Monday, February 16, 2015

प्रेम और मोह में अन्तर


       यजुर्वेद में लिखा है कि बुराइयों को द्वेष की अपेक्षा प्रेम से दूर करना ज्यादा सरल है। इसी प्रकार ताओ धर्म कहता है कि प्रेम के आधार पर ही मनुष्य वीर बन सकता है। प्रेम ही है, जो अंधकार को प्रकाश में, निर्जीवता को जीवन में और मरघट को उद्यान में बदल देने की शक्ति रखता है।

      जैसे आग का गुण ऊष्णता है, वैसे ही आत्मा का गुण प्रेम है। गलत प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों में भी प्रेम होता है, लेकिन वह उनकी गलत प्रवृत्तियों के नीचे दब जाता है।

      प्रेम की महिमा जहां हर पंथ ने गाई है, वहीं सभी ने मोह को व्यक्ति से लेकर राष्ट्रहित तक के लिए घातक बताया है। प्रश्न उठता है कि प्रेम और मोह में अंतर कैसे किया जाए? इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि वह प्रेम जो कर्तव्य पालन में बाधा बन जाए, वह मोह है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि अपनी सांसों में बसे गोकुल को योगेश्वर ने छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें युग-धर्म निभाने के लिए मथुरा जाना था और अखंड राष्ट्र निर्माण के लिए पांडवों का मार्गदर्शन करना था। स्वार्थ मुक्त होकर युगधर्म का शिक्षण देने वाला प्रेमभाव विकसित करने के लिए हर पंथ पुकारता है।

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