हमें इस भौतिकवादी संसार में कमल के फूल की भांति जीवन जीना चाहिए। जिस प्रकार कमल का फूल माया रूपी कीचड़ में रहते हुए भी संसार को प्रसन्नचित करता है और स्वयं भी ऐसा सम्मान व स्थान पाता है कि देवताओं को अर्पित किया जाता है। उसी प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि वे अपनी इन्द्रियों और व्यसनों पर अंकुश लगाते हुए, इस माया रूपी संसार की गंदगी को दूर करते हुए एक श्रेष्ठ व्यक्ति के उत्तरदायित्व और आचरण को अपनाना चाहिए।
मोह ही सभी प्रकार के बंधनों का स्त्रोत है। जैसे नशे की लत में व्यक्ति को न कुछ दिखाई देता है और न ही कुछ सूझता है। उसी प्रकार मोह माया में लिप्त व्यक्ति को भी स्वार्थ के सिवाय और कुछ नहीं सूझता और धीरे-धीरे वह कुव्यसनों की ओर अग्रसर होता जाता है। वह स्वयं भी अपना शत्रु बन जाता है एवं औरों को भी बना लेता है। धन का संग्रह भी एक बुराई है।
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