आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य की भाग-दौड़ इतनी बढ़ गई है कि जीवन का सारा आनंद जैसे खो गया है। इससे आदमी में चिड़चिड़ाहट और तनाव बढ़ गया है। इसी कारण विनोदी स्वभाव वाला व्यक्ति भी प्राय: परिवार में और बाहर भी छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो उठता है।
अक्सर लोग क्रोध करके प्रायश्चित के भाव से भर जाते हैं, लेकिन पुन: क्रोधित होते रहते हैं। इस पर एक फारसी कवि ने फरमाया था, 'हम प्रायश्चित करके भले ही परमात्मा की विपत्तियों से बच जाएं, परंतु लोगों की फब्तियों से नहीं बच सकते। कहते हैं कि दराती के एक ओर दांत होते हैं, किंतु लोगों की जिह्वा के दोनों ओर दांत होते हैं। दराती एक ओर से और जिह्वा दोनों ओर से वार करती है। यह सत्य है कि जीवन-चक्र की गति बड़ी न्यारी होती है और हमारे सामने घटित होती घटनाएं हमें प्रभावित करती हैं। हम बात-बात पर बिगड़ उठते हैं। सामान्य बात पर भी हम अपनी सहजता त्याग कर क्रोधित हो जाते हैं। यह सर्वथा अनुचित है। हमें जीवन में सदैव संतुलन बनाकर चलना चाहिए। सामने वाले की संपूर्ण बात धैर्य से सुनकर तब कोई निर्णय लेने से क्रोध से बचा जा सकता है।
यह बहुत आसान है। सामने वाले की कही बात और किन परिस्थितियों में वह घटना घटी, इस बात का मूल्यांकन करें। उसे तौलें और परखें। इससे अकारण क्रोध और फिर प्रायश्चित से बचा जा सकता है।
कहा गया है कि मनुष्य का मुख्य शत्रु क्रोध है। यह देह में रहता हुआ ही देह को नष्ट कर देता है। गीता में क्रोध के संबंध में इसी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है और मूढ़ता से स्मृति भ्रांत होती है। स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट हो जाने से प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। हममें से अधिकतर लोग गीता आदि ग्रंथ पढ़ते हैं, किंतु अवसर आने पर क्रोध कर बैठते हैं। ऋषि-मुनियों ने क्रोध को जीतने का तरीका बताया है, लेकिन हम जानते हैं कि संसार में रहकर मन से भी अधिक कठिन क्रोध पर विजय पाना है। क्रोध को जीतने से पहले यदि हम काम, मोह, लोभ पर विजय पा लें, तो तनाव दूर हो जाएंगे। इसके दूर होते ही हम संतोषी बन जाएंगे और संतोष के आते ही क्रोध से बच जाएंगे। तनाव से बचने के लिए योग करें, योग से क्रोध भी शमित होता है। योग हमें जीवन की बुराइयों से दूर रखता है।
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