Friday, February 20, 2015

युवाओं के प्रेरणाक्षश्रोत स्वामी विवेकानंद

          विवेकानंद युवाओं के लिए एक बड़ा आदर्श हैं। हालांकि उनका सिर्फ 39 साल का जीवन रहा, इसके बावजूद उन्होंने अपने विचारों और कार्र्यों से पूरे विश्व को एक नई दिशा दी। स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व के गुणों को अपना कर कोई भी आगे बढ़ सकता है।

          आत्मविश्वासी बनें : स्वामी विवेकानंद के मुताबिक, आस्तिक वही है, जो खुद पर विश्वास करे। कोई व्यक्ति भगवान पर विश्वास करता है, पर खुद पर विश्वास नहीं करता, तो वह नास्तिक है। यानी आत्मविश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। खुद पर भरोसा रखने से ही व्यक्ति कोई भी कार्य कर सकता है।

          तन-मन हो स्वस्थ : आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने तन और मन को मजबूत बनाने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि गीता वीरों के लिए है, कायरों के लिए नहीं। यानी ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले शरीर और मन को मजबूत बनाएं।

          दूर करें हीनता-बोध : विवेकानंद ने लोगों के हीनता-बोध दूर करने के लिए ही सबको शिक्षा दी कि खुद को शरीर नहीं, आत्मा समझें। वह आत्मा, जो शक्तिशाली परमात्मा है। इससे हीनता बोध खत्म होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। इसलिए कभी भी ऐसी सोच न रखें कि मैं कमजोर, पापी या दु:खी हूं।

          संयम-अनुशासन : खुद पर नियंत्रण करना संयम होता है। संयमी व्यक्ति सारे व्यवधानों के बीच भी अपने कार्य को सहजता से आगे बढ़ाता रहता है। सेवा की भावना, शांति, कर्मठता आदि गुण संयम से आते हैं। संयमी व्यक्ति तनाव से मुक्त होता है, इसीलिए वह हर काम गुणवत्ता से करता है। विवेकानंद ने कहा है - किसी भी क्षेत्र में शासन वही कर सकता है, जो खुद अनुशासित है।

          भय को तिलांजलि दें : स्वामी विवेकानंद के मुताबिक, हमेशा यह सोचें कि मेरा जन्म कोई बड़ा काम करने के लिए हुआ है। यह सोचकर बिना किसी से डरे, अपने काम को ईश्वर का आदेश समझ कर करें। भय तब दूर हो जाएगा, जब हम खुद को अनश्वर आत्मा मानेंगे, नश्वर शरीर नहीं।

स्वावलंबी बनें : स्वामी जी ने कहा है कि भाग्य पर भरोसा न करें, बल्कि अपने कर्र्मों से अपना भाग्य खुद गढ़ें। 'उठो, साहसी और शक्तिमान बनो।Ó इसमें आत्मनिर्भर बनने का सूत्र दिया गया है। स्वामी जी कहते हैं कि सारी शक्ति तुम्हारे अंदर ही है। तुम्हींअपने मददगार हो, कोई दूसरा तुम्हारी मदद नहींकर सकता। भगवान भी उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद खुद करता है। यानी स्वावलंबी बनना आवश्यक है।

सेवा परमोधर्म: : स्वामी जी ने नि:स्वार्थ भाव से सेवा को सबसे बड़ा कर्म माना है। सेवा भाव का उदय होने से व्यक्ति दूसरों के दुखों को दूर करने की चेष्टा में अपने दुखों या परेशानियों को भूल जाता है और उसके तन-मन की सामथ्र्य बढ़ जाती है।

आत्मशक्ति जगाएं : विवेकानंद के अनुसार, आत्मा परमशक्तिशाली है, वही ईश्वर है। इसलिए अपने आत्म-तत्व को पहचानकर उसकी शक्ति को जगाएं। तब आप स्वयं को ऊर्जावान महसूस करेंगे। असफलता से परेशान होकर अपने प्रयासों को छोड़े नहीं और किंचित सफलता पाकर संतुष्ट होकर बैठें नहीं। स्वामी जी ने कहा, उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक नहीं रुको।

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