Thursday, February 19, 2015

नैतिक चरण की शुद्धता ही धर्म है


            जीवन का जहाज, आज तरंगों और तूफानों से भरे संसार के सागर में भटकता जा रहा है। क्योंकि इसका नैतिक-बोध, इसका दिशासूचक यंत्र खराब हो चुका है। जीवन-ऊर्जा जीवन को गतिशील बनाने के लिए आवश्यक है, परंतु उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका सही दिशा में चलना है । सादगी का सौंदर्य, संघर्ष का हर्ष, समता का स्वाद और आस्था का आनंद-ये सब हमारे आचरण से पतझड़ के पत्तों की भांति गिरगए हैं। हृदय से मानवीय-प्रेम या करुणा का संवेदनशील स्वर, मस्तिष्क से नैतिक चिंतन की अवधारणा और नाभि से उद्भुत संयम और सम्यक आचरण का संकल्प कहीं खो गया है। आज अहिंसा के आलोक की तलाश है। महावीर, बुद्ध और महात्मा गांधी की अहिंसा किसी कठघरे में कैद है। हिंसा उन्मुक्त अट्टहास कर रही है।

              सत्ता और संपत्ति के गलियारे में नैतिक आचरण ताक पर रख दिए गए हैं। व्यक्ति की अस्मिता एक अंधे मोड़ से गुजर रही है। भौतिक भोगवाद जनसंख्या बढ़ा रहा है, जो आणविक विस्फोट से कम खतरनाक नहीं है। आधुनिक पीढ़ी की त्रासदी यह है कि 'सबसे बड़ा रुपया जैसे जीवन का लक्ष्य बन गए हैं। हमें आचरण शुद्धि द्वारा नैतिकता का विकास करना होगा। नि:संदेह अध्यात्म एक गूढ रहस्य है जिसका कोई ओर-छोर नहीं। अध्यात्म के अंतहीन व्यूहचक्र में उलझने से व्यावहारिक नैतिकता श्रेयस्कर है। भगवान महावीर का प्रारंभिक दर्शन भी सर्वोपयोगी नैतिक आचार संहिता में ही निहित था। अध्यात्म आदि प्रसंग बाद में जुड़ते गए।

           नैतिक आचरण का पालन ही सच्चे धर्म का प्रतीक है। नैतिकता को प्रतिरोधक शक्ति का स्वरूप देकर ही अनैतिक आचरण के छिद्र बन्द किए जा सकते हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र में विचारशुद्धि चलाकर ही बुराइयों और पाप कर्मो को निरुत्साहित किया जा सकता है। आचार-विचार की शुद्धता का दूसरा नाम ही धर्म है। मानवता यदि पुष्प है, तो नैतिकता उसकी सुगंध है। आचरण यदि सोना है, तो नैतिकता उस पर सुहागा है। मानवता की महिमा आचरण से है और आचरण की महिमा नैतिकता है। यह धारणां प्राचीन काल की रही है मगर आज भी उतनी ही उपयोगी है, बल्कि आज की दुनिया को नैतिक आचरण की ठोस जमीन और भी अधिक आवश्यक है।

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