Saturday, February 21, 2015

उत्तम चरित्र ही सबसे बड़ा धन है


         धन से अधिक महत्व चरित्र का माना गया है। अमेरिका के प्रसिद्ध विचारक इमर्सन ने लिखा है था कि 'उत्तम चरित्र ही सबसे बड़ा धन है। इसी तरह ग्रीन नामक विद्वान का कथन था, 'चरित्र को सुधारना ही मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए। स्वामी विवेकानंद प्राय: युवाओं को संबोधित करते हुए कहा करते थे, 'युवाओ! उठो! जागो! अपने चरित्र का विकास करो। इस तरह विभिन्न विद्वानों ने चरित्र के महत्व पर प्रकाश डाला है और मानव जीवन में इसे सर्वोपरि माना है।

         राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चरित्र इसीलिए आकर्षक और प्रभावशाली था कि उन्होंने सदैव अपने चरित्र का ख्याल रखा। वह अपने काम समय पर करते थे। कभी लेट-लतीफी नहीं करते थे। सदा सच बोलते थे, झूठ नहीं बोलते थे, दया, करुणा, मानवता के गुणों से युक्त थे। वस्तुत: आज इसी चरित्र को बनाए रखने की परम आवश्यकता है। हम चाहें किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे हों, किसी भी पद पर अपना योगदान कर रहे हों, हमें चरित्र को बनाकर और बचाकर रखना चाहिए। छात्र जीवन में तो चरित्र का महत्व और भी बढ़ जाता है। छात्र देश-निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं।

        राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रसिद्ध पंक्ति है, जिसमें वह कहते हैं , 'वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिए मरे। भारतीय संस्कृति की यही तो विशेषता रही है। यही संस्कृति 'बहुजन हिताय और 'बहुजन सुखाय और 'वसुधैव कुटुंबकम् की पावन भावना का विकास करती है। हमारे भीतर 'स्व और 'पर का भेद नहीं होना चाहिए। 'स्व की संकुचित सीमा से निकलकर 'पर के लिए अपने आपको बलिदान कर देना ही सच्ची मानवता है। यही सबसे बड़ा गुण है और यही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है। जितने भी महापुरुष हुए, उन सभी ने अपने बाल्यकाल से ही चरित्र की रक्षा का ध्यान रखा। बड़े-बड़े दार्शनिक, चिंतक, विचारक, संत, लेखक और नेता-सबका लक्ष्य देश-निर्माण कर मानवीय गुणों का प्रचार-प्रसार करना रहा है, लेकिन उनके जीवन को झांककर देखेंगे, तो स्पष्ट पता चलेगा कि वे चरित्र की दृष्टि से कितने महान और विशिष्ट थे। उन्होंने अपने चरित्र को कभी दूषित नहीं होने दिया। इसी कारण आज उनका इस संसार में नाम है और हम सब उनके आदर्श को याद रखने का प्रयास करते हैं।

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