  शेर उसके पास लेटा  हुआ है और थोड़ी थोड़ी देर बाद पानी पी लेता  है । 10-15 दिन बाद जब शेर बाहर निकला तो सम्पूर्ण स्वस्थ था । इस से लोगो को पता लगा कि पानी से रोग भी  ठीक होते है । वह पानी ऐसी जड़ी बूटियों से स्पर्श करता  हुआ बह  रहा था  जो औषधि बनाने  के काम आती  थी ।

        इसी तरह मन सांस के द्वारा  आकाश  से वाष्प तथा  समुन्दर  और नदियों से  लवण, मिनरल व  नमक आदि जो शरीर के लिये ज़रूरी होते है, खींचता  रहता है । इस तरह  प्राकृति का यह अनूठा ढंग है शरीर  को  जल प्रदान करने का ।

         मन के बुरे विचार  समुन्दर  पर प्रभाव भी  डालते है । इस समय विश्व का हरेक व्यक्ति नकारात्मक सोचता है, जिस का सामूहिक प्रभाव  समुन्दर मे उतेजना पैदा कर देता  है,  इसके परिणाम स्वरूप   समुन्दरी तूफान आते है ।

        हर घंटे मे प्रत्येक व्यक्ति 12 मिनिट तक अग्नि तत्व से जुड़ा  रहता है ।

        शरीर को गर्म  रखने के लिये उर्जा की जरूरत होती है । यह उर्जा हम सूर्य तत्व से प्राप्त करते है । हम 12 मिनिट मे ही सूर्य से एक घंटे के लिये ज़रूरी उर्जा खींच लेते है ।

        हर व्यक्ति 8 मिनिट तक वायु तत्व से जुड़ा रहता  है । वायु तत्व से हम आक्सीजन लेते है   जो कि पौधों से  मिलती है । इसके इलावा  वायुमंडल मे जो आक्सीजन  होती है वहां से भी  प्राप्त कर लेते है  ।  अतिरिक्त आवश्यक तत्व भी हवा से हम लेते रहते है ।

         हम भगवान  से जीवनी शक्ति प्राप्त करते है । जैसे  नींद और कुछ  नहीं उस समय  हम भगवान से जुड़  जाते है और उस से शक्ति प्राप्त कर लेते है और एक दिन के लिये तरोताजा हो जाते  है ।  ऐसे ही इस आठ मिनिट मे हम भगवान  से बल लेते है ।  यदपि इसे विज्ञान अभी नहीं मानता ।  अध्यात्म इसे मानता है । फ़िर भी  यॆ शोध का विषय है ।

        हर घंटे मे व्यक्ति चार  मिनिट तक आकाश  तत्व से जुड़ा रहता  है । इस समय हम आकाश मे विद्युत तरंगे, चुम्बकीय तरंगे, भगवान  की शक्ति प्राप्त करते है । यह बहुत सूक्ष्म होता है, इसे योगी ही समझ सकता है । विज्ञान का कोई साधन इसे नहीं पकड़ सकता ।

     हम सभी  अपनी  सोच  के अनुसार  आकाश  मे उपलब्ध संकल्पों  से जुड़े रहते है । ये संकल्प उन व्यक्तियों के होते है जिनकी हमारे जैसी सोच है ।

Wednesday, May 20, 2020

सांस और धरती तत्व

आंतरिक बल 
सांस   और पृथ्वी तत्व 

      जो वायु बाहर से भीतर आती है उसे श्वास और जो भीतर से बाहर  जाती है उसे प्रश्वास कहते है ।

       दोनो  नथुनों  से हम बदल बदल कर सांस लेते है और एक नासिका से डेढ़ या दो घंटे तक  सांस लेते है ।

यह जो सांस लेते है इसमे हम सभी पाँचों  तत्वों से उर्जा प्राप्त करते है ।

       मान लो एक स्वर एक घंटे तक चलता  है तो उसमे हम 20 मिनिट पृथ्वी तत्व से उर्जा लेते है, जल तत्व से 16 मिनिट,  अग्नि तत्व से 12 मिनिट, वायु तत्व से 8 मिनिट और आकाश तत्व से 4 मिनिट उर्जा लेते है ।

         हमारे को जीवित रहने के लिये उर्जा भोजन से मिलती है । शरीर को विटामिन, मिनरल  और अनेकों धातुओं की  जरूरत होती है और सधारण आदमी को यह पता नहीं होता कि  उसे किन किन   पौधों से यॆ तत्व प्राप्त होंगे । अगर पता लग भी  जाये तो उन्हे प्राप्त कर पाना बहुत मुश्किल है,  क्योंकि वह बहुत महंगे  होते है ।  हमारे दिमाग मे नाक की जड़ मे ऐसे सूक्ष्म तंतु है जो प्राकृति के विभिन्न  पेड़ पौधौ  से वह तत्व  हवा के माध्यम से  खींच लेते है । वह पदार्थ चाहे पहाडी  इलाकों मे है चाहे दूसरे किसी विश्व के कोने मे है वायु जब वहां से गुजरती है तो उसके सूक्ष्म कण अपने साथ ले लेती है और हम नाक के सूक्ष्म तंतुओ  द्वारा हवा मे से उन्हे ले लेते है और शरीर को हृष्ट पुष्ट करते है । इस लिये हम हर घंटे मे 20 मिनिट पृथ्वी तत्व  से सांस के द्वारा जुड़े रहते है ।

       अगर हम दो तीन घंटे घी से पकवान आदि बनाने मे समय लगाते है तो भूख मर जाती है । इस का कारण यह है कि वह घी के सूक्ष्म कण /शक्ति सांस के द्वारा  प्राप्त कर लेते   है जो हमें भोजन करने से प्राप्त होते है । इसलिये हलवाई आदि को कम भूख लगती है । इसी तरह हर व्यक्ति शरीर के लिये ज़रूरी  तत्व   पेड़ पौधों से  सांस के द्वारा प्राप्त करता  रहता  है । 

       हमे  योग के द्वारा  नाक की  जड़ मे स्थित इस केन्द्र को जागृत करना है ताकि हम विनाश  के समय बिना भोजन भी  जिंदा रह  सके । यह खोज का विषय है ।

ऐसे अनेकों योगी हुये है जो  लम्बे  समय तक बिना कुछ  खाये तपस्या करते रहे । 

       अगर आप का स्वास्थ्य  ठीक नहीं है, तन से कमजोर है तो हर रोज़ कल्पना मे किसी पहाडी पर चले जाओ और वहां के पेड़ पौधों पर मन एकाग्र करो और कहो हे मन जो शरीर के लिये ज़रूरी तत्व है वह सम्बन्धित पौधों से प्राप्त करो । तो आप के मन मे स्थित केन्द्र वह शक्ति सांस से प्राप्त करने लगेगा । आप धीरे धीरे हृष्ट पुष्ट होने लगेगें । यह बहुत सूक्ष्म प्रक्रिया है इसे सिध्द  कर पाना मुश्किल होगा ।

Monday, May 18, 2020

साँस -नियम


             अगर दो घंटे से ज्यादा देर कोई स्वर चलता  है तो यह किसी बीमारी  का प्रतीक है ।

       जब सुषमना नाड़ी अर्थात दोनो नथुनों से एक साथ सांस   आता है तो उस समय मन सात्विक हो जाता है उस समय योग का विशेष अभ्यास करना चाहिये । यह समय 5-10 मिनिट से ज्यादा  नहीं होता ।

       अगर सुषमना नाड़ी लगातार  दो घंटे से ज्यादा चलती है तो यह कोई घातक  बीमारी की  निशानी है । सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच  तालमेल बिठा  रही है ।

        सुषमना स्वर अधिक चलने पर चिन्ता  नहीं दिनचर्या मे सुधार करो ।

        एक दम ताप या शीत  बढ़ने से, पाचन व्यवस्था के गड़बड़ाने से, लम्बे समय तक तनाव की अवस्था मे रहने से सुषमना स्वर लम्बे समय का हो जाता है । उस लम्बे काल को सीमित करने के लिये आहार, व्यवहार, विचार  मे परिवर्तन करना  चाहिये, इस से स्वर अनुकूल हो जाता  है ।

      अपना नियमित स्वर चक्र जानना  हो तो कुछ  दिन के लिये, अपनी जेब मे हर समय कागज कलम रखे ।  अपने  प्रत्येक कार्य करने के दौरान थोड़ी थोड़ी देर के बाद अपने स्वर की जांच  करें की कौन सा स्वर चल रहा  है ।

       नोट करो कि भोजन, शयन, स्नान आदि क़ी  क्रियाओं से  पहले और बाद मे कौन सा स्वर चला है । अति सर्दी अति गर्मी के समय स्वर नोट करें  । सप्ताह भर  मे अपना  औसत स्वर चक्र जान लेगें ।

       आरम्भ मे आप को स्वर का यह हिसाब किताब रखना  अजीब लगेगा लेकिन कुछ ही दिनो मे आप को इस जाँच  मे रस आने लगेगा । फ़िर  इस जांच  की  जरूरत नहीं होगी । आप का ध्यान बिना किसी यत्न के हर समय सांस की ओर लगा  रहेगा । बिना नासिका छिद्र को छुये अपने स्वर का वेग जान लेगें ।

     इस से कुछ  ही दिनो मे अपने भीतर दिव्यता प्रकट होगी । जब कभी तनाव या किसी और मनोदशा से पीडित होगें  तो अपने स्वर पर ध्यान देने से तनाव मुक्त हो  जायेगे । आप एक नये व्यक्ति के रुप मे  निखरते  चले जायेगे ।

Sunday, May 17, 2020

इ डा पिंगला नाड़ी तथा साँस


        कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

           बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

          जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

        बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

          यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

         मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

       जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

       ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

        हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Saturday, May 16, 2020

सांस और विद्युत


         जब हम गुस्से मे होते है तो सांस तेज हो जाते है और जब आराम की अवस्था मे होते है सांस धीमी हो जाती है ।

       हमारा मन हमारी सांसे, हमारे सारे ऊर्जा चक्र सभी आन्तरिक रूपों  से एक दूसरे से जुड़े हुये है ।

         हमारे मन की अवस्था शरीर  मे उपस्थित जीवनी विद्युत पर निर्भर करती है जो हम सांस लेते समय प्राप्त करते है ।

       जब हमें अचानक घबराहट,  अस्थिरता या भ्रम महसूस होने लगता है,  उत्साह की कमी, अवसाद व लक्ष्यहीनता के लक्षण सामने आते है तो  यह दर्शाता है कि हमें सांस लेते समय  कम मानसिक विद्युत  प्राप्त हो रही है ।

श्वास मन का भौतिक रुप है ।

        यदि सांस पर नियंत्रण हो जाये तो हम शरीर और मन पर  नियंत्रण कर सकते है।

        क्या आप लगातार थकान का अनुभव करते है ?  दोपहर होते होते  कार्य की शक्ति जवाब दे  जाती है । थकान होने का  कारण जानने के  लिये टेस्ट कराते  कराते थक गये है ।  सब कुछ  ठीक है परंतु थकान जाती ही नहीं ।

       हमारी सांस लेने की प्रक्रिया की कमजोरी ही इन लक्षणों को जन्म  दे रही है । पेशियों मे खिंचाव या दर्द, सीने मे दर्द, माहवारी से पहले होने वाला तनाव वा दर्द इसी श्रेणी मे आता है ।

        थकावट वा उपरोक्त लक्षणों मे गहरी गहरी सांस लो और मुख से छोडो । इस के साथ साथ मन मे कोमल भावनायें, स्नेह की भावना  रखो, स्वीकार भावना  रखो,  मधुर संगीत  मन  मे गुनगुनाते या सुनते रहो । आराम करो तथा  मन से दूसरो को तरंगे दो ।

        जब हम सांस की गति धीमी करते है तो इस से हमारे विचारो को फैलने के लिये स्थान मिलता है । हम सांस मे जितना अंतराल रखते है विचारो को उतना ही स्थान मिलता जाता है  जिस से विचारो मे बुद्विमता  और स्पष्टता आने लगती है ।

       गहरी सांस भावनाओ को शांत करती है तथा  परिस्थितियो को समझने मे मदद करती है ।

इडा तथा पिंगला नाड़ी


इडा तथा पिंगला नाड़ी और सांस 

कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

        जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

          हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

          बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

        यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

        मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

        जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

        ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

      हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Friday, May 15, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

सांस और दोष


आंतरिक बल   
सांस  और दोष 

        अग्नि मे तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं की अशुध्दता नष्ट हो जाती  है । ऐसे सांस पर नियंत्रण या योग से मन के    दोष दूर होते है ।

        निरंतर सांस नियंत्रण  तथा  प्रभु के गुणों का चिंतन करने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते है । 

सूक्ष्म और स्थूल शरीर दोनो ही शुध्द होते है ।

      जो प्राणी जिस गति से सांस लेता  है उसी के अनुसार उसकी आयु होती है ।

        कछुआ  एक मिनिट मे 4-5 सांस लेता  है उसकी आयु 200 से 400 वर्ष होती है ।

       मनुष्य औसत 12 से 18 सांस लेता है अतः  औसत सांस 16 होती है । उसकी औसत आयु 100 वर्ष होती है ।

अगर योगी औसत एक मिनिट मे 4 सांस ले तो उसकी औसत आयु 400 साल हो सकती है ।

         वायु ही जीवन है, वायु ही बल है । धीरे धीरे सांस से वायु खींचने पर सर्व रोगॊ का नाश  होता है । तेज गति से सांस लेने पर  रोग आ धमकते  है ।

        दिमाग के दो भाग  है । कुछ  कार्य या विचार   दिमाग का बाया भाग  करता  है, कुछ  विचार  दाया भाग  करता है । जब कभी हमें कोई नाकारात्मक विचार परेशान कर रहा हो तो हमें यह पता नहीं होता कि  दिमाग का कौन सा भाग  विचार  कर रहा है । 

         उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस ले रहे है उसे हाथ  की अँगुली से दबा ले तथा  दूसरे नथुने से धीरे धीरे  सांस लेने लग जाओ । इस से आप का दिमाग   दूसरे  गोलार्द्ध  से सोचने लग जायेगा । मान लो आप बायें भाग से सोच  रहे है तो दायें भाग  से सोचने लगेगें और अगर दायें भाग  से सोच  रहे है तो बायें भाग से सोचने लगेगें । इस तरह आप के नाकारात्मक विचार  बदल जायेगे ।

          सांस का सुर बदलने के लिये आप जिस नथुने से सांस ले रहे है उस करवट  लेट जाये । थोड़ी देर बाद अपने आप दूसरे नथुने से सांस चालू हो जायेगा । 

       ऐसा करते समय जो आप चाहते  है वह संकल्प सोचो । मान  लो आप को निराशा  आ रही है तो सोचो मै खुश हूं खुश हूं खुश हूं । भगवान  आप खुशीओ  के सागर है । थोड़ी देर मे नाकारात्मकता बंद  हो जायेगी ।