Monday, August 3, 2020

रक्षा बंधन पार्ट -१

राखी मज़बूत करती है मर्यादाओं की डोर
(Part:~1)

        रक्षाबंधन का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। चिरातीत काल से ही बहनें भाई की कलाई पर श्रावणी पूर्णिमा को राखी बांधती चली आ रही हैं। 

        भारत का यह त्योहार विश्व भर में अपनी प्रकार का एक अनूठा ही त्योहार है। भाई को स्नेह के सूत्र में बांधने वाली यह एक बहुत ही मर्मस्पर्शी और भावभीनी भस्म है। यह त्योहार बहन और भाई के पारस्परिक स्नेह और सम्बन्ध के रूप में मनाया जाता है। 

        इस दिन बहनें भाई को राखी बांधती है और उनका मुख मीठा कराती है। कैसी है भारत की यह अद्भुत परम्परा कि भाई अपने हृदय में अपनी बहन के प्रति स्नेह-समुद्र को बटोरे हुए सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लेता है। 

        4-10 मिनट की इस रस्म में भारतीय संस्कृति की वह झलक देखने को मिलती है कि किस प्रकार यहाँ बहन और भाई में एक मासूम उम्र से लेकर जीवन के अंत तक एक-दूसरे से प्यार का यह सम्बन्ध अटूट बना रहता है। यह धागा तो एक दिन टूट भी जाता है, परंतु मन को मिलाने वाला स्नेह के सूक्ष्म सूत्र नहीं टूटते। 

        यदि वह तार किसी पारिवारिक तूफान के झटके से टूट भी जाता है, तो फिर अगली राखी पर फिर से नया सूत्र उस स्नेह में एक नयी ज़िंदगी और एक नयी तरंग भर देता है। इस प्रकार यह स्नेह की धारा जीवन के अंत तक ऐसे ही बहती रहती है जैसे कि गंगा, अपने उद्गम स्थल से लेकर सागर के संगम तक कहीं तीव्र और कहीं मधुर गति से प्रवाहित होती रहती है। 

       रक्षाबंधन को केवल कायिक अथवा आर्थिक रक्षा का प्रतीक मानना इस त्योहार के महत्व को कम कर देने के बराबर है। 

        भारत एक मुख्यतः एक आध्यात्मिक प्रधान देश है। यहाँ मनाए जाने वाला हर त्योहार आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को लिए हुए है। 

       यदि उसी परिपेक्ष्य में देखा जाए तो रक्षाबंधन का भी आध्यात्मिक महत्व है। भारत में सूत्र सदा किसी आध्यात्मिक भाव को लेकर ही बाँधे जाते हैं। 

        दूसरों शब्दों में कहें, सूत्र बांधने की रस्म शुद्ध धार्मिक है और हर धार्मिक कार्य को शुरू करने के समय कुछ व्रतों अथवा नियमों को ग्रहण करने के लिए यह रस्म अदा की जाती है। जब भी किसी व्यक्ति से कोई संकल्प कराया जाता है तो उसे सूत्र बांधा जाता है और तिलक भी दिया जाता है। 

        सूत्र बांधना और संकल्प करना तथा तिलक देना - इन तीनों का सहचर्य आध्यात्मिक संकल्प का ही प्रतीक है क्योंकि यह रस्म सदा किसी धार्मिक अथवा पवित्र व्यक्ति द्वारा ही कराई जाती है और सूत्र बँधवाने वाला व्यक्ति संकल्प करने वाले को दक्षिणा भी देता है- इसी का रूपांतर यह ‘रक्षा बंधन’ त्योहार है। यह त्योहर एक धार्मिक त्योहार है और यह इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के संकल्प का सूचक है, अर्थात भाई और बहन के नाते में जो मन, वचन कर्म की पवित्रता समाई हुई है, यह उसका बोधक है। 

        पुनश्च, यह ऐसे समय की याद दिलाता है, जब परमपिता परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा कन्याओं-माताओं को ब्राह्मण पद पर आसीन किया, उन्हें ज्ञान का कलश दिया और उन द्वारा भाई-बहन के सम्बन्ध की पवित्रता की स्थापना का कार्य किया जिसके फलस्वरूप सतयुगी पवित्र सृष्टि की स्थापना हुई। उसी पुनीत कार्य की आज पुनरावृति हो रही है।

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