Thursday, August 9, 2012

ज्ञान का सार है आचार

1-ज्ञान का सार है आचार ज्ञान का सार है आचार-


        वही ज्ञान उपयोगी होता है जो अहंकार न बढाये,जो बंधन न बने,जिससे स्व की विस्मृति न हो,जो संस्कार का शोधन करे, तथा मानसिक शॉति की ओर ले जाये। ज्ञान की उपयोगिता की चरम कसौटी है कि वह आत्मा की ओर ले जाये ,जो ज्ञान आत्मा से विमुख बनाता है उसे भारतीय मनीषा में अज्ञान कहा जैता है। ज्ञान का सार है आचार ,इसलिए वही ज्ञान उपयोगी है जो अहंकार न बढाये । 


 2- ज्ञान का दुरुपयोग विनाश और सदुपयोग विकास है-
        जिस प्रकार गंगा नदी के प्रवाह को, सुखाया नहीं जा सकता , केवल उस प्रवाह के मार्ग को बदला जा सकता है। उसी प्रकार ज्ञान के प्रवाह को सुखाया नहीं जा सकता है,उसे पर हित के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।ज्ञान का दुरुपयोग होना विनाश है और ज्ञान का सदुपयोग करना ही विकास है,सुख है, उन्नति है।ज्ञान के सदुपयोग के लिए तो जागृति परम आवश्यक है । 


 3- आदर्श साहित्यकार की पहचान –
        आदर्श साहित्यकार वही है जो समाज की पीडा और सुख का अनुभव कर समाज के लिए रोता और हंसता है ।वह तो एक दिया है,जो जलकर केवल दूकरों को ही प्रकास देता है।जब साहित्यकार की भावना,ज्ञान और कर्म एक साथ मिलती हैं तो युग प्रवर्तक साहित्य का निर्माण होता है। किसी देश का साहित्य वहॉ की जनता की चित्त वृत्ति का द्योतक है। साहित्य तो आनंद देता है। ज्ञानराशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है, जिसका निर्माण साहित्यकार द्वारा किया जाता है । 


 4-वास्तविक सौन्दर्य ह्दय की पवित्रता में है-
        योग्य मनुष्यों के आचरण का सौन्दर्य ही उसका वास्तविक सौन्दर्य है,शारीरिक सौन्दर्य उसकी सुंदरता में किसी भी प्रकार की अभिवृद्धि नहीं करता। सुन्दर और कल्याणमय  के साथ यदि हम ह्दय की समीपता बढाते रहें तो संसार सत्य और पवित्रता की ओर अग्रसर होगा।अलंकार तो भावों का आवरण है और सुन्दरता को तो अलंकारों की जरूरत है ही नहीं। 


 5- शंका जीवन का विश है-
        आदमी के लिए विश्वास ही सबकुछ है,जिसे अपने पर विश्वास नहीं, उसे भगवान पर भी विश्वास नहीं हो सकता । स्वयं को ईश्वर पर छोड देना ही विश्वास है। 


 6-आत्म साक्षात्कार का मूल्य समझें -
        आप एक सहजयोगी हैं तो आपको आत्म साक्षात्कार का मूल्य मालूम है,आप अपनी रक्षा स्वयं करते हैं। और आपकी पूरी तरह से रक्षा की जाती है,यह रक्षा आदि शक्ति करती है। लेकिन विश्व में एक विध्वंसक शक्ति भी कार्यरत है, यह आसुरी शक्ति नहीं बल्कि शिव की दिव्य विनाशात्मक शक्ति है।जब कार्य ठीक चलता है तो प्रशन्न होते हैं।परन्तु वे दूर बैठकर हर व्यक्ति को देख रहे हैं,यदि उन्हैं गडबड लगता है तो वे नियन्त्रित करते है, वे नष्ट करना प्रारम्भ करते है।प्राकृतिक विपत्तियॉ,जैसे भूचाल, भूकम्प,या तूफान आदि इसमें फिर आपकी कोई मदद नहीं यदि आप आत्म साक्षात्कारी हैं और आप लोगों को आत्म साक्षात्कार दें तो इन्हैं टाला जा सकता है। 

 7-शक्ति का अन्तिम निर्णय-
        अभी तक हम यह नहीं जानते कि मानव के इतिहास में यह अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा भयानकसमय है।अन्तिम निर्णय प्रारम्भ हो चुका है।आज हम अन्तिम निर्णय का सामना कर रहे हैं ।हमें इस बात का ज्ञान नहीं कि सभी शैतानी शक्तियॉ भेड की खाल पहने भेडिये आपको भ्रमित करने के लिए अवतरित हो गये हैं। आपको चाहिए कि बैठकर सच्चाई को पहचॉनें।परमात्मा तो करुंणॉमय है,दयालू है,उन्होंने हमें स्वयं को ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वतंत्रता दी है,परमात्मा ने तो हमें अमीबा से इस मानव तक विकसित किया है । चारों ओर इतने सुन्दर विश्व का सृजन किया है। लेकिन उनके निर्णय का हमें सामना करना होगा। परमात्मा निर्णय वैसा नहीं कि जैसा वह एक नायायाधीश की तरह बैठा हो और बारी-बारी से आपको बुलाये बल्कि परमात्मा ने आपकेअन्दर निर्णायक शक्तियॉ स्थापित कर दी हैं। आपका अकलन करने के लिए परमात्मा ने न्यायाधीशों का एक समूह दण्डाधिकारियों के रूप में आपके अन्दर बैठा दिया है। ये आपके मेरुरज्जु तथा आपके मस्तिष्क में बनाये गये चक्रों में ये विद्यमान हैं। 


 8-परमात्मा द्वारा आपका आंकलन-
         आपकी कुंण्डलिनी जागृति से किया जाता है।आपने कितनी गहनता प्राप्त की है,आपकी आध्यात्मिक प्रगति कितनी है,यही आंकलन का आधार है। जिस प्रकार एक बीज के दाने में अंकुरण होता है तो आप जान लेते हैं कि बीज अच्छा है या बुरा। उसी प्रकार जब आपका अंकुरण होता है तो आपको आगे का आध्यात्मिक भविष्य दिखाई देने लगता है। आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त करते है,और आप उसे आगे कैसे बनाये रखते हैं, आप इसका सम्मान किस प्रकार करते हैं,उसी से आपका आंकलन किया जाता है, आपको जॉचने का यही तरीका है।आपका आंकलन आपके कपडों,आपका घर,आपको मिले पुरुष्कार से नहीं किया जायेगा या आपने कितना दान दिया या लोक हित के कार्य किये इससे आपका आंकलन नहीं होगा।बस कुंण्डिलिनी जागरण से ही आपको जॉचा जायेगा ।इसलिए इसे सत्यनिष्ठा से कार्यान्वित करना होगा।अपने मस्तिष्क पर इसे इस प्रकार छा जाने दें कि मस्तिष्क पूर्णतःआच्छादित हो जाय, इस शाश्वत आशीर्वाद को अपने अन्दर आने दें ।


 9- सहज योग उत्थान के लिए वरदान है-
        आप जिस ऊंचाई तक पहुंच रहे हैं उसकावलाभ आपको होना चाहिए।आपको सारे आशीर्वाद मिल रहे हैं- सौन्दर्य,प्रेम, आनन्द. ज्ञान, मित्र, तथा सुवुधा। आप चालाकी करते हैं तो आपको बाहर फेंक दिया जायेगा ।लेकिन आपकी मॉ की करुंणा इतनी महान है कि वे सदा क्षमा करने और आपको अवसर प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील रहती है ।सारे देवताओं को जो आप से रूठ गये थे को शॉत करने का प्रयास करती रहती है, देवता एक सीमा तक मान भी जाते हैं। सहज योग दूसरे धर्मों की तरह नहीं है जहॉ कि आप गलती करते चले जाते हैं,मन मर्जी करते हैं,हत्या करते हैंऔर धोखा देते हैं लेकिन यहॉ तो आपको एक सहजयोगी होना पडेगा ।सहजयोग में आपको यह जानना होगा कि वास्तव में आपको समर्पित और ईमानदार होना पडेगा ।

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