Thursday, February 19, 2015

सत्य के समान कोई धर्म नहीं है



                श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी कहते हैं कि सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य सृष्टि का मूल है। सत्य ही सबसे बड़ा तप है, सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है। सत्य ही पुण्यशाली कर्म और सबसे बड़ी सिद्धि है।

               सत्यनिष्ठ व्यक्ति दुष्कर्म, अवसाद, अपयश, अशांति, असंतोष और अपमान से बचा रहता है। जीवन में उन्नति और उत्कर्ष के लिए सत्य ही सबसे सच्चा मार्ग है। निर्विकार, निर्भय और निश्चिंत जीवन जीने के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई मार्ग नहीं है। संसार में अनेक धर्म प्रचलित हैं, पर उनके रीति-रिवाजों और दिशा-निर्देशों में काफी अंतर भी पाया जाता है, पर फिर भी उनका मूल उद्देश्य एक है। वह यह कि अपने अनुयायियों को संयमी, सदाचारी, उदार और सज्जन बनाना। इन सभी धर्म संस्थापकों का मूल उद्देश्य एक ही रहा है, सत्य के निकट पहुंचना।


               पद्मपुराण में कहा गया है कि सत्य से पवित्र हुई वाणी बोलें और मन से जो पवित्र जान पड़े, उसी का आचरण करें। मन, वचन और कर्म को एकरूप किए बगैर हम, कितना ही प्रयास क्यों न करें, पर हम सिद्धि की प्राप्ति नहीं कर सकते। सत्य और सरलता का अटूट संबंध है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि 'सत्य सरल होता है।


                  हमारी भलाई इसी में है कि हम इस जगत के सत्य को पहचानें, सत्य के पथ पर चलने का संकल्प लें। सत्य का वास्तविक अर्थ परब्रह्म है। वेदों के वक्तव्य हैं कि 'सृष्टि के मूल में यही ब्रह्म सत्य रूप में विद्यमान था, त्रिगुणात्मक संसार इसके बाद में रचा गया। जिसके चित्त ने सत्य को छोड़ दिया, उसे भला आनंद की प्राप्ति कैसे हो सकेगी। यदि हमें आनंद की तलाश है, सच्चे सुख की लालसा है, तो हमें सत्य के मार्ग पर चलना ही होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि सत्य ही जीवन का आधार है, सत्य ही विद्या और जीवन जीने की सच्ची कला है। वस्तुत: यह हमारे हाथों में जलते हुए दीपक की तरह है, जिसके सहारे हम असत्य के अंधेरे को पार कर सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि असत्य ही अज्ञान है और अभाव में ही सारे दुख हैं। असत्य के मिटते ही सारे दुख अपने आप मिट जाएंगे।


           इसीलिए 'सत्यमेव जयते, हमारा सदियों से आदर्श रहा है। मानवीय सभ्यता के इतिहास में न जाने कितने नियम बनाए और बिगाड़े गए, पर सृष्टि के आदि में, सत्य की जो प्रतिष्ठा थी, वह आज भी उसी रूप में विद्यमान है।

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