Monday, February 16, 2015

अनमोल वचन

 
1--        क्रोध का प्रभाव हमारे अपने मस्तिष्क पर पड़ता है और उससे कुछ भी सोचने-समझने की क्षमता नष्ट हो जाती है। बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट हो जाने पर व्यक्ति स्वयं का ही नाश कर बैठता है।

2-        मन -आपका संकल्प ही बाहृय जगत में नवीन आकार ग्रहण करता है। जो कल्पना-चित्र अंदर पैदा होता है, वही बाहर स्थूल रूप में प्रकट होता है। हर सद्विचार और दुर्विचार पहले इंसान के मन में उत्पन्न होता है और वह उस विचार के आधार पर अपना व्यवहार निश्चित करता है।

3-        वचन- जिस काम को संपन्न करने में बल और पराक्रम अक्षम साबित होते हैं, उसे किसी इंसान का मधुर वचन चुटकियों में हल कर देता है।

4-        कर्म -जो व्यक्ति दिखावे मात्र के लिए दूसरों की नकल करते हैं और उसके अनुरूप कार्य करने की कोशिश करते हैं, कुछ समय बाद वे अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। स्वयं तय किए गए लक्ष्य ही सफलता सुनिश्चित करते हैं।

5-रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गांठ परि जाय।।

कविवर रहीम--यह दोहा एक-दूसरे के प्रति प्रेम के संबंध में अत्यंत प्रासंगिक है। प्रेम सुकोमल होता है। इसका संबंध इतना नाज़ुक होता है कि इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। जिस तरह धागे को तोड़कर फिर जोड़ने पर उसमें गांठ पड़ जाता है, उसी तरह यदि प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है, तो फिर इसे जोड़ना बहुत कठिन होता है। अगर किसी तरह जोड़ेंगे भी, तो निश्चित रूप से उसमें गांठ पड़ जाएगा।

6-सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥18-48॥

अर्थ : हे कौन्तेय (अर्जुन), अपने आरंभ के सहज-स्वाभाविक कर्म को दोष होने पर भी नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि आरंभ में कर्मों में कोई न कोई दोष होता ही है, जैसे आरंभ में अग्नि धुएं से घिरी होती है...।

भावार्थ : जब भी हम कोई काम शुरू करते हैं, तो अनुभव न होने के कारण हमारे सामने अनेक प्रकार की कठिनाइयां आती हैं। हो सकता है कि हमें विफलता मिले। लेकिन विफलताओं से घबराकर हमें उस कर्म को छोड़ना नहींचाहिए, बल्कि उससे सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए। सफलता अवश्य मिलेगी।

7-        मन- सरपट दौड़ते मन के घोड़े पर अगर आपने लगाम कस ली, तो जीवन की दौड़ में विजेता बन सकते हैं। तभी तो कहा गया है मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

8-        वचन- वाणी में अमृत है, तो विष भी। मिठास है, तो कड़वापन भी। यह आपको तय करना है कि अपनी वाणी से सामने वाले को अपना प्रशंसक बनाना है या निंदक।

9-        कर्म- कर्म हमारा भाग्य नहीं है, लेकिन कर्म से हमारे चरित्र की रचना जरूर होती है। यदि हम अच्छे कर्म करते हैं, तो देर-सबेर अच्छा परिणाम जरूर मिलता है। बुरा कर्म हमें आज नहीं, तो कल गर्त में जरूर डुबोता है।

10-बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

संत कबीर-- आज जब हर व्यक्ति दूसरों में बुराइयां खोजने में लगा हुआ है, ऐसे में यह दोहा बहुत प्रेरक-प्रासंगिक हो जाता है। कबीर ने इसमें कहा है कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला, लेकिन जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि सबसे बुरा तो मैं ही हूं। इसका भावार्थ यह है कि व्यक्ति को आत्मावलोकन अवश्य करना चाहिए, तभी वह अपने भीतर के दोषों को पहचान कर उन्हें दूर कर सकेगा।

No comments: