Saturday, August 1, 2020

आंतरिक बल- आज्ञा चक्र- मन की गति

आन्तरिक बल 
आज्ञा चक्र
मन की गति 

      सारा संसार एक निश्चित गति से चल रहा है ।

       धरती 29 कीलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से चल रही है ।

       सौर मंडल के सभी ग्रह तथा  उपग्रह अपनी अपनी निछचित  गति के अनुसार  अपनी धुरी पर घूम रहे हैं । 

      ऐसे ही सूर्य एवम आकाश  गंगा भी  एक निर्धारित गति से चल  रही है ।

        पांचो  तत्व भी  हर समय चलते  रहते हैं । इनकी भी अलग अलग गति हैं । 

       कोई भी  ठोस वस्तु के सूक्ष्म अणु एलेक्ट्रोंन, न्युट्रान और प्रोटोन एक निर्धारित गति से घूमते रहते हैं ।

       सूक्ष्म शक्तियां,  विद्युत तथा  चुम्बकीय शक्ति,  रेडियो तरंगे, लेज़र तरंगे और अनेकों बलशाली सूक्षम  और स्थूल गैसे    भिन्न  भिन्न  गति से हर समय चलती रहती हैं ।

       आज तक जितनी भी  खोजे  हुई हैं उन के अनुसार प्रकाश की गति सब से तेज   है । प्रकाश  तीन लाख 
  किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से चलता  है ।

      यह माना गया है कि  मन भी  उसी तत्व से बना है जिस तत्व से सूर्य बना हुआ है । इस हिसाब से  मन की गति भी तीन लाख  किलोमीटर प्रति सेकेंड होनी चाहिये । 

        सूर्य से प्रकाश को धरती पर पहुचने मे आठ मिनिट लगते है । परंतु वास्तव मे मन   द्वारा  हम  एक सेकेंड से  कम समय मे सूर्य को देख लेते हैं । इस से भी  अधिक मन एक सेकेंड से कम समय में  ब्रह्मांड में  कहीं भी  आ जा  सकता है । यह सिध्द  करता है की मन की गति प्रकाश की  गति से भी  बहुत तेज  है ।  

        वास्तव मे इस ब्रह्मांड मे एक सबसे सूक्ष्म  तत्व है जिसे ईथर कहते हैं । यह तत्व सभी ग्रहों, आकाश  गंगा, ब्लैक होल, सूक्ष्म लोक और परमधाम  जहां परमात्मा  रहते हैं, वहां   तक व्यापक है । यह तत्व संकल्पों का सुचालक है ।

         हमारा मन अर्थात जहां  हमे विचार  उठते है वहां  पर ईथर तत्व है । हम जो भी  संकल्प करते है वह ईथर मे ही करते है, जिस कारण हमारे विचार  ईथर के द्वारा सारे ब्रह्मांड मे सोचते ही  फैल  जाते  है । यही कारण है कि  सोचते ही हम कहीं भी  पहुंच  जाते है ।

       मन की गति  कितनी है यह जानना बहुत ज़रूरी है । यह जानने से अनजाने में मन द्वारा किये जा रहे  नुकसानों से बच सकेंगे तथा  मन द्वारा  सहज ही विश्व का कल्याण कर पायेंगे ।  आगे चर्चा  करेगें ।

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