अच्छे विचारों वाला व्यक्ति निश्चित ही महान होता है। शायद ऐसा कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा। सद्विचार से हम एक ऐसी उच्चता को प्राप्त करते हैं जो धीरे-धीरे हमें परमात्मा की ओर अग्रसर करने में सहायक होते हैं। गांधीजी हों, विनोबा भावे हों या कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर-सबके सब लोग शरीर से सामान्य थे, परंतु उनकी विचार शक्ति ने उन्हें महान बनाया। इन महापुरुषों के पास आत्मिक बल था, उनकी सोच सकारात्मक थी, उनकी दृष्टि में महान भारत का नक्शा था।
वे विचारों से हमेशा सजग और सतर्क रहते थे। तभी वे हर छोटा-बड़ा सृजन अनूठे रूप से कर सके। उन्होंने जीवन के मानवीय मूल्यों को समझा। वे जानते थे कि ईश्वर की इस प्रकृति में यदि हम भी कुछ कर सकें तो हम इस संसार को और सुंदर बना सकेंगे। वे अपनी शक्तियों को भली भांति पहचानते थे। वे समय के साथ चले, उन्होंने हमेशा ही अपने अंदर सकारात्मक सोच के बीज को आरोपित किया। ये महापुरुष जीवन के अंतिम समय तक कर्मरत रहे। ये उनके सद्विचारों का ही प्रभाव था कि वे आज भी अमर हैं, उनकी हर कृति अनुपम है। भारत के नवनिर्माण में उनके विचारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सभी महानायक जिन्होंने इस समाज को कुछ दिया वे दूरदृष्टा थे। उन्होंने संपूर्ण मानवता का भला किया। वे हमेशा ही परमात्मा के प्रिय रहे।
आज भी जो लोग जिस किसी क्षेत्र में लोगों के लिए श्रद्धेय माने जाते हैं, वे सभी कहीं न कहीं अपने अंदर संपोषित विचारों को ही महत्व देते हैं। जो अपने मन की आवाज सुनता है, जो दूसरे के विचारों को महत्व देते हुए विनम्रता के साथ विचारों का आदान-प्रदान करता है, वह महान हो ही जाता है। ईश्वर का सृजन हमेशा चलता रहता है। पर कुछ लोग इस भीड़ में ऐसे होते हैं, जो उसकी रचना में कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो उन्हें उत्साह, उल्लास और सुख की अनुभूति कराता है। वे अपने मन की सुनते हैं। दुनियादारी की मैल उनके मन को गंदा नहीं कर पाती है। वे स्वयं की बात तो दूर कई बार कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिससे आम इंसान का जीवन भी रूपांतरित होते देर नहीं लगती। वे सद्विचारों के पोषक होते हैं, इसलिए धर्म को साथ रखते हुए वे हर कार्य को गति प्रदान करते हैं।
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