1-आदिशक्ति माता जी श्री निर्मला देवी का आध्यात्म-
अपने जीवन में अपने हिन्दू धर्म के अनुसार देवी-देवताओं की उपासना में मैं हमेशा भ्रमित रहता था,ईश्वर को तलासने के लिए कभी इस मंदिर में सभी उस मंदिर में भटकता रहा,लेकिन कुछ वर्षों पूर्व जब माता जी के आध्यात्म के सम्पर्क में आया तो ईश्वर के प्रति विचारधारा ही बदल गई । इस आध्यात्म में सबसे बडी बात यह है कि हमें किसी गुरु के शरण में जाने की आवश्यकता नहीं हैं,हम अपने गुरु स्वयं अपने आप हैं।जबकि सभी उपदेश देने वाले कहते हैं कि बिना गुरु के ईश्वर प्राप्त हो ही नहीं सकता । दूसरी बात माता जी ने कहा कि ईश्वर को रुपये पैसों की भाषा समझ में नहीं आती है आप इस कार्य में कोई खर्चा न करें ।तीसरी बात माता जी ने कहा बाहर जितने भी देवता हैं वे सभी हमारे शरीर में अलग-अलग तत्वों के रूप में विद्यमान हैं, इसलिए हमें बाहर भटकने की आवश्यकता नहीं है,हमें तो इन्हैं अपने शरीर के अन्दर ही प्रशन्न करना है । अपने शरीर के अन्दर सात चक्र हैं, कुण्डलिनी मूलाधार में बैठी होती है, अगर हमारे सातों चक्र जागृत अवस्था में हैं तो कुण्डलिनी हर चक्र से होकर अन्त में सहस्रार का भेदन कर सदा शिव में मिल जाती है, यह परम चैतन्य प्राप्ति की स्थिति है । इस स्थिति में शरीर को अथाह आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है जोकि किसी लक्ष्य की प्राप्ति में सक्षम मानी जाती है ।इस धरती पर जितनी भी शक्तियॉ या देवता हैं उनमें मॉ का स्थान प्रथम है,उसी मॉ की आस्था में मैं विश्वास करता हूं ।यहॉ पर जो लिखा गया है उन्हीं के संरक्षण में लिखा जाता है,यह आपके लिए है।
2- सहज योग उत्थान के लिए वरदान है-
आप जिस ऊंचाई तक पहुंच रहे हैं उसका लाभ आपको होना चाहिए।आपको सारे आशीर्वाद मिल रहे हैं- सौन्दर्य,प्रेम, आनन्द. ज्ञान, मित्र, तथा सुवुधा। आप चालाकी करते हैं तो आपको बाहर फेंक दिया जायेगा ।लेकिन आपकी मॉ की करुंणा इतनी महान है कि वे सदा क्षमा करने और आपको अवसर प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील रहती है ।सारे देवताओं को जो आप से रूठ गये थे को शॉत करने का प्रयास करती रहती है, देवता एक सीमा तक मान भी जाते हैं। सहज योग दूसरे धर्मों की तरह नहीं है जहॉ कि आप गलती करते चले जाते हैं,मन मर्जी करते हैं,हत्या करते हैंऔर धोखा देते हैं लेकिन यहॉ तो आपको एक सहजयोगी होना पडेगा ।सहजयोग में आपको यह जानना होगा कि वास्तव में आपको समर्पित और ईमानदार होना पडेगा ।
3-अत्यन्त भाउक होना नाडीतंत्र की कमजोरी का फल है-
जब नाडी तंत्र कमजोर होती है तो हम किसी भी बात पर भाउक हो जाते हैं। इससे हर्ष और विषाद के बीच एक नाटकीय द्वंद बना रहता है ।इससे वे आलसी, नकारात्मक,तामसी,और अपने आप से पीढित रहते हैं।बायें ओर की यह चन्द्रनाडी मस्तिष्क के दायें भाग पर प्रतिअहंकार के रूप में अधिक दबाव डालती है,तो मनुष्य पागलपन,पाक्षाघात तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होता है और जो लोग अत्यधिक भाउक होते हैं वे सन्तुलन खो देते हैं।परिणाम स्वरूप उसका प्रतिअहंकार दाहिने मस्तिष्क के ऊपर फूल जाता है,और जब यह अधिक बढ जाता है तब बायें ओर स्थित अहंकार को दबाता है, ताकि सूर्यनाडी को राहत मिले।इस प्रकार वह असंतुलन की स्थिति में रहता है ।।
4-मन की पवित्रता के लिए कुण्डलिनी जागृत करे-
जब भी आप किसी बुरी आदत में फसने लगते हैं तो आपका अपने पर नियन्त्रण समाप्त होजाता है ,कोई प्रेतात्मा आप में बैठ जाती है और आप समझ नहीं पाते कि उस आदत से कैसे छुटकारा पाया जाय। सहज योग में जब कुण्डलिनी उठती है तो ये मृत आत्मायें आपको छोड देती हैं और आप ठीक हो जाते हैं । मैं तुम्हैं यह कहूंगी कि महॉवीर ने केवल नर्क की बात कही,किजीवन में पाप के दण्डस्वरूप आपको कौन सा नर्क प्राप्त होगा ।अपना हित चाहने वाले मनुष्य के लिए तो नर्क के लिए सोचना कितना भयावह है ।इसलिए कुण्डलिनी जागृत करके नर्क के रास्ते से मुक्ति प्राप्त करें ।
5--सहज योग में ध्यान धारण कैसे क्रियान्वित होता है?-
सहजयोग-(सह+ज=हमारे साथ जन्मा हुआ)जिसमें हमारी आन्तरिक शक्ति अर्थात कुण्डलिनीजागृत होती है, कुण्डलिनी तथा सात ऊर्जा केन्द्र जिन्हैं चक्र कहते हैं,जो कि हमारे अन्दर जन्मसे ही विद्यमान हैं।ये चक्र हमारे शारीरिक,मानसिक,भावनात्मक तथा आध्यात्मक पक्ष को नियन्त्रित करते हैं । इन सभी चक्रों में अपनी-अपनी विशेषताहोती है,सबके कार्य बंटे हुये हैं ।कुण्डलिनी के जागृत होने पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैली हुई ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकारिता को योग कहते हैं । और कुण्डलिनी के सूक्ष्म जागरण तथा अपने अन्तरनिहित खोज को आत्म साक्षात्कार(Self Realization)कहते हैं ।आत्म साक्षात्कार के बाद परिवर्तन स्वतः आ जाता है ।वर्तमान तनावपूर्ण तथा प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में भी सामज्स्य बनाना सरल हो जाता है और सुन्दर स्वास्थ्य,आनंद,शान्तिमय जीवन तथा मधुर सम्बन्ध कायम करने में सक्षम होते हैं ।
6--हमारे शरीर में कुण्डलिनी महॉनतम् शक्ति है-
जिसने कुण्डलिनी का उत्थान कर दिया उस साधक का शरीर तेजोमय हो उठता है।इसके कारण शरीर के दोष एवं अवॉच्छित चर्वी समाप्त हो जाती है।अचानक साधक का शरीर अत्यन्त संतुलित एवं आकर्षक दिखाई देने लगता है।आंखें चमकदार और पुतलियॉ तेजोमय दिखाई देती हैं। संत ज्ञानेश्वर जी ने कहा है कि सुषुम्ना में उठती हुई कुण्डलिनी द्वारा बाहर छिडका गया जल अमृत का रूप धारण करके उस प्राणवायु की रक्षा करताहै जो “उठती हैं,अन्दर तथा बाहर शीतलता का अनुभव प्रदान करती है” ।।
7-निर्विचारिता का आनन्द-
जब आप निर्विचारिता में होते हैं तो आप परमात्मा की श्रृष्ठि का पूरा आनंद लेने लगते हैं,बीच में कोई वाधा नहीं रहती है ।विचार आना हमारे और सृजनकर्ता के बीच की बाधा है ।हर काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं, और निर्विचार होते ही उस काम की सुन्दरता,उसका सम्पूर्ण ज्ञान और उसका सारा आनंद आपको मिलने लगता ङै ।
8 -अपनी शक्ति को सन्तुलित करें-
कुछ लोग सहज योग के लिए खूब प्रचार करते हैं लेकिन अपनी ओर ध्यान नहीं देते,वे बाह्य में तो बहुत काम करते हैं मगर अन्दर की शक्ति की ओर ध्यान नहीं देते, जिससे उत्थान की ओर गति प्राप्त नहीं करते।कुछ लोग अन्दर की शक्ति की ओर ध्यान देते हैं मगर वाह्य की ओर ध्यान नहीं देते,जिससे उनमें संतुलन नहीं आ पाता है वाह्य शक्ति की ओर बढने पर उनकी अन्दर की शक्ति क्षीण हो जाती है जिससे वे अहंकार में डूबने लगते हैं। इन लोगों का दूसरों से सम्बन्ध नहीं हो पाता उनका सम्बन्ध तो इतना होता है कि किस तरह दूसरों पर रौब झाडें,वे अपने ही महत्व तक सोचते हैं,उनके लिए चैतन्य कहता है कि अच्छा तुझे जो करना है कर मिटा ले स्वयं को। वह आपको रोकेगा नहीं । हम तॉ एक विराट शक्ति हैं, अगर हम चाहते हैं कि कमरे में बैठकर म़ाता की पूजा करें दुनिय़ा से हमारा क्या मतलव तो वे लोग भी आगे बढ नहीं सकते। यह तो एसा हो गया कि हाथ की एक अंगुली कह रही हो कि मेरा इस हाथ से कोई सम्बन्धनहीं है। इसलिए हमें आंतरिक और वाह्य दोनों शक्तियों की ओर ध्यान देना होगा तभी हमारे अन्दर पूरी शक्ति का संतुलन होगा ।
9 -मध्य संतुलन की स्थिति में रहें-
स्वयं पर नियंत्रण रखें कोई अति करने की आवश्यकता नहीं है,वैसे अति में जाना मानवीय गुंण है।यदि आप तर्कसंगत हैं तो तर्कसंगत ठहराते चले जाते हैं,मैं एसा नहीं कर सकता,ये ही होता रहा है,मै वैसा नहीं कर सकता आप इतने भावक हो जाते हैं कि भावनात्मक के नाम पर गलत काम करने लगते हैं ।स्वयं पर दृष्टि रखें।मध्य में आने की कोशिस करें,जहॉ पर कि आप पूरी परिधि को देख सकते हैं।यदि आप मध्य से हटकर दायें –बॉयें चले गये तो सारा ही वैलेंस खत्म हो जायेगा। आदमी सोचता है कि वह राइट साइड है तो थोडा अपने को लेफ्ट साइड में ले जाना चाहिए,लेफ्ट साइड यानी आप भाउकता में बढ गये तो आपको चाहिए कि अपने को सन्तुलन में रखें।
10 -परमात्मा की बुद्धि मध्य में है उसी में समाकर रहें-
अति अक्लमंद किसी काम का नहीं है। परमात्मा की बुद्धि तो बीच में है। उसी में समाकर रहना चाहिए।हम अति पर चले जाते हैं, और अपनी आदतें नहीं बदलते,हर बार हम अति पर चले दजाते हैं। हमारा स्वयं पर नियंत्रण नहीं है,जिस तरह हमारा मस्तिष्क बताता है हम वही बात मान लेते हैं,न हमारे अन्दर सन्तुलन है और न हमारी शारीरिक आवश्यकतायें सन्तुलित हैं,किसी भी प्रकार का सन्तुलन नहीं है,जैसा हम ठीक समझते हैं बिना सोचे समझे किये चले जाते हैं। यह हमारी विवेकशीलता नहीं है। सहजयोग में आने से सारे दोष दूर हो जाते हैं। और जब वे दोष समाप्त हो जाते हैं तो समझ लेना चाहिए कि आपने बडी भारी चीज हासिल कर ली है,जब तक आपके अन्दर वे दोष होंगे तब तक आप उन्हीं चीजों में लगे रहेंगे दूसरों से झगडा करना, आदि तो समझलेना चाहिए कि आप मध्य में नहीं हैं।जब आप मध्य में होंगे तो आप किसी एक चीज से लिप्त नहीं होंगे, आप सब में समाये रहेंगे। आपको देखना होगा कि आप अहं या प्रति अहं में तो नहीं हैं यदि प्रति अहं है तो आप बायें ओर की बाधा से ग्रस्त हैं आलसी व्यक्ति को चाहिए कि काम की आदत डालें,मस्तिष्क को भविष्य की योजनाओं को बनाने में लगा दें इस प्रकार बायें ओर से खिंचाव से बचकर धीरे-धीरे स्वयं को संतुलित करें।और यदि दायें ओर अधिक गतिशील हों तो, तामसिकता द्वारा नहीं बल्कि मध्य का इस्तेमाल करें। बायें ओर तमोगुंण है और दॉयी ओर रजोगुंण है । हमेशा मध्य में रहें ।संतुलन में रहें।
11 -सत्य की खोज-
प्रचीनकाल में अनेक महान लोग इस पृथ्वी पर सत्य को बताने के लिए अवतरित हुये और अपने-अपने स्तर से मानव को समझाने का जी जान से प्रयास करने लगे कि आध्यात्म क्या है,लेकिन विषमता इतनी अधिक थी कि लोग इस बात को कभी नहीं समझे कि आध्यात्मिकता हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है।हमें परमात्मा से उनके प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकारिता करनी है।उन्होंने अपने प्रयत्न गलत दिशा की ओर दिये।लेकिन मानव तो बुद्धिमान था उसने खोज प्रारम्भ की, सत्य की नहीं बल्कि अपनी मुक्ति की,अपनी उन्नति की,इस दिशा की ओर वे भूल गये कि सर्व प्रथम तो आध्यात्म की खोज करनी चाहिए थी, क्योंकि आध्यात्म ही महत्वपूर्ण है। उससमय हमारे सामने दो प्रकार की यात्रायें थी एक तो बायें ओर और दूसरी दायें ओर से ।सत्य की खोज में लोग जंगलों में चले गये और संत बन गये लेकिन वे लोग दायीं ओर की तपस्या कर रहे थे अर्थात अपने पंच्चतत्वों पर स्वामित्व प्राप्त करना ।सभी तत्वों की आन्तरिक चेतना के विषय में वे जानते थे इन्हीं कारणों से वे इनकी पूजा करने लगे।पर यह तो दांयें ओर की गतितविधि बनगई।अर्थात कर्म काण्ड में बायी ओर के विना दॉयां पक्ष अत्यन्त भयानक होता है। यदि आप में दॉयॉ पक्ष नहीं है तो भी तो भी भयानक बात है,लेकिन सर्व प्रथम आपको अपने बॉये पक्ष को विकसित करना होगा ।करुणॉ,प्रेम,और सबके लिए सौहार्द ही बॉयॉ पक्ष है।बायें ओर बहुत सी चीजें हैं देवी आपके अन्दर भिन्न रूपों में विराजमान है, इसलिए अपना बॉयॉ पक्ष सबसे पहले मजबूत करें ।जिन लोगों ने दॉयॉ पक्ष अपनाया वे अत्यन्त आक्रामक हो गये और पंच्च तत्वों के सार का स्वामित्व प्राप्त कर लिया । यह तो ठीक है पर वे लोग क्रोधी स्वभाव के हो गये कि लोगों को श्राप देने लगे,कठोर वातें वे कहते थे।जो लोग दायें ओर का मार्ग पकडते हैं,परमात्मा के आशीर्वाद के बिना चलते है,वास्तव में वे राक्षस बन जाते हैं यह मानवता के लिए एक खतरा है।
12-महॉमाया की शक्तियॉ-
सारे संसार में जो चैतन्य बह रहा है वे उसी महॉमाया(आदिशक्ति)की शक्ति है इस महॉमाया की शक्ति से ही सारे कार्य होते हैं,यह शक्ति सब चीजों सोचती हैं,देखती हैं व जानती है। तथा सबको पूरी तरह से ब्यवस्थित रूप से लाती है, और सबसे बडी चीज है कि यह आपसे प्रेम करती है, इस प्रेम में कोई मॉग नहीं है,सिर्फ देने की इच्छा है, आपको पनपाने की इच्छा,आपको बढाने कीइच्छा, आपकी भलाई की इच्छा ।।
13-आदिशक्ति क्या है-
यह शक्ति सर्वशक्तिमान परमात्मा श्री सदाशिव की शुद्ध इच्छा है,आदिशक्ति परमात्मा के प्रेम की प्रतिभूति है,परमात्मा का विशुद्ध प्रेम है। अपने प्रेम में उनहोंने इच्छा की कि ऐसे मानव का सृजन हो जो आज्ञाकारी हो,उत्कृष्ट हो,देवदूतों की तरह हो और इसी विचार से उन्होंने सृजन किया,ये आदिशक्ति प्रेम की शक्ति है,आदिशक्ति का प्रेम इतना सूक्ष्म है कि कभी आप इसे समझ ही नहीं सकते हैं।सारे ब्रह्माण्ड का सृजन करने वाली .ही शक्ति है।यह ब्रह्म चैतन्य है।परम सत्य तो यह है कि सृष्टि ब्रह्म चैतन्य के सहारे चल रही है।यह सारा चैतन्य परमात्माकी की ही इच्छा है और इस परम चैतन्य की इच्छा से ही आज हम मनुष्य स्थिति में पहुंचे हैं ।।
14-शब्द की शक्ति-
आदिशक्ति माता का नाम लिर्मला है, जिसमें नि- पहला अक्षर है, जिसका अर्थ है नहीं।अर्थात कोई वस्तु जिसका कोई अस्तित्व नहीं है,लेकिन जिसका अस्तित्व प्रतीत होता है उसे तो महॉमाया (भ्रम) कहते हैं।सम्पूर्ण विश्व इसी प्रकार का है ।यह दिखता तो है मगर वास्तव में है नहीं।यदि हम इसमें तल्लीन हो जाते हैंतो प्रतीत होता है कि यह सबकुछ है ।तब हमें लगता है कि हमारी आर्थिक अवस्था अच्छी नहीं है,सामाजिक व पारिवारिक परिस्थितियॉ असंतोषजन है,हमारे चारों ओर जो कुछ भी है सब खराब है।हम किसी चीज से संतुष्ट नहीं हैं ।
15-सहजयोगी अपने पैर न छुआने दें-
समान्य व्यक्ति के लिए हर सहजयोगी गुरु हो सकता है,इस स्थिति में आप किसी से अपने पैर न छुआने दें,जैसै कि भारत में अपने से बडों के पैर छूने की परम्परा है,उस स्थिति मे तो कोई बात नहीं है, मगर गुरु के नाते यदि आप अपने छूने देते हैं तो यह आपके लिए हानिकारक हो सकता है,आप यहजयोग से बाहर चले जाते हैं। आपको भी किसी अवतरण के अतिरिक्त किसी अन्य के सम्मुख समर्पित नहीं होना चाहिए ।अपने गुरु के पैर अवश्य छू लें मगर इससे पहले आपको चाहिए कि अपने कान पकड लें।
16-चैतन्य लहरियों से स्वयं को सत्यापित करें-
यदि आप चैतन्यलहरियों के द्वारा स्वयं को सत्यापित करते हैं तो वह आपका ज्ञान बन जाता है,और धीरे-धीरे यही ज्ञान आपको बताया जाता है।पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में बताने वाली पुस्तकों में न उलझें, इससे आपका मस्तिष्क दूसरी दिशा में चला जायेगा।आप ऐसे ज्ञान की ओर चले जायेंगे जो सम्भवतः ज्ञान है ही नहीं।फिर आप सोचने लगोगे कि यह तो मुझे पता ही नहीं था मैं जानता ही नहीं था,आपको तो जानना यह है कि आप क्या हैं।आप तो आत्मा हैं और सामर्थ्य के अनुसार आत्मा का जो प्रकास आप लेकर चल रहे हैं वह साधारण प्रकास से अलग है,जो प्रकास दिखता है वह न सोचता है न समझता है,और जो प्रकास आप लेकर चल रहे हैं वह सोचता भी है और समझता भी है,प्रभु आपको उतना ही प्रकास देता है जितनी आपकी सामर्थ्य है,यह प्रकास न तो चकाचौध करता है और न ही मध्यम पडता है,एकदम उतना ही जितना आप समझ सकते हैं।लेकिन यदि आप इन्हैं आप आत्मसात नहीं करते हैं तो आदिशक्ति को बहुत कष्ट होता है इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि इधर- उधर का ज्ञान महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण तो यह है कि आप कहॉ पहुंचे और सहजयोग में आपने कितनी परिपक्वता प्राप्त की ।
17-जीवन साथी चयन के लिए ध्यान केन्द्रों को अपवित्र न करें-
हमें उन मर्यादाओं के बारे में बात करनी है जिनका पालन सहजयोगी को करन हा ।इसके लिए सहजयोगी को आपने मूलाधार के महत्व को समझना होगा,इसके विना उत्क्रॉति प्राप्ति नहीं हो सकती है ।सहजयोगी जीवन साथी चयन के लिए आश्रमों, ध्यानकेन्द्रों का उपयोग करते हैं उन्हैं अपवित्र न करें ।इस बात का सम्मान करें आपको विवाह करना है तो सहजयोगी से बाहर जीवनसाथी ढूंड सकते हैं,क्योंकि कई लोग सहजयोग से बाहर सम्बन्ध बनाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। कई उदाहरण मिलेंगेकि लोगों ने सहजयोग से बाहर शादी करके अच्छे लोंगों को सहजयोग में लाये हैं।सहजयोग में तो यह प्रयत्न सम्भव नहीं है,इससे आपका हित नहीं होगा ,ध्यान रखे यदि आप ऐसा करते हैं तो आपका मूलाधार कभी भी स्थापित नहीं हॉ पायेगा।आपकी उन्नति के लिए यब भयानक झटका होगा एक ही नगर में इसप्रकार का सम्बन्ध बनाना अत्यन्त गलत होगा, इससे गलत परम्परा बनती हो छेडना,अच्छी जोडी है या तुम अच्छे लगते हो या इस प्रकार की बातें कहने से मूलाधार विकृत होता है,ब्रह्मचर्य का जीवन ही आपके हित में है।किसी भी स्थिति में सहजयोग के नियमों का पालन किया जाना चाहिए ।
18-बॉईं ओर के लोगों नमक अधिक खाना चाहिए-
दॉईं ओर के लोगों को चीनी का परामर्श दिया गया है और बॉईं ओर के लोगों को नमक का।नमकसे वे बहुत सी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं,क्योंकि नमक उन्हैं व्यक्तित्व प्रदान करता है।,आत्मविश्वास दे सकता है,जिससे वे गरिमामय ढंग से ,अपनी अभिव्यक्ति कर सकेते हैं।
19-सहस्रार पकडना गम्भीर बात है-
सहजयोगी का अगर सहस्रार पकडता है तो यह गम्भीर बात है क्योंकि सहस्रार तो आदिशक्ति का स्थान है,उसे आदिशक्ति को पहचानना होगा,ऐसे लोग सहजयोग के प्रति द्वंद में रहते हैं।उन्हैं यह बात समझानी चाहिए कि आपको आत्मसाक्षात्कार माता जी ने दिया है किसी और ने नहीं। जबतक आप इस बात को नहीं समझते कि राम कृष्ण,शिव,विष्णु आपसे नाराज हो जायेंगे।
20- नकारात्मकता शक्ति से स्वयं को खतरा है-
आप एक बहुत बडे तपस्वी बन सकते हैं जो दूसरों को श्राप दे सकें, उन्हैं कष्टों में डाल सकें, और आप यहीं सोचते हैं कि यह बहुत बडी शक्ति है।बल्कि यह बहुत बडी शक्ति नहीं है,आपकी अपनी शक्ति ही आपका जीवन ले लेगी। इसलिए आप जब अपनी कुण्डलिनी उठाते हैं तो आपको भक्ति मार्ग पर चलना होगा अपने अन्दर अवलोकन करें कि मुझमें क्या कमी है,यह खोजने का प्रयत्न करें कि आपका क्या आदर्श है। आपको अपने बॉये पक्ष पर स्वामित्व पाना होगा। आपमें कुंण्डलिनी जागृत हो गई, परमात्मा से एकाकारिता हो गई, तब आप दांईं ओर गतिशील हों ।
21- मूलाधार जागृत करें तो पवित्र बन जाओगे-
आपका मूलाधार जागृत होता है तो आप अत्यन्त पवित्र हो जाते हैं ।आपमें वासना समाप्त हो जाती है,आपका छिछलापन समाप्त हो जाता है जब तक यह नहीं होगा आप सहजयोग में नहीं रह सकते हो । आप अपने अन्दर पवित्र विवेक विकसित करें उसका सम्मान करें और उसका आनंद लें और यह तभी घटित होगा जब आपका मूलाधार जागृत होगा। क्योंकि बॉयें मूलाधार में गणेश जी विद्यमान हैं जिससे हम अपने दॉये ओर के दोषों को दूर करते हैं ।
22- स्वादिष्ठान जागृत करें तो यश मिलेगा-
स्वादिष्ठान ऊंचा उठाने के कारण सृजन करने की क्षमता जाग उठती है ।इतिहास गवाह है कि पूरे विश्व में प्राचीन काल से यश और धन कमाने की होड रही है यह शक्ति स्वादिष्ठन से ही प्राप्त होती है ।यहॉ से हमें सभी प्रकार की अटपटी और गन्दी चीजों का सृजन करने की आक्रामकता पैदा होती है। वे लोग जो यश कमाना चाहते हैं या पद हासिल करना चाहते हैं दॉयें स्वादिष्ठान से प्राप्त होते हैं । मध्य स्वाधिष्ठन पर जब हम होते हैं तो हमारे अन्दर सृजनात्मकता पैदा होती है सुन्दर गहनता पूर्ण आध्यात्मिक कला का सृजन होता है। लेकिन इस उन्नत्ति के साथ सभी प्रकार की गन्दगी भी आ जाती है।लेकिन हमें जीवन के उत्थान की बात सोचकर चलना है ।
23- इतिहास के पन्नों की दृष्टि-
विश्व इतिहास में वक्त ऐसा आया कि लोग धन कमाने के पीछे पड गये यह नाभि चक्र का कमाल है। विश्व में बॉये ओर (भारत क्षेत्र)के लोग धन कमा रहे थे, जबकि दायें ओर(पश्चिमी देश) के लोग धन के कारण आक्रामक हो गये थे उन्होंने सोचा कि वे विश्व के शिखर पर हैं हम से श्रोष्ठ कोई नहीं हैं। उनकी इस सोच ने उन्हैं समाप्त कर दिया और उन्हैं उस विन्दु तक ले गई कि उन्हैं सोचने का मौका मिला कि धन विनाश के लिए नहीं है।धन तो निर्माण के लिए होता है,देश का निर्माण के लिए,मानव शॉति,प्रेम,सहयोग तथा सभी प्रकार के अच्छे गुणों के निर्माण के लिए। ह्दय चक्र में यही लोग मातायें भी भयानक थीं अपने बच्चों तथा अन्य लोगों पर रौब जमाने का प्रयत्न किया । अपने बच्चों के लिए वे कोई बलिदान न कर सकीं, वे अपने बच्चों व पति के प्रति आक्रामक थीं पितृत्व भाव समाप्त हो गया था। विशुद्धि चक्र में इन लोगों ने पूरे विश्व पर अपना कब्जा करना चाहा, ताकि वे सम्राट बन सकें । उन्होंने साम्राज्य बनाये और इस प्रकार से अमानवीय व्यवहार किये जिसे करना मानव के लिए शर्मनाक है। वास्तव में वे लोग राक्षश थे,ये राक्षशी गुंण आज भी बने हुये हैं। इन लोगों के कारण ही विश्व दो भागों में बंटा है। कुछ लोग तो आक्रामक हैं और दूसरों को कष्ट देते हैं।परन्तु दूसरे वे लोग भी हैं जो सूझ -बूझ वाले हैं उनके द्वारा अच्छी संस्थायें स्थापित की गईं हैं लेकिन लक्ष्य प्राप्ति में वे अधिक सफल नहीं हो पाये हैं,क्योंकि उनके उच्च पदों के लोग ही पूरा नियंत्रित कर रहे हैं। जबकि वे स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं उनके आचरण ने इस चक्र के सारे कार्य विगाड दिया है।
24- विश्व शॉति के लिए आध्यात्म को गतिशील होना होगा-
आज पूरे विश्व में अशॉति का माहौल बना हुआ है सर्वत्र युद्ध चल रहे हैं। मार-काट और विनाश की स्थिति बनी हुई है। यह क्यों ?लगता है आध्यात्मिक लोग अत्यन्त मौन हो गये हैं, और वे स्वयं अपने आध्यात्मिक जीवन का भरपूर आंनंद ले रहे हैं।विश्व में आध्यात्मिक लोगों की कमी नहीं है। बस उन्हैं गतिशील होना होगा,विश्व शॉति के लिए कुछ न कुछ करना होगा।हम अपनी आध्यात्मिक उन्नति से सन्तुष्ट हैं,हमें यह देखना होगा कि हमने अन्य लोगों की आध्यात्मिक उन्नत्ति में कितना योगदान दिया।और वे कहॉ तक पहुंचे हैं। क्या हम उन्हैं परिवर्तित कर सकते हैं? आपने क्या किया ? आज विश्व में सबसे बडी विपत्ति यही है कि जो लोग आध्यात्मिक हैं,जिन्होंने कि महान बुलंदियॉ प्राप्त कर ली हैं, उन्हैं तनिक भी चिन्ता नहीं है कि क्या किया जानाचाहिए।अपनी आध्यात्मिकता का आनंद लेने के लिए वे पूजाओं में जाते हैं, अधिक से अधिक आध्यात्मिकता प्राप्त करते हैं, परन्तु अन्य लोगों को परिवर्तित करने के लिए उन्होंने कोई सामूहिक कार्य नहीं किया। अपना अन्तर्वलोकन करके देखें और अधिक से अधिक लोगों को सहज योग में लाने का प्रयास करें।