कुछ व्यक्ति केवल भीड़ में ही उत्सव मना सकते हैं, कुछ सिर्फ एकान्त में, मौन में, खुशी मना सकते हैं। मैं तो कहता हूं दोनों करो! एकान्त में उत्सव मनाओ और लोगों के साथ भी। जीवन एक उत्सव है। जन्म एक उत्सव है, मृत्यु भी उत्सव है। मौन की गूँज हो या शोरगुल हर पल उत्सव है।
अकेले होने पर भीड़ को महसूस करना अज्ञानता है। भीड़ में भी एकान्त महसूस करना बुद्धिमता का लक्षण है। भीड़ में एकान्त का अनुभव करना ज्ञान है। जीवन. ऊर्जा का ज्ञान आत्मविश्वास लाता है और मृत्यु का ज्ञान तुम्हें निडर और केंद्रित बनाता है।
इंद्रियां - इंद्रियां अग्नि की तरह हैं। तुम्हारा जीवन अग्नि के समान है। इंद्रियों की अग्नि में जो कुछ भी डालते हो, जल जाता है। यदि तुम गाड़ी का टायर जलाते हो, तो दुर्गंध निकलती है और वातावरण दूषित होता है। यदि तुम चंदन की लकड़ी जलाते होए तो चारों ओर सुगंध फैलती है। कोई अग्नि प्रदूषण फैलाती है और कोई अग्नि शोधन करती है।
आग के चारों ओर बैठकर उत्सव मनाते हैं और चिता की अग्नि के चारों ओर शोक मनाते हैं। जो अग्नि शीतकाल में जीवन को सहारा देती हैए वही अग्नि विनाश भी करती है। तुम भी अग्नि की तरह हो। क्या तुम वह अग्नि हो जो वातावरण को धुएं और गंदगी से प्रदूषित करती है या कपूर की वह लौ जो प्रकाश और खुशबू फैलाती है, संत कपूर की वह लौ हैं जो रोशनी फैलाते हैंए प्रेम की ऊष्णता फैलाते हैं। वे सभी जीवों के मित्र हैं।
उच्चतम श्रेणी की अग्नि प्रकाश और ऊष्णता फैलाती है। मध्यम श्रेणी की अग्नि थोड़ा प्रकाश तो फैलाती है, मगर साथ ही थोड़ा धुआं भी। निम्न श्रेणी की अग्नि सिर्फ धुआँ और अन्धकार फैलाती है। विभिन्न प्रकृति की अग्निओं को पहचानना सीखो।
यदि तुम्हारी इंद्रियां भलाई में लगी हैं, तो तुम प्रकाश और सुगंध फैलाओंगे। यदि बुराई में लगी हैंए तुम धुआँ और अन्धकार फैलाओगे। ष्संयमष् तुम्हारे अंदर की अग्नि की प्रकृति को बदलता है।
आदतें - वासनाओं, धारणाओं, से कैसे मुक्त हों, यह प्रश्न उन सभी के लिए है जो बुरी आदतों से छुटकारा पाना चाहते हैं। तुम आदतों को छोडऩा चाहते हो क्योंकि वे तुम्हें कष्ट देती हैं, तुम्हें बांधती हैं। वासनाओं का स्वभाव है तुम्हें विचलित करना, तुम्हें बांधना और जीवन का स्वभाव है मुक्त होने की चाह। जीवन मुक्त रहना चाहता है, पर जब यह नहीं मालूम कि कैसे मुक्त हों, तब आत्मा जन्म.जन्मांतरों तक मुक्ति की चाह में भटकती रहती है। आदतों से छुटकारा पाने का उपाय है संकल्प या संयम। सभी में कुछ होता ही है। जब जीवन.शक्ति में दिशा होती हैए तब संयम द्वारा आदतों के ऊपर उठ सकते हो। जब मन बुरी आदतों की व्यर्थ चिंताओं में उलझा रहता है तब दो बातें होती हैं पहली, तुम्हारी पुरानी आदतें वापस आ जाती हैं और तुम उनसे निरुत्साहित हो जाते हो। तुम अपने को दोषी ठहराते हो और सोचते हो कि तुम्हारा कोई विकास नहीं हुआ।
दूसरी ओर तुम बुरी आदतों को संयम अपनाने का एक नया अवसर मानकर प्रसन्न होते हो। संयम के बिना जीवन सुखी और रोग मुक्त नहीं होगा। उदाहरण के लिए तुम्हें पता है कि अत्यधिक आइसक्रीम खाना उचित नहीं वरन बीमार पड़ जाओगे। संयम ऐसी अति को रोकता है। समय और स्थान को ध्यान में रखकर संकल्प करो। संकल्प समयबद्ध होना चाहिए।
उदाहरण के लिए किसी को सिगरेट पीने की आदत है और वह कहता है मैं सिगरेट पीना छोड़ दूँगा। वह सफल नहीं होता। ऐसे लोग निर्धारित समय जैसे तीन महीने या 90 दिनों के लिए संकल्प ले सकते हैं। अगर किसी को गाली देने की आदत है वह दस दिनों तक बुरे शब्दों का प्रयोग करने का संकल्प करे। जीवन भर के लिए संकल्प मत करो तुम उसे निभा नहीं पाओगे। यदि कोई संकल्प बीच में टूट जाए, चिंता न करो। फिर से शुरू करो। धीरे-धीरे समय की सीमा बढ़ाते जाओ, जब तक वह तुम्हारा स्वभाव न बन जाए। जो भी आदतें तुम्हें परेशान करती हैं, कष्ट देती हैंए उन्हें संकल्प के द्वारा संयम से बाँध लो।
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