Wednesday, August 12, 2020

आंतरिक बल- मन नकारात्मक विचारों का रूप

मन नाकारात्मक विचारो का रुप 

        आलस्य जब आता  है तो  हमारे मन से ऐसी तरंगे निकलती हैं  जो जंजीर या रस्सी का रुप धारण  कर हमे जकड़ देती हैं हमे बांध  देती  हैं । जैसे किसी  को जकड़ दिया जाता है  तो वह लाचार  हो जाता है  यही कारण  है कि  आलसी चाहते हुये भी  कुछ नहीं कर सकता ।

        आलस्य जब  मन में आये तो एक वाक्य मैं चुस्त हूं चुस्त हूं यह मन में दोहराते रहें  या कोई  ज्ञान सिमरन करते रहें । कुछ  ना कुछ  मन से पढ़ने लिखने का काम करें । 

        निराशा  एक बेरहम घुसपैठिया है । अर्थात हमारे दिमाग से ऐसी तरंगे निकलती हैं जो एक बेरहम आतंकवादी का रुप धारण  कर हमारे मन में घुस जाता  है । जिसके कारण हम डर, उलझन, बैचेनी और गहरे दुख में फंस जाते हैं ।

       निराशा  में नींद नहीं आती । कुछ  भी  गड़बड़ हों जाये उसके लिये खुद को जुम्मेवार समझते हैं  । किसी से बात करने को मन नहीं करता  । बात बात पर चिढ़ होती है ।

       निराशा व्यक्ति को डिप्रेशन में ले जाती है,  व्यक्ति सब से कटने लगता है । ऐसे लगता है जैसे किसी कैदी को कालेपानी में कैद की  सजा दे दी हो ।

        जिन  चीजो की वजह से निराश है, मन में सोचो वह सब आपके पास हैं आप उनके साथ जी  रहे हैं । 

      एक जेल में बंदियों को हर रोज़  टार्चर  किया जाता था, बहुत से लोग डर से मर गये । एक कैदी  सजा के समय सोचता था वह अपने परिवार  के साथ है सब लोग मिल कर रहते हैं तथा  दूसरे लोगो को सुखी  बनाने का सोचता रहता था । केवल वह व्यक्ति जीवित रहा और सदा खुश दिखता था । उसकी खुशी देख कर प्रशासन  ने उसे बरी  कर दिया ।

      श्रश्रमोह होने पर हम गुलाम बन जाते  हैं  । वास्तव में हमारे दिमाग से निकले  विचार हमे दूसरे व्यक्ति के सामने   गुलाम     बना देते हैं  ।  समझो गुलाम की चेतना  घुस जाती  है । हम हथियार डाल देते हैं. । हमे मालिक से सुख मिलने की उमीद  होती है । मोह में आदान प्रदान की शर्त  जुड़ी होती है । मोह में हम पिसते रहते हैं । मालिक की हर अच्छी बुरी इच्छा पुरी करने में लगे रहते हैं । मोह में हर दुख सहन  करते हैं । मोह हमें कमजोर कर देता है ।

       असल में हम दूसरे का अटेनशन चाहते  हैं । यह ईश्वरीय नियम उल्टा चलता है । आप  जिसे चाहते हैं मन में उसके बारे कहते  रहें आप मुझे पसंद हैं।

       चुगली करने वाले लोग दूसरो के बीच  फूट  डालते हैं, जुदाई और मतभेद पैदा करते हैं । घर  बर्बाद हों जाते  हैं । रिश्ते टूट  जाते  हैं । दोस्त शत्रु बन जाते हैं । भाई  भाई  का दुश्मन बन जाता  है । चुगली एक घातक  हथियार है । वास्तव में जब हम चुगली करते हैं तो हमारे मनसे निकले संकल्प एक ख़ंज़र का रुप धारण  कर लेते हैं । इसलिये सभी व्यक्ति जो सुनते हैं वह घायल हो जाते हैं जिस से उन्हे दुख मिलता है । 

      श्रचुगली अर्थात जो सुख उनके पास है वह हमारे पास नहीं है इसलिये चुगली करते हैं । जो लोग तुम्हे पसंद हैं या जिनकी चुगली करते हैं  या भगवान  के बारे  मन में अच्छा  अच्छा  ( कल्याण हो ) सोचते रहें   तो चुगली की आदत छूट जायेगी ।

      अपवित्रता के विचारो से एक नशेड़ी जैसा व्यक्ति हम बन जाते हैं । जैसे शराबी शराब के बिना तड़फ़ता है । ऐसे ही व्यक्ति काम विकार के कारण बेचैन रहता है और अपराध कर बैठता है ।

      अपवित्रता का मूल कारण है प्यार की कमी । हरेक व्यक्ति को मन में स्नेह देते रहो उन्हे मन में अपना भाई  या बहिन समझो तो अपवित्रता परेशान नहीं करेगी ।

      कोई भी  नाकारात्मक विचार  मन में आता  है तो वह कोई आकृति या रेखा  बना देता   है और हमारे व्यक्तित्व को बांध देता है । इसलिये सदैव कोई ना कोई अच्छा  विचार  मन में रखें  ।  

     मैं कल्याणकारी हूं यह विचार  मन में रहे तो कोई भी  नाकारात्मक विचार नहीं आयेगा ।

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