प्रत्येक व्यक्ति हर घंटे जब सांस लेता है तो 16 मिनिट वह जल तत्व से जुड़ा रहता है ।
मनुष शरीर में 80 % जल है । अतः जल का जीवन मे बहुत महत्व है । हर मनुष्य जल पीता रहता है ताकि इस की मात्रा शरीर मे कम न हो जाये । ज्यों ही जल कम होता है हमें प्यास लगती है ।
हम सांस के द्वारा भी जल खींचते रहते है । मानव जो जल पीता है उस मे कोई न कोई अशुद्धि होती है । उस मे सूक्ष्म रोगाणु होते है जो अभी तक मनुष्य की पकड़ मे नहीं आयें । हमारा सूक्ष्म मन उन कीटाणुओं को पहचानता है ।
इन रोगणुओ के इलाज के लिये मन उस जल को सांस के द्वारा उन जड़ी बूटियों से खींच लेता है, जो औषधि का काम करती है और जल से टकराती रहती है जो झरनों के रुप मे गिरता रहता है चाहे वह हिमालय पर हो या कहीं और हो ।
एक शेर को टांग पर बहुत चोट लग गई और वह एक गुफा मे घुस गया । 2-3 दिन बाहर नहीं निकला तो शिकारियों ने उस गुफा मे घुस कर देखा कि गुफा मे एक नाला बह रहा है तथा शेर उसके पास लेटा हुआ है और थोड़ी थोड़ी देर बाद पानी पी लेता है । 10-15 दिन बाद जब शेर बाहर निकला तो सम्पूर्ण स्वस्थ था । इस से लोगो को पता लगा कि पानी से रोग भी ठीक होते है । वह पानी ऐसी जड़ी बूटियों से स्पर्श करता हुआ बह रहा था जो औषधि बनाने के काम आती थी ।
इसी तरह मन सांस के द्वारा आकाश से वाष्प तथा समुन्दर और नदियों से लवण, मिनरल व नमक आदि जो शरीर के लिये ज़रूरी होते है, खींचता रहता है । इस तरह प्राकृति का यह अनूठा ढंग है शरीर को जल प्रदान करने का ।
मन के बुरे विचार समुन्दर पर प्रभाव भी डालते है । इस समय विश्व का हरेक व्यक्ति नकारात्मक सोचता है, जिस का सामूहिक प्रभाव समुन्दर मे उतेजना पैदा कर देता है, इसके परिणाम स्वरूप समुन्दरी तूफान आते है ।
हर घंटे मे प्रत्येक व्यक्ति 12 मिनिट तक अग्नि तत्व से जुड़ा रहता है ।
शरीर को गर्म रखने के लिये उर्जा की जरूरत होती है । यह उर्जा हम सूर्य तत्व से प्राप्त करते है । हम 12 मिनिट मे ही सूर्य से एक घंटे के लिये ज़रूरी उर्जा खींच लेते है ।
हर व्यक्ति 8 मिनिट तक वायु तत्व से जुड़ा रहता है । वायु तत्व से हम आक्सीजन लेते है जो कि पौधों से मिलती है । इसके इलावा वायुमंडल मे जो आक्सीजन होती है वहां से भी प्राप्त कर लेते है । अतिरिक्त आवश्यक तत्व भी हवा से हम लेते रहते है ।
हम भगवान से जीवनी शक्ति प्राप्त करते है । जैसे नींद और कुछ नहीं उस समय हम भगवान से जुड़ जाते है और उस से शक्ति प्राप्त कर लेते है और एक दिन के लिये तरोताजा हो जाते है । ऐसे ही इस आठ मिनिट मे हम भगवान से बल लेते है । यदपि इसे विज्ञान अभी नहीं मानता । अध्यात्म इसे मानता है । फ़िर भी यॆ शोध का विषय है ।
हर घंटे मे व्यक्ति चार मिनिट तक आकाश तत्व से जुड़ा रहता है । इस समय हम आकाश मे विद्युत तरंगे, चुम्बकीय तरंगे, भगवान की शक्ति प्राप्त करते है । यह बहुत सूक्ष्म होता है, इसे योगी ही समझ सकता है । विज्ञान का कोई साधन इसे नहीं पकड़ सकता ।
हम सभी अपनी सोच के अनुसार आकाश मे उपलब्ध संकल्पों से जुड़े रहते है । ये संकल्प उन व्यक्तियों के होते है जिनकी हमारे जैसी सोच है ।
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