Friday, June 12, 2020

सहस्रार -3

आंतरिक बल 
सहस्त्रार -3

सूर्य से सारे सौर मंडल को ऊर्जा मिलती है ।

         मिलों व  कारखानों में मोटर चलती है, परंतु मोटर को चलाने के लिये बिजली कहीं और से मिलती है ।

          मस्तिष्क रूपी कारखाने को बिजली  सहस्त्रार से मिलती है । इस चक्र में प्रकाश की  उछल कूद अगर बंद हो जाये  तो व्यक्ति की मृत्यु  हो जाती है ।

सहस्त्रार  में उठे संकल्प व्यक्ति का जीवन निर्धारित करते है ।

         पहाड़ो  से पानी की धारायें जब  छूटती  है तो वह पास पास होती है परंतु नीचे गिर कर नाले  नदी के रुप में बहते  हैं तब  नदी और नालो  की  आपस की दूरी बढ़ती जाती है ।

         स्टेशन पर रेल गाडियां साथ साथ खड़ी रहती है,  परंतु जब लीवर बदलने से वह अलग अलग लाइनों पर चलती है तो उन लाइनों की दूरी बढ़ती जाती है और गाडियां अलग अलग  जगह पहुंच जाती है ।

         सहस्त्रार  में अच्छे  व  बुरे संकल्प एक जगह उठते है परंतु व्यक्ति को अलग अलग परिणामों तक पहुँचा देते है ।

सहस्त्रार को दसवां  द्वार भी  कहते हैं।

         दो नथुने, दो  आंखे, दो कान, एक मुख और दो मल मूत्र  के स्थान ये 9 द्वार कहे जा सकते  है ।

        योगी जन इसी सहस्त्रार, दसवे  द्वार से प्राण  त्यागते  है ।

          गर्भ में बच्चे में आत्मा  इसी केन्द्र से प्रवेश करती है ।

       इसी केन्द्र की सीध में मस्तिष्क के रुप से ऊपर रहस्यमय  कही  जाने वाली मुख्य ग्रंथी पीनीयल   ग्लेंड  है । जिस में आत्मा का निवास है ।

         जब हम भगवान  को याद करते है तो इसी केन्द्र से शक्ति खींचते है ।

        जैसे वृक्ष अपनी चुम्बकीय शक्ति से वर्षा  खींचते है ।

Thursday, June 11, 2020

सहस्त्रार चक्र -4


सहस्त्रार  चक्र 

           धातुओ  की खदानें  अपने  चुम्बकतव से अपनी जातीय धातु कणों को अपनी ओर खींचती  और जमा करती है ।

          मन में जो संकल्प उठते है उसी अनुसार सहस्त्रार  चक्र उसी स्तर का वैभव आकाश से खींचता है । वैसा ही अनुभव वा फल मिलने लगता है ।

        इसलिये चाहे कितनी विपरीत परिस्थिति हो मन सदा सकारात्मक चीजो पर लगाये रखो ।

        सहस्त्रार को क्षीर सागर, शेष  शया वा मानसरोवर भी  कहते है ।

        खोपडी के मध्य भरा  हुआ  वाइट  और ग्रे  मैटर ही क्षीर सागर है ।

        पूरे शरीर में दौड़ने वाली विद्युत का नियंत्रण करने वाला यही सह्स्त्रांर  केन्द्र है ।

          इस केन्द्र को जितना ज्यादा जागृत करेगें  उतना ज्यादा ईश्वरीय शक्तियां  प्राप्त करेगें ।


        इस केन्द्र को जागृत करने के लिये मन में शांति, प्रेम आनंद, दया  के संकल्प दोहराते और महसूस करते रहो ।

शरीर की समस्त गति विधियों का यह मूल स्थान है ।

         मनुष्य हर समय एक विद्युत दबाव  से प्रति क्षण  प्रभावित होता रहता है ।

          पृथ्वी की  सतह से ले कर वायुमंडल के आयनो सफ़ीयेर के मध्य लगभग तीन लाख  बोल्ट की शक्ति की कुदरती विद्युत हर समय वातावरण में बहती रहती है ।

         हमारे दिमाग में जो विद्युत बहती रहती है वह कुदरती विद्युत जो हमारे आसपास बह रही है उस से मेल खाती  है ।

         हमारा मस्तिष्क इस कुदरती विद्युत को हर समय जरूरत अनुसार लेता रहता है । जिस से हमारा शरीर अपने कार्य करता है । ये विद्युत लेने का कार्य सहस्त्रार  केन्द्र ही करता  है ।
 
           एरियल या ऐनटीना  ट्रांसमीटर द्वारा भेजे  गये शब्द किरणो को पकड़ते है । ये इतने शक्तिशाली होते है कि बहुत दूर  से  आने वाली तरंगों को भी  पकड़ करने उन्हे ध्वनि में बदल देते है ।

         इसी तरह कोई व्यक्ति, चाहे विश्व में कही भी  रहता  हो, हमारे बारे जब कभी अच्छा  व  बुरा  सोचते है, हमें उसी समय प्राप्त  हो  जाते है । यह काम  सहस्त्रार  केन्द्र   करता है ।


 

Tuesday, June 9, 2020

ORAC के बारे में जानें


          ORAC का अर्थ  ऑक्सीजन रेडिकल एब्सॉरबेन्ट केपेसिटी  (Oxygen Radical Absorbance Capacity.) 
          जितना अधिक ORAC, होगा उतनी ही ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता हमारे  फेफड़ो  को और  रक्त को होगी।
          भविष्य में हमें हमारे अस्तित्व, जीवन बचाने के लिए हमे हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति(Immunity) को बढ़ानी होगी। 
           हमारे जीवन में मसालों और जड़ीबूटियों का रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत महत्व है। मसाले और जड़ीबूटियों का अमूल्य धरोहर प्रकृति से हमे मिला है।  
          आइए कुछ जड़ीबूटियों और मसालों के ORAC क्षमता (values) पर नजर डाले :
     1. लौंग Clove :
           314,446 ORAC 
    2. दालचीनी Cinnamon :
           267,537 ORAC 
     3. कॉफी Coffee. :
           243000  ORAC
     4. हल्दी Turmeric :
           102,700 ORAC 
     5. कोका Cocoa :
           80,933    ORAC 
     6. जीरा Cumin : 
          76,800  ORAC 
     7. अजवाइन Parsley :
           74,349 ORAC 
     8. तुलसी Tulsi : 
          67,553 ORAC 
     9. अजवायन के फूल Thyme : 
           27,426ORAC
     10. अदरक Ginger :
           28,811 ORAC 

          अदरक, तुलसी, हल्दी आदि के *सत्व(रस)* की ORAC की क्षमता दस गुणी ज्यादा होती है। इसलिए इनका प्रयोग करना चाहिए।
          खून में ऑक्सीजन ग्रहण की क्षमता को (OXYGEN CARRYING CAPACITY OF THE BLOOD)  प्रकृति  में मिलने वाले विभिन्न फलों, 
हरी शाकसब्ब्जी,  पत्तेदार सब्जियों, मसालों, वनस्पतियों, जड़ीबूटियों आदि से भरपूर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है।
        उत्तम क्षमता वाले ORAC खाद्यपदार्थ (आहार) और पोषक तत्व (Nutrients) जैसे कि  *Iron, Vitamin C, Zinc, Omega 3, Magnesium and Vitamin D* आदि शारिरिक क्षमता और सुरक्षा कवच को सुदृढ़ तथा मजबूत करते हैं। 
           तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, हल्दी, दालचीनी, लोंग के अतिरिक्त जड़ीबूटी जैसे *ब्राह्मी, अश्वगंधा, सतावरी, मुलेठी, अर्जुनारिष्ट, पीपर, धनिया, काला जीरा, इलाइची* आदि वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। 
          अतः यह किसी भी वेक्सीन या टीके से बहुत ज्यादा प्रभावशाली है वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट्स के।
         130 करोड़ आबादी वाले देश में सबका टेस्ट करना असंभव है। प्रति दिन यदि दस लाख टेस्ट करे तो भी 35 वर्ष लग जाएगें।
          उपरोक्त सभी बातों का निष्कर्ष निकलता है कि हमारे शरीर में इम्युनिटी उतनी ही आवश्यक है जितनी जरूरत कंप्यूटर में इंटेल (Intel) की है।

Saturday, June 6, 2020

कुछ अपने दिल की बात

कुछ अपने दिल की --

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
हम सीख न पाये 'फरेब',
और दिल बच्चा ही रह गया।।

बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे,जहां चाहा रो लेते थे,
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई।।

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से,
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में,
चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं,
तुम हमें ढुंढो,
हम तुम्हे ढुंढते हैं।।


समझ ज्ञान से ज्यादा गहरी होती है,बहुत से लोग आपको जानते हैं,
परंतु कुछ ही आपको समझते है|

हमें अक्सर महसूस होता है कि दूसरों का जीवन अच्छा है लेकिन,,,,,
हम ये भूल जाते है कि उनके लिए हम भी दूसरे ही है,,

मुस्कराना जिन्दगी का वो खुबसूरत लम्हा है,,,, 
जिसका अंदाज सब रिश्तों से अलबेला है..
जिसे मिल जाये वो तन्हाई में भी खुश,,,,,
और जिसे ना मिले वो भीड़ में भी अकेला है..

अगर आपको वह "फसल" पसन्द नहीं है,*
जो आप काट रहे हैं,,
तो बेहतर होगा उन "बीजों" की जांच करें,,,,
जो आप बो रहे हैं,,,,,,

जीवन की सफलता का
पहला राज की सबसे पहले ख़ुद पर यक़ीन करना सीखो,,,,,

सद्गुणों की शुरूआत स्वयं से ही करनी पड़ती है,,,,
क्योंकि जब तक आपकी अँगुली पर कुमकुम नहीं लगेगी तब तक सामने वाले के ललाट पर तिलक नहीं लग पायेगा,,,,

हमारी परम्पराएं और विज्ञान


       सनातन धर्म की बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जिसे हम जानते और पालन तो करते तो हैं पर उसके तार्किक महत्व को नहीं जानते।

आइए जानते हैं, अपने दैनिक जीवन के शिस्टाचार में आने वाले इन पहलुओं को।

        हिन्दू परम्पराओं के पीछे छिपे 20 वैज्ञानिक तर्क ताकि अगर भविष्य में कोई आपसे यह पूछे कि महिलाएं बिछिया क्यों पहनती हैं, तो आप उसका सही तर्क दे सकें।

हिंदू परम्पराओं के पीछे का विज्ञान:-

1. हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

2. पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

3. माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

4. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

5. कान छिदवाने की परम्परा

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

6. जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

7. दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8. सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9. सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10. व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11. चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12. क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13. तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

14. मूर्ति पूजन

हिंदू धर्म में मूर्ति का पूजन किया जाता है।

वैज्ञानिक तर्क- यरि आप पूजा करते वक्त कुछ भी सामने नहीं रखेंगे तो आपका मन अलग-अलग वस्तु पर भटकेगा। यदि सामने एक मूर्ति होगी, तो आपका मन स्थ‍िर रहेगा और आप एकाग्रता ठीक ढंग से पूजन कर सकेंगे।

15. चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएं हाथों में चूड़‍ियां पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- हाथों में चूड़‍ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़‍ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

16. मंदिर क्यों जाते हैं

मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आप इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, तो आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है। मस्त‍िष्क शांत रहता है।

17. हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है।

       वैज्ञानिक तर्क- हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआं उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़े दूर भागते हैं।

18. महिलाएं क्यों पहनती हैं बिछिया

हमारे देश में शदीशुदा महिलाएं बिछिया पहनती हैं।

         वैज्ञानिक तर्क- पैर की दूसरी उंगली में चांदी का बिछिया पहना जाता है और उसकी नस का कनेक्शन बच्चेदानी से होता है। बिछिया पहनने से बच्चेदानी तक पहुंचने वाला रक्त का प्रवाह सही बना रहता है। इसे बच्चेदानी स्वस्थ्य बनी रहती है और मासिक धर्म नियमित रहता है। चांदी पृथ्वी से ऊर्जा को ग्रहण करती है और उसका संचार महिला के शरीर में करती है।

19. क्यों बजाते हैं मंदिर में घंटा

          हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाना शुभ होता है। इससे बुरी शक्त‍ियां दूर भागती हैं।

          वैज्ञानिक तर्क- घंटे की ध्वनि हमारे मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिय एकाग्रता बनती है। घंटे की आवाज़ 7 सेकेंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है। और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं। हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।

20. हाथों-पैरों में मेंहदी

        शादी-ब्याह, तीज-त्योहार पर हाथों-पैरों में मेंहद लगायी जाती है, ताकि महिलाएं सुंदर दिखें।

           वैज्ञानिक तर्क- मेंहदी एक जड़ी बूटी है, जिसके लगाने से शरीर का तनाव, सिर दर्द, बुखार, आदि नहीं आता है। शरीर ठंडा रहता है और खास कर वह नस ठंडी रहती है, जिसका कनेक्शन सीधे दिमाग से है। लिहाजा चाहे जितना काम हो, टेंशन नहीं आता।

रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व

          भारतीय संस्कृति मे रीति-रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व है.जैसे हमारे बुजुर्ग प्रातः उठकर अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमें ईश्वर का दर्शन करते हैं। धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते हैं क्योंकि जो धरती माँ धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, हमारा पालनपोषण करती है, उसी पर हम पैर रखते हैं.इसीलिए धरती पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम कर उससे माफ़ी मांगते हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऐसा प्रसंग है।

           सूर्य ग्रहण  के समय घर से बाहर  न निकलने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा हुआ है। दरअसल सूर्य ग्रहण के समय सूर्य से बहुत ही हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तरह कहा जाता है  कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता।

        हमारे वेद पुराणों में प्रकृति को माता और इसके हर रूप को देवी -देवताओं का रूप दिया गया है-हमने कुछ पेड़ों को जैसे-बरगद,पीपल को देवताओं और तुलसी, नदियों को देवी का रूप दिया है। यह कोई अन्धविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत  बड़ा तथ्य छुपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने इन्हें देवी-देवताओं का दर्जा इसलिए दिया क्योंकि कोई व्यक्ति किसी की पूजा करता है तो वह कभी भी  उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

          घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरवत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख-ध्वनि जहाँ तक जाती  है वहां तक की वायु से जीवाणु -कीटाणु सभी नष्ट हो जाते हैं .

        हमारे यहाँ चारो धाम घूमने की परंपरा है इस परंपरा के पालन करने से हमें देश के भूगोल का ज्ञान होता है ,पर्यावरण के सौंदर्य का बोध होता है और साथ में ये यात्रायें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी  लाभकारी हैं क्योंकि इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है.

        हमारे सभी रीति-रिवाज़ और त्यौहार हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं जैसे-रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाता है.करवाचौथ दाम्पत्य जीवन  में मधुरता लाता है.ऐसे ही छठ में माँ अपने बच्चे की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है.

         विदेशी लोग भारत  आकर यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परम्पराओं को देख रहे हैं और अपना रहे हैं भारतीय संस्कृति से प्रभावित विदेशी पर्यटक मन की शांति के लिए भारत आते हैं और यहाँ आने पर उन्हें एक अजीब से सुकून का अनुभव होता है।

         हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा  है माता-पिताऔर बड़ों  को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजे बढती हैं -आयु, विद्या ,यश और बल.

अभिवादन शीलस्य नित्यं बृद्ध-उपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलंII
    
         सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल  होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों  के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ  अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं.
       
       आज हम अपनी परम्पराएँ और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं और समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है ऐसे में आवश्यकता है की हम अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बनायें.

हमारी परम्पराएं और विज्ञान


       सनातन धर्म की बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जिसे हम जानते और पालन तो करते तो हैं पर उसके तार्किक महत्व को नहीं जानते।

आइए जानते हैं, अपने दैनिक जीवन के शिस्टाचार में आने वाले इन पहलुओं को।

        हिन्दू परम्पराओं के पीछे छिपे 20 वैज्ञानिक तर्क ताकि अगर भविष्य में कोई आपसे यह पूछे कि महिलाएं बिछिया क्यों पहनती हैं, तो आप उसका सही तर्क दे सकें।

हिंदू परम्पराओं के पीछे का विज्ञान:-

1. हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

2. पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

3. माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

4. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

5. कान छिदवाने की परम्परा

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

6. जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

7. दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8. सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9. सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10. व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11. चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12. क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13. तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

14. मूर्ति पूजन

हिंदू धर्म में मूर्ति का पूजन किया जाता है।

वैज्ञानिक तर्क- यरि आप पूजा करते वक्त कुछ भी सामने नहीं रखेंगे तो आपका मन अलग-अलग वस्तु पर भटकेगा। यदि सामने एक मूर्ति होगी, तो आपका मन स्थ‍िर रहेगा और आप एकाग्रता ठीक ढंग से पूजन कर सकेंगे।

15. चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएं हाथों में चूड़‍ियां पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- हाथों में चूड़‍ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़‍ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

16. मंदिर क्यों जाते हैं

मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आप इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, तो आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है। मस्त‍िष्क शांत रहता है।

17. हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है।

       वैज्ञानिक तर्क- हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआं उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़े दूर भागते हैं।

18. महिलाएं क्यों पहनती हैं बिछिया

हमारे देश में शदीशुदा महिलाएं बिछिया पहनती हैं।

         वैज्ञानिक तर्क- पैर की दूसरी उंगली में चांदी का बिछिया पहना जाता है और उसकी नस का कनेक्शन बच्चेदानी से होता है। बिछिया पहनने से बच्चेदानी तक पहुंचने वाला रक्त का प्रवाह सही बना रहता है। इसे बच्चेदानी स्वस्थ्य बनी रहती है और मासिक धर्म नियमित रहता है। चांदी पृथ्वी से ऊर्जा को ग्रहण करती है और उसका संचार महिला के शरीर में करती है।

19. क्यों बजाते हैं मंदिर में घंटा

          हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाना शुभ होता है। इससे बुरी शक्त‍ियां दूर भागती हैं।

          वैज्ञानिक तर्क- घंटे की ध्वनि हमारे मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिय एकाग्रता बनती है। घंटे की आवाज़ 7 सेकेंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है। और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं। हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।

20. हाथों-पैरों में मेंहदी

        शादी-ब्याह, तीज-त्योहार पर हाथों-पैरों में मेंहद लगायी जाती है, ताकि महिलाएं सुंदर दिखें।

           वैज्ञानिक तर्क- मेंहदी एक जड़ी बूटी है, जिसके लगाने से शरीर का तनाव, सिर दर्द, बुखार, आदि नहीं आता है। शरीर ठंडा रहता है और खास कर वह नस ठंडी रहती है, जिसका कनेक्शन सीधे दिमाग से है। लिहाजा चाहे जितना काम हो, टेंशन नहीं आता।

रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व

          भारतीय संस्कृति मे रीति-रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व है.जैसे हमारे बुजुर्ग प्रातः उठकर अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमें ईश्वर का दर्शन करते हैं। धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते हैं क्योंकि जो धरती माँ धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, हमारा पालनपोषण करती है, उसी पर हम पैर रखते हैं.इसीलिए धरती पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम कर उससे माफ़ी मांगते हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऐसा प्रसंग है।

           सूर्य ग्रहण  के समय घर से बाहर  न निकलने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा हुआ है। दरअसल सूर्य ग्रहण के समय सूर्य से बहुत ही हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तरह कहा जाता है  कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता।

        हमारे वेद पुराणों में प्रकृति को माता और इसके हर रूप को देवी -देवताओं का रूप दिया गया है-हमने कुछ पेड़ों को जैसे-बरगद,पीपल को देवताओं और तुलसी, नदियों को देवी का रूप दिया है। यह कोई अन्धविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत  बड़ा तथ्य छुपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने इन्हें देवी-देवताओं का दर्जा इसलिए दिया क्योंकि कोई व्यक्ति किसी की पूजा करता है तो वह कभी भी  उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

          घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरवत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख-ध्वनि जहाँ तक जाती  है वहां तक की वायु से जीवाणु -कीटाणु सभी नष्ट हो जाते हैं .

        हमारे यहाँ चारो धाम घूमने की परंपरा है इस परंपरा के पालन करने से हमें देश के भूगोल का ज्ञान होता है ,पर्यावरण के सौंदर्य का बोध होता है और साथ में ये यात्रायें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी  लाभकारी हैं क्योंकि इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है.

        हमारे सभी रीति-रिवाज़ और त्यौहार हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं जैसे-रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाता है.करवाचौथ दाम्पत्य जीवन  में मधुरता लाता है.ऐसे ही छठ में माँ अपने बच्चे की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है.

         विदेशी लोग भारत  आकर यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परम्पराओं को देख रहे हैं और अपना रहे हैं भारतीय संस्कृति से प्रभावित विदेशी पर्यटक मन की शांति के लिए भारत आते हैं और यहाँ आने पर उन्हें एक अजीब से सुकून का अनुभव होता है।

         हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा  है माता-पिताऔर बड़ों  को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजे बढती हैं -आयु, विद्या ,यश और बल.

अभिवादन शीलस्य नित्यं बृद्ध-उपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलंII
    
         सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल  होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों  के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ  अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं.
       
       आज हम अपनी परम्पराएँ और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं और समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है ऐसे में आवश्यकता है की हम अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बनायें.

Thursday, May 28, 2020

मन एक रेडियो स्टेशन है भाग -2


एंटी टाइम तरंगे और विश्व सेवा 

       बाबा ने कहा  है जो विश्व सेवा करेगा वह विश्व महाराजा बनेगा  और नए बच्चे भी नंबर लें सकते है ।  यह भी  इशारा दिया  है कि  मंसा  सेवा पर विशेष ध्यान देने से होगा । 

          सभी राजयोगी विश्व सेवा के कार्य में लगे हुए है परन्तु 81 साल में अभी तक 20-25 लाख लोगो को हम राजयोगी बना सके है ।  सवाल उठता है आखिर विश्व की सेवा कैसे करें कि  सभी जल्दी  जल्दी भगवान को पहचान सके । 

        हमारे दिमाग  में एक ऐसा केन्द्र है जिस से एंटी टाइम तरंगे निकलती है जो एक क्षण में कहीं भी पहुंच जाती है और तुरंत परिवर्तन आरम्भ कर देती है । इन तरंगो का प्रयोग हमें सीखना चाहिऐ । 

          अगर हम भारत के लोगो का जीवन बदलना  चाहते है तो हमें भारत के प्रधान मंत्री को तरंगे देनी चाहिऐ ।  प्रधान मंत्री  की सोच सारे भारत को प्रभावित करती है ।  प्रधान मंत्री देश के कल्याण के लिए सोचता रहता है ।  इसलिए प्रधान मंत्री की फोटॊ कल्पना में देखो और बीच में बाबा या इष्ट को देखो और बाबा को कहो आप प्यार के सागर है प्यार के सागर है शांति के सागर है शांति के सागर है ।  ये तरंगे प्रधान  मंत्री को पहुंचेगी और वह ऐसी कल्याणकारी स्कीमें  बनाएगा जिस से पूरा भारत खुशहाल बनेगा । 

         ऐसे ही  दूसरे  देशो  के प्रधान ममंत्रियो  को जिन्हे आप ने टी .वी याँ अखबार आदि में देखा है उन्हे  तरंगे दो ।  आप की इन तरंगो से वह  प्रेरित होगे और अपने देश के लिए कल्याण का सोचेंगे और विश्व बदलने लगेगा  । 

           भारत के प्रधान मंत्री को सामने देखो और मन में कहो  आप जैसे विश्व के सभी प्रधान मंत्री शांत स्वरूप है,  प्रेम स्वरूप है,  आप सभी कल्याणकारी है ।  ऐसा करते समय बाबा को भी बीच में रखना है ।  आप के यह विचार एंटी टाइम तरंगे बन कर सभी प्रधान मंत्रियो और उनसे जुड़े सभी व्यक्तियों को प्रेरित करेगे ।  इस विधि  से आप के विचार विश्व की प्रत्येक आत्मा को प्रभावित  करेगे   । 

        ये तरंगे व्हा्ट्सअप ग्रुप की तरह सब को पहुचती है ।  सभी प्रधान मंत्री एक ग्रुप  है । 

          अब भारत के राष्ट्रपति को सामने इमर्ज  करो और कहो  आप जैसे विश्व के सभी राष्ट्रपति शांत स्वरूप है,  प्रेम स्वरूप है कल्याणकारी है ।  क्योकि आप बाबा  को याद करते हुए ये कह  रहें हैं तो बाबा की शक्ति आप की एंटी टाइम तरंगो में प्रवेश कर जाती हैं और पूरे विश्व की आत्माओ को प्रेरित करती हैं तथा राष्ट्रपति कल्याणकारी कानून  बनाते हैं और कल्याणकारी स्कीम पास करते हैं । 

         अपने राज्य का कल्याण करने लिए अपने राज्य के मुख्यमंत्री को तरंगे दे ।  मुख्य मंत्री अपने राज्य को प्रभावित करेगा । 

       अपने जिले का कल्याण करने के लिए अपने जिले के डिप्टी कमीशनर को तरंगे दो ।  आप अपने क्षेत्र में जो करवाना चाहते हैं तो  डी . सी  को कल्पना  में कहे ।  आप के विचार उस तक पहुंचेगे और वह सही  कार्य करेगा । 

           शिक्षा का स्तर सुधारने के  लिए  अपने क्षेत्र के शिक्षा मंत्री और विश्व   विद्यालयो  के वाइस चांसलरस को तरंगे दो ।  आप के विचार उन्हे शिक्षा में सुधार  के लिए प्रेरित करेगे । 

         कानून व्यवस्था को सुधारने लिए राज्य के पोलीस डायरेक्टर और  ग्रहमंत्री को बाबा  के  सामने रखते हुए तरंगे दो ।  आप के विचार उन्हे प्रेरित करेगे और कानून का पालन करेगे । 

       दुनिया में कोई भी सुधार आप चाहते हैं,  उस काम के लिए कौन जिम्मेवार हैं उन्हे तरंगे देते रहो ।  आप के मनचाहे  कार्य होने लगेगे । 

हिमालय में बैठे योगी आज भी अपने योग बल से विश्व को प्रेरित कर रहें हैं । 

ऐसे ही आप भी विश्व में किसी ना किसी को प्रेरित करते रहो जी । 

आप जितने लोगो को प्रेरित करते हैं उतने क्षेत्र के राजा बनेगे । 

यह संसार मेल और फीमेल  से बना हैं । 

         बाबा को सामने  देखतें हुए कहें विश्व की सभी बहिनें आप  शांत स्वरूप हैं प्रेम स्वरूप हैं  । आप का यह संकल्प विश्व की सभी बहिनो को पहुंचेगी । 

         बाबा को याद करते हुए कहें विश्व  के सभी  भाई   आप शांत स्वरूप हैं,  प्रेम स्वरूप हैं और विश्व के भाइयो की लंबी लाइन अपने सामने देखे ।  आप का संकल्प विश्व कि हरेक आत्मा को पहुंच रहा हैं । 

         उपरोक्त दो विधियां  सर्व श्रेष्ट हैं ।  इस से आप का प्रत्येक संकल्प विश्व की प्रत्येक आत्मा को माइंड की एंटी टाइम तरंगो के  कारण से  मिलता   रहेगा   । इन तरंगो पर खोज की जरूरत हैं ।  परन्तु यह सचमुच में पहुचती हैं ।  आप को संशय में नहीँ  होना की ऐसे कैसे होता हैं ।  इस विधि से आप मनसा सेवा करो देखना एक दिन में ही बहुत अच्छा लगेगा ।  आप के ये संकल्प बहुत गहरे तल पर काम करते हैं ।  उन लोगो को शब्द तो समझा नहीँ आएंगे परन्तु उन्हे अच्छा अच्छा लगेगा,  खुशी होगी,  कल्याणकारी विचार उठने लगेगे ।

Friday, May 22, 2020

मन एक रेडियो स्टेशन है भाग -1

आंतरिक बल 

मन एक रेडियो स्टेशन हैं 

एंटी टाइम तरंगे और विश्व सेवा 

जो लोग हमारे आसपास रहते हैं उन्हे कोई बात कहनी हो या संदेश देना हो तो हम मुह से धीरे धीरे  शब्द बोलते हैं 1

व्यक्ति थोड़ा सा दूर हो तो हम जोर से बोलते हैं । 

ज्यादा  लोगो को कोई 'बात कहनी   हो तो हम लाउड  .स्पीकर का प्रयोग करते हैं । 

दूसरे शहर या दूसरे  देश में संदेश भेजना  हो तो हम मोबाइल,  वायरलेस,  इंटेरनेट या रेडियो,  टी .वी .आदि प्रयोग करते हैं । 

रेडियो तरंगो से हम स्पेस में राकेट में बैठे लोगो को संदेश लेते और देते हैं । 

ऐसे ही लोगो को भगवान का परिचय हम व्यक्तिगत रूप से देते हैं ।  क्लास या पब्लिक  प्रोगाम में माइक प्रयोग करते हैं ।  

इन विधियों  से हम बहुत कम संदेश दे पा  रहें हैं । 

81 वर्ष में हम करीब 20-25 लाख  लोगो को ईश्वरीय ज्ञान समझा  पाए  । 

लगभग 800 करोड़ आत्माओ को संदेश देना और उनकी पालना  करना आसान  काम नहीँ हैं । 

जो लोग योग का अभ्यास कर रहें हैं वह भी  अपना आंतरिक बदलाव बहुत कम कर पाए हैं । 

हमारे  मन में  एंटी टाइम ट्रावेलिंग तरंगे हैं जिनके द्वारा हम घर बैठे पूरे विश्व की सेवा कर सकते हैं 

Thursday, May 21, 2020

पाँच तत्व और सांस


        प्रत्येक व्यक्ति हर  घंटे जब  सांस  लेता है तो 16 मिनिट वह   जल तत्व से जुड़ा रहता है ।

         मनुष शरीर में  80 % जल है । अतः  जल का जीवन मे बहुत महत्व है । हर मनुष्य जल पीता रहता है ताकि इस की मात्रा  शरीर मे कम न  हो जाये । ज्यों  ही जल कम होता है हमें प्यास लगती है ।

         हम सांस के द्वारा भी  जल खींचते रहते है । मानव जो जल पीता  है उस मे कोई न कोई  अशुद्धि  होती है । उस मे सूक्ष्म रोगाणु  होते है जो अभी तक मनुष्य की  पकड़ मे नहीं आयें । हमारा  सूक्ष्म मन उन कीटाणुओं को पहचानता  है ।  

          इन रोगणुओ  के इलाज के लिये मन  उस जल को सांस के द्वारा   उन जड़ी  बूटियों से खींच लेता है,  जो औषधि  का काम करती है और जल से टकराती रहती है जो  झरनों के रुप मे गिरता  रहता है चाहे वह हिमालय पर हो या कहीं और  हो । 

       एक शेर को टांग पर बहुत चोट लग गई और वह  एक गुफा मे घुस गया । 2-3 दिन बाहर नहीं निकला तो शिकारियों  ने उस गुफा मे घुस कर देखा  कि गुफा मे एक नाला बह रहा  है तथा  शेर उसके पास लेटा  हुआ है और थोड़ी थोड़ी देर बाद पानी पी लेता  है । 10-15 दिन बाद जब शेर बाहर निकला तो सम्पूर्ण स्वस्थ था । इस से लोगो को पता लगा कि पानी से रोग भी  ठीक होते है । वह पानी ऐसी जड़ी बूटियों से स्पर्श करता  हुआ बह  रहा था  जो औषधि बनाने  के काम आती  थी ।

        इसी तरह मन सांस के द्वारा  आकाश  से वाष्प तथा  समुन्दर  और नदियों से  लवण, मिनरल व  नमक आदि जो शरीर के लिये ज़रूरी होते है, खींचता  रहता है । इस तरह  प्राकृति का यह अनूठा ढंग है शरीर  को  जल प्रदान करने का ।

         मन के बुरे विचार  समुन्दर  पर प्रभाव भी  डालते है । इस समय विश्व का हरेक व्यक्ति नकारात्मक सोचता है, जिस का सामूहिक प्रभाव  समुन्दर मे उतेजना पैदा कर देता  है,  इसके परिणाम स्वरूप   समुन्दरी तूफान आते है ।

        हर घंटे मे प्रत्येक व्यक्ति 12 मिनिट तक अग्नि तत्व से जुड़ा  रहता है ।

        शरीर को गर्म  रखने के लिये उर्जा की जरूरत होती है । यह उर्जा हम सूर्य तत्व से प्राप्त करते है । हम 12 मिनिट मे ही सूर्य से एक घंटे के लिये ज़रूरी उर्जा खींच लेते है ।

        हर व्यक्ति 8 मिनिट तक वायु तत्व से जुड़ा रहता  है । वायु तत्व से हम आक्सीजन लेते है   जो कि पौधों से  मिलती है । इसके इलावा  वायुमंडल मे जो आक्सीजन  होती है वहां से भी  प्राप्त कर लेते है  ।  अतिरिक्त आवश्यक तत्व भी हवा से हम लेते रहते है ।

         हम भगवान  से जीवनी शक्ति प्राप्त करते है । जैसे  नींद और कुछ  नहीं उस समय  हम भगवान से जुड़  जाते है और उस से शक्ति प्राप्त कर लेते है और एक दिन के लिये तरोताजा हो जाते  है ।  ऐसे ही इस आठ मिनिट मे हम भगवान  से बल लेते है ।  यदपि इसे विज्ञान अभी नहीं मानता ।  अध्यात्म इसे मानता है । फ़िर भी  यॆ शोध का विषय है ।

        हर घंटे मे व्यक्ति चार  मिनिट तक आकाश  तत्व से जुड़ा रहता  है । इस समय हम आकाश मे विद्युत तरंगे, चुम्बकीय तरंगे, भगवान  की शक्ति प्राप्त करते है । यह बहुत सूक्ष्म होता है, इसे योगी ही समझ सकता है । विज्ञान का कोई साधन इसे नहीं पकड़ सकता ।

     हम सभी  अपनी  सोच  के अनुसार  आकाश  मे उपलब्ध संकल्पों  से जुड़े रहते है । ये संकल्प उन व्यक्तियों के होते है जिनकी हमारे जैसी सोच है ।

Wednesday, May 20, 2020

सांस और धरती तत्व

आंतरिक बल 
सांस   और पृथ्वी तत्व 

      जो वायु बाहर से भीतर आती है उसे श्वास और जो भीतर से बाहर  जाती है उसे प्रश्वास कहते है ।

       दोनो  नथुनों  से हम बदल बदल कर सांस लेते है और एक नासिका से डेढ़ या दो घंटे तक  सांस लेते है ।

यह जो सांस लेते है इसमे हम सभी पाँचों  तत्वों से उर्जा प्राप्त करते है ।

       मान लो एक स्वर एक घंटे तक चलता  है तो उसमे हम 20 मिनिट पृथ्वी तत्व से उर्जा लेते है, जल तत्व से 16 मिनिट,  अग्नि तत्व से 12 मिनिट, वायु तत्व से 8 मिनिट और आकाश तत्व से 4 मिनिट उर्जा लेते है ।

         हमारे को जीवित रहने के लिये उर्जा भोजन से मिलती है । शरीर को विटामिन, मिनरल  और अनेकों धातुओं की  जरूरत होती है और सधारण आदमी को यह पता नहीं होता कि  उसे किन किन   पौधों से यॆ तत्व प्राप्त होंगे । अगर पता लग भी  जाये तो उन्हे प्राप्त कर पाना बहुत मुश्किल है,  क्योंकि वह बहुत महंगे  होते है ।  हमारे दिमाग मे नाक की जड़ मे ऐसे सूक्ष्म तंतु है जो प्राकृति के विभिन्न  पेड़ पौधौ  से वह तत्व  हवा के माध्यम से  खींच लेते है । वह पदार्थ चाहे पहाडी  इलाकों मे है चाहे दूसरे किसी विश्व के कोने मे है वायु जब वहां से गुजरती है तो उसके सूक्ष्म कण अपने साथ ले लेती है और हम नाक के सूक्ष्म तंतुओ  द्वारा हवा मे से उन्हे ले लेते है और शरीर को हृष्ट पुष्ट करते है । इस लिये हम हर घंटे मे 20 मिनिट पृथ्वी तत्व  से सांस के द्वारा जुड़े रहते है ।

       अगर हम दो तीन घंटे घी से पकवान आदि बनाने मे समय लगाते है तो भूख मर जाती है । इस का कारण यह है कि वह घी के सूक्ष्म कण /शक्ति सांस के द्वारा  प्राप्त कर लेते   है जो हमें भोजन करने से प्राप्त होते है । इसलिये हलवाई आदि को कम भूख लगती है । इसी तरह हर व्यक्ति शरीर के लिये ज़रूरी  तत्व   पेड़ पौधों से  सांस के द्वारा प्राप्त करता  रहता  है । 

       हमे  योग के द्वारा  नाक की  जड़ मे स्थित इस केन्द्र को जागृत करना है ताकि हम विनाश  के समय बिना भोजन भी  जिंदा रह  सके । यह खोज का विषय है ।

ऐसे अनेकों योगी हुये है जो  लम्बे  समय तक बिना कुछ  खाये तपस्या करते रहे । 

       अगर आप का स्वास्थ्य  ठीक नहीं है, तन से कमजोर है तो हर रोज़ कल्पना मे किसी पहाडी पर चले जाओ और वहां के पेड़ पौधों पर मन एकाग्र करो और कहो हे मन जो शरीर के लिये ज़रूरी तत्व है वह सम्बन्धित पौधों से प्राप्त करो । तो आप के मन मे स्थित केन्द्र वह शक्ति सांस से प्राप्त करने लगेगा । आप धीरे धीरे हृष्ट पुष्ट होने लगेगें । यह बहुत सूक्ष्म प्रक्रिया है इसे सिध्द  कर पाना मुश्किल होगा ।

Monday, May 18, 2020

साँस -नियम


             अगर दो घंटे से ज्यादा देर कोई स्वर चलता  है तो यह किसी बीमारी  का प्रतीक है ।

       जब सुषमना नाड़ी अर्थात दोनो नथुनों से एक साथ सांस   आता है तो उस समय मन सात्विक हो जाता है उस समय योग का विशेष अभ्यास करना चाहिये । यह समय 5-10 मिनिट से ज्यादा  नहीं होता ।

       अगर सुषमना नाड़ी लगातार  दो घंटे से ज्यादा चलती है तो यह कोई घातक  बीमारी की  निशानी है । सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच  तालमेल बिठा  रही है ।

        सुषमना स्वर अधिक चलने पर चिन्ता  नहीं दिनचर्या मे सुधार करो ।

        एक दम ताप या शीत  बढ़ने से, पाचन व्यवस्था के गड़बड़ाने से, लम्बे समय तक तनाव की अवस्था मे रहने से सुषमना स्वर लम्बे समय का हो जाता है । उस लम्बे काल को सीमित करने के लिये आहार, व्यवहार, विचार  मे परिवर्तन करना  चाहिये, इस से स्वर अनुकूल हो जाता  है ।

      अपना नियमित स्वर चक्र जानना  हो तो कुछ  दिन के लिये, अपनी जेब मे हर समय कागज कलम रखे ।  अपने  प्रत्येक कार्य करने के दौरान थोड़ी थोड़ी देर के बाद अपने स्वर की जांच  करें की कौन सा स्वर चल रहा  है ।

       नोट करो कि भोजन, शयन, स्नान आदि क़ी  क्रियाओं से  पहले और बाद मे कौन सा स्वर चला है । अति सर्दी अति गर्मी के समय स्वर नोट करें  । सप्ताह भर  मे अपना  औसत स्वर चक्र जान लेगें ।

       आरम्भ मे आप को स्वर का यह हिसाब किताब रखना  अजीब लगेगा लेकिन कुछ ही दिनो मे आप को इस जाँच  मे रस आने लगेगा । फ़िर  इस जांच  की  जरूरत नहीं होगी । आप का ध्यान बिना किसी यत्न के हर समय सांस की ओर लगा  रहेगा । बिना नासिका छिद्र को छुये अपने स्वर का वेग जान लेगें ।

     इस से कुछ  ही दिनो मे अपने भीतर दिव्यता प्रकट होगी । जब कभी तनाव या किसी और मनोदशा से पीडित होगें  तो अपने स्वर पर ध्यान देने से तनाव मुक्त हो  जायेगे । आप एक नये व्यक्ति के रुप मे  निखरते  चले जायेगे ।

Sunday, May 17, 2020

इ डा पिंगला नाड़ी तथा साँस


        कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

           बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

          जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

        बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

          यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

         मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

       जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

       ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

        हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Saturday, May 16, 2020

सांस और विद्युत


         जब हम गुस्से मे होते है तो सांस तेज हो जाते है और जब आराम की अवस्था मे होते है सांस धीमी हो जाती है ।

       हमारा मन हमारी सांसे, हमारे सारे ऊर्जा चक्र सभी आन्तरिक रूपों  से एक दूसरे से जुड़े हुये है ।

         हमारे मन की अवस्था शरीर  मे उपस्थित जीवनी विद्युत पर निर्भर करती है जो हम सांस लेते समय प्राप्त करते है ।

       जब हमें अचानक घबराहट,  अस्थिरता या भ्रम महसूस होने लगता है,  उत्साह की कमी, अवसाद व लक्ष्यहीनता के लक्षण सामने आते है तो  यह दर्शाता है कि हमें सांस लेते समय  कम मानसिक विद्युत  प्राप्त हो रही है ।

श्वास मन का भौतिक रुप है ।

        यदि सांस पर नियंत्रण हो जाये तो हम शरीर और मन पर  नियंत्रण कर सकते है।

        क्या आप लगातार थकान का अनुभव करते है ?  दोपहर होते होते  कार्य की शक्ति जवाब दे  जाती है । थकान होने का  कारण जानने के  लिये टेस्ट कराते  कराते थक गये है ।  सब कुछ  ठीक है परंतु थकान जाती ही नहीं ।

       हमारी सांस लेने की प्रक्रिया की कमजोरी ही इन लक्षणों को जन्म  दे रही है । पेशियों मे खिंचाव या दर्द, सीने मे दर्द, माहवारी से पहले होने वाला तनाव वा दर्द इसी श्रेणी मे आता है ।

        थकावट वा उपरोक्त लक्षणों मे गहरी गहरी सांस लो और मुख से छोडो । इस के साथ साथ मन मे कोमल भावनायें, स्नेह की भावना  रखो, स्वीकार भावना  रखो,  मधुर संगीत  मन  मे गुनगुनाते या सुनते रहो । आराम करो तथा  मन से दूसरो को तरंगे दो ।

        जब हम सांस की गति धीमी करते है तो इस से हमारे विचारो को फैलने के लिये स्थान मिलता है । हम सांस मे जितना अंतराल रखते है विचारो को उतना ही स्थान मिलता जाता है  जिस से विचारो मे बुद्विमता  और स्पष्टता आने लगती है ।

       गहरी सांस भावनाओ को शांत करती है तथा  परिस्थितियो को समझने मे मदद करती है ।

इडा तथा पिंगला नाड़ी


इडा तथा पिंगला नाड़ी और सांस 

कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

        जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

          हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

          बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

        यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

        मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

        जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

        ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

      हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Friday, May 15, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

सांस और दोष


आंतरिक बल   
सांस  और दोष 

        अग्नि मे तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं की अशुध्दता नष्ट हो जाती  है । ऐसे सांस पर नियंत्रण या योग से मन के    दोष दूर होते है ।

        निरंतर सांस नियंत्रण  तथा  प्रभु के गुणों का चिंतन करने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते है । 

सूक्ष्म और स्थूल शरीर दोनो ही शुध्द होते है ।

      जो प्राणी जिस गति से सांस लेता  है उसी के अनुसार उसकी आयु होती है ।

        कछुआ  एक मिनिट मे 4-5 सांस लेता  है उसकी आयु 200 से 400 वर्ष होती है ।

       मनुष्य औसत 12 से 18 सांस लेता है अतः  औसत सांस 16 होती है । उसकी औसत आयु 100 वर्ष होती है ।

अगर योगी औसत एक मिनिट मे 4 सांस ले तो उसकी औसत आयु 400 साल हो सकती है ।

         वायु ही जीवन है, वायु ही बल है । धीरे धीरे सांस से वायु खींचने पर सर्व रोगॊ का नाश  होता है । तेज गति से सांस लेने पर  रोग आ धमकते  है ।

        दिमाग के दो भाग  है । कुछ  कार्य या विचार   दिमाग का बाया भाग  करता  है, कुछ  विचार  दाया भाग  करता है । जब कभी हमें कोई नाकारात्मक विचार परेशान कर रहा हो तो हमें यह पता नहीं होता कि  दिमाग का कौन सा भाग  विचार  कर रहा है । 

         उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस ले रहे है उसे हाथ  की अँगुली से दबा ले तथा  दूसरे नथुने से धीरे धीरे  सांस लेने लग जाओ । इस से आप का दिमाग   दूसरे  गोलार्द्ध  से सोचने लग जायेगा । मान लो आप बायें भाग से सोच  रहे है तो दायें भाग  से सोचने लगेगें और अगर दायें भाग  से सोच  रहे है तो बायें भाग से सोचने लगेगें । इस तरह आप के नाकारात्मक विचार  बदल जायेगे ।

          सांस का सुर बदलने के लिये आप जिस नथुने से सांस ले रहे है उस करवट  लेट जाये । थोड़ी देर बाद अपने आप दूसरे नथुने से सांस चालू हो जायेगा । 

       ऐसा करते समय जो आप चाहते  है वह संकल्प सोचो । मान  लो आप को निराशा  आ रही है तो सोचो मै खुश हूं खुश हूं खुश हूं । भगवान  आप खुशीओ  के सागर है । थोड़ी देर मे नाकारात्मकता बंद  हो जायेगी ।

Wednesday, May 13, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

Wednesday, May 6, 2020

गीता के मूल मंत्र


अध्याय १
मोह ही सारे तनाव व विषादों का कारण होता है।

अध्याय २
शरीर नहीं आत्मा को मैं समझो और आत्मा अजन्मा-अमर है।

अध्याय ३
कर्तापन और कर्मफल के विचार को ही छोड़ना है, कर्म को कभी नहीं।

अध्याय ४
सारे कर्मों को ईश्वर को अर्पण करके करना ही कर्म संन्यास है।

अध्याय ५
मैं कर्ता हूँ- यह भाव ही अहंकार है, जिसे त्यागना और सम रहना ही ज्ञान मार्ग है।

अध्याय ६
आत्मसंयम के बिना मन को नहीं जीता जा सकता, बिना मन जीते योग नहीं हो सकता।

अध्याय ७
त्रिकालज्ञ ईश्वर को जानना ही भक्ति का कारण होना चाहिये, यही ज्ञानयोग है।

अध्याय ८
ईश्वर ही ज्ञान और ज्ञेय हैं- ज्ञेय को ध्येय बनाना योगमार्ग का द्वार है ।

अध्याय ९
जीव का लक्ष्य स्वर्ग नहीं ईश्वर से मिलन होना चाहिये ।

अध्याय १०
परम कृपालु सर्वोत्तम नहीं बल्कि अद्वितीय हैं।

अध्याय ११
यह विश्व भी ईश्वर का स्वरूप है, चिन्ताएँ मिटाने का प्रभुचिन्तन ही उपाय है।

अध्याय १२
अनन्यता और बिना पूर्ण समर्पण भक्ति नहीं हो सकती और बिना भक्ति भगवान् नहीं मिल सकते।

अध्याय १३
हर तन में जीवात्मा परमात्मा का अंश है- जिसे परमात्मा का प्रकृतिरूप भरमाता है, यही तत्व ज्ञान है।

अध्याय १४
प्रकृति प्रदत्त तीनों गुण बंधन देते हैं, इनसे पार पाकर ही मोक्ष संभव है ।

अध्याय १५
काया तथा जीवात्मा दोनों से उत्तम पुरुषोत्तम ही जीव का लक्ष्य हैं ।

अध्याय १६
काम-क्रोध-लोभ से छुटकारा पाये बिना जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा नहीं मिल सकता ।

अध्याय १७
त्रिगुणी जगत् को देखकर दु:खी नहीं होना चाहिये, बस स्वभाव को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिये ।

अध्याय १८
शरणागति और समर्पण ही जीव का धर्म है और यही है गीता का सार।

आन्तरिक बल -कान


            हरेक मनुष्य में ऐसे दिव्य कान  है जो कि  कर्ण इन्द्रिय के मूल में है । जिस के द्वारा  हम कहां  क्या हो रहा  है, सूक्ष्म लोक में क्या हो रह है, यह सब सुन   सकते है ।

             परंतु यह इन्द्रिय बहुत कमजोर हो गई  है, जिस कारण से दूर की आवाज़   नहीं सुन सकते ।

          सूक्ष्म नाकारात्मकता,   सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय  को कमजोर करती है । यह कार्य बच्चे के  ज्न्म  से ही आरम्भ हो जाता है ।

            हमारे मां बाप तथा  बड़े भाई  बहिन, चाचा  चाची हमें छोटी छोटी  बातो पर डांट  डपट करते थे और हम मन मसोस कर रह  जाते थे । अन्दर ही अन्दर घुटते रहते थे ।

         बड़े होने पर मित्रों  ने या  जहां  काम किया, वहां  के बोस ने गलत व्यवहार किये, घर  में पत्नी ने जो टोका टिपणी की जो कि  अनुचित थी, उन से  सूक्ष्म कर्ण  इन्द्रिय कमजोर होती रही तथा  अब बहुत ज्यादा कमजोर हो  गई  है ।

           आज हम यदा  कदा  उपरोक्त सब अनुचित व्यवहारों को मन में रिपीट करते रहते है, जब  यॆ रिपीट करते है तो सूक्ष्म कान इन्हे सुनते रहते है, जिस से आज तक भी  इस इन्द्रिय को अनजाने में  कमजोर करते रहते है ।

          हम जो फिल्में, नाटक  आदि टी  वी पर देखते है, उस  में दूसरो पर जो अत्याचार  होता है, शोषण होता है, बुरे बोल होते है, वह हम मन में याद रखते है, सूक्ष्म में बोलते रहते है, जिसे कान सुनते रहते है और दिव्य कर्ण इन्द्रिय कमजोर होती रहती है ।

            व्यक्ति अपनी सुंदरता, अपनी सेहत को लेकर निरंतर  चिंतित रहता  है जिसे सूक्ष्म कान का केन्द्र सुन लेता है और कमजोर होता रहता है ।

              हर  व्यक्ति कोई ना कोई भूल करता है, तथा  मनचाहे  लक्ष्य प्राप्त ना कर सकने के कारण अपने बारे हीन भावना  से ग्रस्त हो जाता है । यह हीन भावना  मानव की  सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय  को कमजोर करती  है ।

            कोई हमें किसी के बारे बताता  है कि फलाना  व्यक्ति में यॆ यॆ अवगुण है और हम उसे मान  लेते है । इसे पूर्वा  आग्रह कहते है । वह व्यक्ति चाहे कितना गुणवान हो उसके मिलने पर या उसकी उपस्थिति में उसके प्रति बुरा सोचते है जिसे सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय सुनती रहती  है और कमजोर होती रहती है ।

             सार यह है कि  स्थूल वा सूक्ष्म नाकारात्मक विचार, वह चाहे अब की  परिस्थितियो या भूतकाल के कारण हो, वह चाहे सच्चे हो या झूटे  हो, वह हमारे से सम्बन्ध  रखते हो या ना रखते हो, जब जब मन में आयेंगे   उसे हम सूक्ष्म में सुनते भी  है,   जिस से  सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय कमजोर होती है और दूर  दराज की  हल चल नहीं सुन सकती ।

           अगर हमें सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय को जागृत करना है  तो बापू के तीन बंदरों में से तीसरे बंदर की शिक्षा  याद रखो कि  कानो से बुरा  मत सुनो ।

         याद रखो हम जो बोलते है, देखते है, पढ़ते है, महसूस करते है , उसे सूक्ष्म में सुनते भी  है । हर नकारात्मकता दिव्य कर्ण  इन्द्री  को कमजोर करती है ।

Saturday, April 18, 2020

बिन्दु रूप का अभ्यास 48संगीत

          भगवान  के बिंदु रूप का अभ्यास करते हुए जो संगीत में डूब जाता है उसे संगीत से बदला जा सकता है । 

        मोजार्ट के पियानो सोनाटा  K 448 को सुनने से मिर्गी के मरीज में दौरों की संख्या कम हो जाती है । 

          कोई कितना भी बीमार क्यों ना हो वह  संगीत पर प्रतिक्रिया  देता है । 

मधुर संगीत योग की तरह  कार्य करता है । 

संगीत भावनात्मक असंतुलन को जीत लेता है । 

चाहे कुछ भी रोग हो संगीत मस्तिष्क को प्रभावित  करता ही है । 

          जो लोग हृदय रोग से पीड़ित है उन्हे भगवान के बिंदु रूप को याद करते हुए  निम्न गीत सुनने चाहिये । 

तोरा  मन दर्पण कहलाए  - काजल फिल्म 

राधिका तूने बांसुरी चुराई -.बेटी बेटे फिल्म । 

झनक झनक तेरी बजे पायलिया-  मेरे हजूर  फिल्म 

-ओ दुनिया के रखवाले  - बैजू बावरा फिल्म  । 

मुहब्बत की झूठी कहानी पर रोए  -  मुगले  आजम  फिल्म 

          सिर दर्द को ठीक करने लिये भैरव संगीत सुनना  चाहिये । इस संगीत से  संबंधित निम्न गाने  सुनने चाहिये तथा भगवान को भी याद करते रहना चाहिये । 

मोहे भूल गए सावरिया  - बैजू बावरा फिल्म 

   राम  तेरी गंगा मैली -टाईटल  सॉंग 

       पूछो ना कैसे मैने रैन बिताई  - फिल्म तेरी सूरत मेरी आंखे 

       सोलह वर्ष की बलि उम्र को सलाम  - फिल्म एक दूजे के लिये

हर संकल्प एक पेड है

               आप जिस भी  शब्द का इस्तेमाल करते है वह एक पेड़ का बीज है । सोचते ही बीज से एक  छोटा  सा अंकुर   बन जाता है ।जिस व्यक्ति के बारे आप सोच  रहें है यह अंकुर   उस दिशा  में बढ़ता और फैलता जाता  है । 

         जितना ज्यादा आप सोचेगे यह अंकुर /पौधा  उतना ही फैलता जायेगा  और उस व्यक्ति को अपने लपेटे में ले लेगा । जो आप सोच  रहें है उसी अनुसार इस से निकल रही सुगंध या दुर्गंध वह व्यक्ति अनुभव करेगा ।

           यह पौधा  जितना दूसरे व्यक्ति की  तरफ़ बढ़ता  है उतनी ही इसकी जड़े आप के अंतर में भी  गहरी होती जायेगी और वैसा ही सुख या दुख आप को होगा जैसा दूसरे को हो रहा है ।

          अगर हम किसी के प्रति शांति, प्रेम, सुख,सहयोग, सम्मान, शाबाश, मुबारक आदि शब्द प्रयोग करते है तो  समझो  उसको ऐसे पेड़ों ने घेर लिया है जिन से वह हर समय आनंदित होता रहेगा । आप भी  आनंदित होते रहेंगे क्यों कि  इनकी जड़ आप में ही है ।

              अगर आप दूसरे या दूसरों के प्रति सोचते है वह गंदे है, बुरे है, झूटे है, बेईमान है,दगाबाज है, क्रोधी है, अहंकारी है, जिद्दी है, खोटे है, तो समझ लो  उन के चारो तरफ़ ऐसे पौधे उग आयें है जिन से उन्हे  दुख अनुभव होता रहेगा । तथ आप भी  ऐसा ही दुख अनुभव करते रहेंगे क्योंकि जड़ तो आप में ही फैलती गई है ।

              आनंद शब्द को मन में लगातार और जोर दे कर  दोहरायें  और एक समय ऐसा आयेगा जब आप का जीवन आनंदमय हो जाता  है । यह कोरी कल्पना नही, बल्कि एक सत्य है ।

           यदि आपके जीवन में ऐसी चीजे आ रही है जिन्हे आप नही चाहते, तो यह तय है कि आप अपने विचारो या अपनी भावनाओ के बारे जागरुक  नही रहते । इसलिये विचारो के प्रति जागरुक बनो ताकि आप अच्छा  महसूस कर सके और बदलाव ला सके ।

          याद रखो यह सम्भव ही नही कि आप अच्छॆ  विचार सोचे और बुरा महसूस  करें  ।

          जितने भी  महान लोग हुये है उन्होने ने हमें दया और प्यार का मार्ग दिखाया और इसकी मिसाल बन कर ही वे  हमारे इतिहास के प्रकाश स्तम्भ बने ।

         नाकारात्मक सोचने, बोलने और दुख अनुभव करने में बहुत एनर्जी खर्च हो जाती है ।

-सबसे आसान रास्ता है, अच्छा  सोचना, बोलना और करना ।

Friday, April 17, 2020

विश्व बंधुत्व की भावना

                      इस शब्द का प्रयोग और दरुपयोग व्यापक रूप में हो रहा है । सभी धर्म, सभा, सोसाइटिया तथा अनेको संस्थाए और प्रचारक विश्व बंधुत्व की भावना का प्रचार कर रहे है । परन्तु यह भावना धरातल पर नहीं दिखती । विश्व बंधुत्व की भावना की जितनी दुहाई देते है उतना ही अधिक अपने बंधुओ से दूर होते जा रहे हैंं । मुंह में राम और बगल में छुरी वाली बात चरितार्थ हो रही है । लोग धार्मिक संस्थाओ के जितना नजदीक है उतना ही विश्व बंधुत्व और परमात्मा से दूर होते जा रहे है ।
                      बंधुत्व के अभाव में सुखी संसार व परिवार की परिकल्पना नहीं की जा सकती है । अगर हम सिर्फ अपने परिवार या धर्म या अनुयाइयों के प्रति भाईचारे की भावना रखते है तॊ यह सकुंचित भावना है । ब्रह्मांड के कण कण का सुख दुःख जब हम अपना सुख दुःख समझेंगे तॊ यह वास्तविक बंधुत्व होगा । यह तभी हो सकता है अगर हम परमपिता परमात्मा शिव को याद करेंगे । क्योकि सारी सृष्टि भगवान की ही रची हुई है ।                        जब हम सभी परमात्मा शिव को याद करेंगे तॊ हम सभी को एक जैसी प्रेरणाएं मिलेगी, जिनके धारण करने से हमारे मन में बंधुत्व की भावना आएगी । विश्व बंधुत्व की भावना अर्थात जो हमें प्रतिकूल लगता है वह दूसरों के साथ नहीं करना ।
                         उदार  हृदय वाले व्यक्ति के लिये सारा संसार अपना परिवार होता है । साधारण व्यक्ति सिर्फ उन लोगो के लिये कार्य करता है जो उसके परिवार के है या उन पर निर्भर है । रोटी, कपड़ा और मकान विश्व के प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत जरूरत है । अगर हम दूसरों की यह जरूरत पूरी करेंगे तब विश्व बंधुत्व की भावना पूरी होगी ।
                           अग्नि का धर्म है दहकना और जल का गुण है शीतलता । अग्नि दहकना छोड़ दें तॊ अग्नि नहीं कहलाएगी । जल यदि शीतलता छोड़ दे तॊ वह जल ही नहीं रह जाएगा । ऐसे ही प्रत्येक मनुष्य का स्वधर्म है शांति और प्रेम । इस समय शांति और प्रेम मनुष्य में खत्म हो चुका है इसलिए विश्व बंधुत्व की भावना भी खत्म हो चुकी है । यदि सारा संसार राजयोग का अभ्यास करने लगे तॊ विश्व में बंधुत्व की भावना आ जाएगी ।

ईर्ष्या


           प्रायः भाई  भाईयो से और बहिनें बहिनों से या भाई  बहिनों से, बहिनें भाईयो से,  ईर्ष्या  करते रहते है,  एक दूसरे की निंदा करते है, पीठ पीछे  चुगली करते है, एक दूसरे को आगे नही बढ़ने देते, एक दूसरे को बदनाम करते रहते है, एक दूसरे के कामों में कमियां ढूँढते रहते है, एक दूसरों के प्रति नाकारात्मक भाव  उठते रहते है, विचारो में शुद्वता नही आती, क्या करें ?

ईर्ष्या अर्थात उस व्यक्ति की जगह आप लेना चाहते  है जिस की आप निंदा कर रहें है ।

        दूसरे में कोई ऐसी विशेषता है, पदवी है, सुविधा है जो आप के पास नही है, आप सोचते है वह सब कुछ  आप के पास हो, इसलिये आप ईर्ष्या, निंदा चुगली आदि करते है ।

ईर्ष्या अर्थात मेरे पास इस वस्तु व  गुण व  विशेषता का अभाव है ।

ईर्ष्या अर्थात आप दूसरे से अपने को हीन समझते है ।

मन के नियम का  दरूपयोग कर रहें है, आप अप्राप्ति  को बढ़ा  रहें है । 

       लम्बे समय तक इन विचारो में रहेंगे तो आप में ऐसे हार्मोन बनने लगेगें जो आप को कोई न  कोई रोग लग़ा देंगे ।

-ईर्ष्या भाव आप के जीवन को खा  जायेगा ।

आप को हीन बना देगा । 

        कई  बार आप में ईर्ष्या नही होते, सब को अपना समझते है, परंतु अचानक  किसी किसी के  प्रति  मन  में  ईर्ष्या के विचार आने लगेगे,  उसकी शक्ल भी  सामने आने लगेगी । कई बार ऐसे व्यक्ति घर  में होते हैं  । आप अपने को दोषी मानने  लगते है ।

         यहां आप का कसूर नही होता दूसरा  व्यक्ति जो आप से परेशान है वह ऐसा सोच  रहा होता है । सुबह अमृत वेले ऐसे व्यक्ति परेशान करते है, योग नही लगने देते । आप का मन बार बार ईर्ष्या में भटकेगा । ऐसी स्थिति में बाबा  की  मुरली पढ़ा  करो या कोई और पुस्तक जो आप को पसंद हो पढ़ो । इस से आप उनसे डिस कनेक्ट हो जायेगे तब योग बहुत अच्छा  लगेगा ।

        ऐसे व्यक्ति के प्रति सदा स्नेह का भाव  रखो । कई  बार स्नेह का भाव  उनके प्रति नही निकलता । इस अवस्था में किसी स्नेही आत्मा  को स्नेह दो और उस ईर्ष्यालू  आत्मा  को देखो  कि वह स्नेही आत्मा के पास खड़ी है । आप का फोकस स्नेही पर रहें । आप के प्यार की  तरंगे वह आत्मा भी  सुन रही है और आप डिसट्रब नही होगे ।

       ऐसा व्यक्ति  आप का पति व स्कूल टीचर व  बोस भी हो सकता है जिसे आप को सुनना  होता है , उनके बोलने  से आप को अन्दर ही अन्दर बहुत दुख होता  है । ऐसी स्थिति में जब आमना  सामना हो तो आप अपने मन में तुरंत मम्मा बाबा या किसी भी  स्नेही आत्मा को देखो  और सकाश दो,  आप को अच्छा लगेगा ।

       अपना मन किसी  पॉज़िटिव सोच  में लगाये रखो, तो ईर्ष्यालु व्यक्ति डिसट्रब  नही कर सकेगा ।

आत्म हत्या


        कई  बार  मा - बाप, भाई - बहिन, पति -पत्नी, बोस और कर्मचारी, किसी संस्था  से जुड़े लोग या पड़ोसी - पड़ोसी से हर समय आपस में हर रोज़ झगड़ते   रहते   है ।  नौबत यहां  तक आ जाती है कि   मार दे या मर जाये । क्या करें ? 

         अगर आप के सिर में दर्द हो रहा  है तो  क्या इस दर्द से छुटकारा  पाने के  लिये सिर को ही काट देंगे.।

       किसी भी  समस्या के लिये आत्म हत्या कोई समाधान नही होता ।

            सामाज में थोड़ी थोड़ी भिन्नता रखी गई है । नही तो तू भी  रानी मै भी  रानी कौन भरेगा घर  का पानी । अगर सभी एक समान होते तो संसार का काम ही रुक जाता । इस लिय भिन्नता ज़रूर रहेगी इस सच को स्वीकार करना ही चाहिये  ।

         असल में हम ने मतभेदों को सकारात्मक रुप से हल  करना   सीखा ही नही है । हम एक दूसरे को दबाते है ।

       मन में भी किसी से   ना कहे तुम्हारा विचार  मूर्खतापूर्ण है, चाहे वह कुछ  भी  कहे । उसे मुख से नही केवल मन में  अच्छा  करने के लिये सुझाव दो । 

         जब व्यक्ति मुश्किल दौर से गुजर रहा होता है तो वह चाहता  है कि  उसके बड़े उसे सिर या पीठ पर स्पर्श करें दूसरा मनुष्य चाहता  है कि उसके साथ मिठास  भरे  बोल बोले जाये । उसे सात्विक ऊर्जा की जरूरत होती है । 

         गहराई में समझो बहिनें चाहती है कि  उनसे विस्तार से बात की  जाये। बातचीत से सम्बन्ध अच्छे  बनते है  समस्या का हल निकलता है । 

         बहिनें भले ही कितनी भी  सफल या आजाद क्यों ना हो, वे बहुत गहरे में, भाईयो से अभिभावक की  तरह संरक्षण चाहती  है । वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन तभी दे पाती है जब वह किसी पुरुष की  उपस्थिति में सुरक्षित अनुभव करती है ।

         ऐसे ही सूक्ष्म तल पर आदमी जीवन में बहिनों को खुश देखना  चाहते  है । वह अपना बेहतरीन तभी दे पाते  है जब कोई महिला जिसका संरक्षण प्राप्त है वह जीवन में बहुत खुश हो । अगर ऐसा ना हो तो वह पलायन करता है ।

       स्वयं को बदलो  और वह जैसा व जैसी भी  है उसे स्वीकार करें ।

         आप उसकी ओर से जैसा व्यवहार अपने लिये नही चाहते, उस के साथ उसी रुप में पेश न आयें ।

         प्रेम की  ताकत पर भरोसा रखे । अगर प्रेम से कुछ  सम्भव नही हो सका  तो किसी दूसरी चीज़ से नही हो सकता । प्रेम ही मुक्ति का  द्वार  है । 

        जब बहिनों को यह  लगता है कि उन्हे दुनिया में कोई भी  भाई प्यार नही करता और भाईयो को लगता है दुनिया में कोई भी  बहिन प्यार नही करती, सब स्वार्थी है,  तब वह  जीवन ख़त्म करने का सोचते है ।

         असल में हर आत्मा  प्यार की  भूखी  है । इस इच्छा को केवल मन के द्वारा  पूरा कर सकते है । साधनों व  सुविधाओं से आप एक बच्चे को भी  खुश नही कर सकते ।इस लिए सभी के प्रति मन में स्नेह का भाव  रखो ।

          प्रेम का  नियम उल्टा चलता  है । अगर आप सोचें  कि वह मुझ से प्यार करें तो प्यार नही होगा क्योंकि वह इस के विपरीत   सोचेगा कि पहले  आप उस से प्यार करें ।

        मन में उसे कहे आई लव यू  लाइक यू तो वह वह भी  आप को कहेगा  आई लव यू  लाइक यू ।

        आप अपने मन में देखो  उसके जीवन में क्या चाहिये  जो मै उसे दूँ  उसकी  मदद करूँ । तब वह भी  बदले में आप के बारे ऐसे ही सोचेगा । इस से दोनो पक्षों में प्यार हो जायेगा और आत्म हत्या का  बीज   ही ख़त्म  हो जायेगा । आप की अमूल्य मानसिक उर्जा नष्ट होने से बच जायेगी ।

       यही नियम बोस वा कर्मचारी, गुरु वा चेला या पड़ोसी पड़ोसी में भी  लागू होता है ।

        एक शब्द मन में रिपीट करते रहो आप स्नेही है । चाहे वह डीजरव ( deserve ) करता हो या नही  करता /करती हो । जिंदगी में सदा आगे ही बढ़ते  रहेंगे ।

गुरु क्या है?


           स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कर्क रोग से पीड़ित थे। उन्हें खाँसी बहुत आती थी और वे खाना भी नहीं खा सकते थे। स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु जी की हालत से बहुत चिंतित थे।

         एक दिन की बात है स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने विवेकानंद जी को अपने पास बुलाया और बोले -

"नरेंद्र, तुझे वो दिन याद है, जब तू अपने घर से मेरे पास मंदिर में आता था ? तूने दो-दो दिनों से कुछ नहीं खाया होता था। परंतु अपनी माँ से झूठ कह देता था कि तूने अपने मित्र के घर खा लिया है, ताकि तेरी गरीब माँ थोड़े बहुत भोजन को तेरे छोटे भाई को परोस दें। हैं न ?"

नरेंद्र ने रोते-रोते हाँ में सर हिला दिया।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस फिर बोले - "यहां मेरे पास मंदिर आता, तो अपने चेहरे पर ख़ुशी का मुखौटा पहन लेता। परन्तु मैं भी झट जान जाता कि तेरा शरीर क्षुधाग्रस्त है। और फिर तुझे अपने हाथों से लड्डू, पेड़े, माखन-मिश्री खिलाता था। है ना ?"

नरेंद्र ने सुबकते हुए गर्दन हिलाई।

अब रामकृष्ण परमहंस फिर मुस्कुराए और प्रश्न पूछा - "कैसे जान लेता था मैं यह बात ? कभी सोचा है तूने ?"

नरेंद्र सिर उठाकर परमहंस को देखने लगे।

"बता न, मैं तेरी आंतरिक स्थिति को कैसे जान लेता था ?"

नरेंद्र - "क्योंकि आप अंतर्यामी हैं गुरुदेव"।

राम कृष्ण परमहंस - "अंतर्यामी, अंतर्यामी किसे कहते हैं ?"

नरेंद्र - "जो सबके अंदर की जाने" !!

परमहंस - "कोई अंदर की कब जान सकता है ?"

नरेंद्र - "जब वह स्वयं अंदर में ही विराजमान हो।"

परमहंस - "अर्थात मैं तेरे अंदर भी बैठा हूँ। हूँ ना ?"

नरेंद्र - "जी बिल्कुल। आप मेरे हृदय में समाये हुए हैं।"

परमहंस - "तेरे भीतर में समाकर मैं हर बात जान लेता हूँ। हर दुःख दर्द पहचान लेता हूँ। तेरी भूख का अहसास कर लेता हूँ, तो क्या तेरी तृप्ति मुझ तक नहीं पहुँचती होगी ?"

नरेंद्र -  "तृप्ति ?"

परमहंस - "हाँ तृप्ति! जब तू भोजन करता है और तुझे तृप्ति होती है, क्या वो मुझे तृप्त नहीं करती होगी ? अरे पगले, गुरु अंतर्यामी है, अंतर्जगत का स्वामी है। वह अपने शिष्यों के भीतर बैठा सबकुछ भोगता है। मैं एक नहीं हज़ारों मुखों से खाता हूँ।"
             याद रखना, गुरु कोई बाहर स्थित एक देह भर नहीं है। वह तुम्हारे रोम-रोम का वासी है। तुम्हें पूरी तरह आत्मसात कर चुका है। अलगाव कहीं है ही नहीं। अगर कल को मेरी यह देह नहीं रही, तब भी जीऊंगा, तेरे माध्यम से जीऊंगा। मैं तुझमें रहूँगा।

Saturday, March 21, 2020

साधना बिन्दु रूप की

बिंदु रूप की साधना 

1- बिंदु रूप में भगवान  को याद करना सब से आसान है । 

2-इस रूप को हरेक व्यक्ति,  बूढ़ा,  बच्चा और जवान,  अनपढ़ और पढ़ा  लिखा कोई भी याद कर सकता है । 

3-बिंदु रूप में याद करने से कोई साइड  एफेक्ट नहीं होता ।  इस का पुस्तकें पढ़ के भी अभ्यास कर सकते हैंं  । 

4-आप मन में बिंदु देखते रहो  । 

5-अपनी आंखों के आगे जितनी नजदीक या दूर कल्पना में एक  बिंदु  जैसा  आकाश  में सितारा देखते है,  देखते रहो । 

6-अगर कल्पना में बिंदु नहीं देख सकते है तो अपने सामने  शिव बाबा  का किरणों  वाला चित्र रख ले । 

7-अगर आप के पास  चित्र नहीं है तो कोई कागज पर एक बिंदु बना ले । 

-मोमबती या दीपक प्रयोग नहीं करना है । 

8-बस बिंदु को देखते हुये भाव  रखो यह परमपिता परमात्मा का दिव्य और अलौकिक रूप है । 

9-बिंदु को देखते हुये  मन में कहो आप शांति के सागर है ।  इसी संकल्प को दोहराते रहना है । 

या 

10-इस बिंदु को मन में देखते हुये कहो  आप प्यार  के सागर  है,  प्यार  के सागर  है । 

11-इन दो गुणों में से जो आप को पसंद है उसको मन में धीरे धीरे दोहराते रहो । 

12-जैसे ही हम भगवान  को याद करते है,  हमारा  मन परमात्मा से जुड़ जाता  है और परमात्मा की शक्ति हमारे  में आने लगती है । 

13-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

14एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

15-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को संदेश भेजने और उंहे शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

16-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

17-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो अनुभूति नहीं होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

18-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

19-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

 20-  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

21-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

      ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

Monday, March 9, 2020

मनचाही शक्तियों की प्राप्ति और कुदरती नियम -शक्ति पात

मनचाही प्राप्ति  और कुदरती नियम 

शक्तिपात 

1-शक्तिपात अर्थात अपनी शक्ति का हस्तांतरण करना । 

2-अगर हमारे पास  पदार्थ है तो हम दूसरों को भोजन कराते  हैं ।  लंगर चलाते  है । दूसरों को कपड़े दान  करते है ।   जरूरत मंदो को हर माह  कुछ ना कुछ  पदार्थ दान  करते रहते है । यह एक प्रकार का शक्तिपात  है । 

3-हम जिस भी धार्मिक  संस्था से जुड़े होते है,  उसको तन, मन और धन से यथा शक्ति सहयोग देते है ,  यह सहयोग भी एक शक्तिपात  है । 

4- अगर हमारे पास  धन है तो हम स्व इच्छा से स्कूल ,  कॉलेज,  यूनिवर्सिटी और फ्री हस्पताल खोल देते है या गरीब विद्यार्थियों की आर्थिक मदद करते है तो यह  भी शक्तिपात  है । 

5-हम गरीब लोगों को अपना मकान,  प्लाट,  कार ,  स्कूटर,  साइकल  आदि दान  दे देते है तो यह भी शक्तिपात  है । 

6-जब जब   प्राकृति  की तरफ से कोई  आपदा  आती है तो हम मानवता की भलाई के लिये आगे आते है और बिना स्वार्थ  सहयोग देते है । यह सहयोग भी शक्तिपात  है । 

7-स्थूल पदार्थों से जो हम दूसरों को सहयोग देते है यह पहले   स्तर का शक्तिपात  है ।  अगर यह ना हो तो समाज  नष्ट हो जायेगा । 

8-दूसरे स्तर का शक्तिपात  है लोगों को रोजी रोटी कमाने की कला सिखाना । 

9-हर व्यक्ति में कोई ना कोई कला होती है ।  संगीत कला,  पाक कला  उपचार कला,  इंजिनियरिंग की कला,  टीचिंग की कला अर्थात आप गायक है,  अच्छे कुक है,   इंजिनियर है,  अच्छे मेकेनिक है,  अच्छे डांसर है,  अच्छे पहलवान है,  अच्छे कोच है,  वकील है,  शिक्षक  है,  किसान  है,  प्रॉपर्टी डीलर है,  प्रचारक है ।  हम अपनी यह कला दूसरों को सिखा कर उन्हें  रोजी रोटी के लायक बनाते है ।  यह दूसरी तरह  का शक्तिपात  है । 

10-हम सक्षम है और लोगों को रोजगार देते है ।  घर में ,  दुकान में ,  फेक्टरी  में लोगों को रोजगार देते है ।  यह   भी शक्तिपात  है । 

11-हम मेहनत कर के  अच्छी पढ़ाई से सरकार  में उंच नौकरी आई  ए  एस या आई पी एस बन जाते  है तो सरकार  हमें बहुत  सारी शक्तिया  दे देती है । इसे भी शक्तिपात  कह सकते   हैं । 

12-हम समज सेवा करते करते पार्षद,  महापौर,  एम एल ए,  एम पी,  -  मुख्यमंत्री,  मंत्री,  प्रधान मंत्री  और राष्ट्रपति बन जातें  है ।  इस से हमें अथाह शक्तियां  मिल जाती  है ।  ये भी शक्तिपात  कहते  है । 

13-पवित्रता,  योग साधना  और सेवा करते करते जब हम आंतरिक रूप से योग्य बन जाते  है  तो ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न  महापुरुष या भगवान  हमें अपनी शक्तियां  दे देते है ।  असल में यही वास्तविक शक्ति पात  है । जिसका बहुत  महिमा मंडन है ।