1-जीवन चैतन्यमय अवस्था का नाम है-

2-जीवन का उद्धार-
अगर आप देवी देवताओं में विश्वास करते हैं, और देवी देवताओं की पूजा से,आप पर प्रशन्न होकर दुनियॉ के लाखों देवी-देवता आपके उद्धार के लिए इकठ्ठाहो जॉय,लेकिन आपका उद्धार नहीं हो सकता है, जबतक कि आप अपने अज्ञानता को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं हो जाते। इसलिए दूसरे पर भरोसा न करें, ईश्वर तो उन्हीं की रक्षा करता है जो स्वयं की रक्षा करता है ।
3-जीवन का पहला पाठ-
जीवन का पहला पाठ-
मनुष्य जीवन के पहले पाठ में यदि आप यह संकल्प कर लेते हैं कि आप किसी दूसरे को दोष नहीं दोगे और न कभी किसी को कोसोगे विश्वास के साथ जागृत स्थिति में स्वयं अपने आप को ही दोष दोगे तो एक अच्छे मनुष्य बन जाओगे। अपनी ओर ध्यान केन्द्रित करें। यह जीवन के पहले पाठ का सार है ।
4-जीवन में दानी स्वभाव बनाइये-
अपनी जिन्दगी को दानी बनायें । जो आपके पास उपयोगी है उसे दान कर दें। धन का नहीं ज्ञान का।दुख का नहीं सुख का। अशॉति का नहीं शॉति का। उदासी का नही प्रेम का दान करें आपको कुछ नहीं करना पडेगा। परमात्मा ने आपको बहुत प्रेम दिया है जितनां बॉटोगे उसके दस गुना मिलेगा। जो ज्ञान तथा प्रेम के रास्ते पर चलता है वह आनन्द,प्रेम और खुशी पाता है ।
5-जीवन में दोस्त की उपयोगिता-
दोस्त की एक ही राह है,खुद किसी का दोस्त बन जॉय। जिसने अपने दोस्त का काम करने का बीडा उठाया है, बह देर नहीं किया करता। दोस्ती धीरे-धीरे पैदा करो, परन्तु जब कर लो तो उसमें दृढ रहो।सच्चे दोस्त तो वे हैं जिनकी देह दो और आत्मा एक होती है।दोस्ती खुशी को दूना करके और दुख को बॉटकर खुशी बढाती है तथा मुसीबत कम करती है।
6-ज्ञानी तथा विद्वानों में भेद-
ज्ञानी वह है जो अपने को जानता हो ।और विद्वान वह है जो दूसरों को जानता हो। इस संसार में विद्वानों की संख्या बढती जा रही है, जो कि खु बात है मगर खेद की बात है कि ज्ञानियों की संख्या कम होती जा रही है,क्योंकि आज देखा जाता है कि अपने सम्बन्ध में बढता हुआ अनाडीपन मनुष्य को जटिल उलझनों में तथा समाज को कठिन समस्याओं में जकडता हुआ चला जा रहा है। और जिस समाज में ज्ञानी पुरुषों की संख्या जितनी अधिक होती है वह समाज उतना ही अधिक आदर्श माना जाता है
7-झूठ बोलने वाले लोग सत्य का पाठ अधिक पढाते है
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आपने आदर्शों में यही सुना होगा कि,सत्य बोलना चाहिए लेकिन कुछ लोग बेइमानी की सफलता के लिए सत्य बोलते हैं वे भी दूसरों को समझाते रहते हैं कि सत्य बोलना चाहिए झूठ बोलना पाप है वे लोग यह जानते हैं कि वे दूसरों के लिए ठीक हैं क्योंकि अगर सारी दुनियॉ झूठ बोलने लगेगी तोझूठ बिल्कुल व्यर्थ हो जायेगा।और मैं केसे झूठ बोल सकूंगा,क्योंकि बेइमानी की सफलता के लिए ईमानदारों का होना भी आवश्यक है।अगर यहॉ बैठे सब लोग जेब कतरे हैं तो जेब नहीं कट सकती जेब तो तभी कट सकती है जब कोईजेबकट यहॉ न बैठा हो और यहॉ पर जेबकतरा भी यही समझाता है कि जेब काटना बुरा है।ऎसे लोगों से सावधान
रहें ये लोग समाज के दुश्मन हैं ।
8-जीवन में श्रद्धा भाव-
श्रद्धा का अर्थ है आत्मविश्वास और और आत्मविश्वास का अर्थ है ईश्वर पर विश्वास। बुद्धि में सद्विचार रखना श्रद्धा है।श्रद्धा तो मनुष्य को शॉति देता है और जीवन को सार्थक बनाती है। श्रद्धा तो हमारे आदर्श की बाहरी रेखा है। सबकी श्रद्धा अपने स्वभाव का अनुशरण करती है।मनुष्य में तो कुछ न कुछ श्रद्धा होती है। जिसकी जैसी श्रद्धा होती है वह वैसा ही होता है।
9-जो सामने है वही सच है-
मनुष्य जीवन तो जो आज और अभी है उसे कभी अतीत या भविष्य में न देखें, जिसने जीवन को अतीत या भविष्य में देखा उसने तो जीवन जाना ही नहीं। ध्यान रखें कि जो सामने है वही सच है इसके बाद जोकुछ भी है वह सिर्फ सम्भावना है ।
ज्ञान और अज्ञानता की अनुभूति करें-
इस संसार में आप जबतक ईश्वर की प्राप्ति के लिेए इधर-उधर भटकते रहेंगे और आप यह महशूस करते रहेंगे कि ईश्वर हम से दूर है, तो समझना चाहिए कि आप अज्ञानी हैं ।आपके ऊपर अज्ञानता रूपी अंधेरे की काली छाया है। लेकिन जब आप अपने अन्दर ईश्वर की अनुभूति करते हैं तोसमझो आपके अन्दर यथार्थ ज्ञान का उदय हो चुका है। और यदि आप उस ईश्वर को अपने ह्दय रूपी मन्दिर में देखते है तो फिर आपको पूरे जगत मन्दिर में ईश्वर दिखने लगेगा।
10-ज्ञान की महिमा-
ज्ञान सबकी व्यक्तिगत चेतना है, जिससे वह सत्य को देख सकता हैं,अज्ञानी नहीं। अपनी अज्ञानता का आभास जब होने लगता है तो ज्ञान का प्रथम चरण प्रारम्भ हो जाता है। ईश्वर का भय ही ज्ञान का प्रथम चरण है। ज्ञानी स्वयं को जानता है जबकि विद्वान दूसरों को जानता है। ज्ञान सच्चाई में ही पाया जाता है ।उडने की अपेक्षा झुकने का ज्ञान हमारे ज्यादा नजदीक होता है। ज्ञानी तो जगत का यथार्थ रूप जान सकता है। जो ज्ञानियों के साथ चलता है वह अवश्य ज्ञानी हो जाता है।ज्ञानी तो हर वात की अपने से आशा रखता है, जबकि मूर्ख दूसरों की ओर ताकता है। ज्ञानी वर्तमान को ठीक पढ सकता हैऔर परिस्थिति के अनुसार चल सकता है । ज्ञान से तो ही मुक्ति होती है।ज्ञान की बातें सुनकर जो उनपर अमल करता है, उसी के ह्दय में ज्ञान की ज्योति प्रकट होती है। ज्ञान का अन्तिम लक्ष्य चरित्र निर्माण करना होना चाहिए। ज्ञान से मन को शुद्ध होता है।क्रिया के बिना तो ज्ञान एक भार है । ज्ञान से मुक्ति होती है,यथार्थ मुक्ति का कारण भी यथार्थ ज्ञान ही है । कोई भी ज्ञानी पाप नहीं कर सकता।
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