आज्ञा चक्र -मन -विचारो की दुर्गंध
दुर्गंध :-
हमारे बुरे विचारो से दुर्गंध निकलती रहती है ।
कई लोग कुतो से बहुत डरते है और वह चाहे कहीं चले जाये वहां के कुत्ते उनके पीछे लग जाते हैं ।
जब व्यक्ति डरता है तो डर के कारण उस के विचारो से दुर्गंध निकलती है । वह दुर्गंध ऐसी होती है जैसे कहीं मास का टूकड़ा जलाया जा रहा हो । मास की दुर्गंध कुतो को बहुत अच्छी लगती है वह समझते है यह उनका शिकार है। इसलिये वह उस व्यक्ति को काटने को दौड़ते हैं ।
निराशा के विचारो से बुदबू पैदा होती है । जिस से सभी लोग दूर भागते हैं। निराश व्यक्ति को सभी असहयोग करते हैं । भिखारी उदास होते हैं इसलिये लोग तवजो नही देते । शराबी सड़को पर पड़े रहते हैं उन्हे कोई उठाता नही ।
जब क्रोध करते है तो उस से जो तरंगे निकलती है वह आग जैसी तीखी होती है उनसे बहुत गर्मी लगती है यही कारण है क्रोधी से हर कोई बचने की कोशिश करता है ।
पाँच सूक्ष्म विकारों से अलग अलग प्रकार की दुर्गंध निकलती है, जिस से तन मन बेचैन हो जाता है ।
वर्तमान समय मानव सूक्ष्म विकारों से पीडित है । लोग बोलते अच्छा हैं । ऊंच पदों पर हैं। प्रबंधक अच्छे हैं । नामी ग्रामी है । परंतु उनसे जब मिलते है तो अच्छी महसूसता नही होती । सूक्ष्म विकारों की बदबू महसूस होती है । अपनापन नही लगता । इसलिये मानसिक रोग बढ़ रहे हैं।
जिन विचारो से बुरा बुरा महसूस हो तो समझो बदबू निकल रही है !
लोभ में बुरा बुरा सा लगता है, पच्छाताप सा होने लगता है, ऐसा लगता है जैसे कुछ गलत होने वाला है, परंतु लोभ के वश फंस जाते हैं और लेनदेन कर लेते हैं ।
ईर्ष्या के विचारो से ऐसी बदबू पैदा होती है जैसे कोई मिर्ची जल रही हो । जिसे आम भाषा में कहते है किसी का दिल जल रहा है । जिस व्यक्ति का दिल जलता है उस व्यक्ति को देखते ही अपना मुंह फेर लेते हैं । वहां से भागने को मन करता है । ईर्ष्यालू व्यक्ति सदा निन्दा ही करेगें ।
आलस्य से ऐसी तरंगे निकलती है जो उसे उदासीन कर देती है । किसी भी काम करने को मन नहीं करेगा । हमेशा कहेगा कल करूंगा । उस की तरंगे ऐसी होती है कि कोई भी व्यक्ति उसे पसंद नहीं करता सब उस से कन्नी काटने लगते है । कोई उसे काम नहीं देता ।
हरेक व्यक्ति को पसीना आता है । जिस व्यक्ति के नाकारात्मक विचार ज्यादा आते है उनके पसीने वा कपडो से बहुत गंदी बदबू आती है । श्रेष्ट योगियों के विचार शुध्द होते है उनसे चंदन जैसी खुशबू आती है ।
कोई भी हीनता, कोई भी इच्छा पुरी न होने की कसक, धोखे, बेवफ़ाई, पच्छाताप, शारीरिक वा मानसिक दुख, योग ना लगने का दुःख , गरीबी का दुख, दुर्व्यवहार का दुख, सम्मान ना मिलने का दुख, अनपढ़ होने का दुख , या कोई भी सूक्ष्म में ज़रा सा भी बुरा महसूस करते है तो ये सब नाकारात्मक विचार है । जैसे ही नाकारात्मक विचार आते है हमारे से बदबू निकलती है । यह ऐसी बदबू है जो नष्ट नहीं होती और पूरे वातावरण में फैल जाती है और जो भी सामने आयेगा प्रभावित होगा ।
अपने चाहे दूसरे के कारण ज्यों ही नाकारात्मक विचार का बीज पैदा हो उसे तुरंत सकारात्मक विचार से बदल दो ।
जब भी नाकारात्मकता आयें तुरंत मन को विश्व सेवा में लगा दो । किसी दूसरी आत्मा को मन से स्नेह वा शांति की तरंगे दो । जिस व्यक्ति से नाकारात्मकता आ रही है उसके पीछे कल्पना में किसी स्नेही आत्मा को देखो और मन ही मन उसे कहो आप स्नेही हो स्नेही हो । आप के यह विचार विरोधी.को बदलेंगे और आप को भी सकून मिलेगा ।
No comments:
Post a Comment