कोई भी स्वस्थ व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।
बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है इसे चंद्र नाड़ी या इडा नाड़ी कहते है ।
दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।
जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ समय के लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।
दोनो नथुनों की नसे दिमाग से भी जुड़ी रहती है ।
हमारा दिमाग दो भागो मे बंटा हुआ है । बाया गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।
बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग तथा दायें नथुने से दिमाग का बाया भाग संचालित होता है ।
यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना खुल जाता है ।
अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।
मधुमेह तथा रक्तचाप की बीमारी एक हद तक दायें नथुने की अधिक सक्रियता है ।
बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो सकता है ।
जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।
ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा मन मे दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।
अगर शरीर मे कोई भी रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़ सुबह सुबह करें । दिन मे भी जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार लम्बे समय तक कठोर रहते है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।
हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।
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