दुनियां में कई उदाहरण चुनैौतितियों से लडने के पढने में आते हैं जिनमें एक उदाहरण सामने है कि-गंभीर बीमारी से अशक्त होने के बावजूद जीवन से हार न मानने वाली दीपा मलिक ने अपने जज्बे और मेहनत से साहसिक खेलों में अलग पहचान बना ली। आज वह दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं। मुश्किल अंधेरों से कैसे वह बाहर निकल सकीं, खुद उन्हीं से जानें--
1- स्पाइनल ट्यूमर ने मुझे हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर बिठा दिया। कंधे के नीचे का पूरा शरीर संवेदनशून्य है। कंधों में भी जोर नहीं। तीन ऑपरेशन और 183 टांके भी मुझे नॉर्मल नहीं रख सके। लेकिन मैंने जीवन से हार नहीं मानी, बल्कि हिम्मत और मेहनत से उबरने की कोशिश की। अपंग का तमगा मुझे जरा भी नहीं भाता था। इस शब्द को मिटाने की जद्दोजहद ने ही मुझे प्रेरणा दी। एक-डेढ़ साल तो उठना-बैठना सीखने में ही लग गया। पैर कमजोर हुए तो क्या हुआ, मैंने अपने हाथों में जान भर ली। खुद नहाना, बैलेंस करके कपड़े बदलना, ब्लेडर और बॉउल पर कंट्रोल करना सीखा।
मेरा मानना है कि जो लोग हार मान जाते हैं, वे मन से अपंग होते हैं, विचारों से विकलांग होते हैं। मैंने वह रास्ता चुना जो कठिन जरूर था, लेकिन असंभव नहीं।
जिंदगी बहुत खूबसूरत है और एक बार ही मिलती है। मैं जब उदास होती हूं तो दो बातें करती हूं। एक तो, उन चीजों को ढूंढ़ती हूं जो मुझे खुशी देती हैं। बाहर चली जाती हूं। स्पोट्र्स में डूब जाती हूं। रोज नई चीज सीखने, नई एक्टिविटी से मुझमें आत्मविश्वास आता है। दूसरे, बुरा होने पर रोना-धोना नहीं करती। चुनौतियों का सामना हिम्मत से करती हूं। समस्या के समाधान पर काम करती हूं। आपके साथ कई जिंंदगियां करीब से जुड़ी होती हैं। अगर मैं खुद को नहीं संभालती, तो मेरी बेटियों की परवरिश ठीक से नहीं होती, मेरे पति और माता-पिता के जीवन को ग्रहण लग जाता। मुझे दुखी देखकर वे भी उदास हो जाते। हमें कोई हक नहीं बनता कि हम दूसरों की जिंदगी में कांटे बो दें। मैंने बाइकिंग, मोटरस्पोट्र्स जैसे साहसिक खेलों में लिम्का रिकॉड्र्स बनाए। एथलेटिक्स में देश का नाम रोशन किया है। अर्जुन अवार्ड से नवाजी गई। जब मैं एक्सट्रीम एडवेंचर कर सकती हूं, तो कोई और क्यों नहीं कर सकता?
2- पैट्रिक हेनरी चूज अमेरिका के जाने-माने संगीतकार हैं। उनका संघर्ष उन लोगों के लिए प्रेरणा बन सकता है, जो अपनी शारीरिक अक्षमता या संसाधनों की कमी को ही दोष देते रहते हैं और अपने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कोई प्रयत्न ही नहीं करते।
पैट्रिक का जन्म 10 मार्च, 1988 को लुइसविले, केटुकी में हुआ था। जब उनका जन्म हुआ तो वे न तो देख पाने में सक्षम थे, न ही अपने हाथ और पैर ठीक से हिला-डुला सकते थे। डॉक्टरों ने बताया कि उनकी यह दुर्लभ बीमारी ठीक नहीं हो सकती। जब वे 9 साल के हुए, तो व्हील चेयर पर बैठे-बैठे ही पियानो पर अपनी अंगुलियां फिराने लगे। संगीत का गुण उनमें जन्मजात था। जल्द ही उन्होंने पियानों में महारत हासिल कर ली और फिर ट्रंपेट बजाना सीखने लगे।
पैट्रिक हेनरी ने कभी अपनी अक्षमताओं से हार नहीं मानी। उन्हें अमेरिका में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान 2006 में मिली, जब लुइसविले मार्र्चिंग बैंड के डायरेक्टर डॉ. ग्रेग बायरन ने उनकी प्रतिभा देखी और उन्हें अपने बैंड से जोड़ लिया। वहां वे ट्रंपेट बजाते। उनके पिता उन्हें रोज व्हील चेयर पर बैठाकर ले जाते और लेकर आते। पिता-पुत्र की इन कोशिशों को देखने भारी भीड़ जुटने लगी। फुटबॉल सीजन में टेलीविजन और अखबारों में पैट्रिक छा गए। पैट्रिक को संगीत प्रस्तुति के लिए पूरे देश से ऑफर मिलने लगे और वे बड़े संगीतकार बन गए। इतना ही नहीं, उन्होंने विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी की।
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