Thursday, May 28, 2020

मन एक रेडियो स्टेशन है भाग -2


एंटी टाइम तरंगे और विश्व सेवा 

       बाबा ने कहा  है जो विश्व सेवा करेगा वह विश्व महाराजा बनेगा  और नए बच्चे भी नंबर लें सकते है ।  यह भी  इशारा दिया  है कि  मंसा  सेवा पर विशेष ध्यान देने से होगा । 

          सभी राजयोगी विश्व सेवा के कार्य में लगे हुए है परन्तु 81 साल में अभी तक 20-25 लाख लोगो को हम राजयोगी बना सके है ।  सवाल उठता है आखिर विश्व की सेवा कैसे करें कि  सभी जल्दी  जल्दी भगवान को पहचान सके । 

        हमारे दिमाग  में एक ऐसा केन्द्र है जिस से एंटी टाइम तरंगे निकलती है जो एक क्षण में कहीं भी पहुंच जाती है और तुरंत परिवर्तन आरम्भ कर देती है । इन तरंगो का प्रयोग हमें सीखना चाहिऐ । 

          अगर हम भारत के लोगो का जीवन बदलना  चाहते है तो हमें भारत के प्रधान मंत्री को तरंगे देनी चाहिऐ ।  प्रधान मंत्री  की सोच सारे भारत को प्रभावित करती है ।  प्रधान मंत्री देश के कल्याण के लिए सोचता रहता है ।  इसलिए प्रधान मंत्री की फोटॊ कल्पना में देखो और बीच में बाबा या इष्ट को देखो और बाबा को कहो आप प्यार के सागर है प्यार के सागर है शांति के सागर है शांति के सागर है ।  ये तरंगे प्रधान  मंत्री को पहुंचेगी और वह ऐसी कल्याणकारी स्कीमें  बनाएगा जिस से पूरा भारत खुशहाल बनेगा । 

         ऐसे ही  दूसरे  देशो  के प्रधान ममंत्रियो  को जिन्हे आप ने टी .वी याँ अखबार आदि में देखा है उन्हे  तरंगे दो ।  आप की इन तरंगो से वह  प्रेरित होगे और अपने देश के लिए कल्याण का सोचेंगे और विश्व बदलने लगेगा  । 

           भारत के प्रधान मंत्री को सामने देखो और मन में कहो  आप जैसे विश्व के सभी प्रधान मंत्री शांत स्वरूप है,  प्रेम स्वरूप है,  आप सभी कल्याणकारी है ।  ऐसा करते समय बाबा को भी बीच में रखना है ।  आप के यह विचार एंटी टाइम तरंगे बन कर सभी प्रधान मंत्रियो और उनसे जुड़े सभी व्यक्तियों को प्रेरित करेगे ।  इस विधि  से आप के विचार विश्व की प्रत्येक आत्मा को प्रभावित  करेगे   । 

        ये तरंगे व्हा्ट्सअप ग्रुप की तरह सब को पहुचती है ।  सभी प्रधान मंत्री एक ग्रुप  है । 

          अब भारत के राष्ट्रपति को सामने इमर्ज  करो और कहो  आप जैसे विश्व के सभी राष्ट्रपति शांत स्वरूप है,  प्रेम स्वरूप है कल्याणकारी है ।  क्योकि आप बाबा  को याद करते हुए ये कह  रहें हैं तो बाबा की शक्ति आप की एंटी टाइम तरंगो में प्रवेश कर जाती हैं और पूरे विश्व की आत्माओ को प्रेरित करती हैं तथा राष्ट्रपति कल्याणकारी कानून  बनाते हैं और कल्याणकारी स्कीम पास करते हैं । 

         अपने राज्य का कल्याण करने लिए अपने राज्य के मुख्यमंत्री को तरंगे दे ।  मुख्य मंत्री अपने राज्य को प्रभावित करेगा । 

       अपने जिले का कल्याण करने के लिए अपने जिले के डिप्टी कमीशनर को तरंगे दो ।  आप अपने क्षेत्र में जो करवाना चाहते हैं तो  डी . सी  को कल्पना  में कहे ।  आप के विचार उस तक पहुंचेगे और वह सही  कार्य करेगा । 

           शिक्षा का स्तर सुधारने के  लिए  अपने क्षेत्र के शिक्षा मंत्री और विश्व   विद्यालयो  के वाइस चांसलरस को तरंगे दो ।  आप के विचार उन्हे शिक्षा में सुधार  के लिए प्रेरित करेगे । 

         कानून व्यवस्था को सुधारने लिए राज्य के पोलीस डायरेक्टर और  ग्रहमंत्री को बाबा  के  सामने रखते हुए तरंगे दो ।  आप के विचार उन्हे प्रेरित करेगे और कानून का पालन करेगे । 

       दुनिया में कोई भी सुधार आप चाहते हैं,  उस काम के लिए कौन जिम्मेवार हैं उन्हे तरंगे देते रहो ।  आप के मनचाहे  कार्य होने लगेगे । 

हिमालय में बैठे योगी आज भी अपने योग बल से विश्व को प्रेरित कर रहें हैं । 

ऐसे ही आप भी विश्व में किसी ना किसी को प्रेरित करते रहो जी । 

आप जितने लोगो को प्रेरित करते हैं उतने क्षेत्र के राजा बनेगे । 

यह संसार मेल और फीमेल  से बना हैं । 

         बाबा को सामने  देखतें हुए कहें विश्व की सभी बहिनें आप  शांत स्वरूप हैं प्रेम स्वरूप हैं  । आप का यह संकल्प विश्व की सभी बहिनो को पहुंचेगी । 

         बाबा को याद करते हुए कहें विश्व  के सभी  भाई   आप शांत स्वरूप हैं,  प्रेम स्वरूप हैं और विश्व के भाइयो की लंबी लाइन अपने सामने देखे ।  आप का संकल्प विश्व कि हरेक आत्मा को पहुंच रहा हैं । 

         उपरोक्त दो विधियां  सर्व श्रेष्ट हैं ।  इस से आप का प्रत्येक संकल्प विश्व की प्रत्येक आत्मा को माइंड की एंटी टाइम तरंगो के  कारण से  मिलता   रहेगा   । इन तरंगो पर खोज की जरूरत हैं ।  परन्तु यह सचमुच में पहुचती हैं ।  आप को संशय में नहीँ  होना की ऐसे कैसे होता हैं ।  इस विधि से आप मनसा सेवा करो देखना एक दिन में ही बहुत अच्छा लगेगा ।  आप के ये संकल्प बहुत गहरे तल पर काम करते हैं ।  उन लोगो को शब्द तो समझा नहीँ आएंगे परन्तु उन्हे अच्छा अच्छा लगेगा,  खुशी होगी,  कल्याणकारी विचार उठने लगेगे ।

Friday, May 22, 2020

मन एक रेडियो स्टेशन है भाग -1

आंतरिक बल 

मन एक रेडियो स्टेशन हैं 

एंटी टाइम तरंगे और विश्व सेवा 

जो लोग हमारे आसपास रहते हैं उन्हे कोई बात कहनी हो या संदेश देना हो तो हम मुह से धीरे धीरे  शब्द बोलते हैं 1

व्यक्ति थोड़ा सा दूर हो तो हम जोर से बोलते हैं । 

ज्यादा  लोगो को कोई 'बात कहनी   हो तो हम लाउड  .स्पीकर का प्रयोग करते हैं । 

दूसरे शहर या दूसरे  देश में संदेश भेजना  हो तो हम मोबाइल,  वायरलेस,  इंटेरनेट या रेडियो,  टी .वी .आदि प्रयोग करते हैं । 

रेडियो तरंगो से हम स्पेस में राकेट में बैठे लोगो को संदेश लेते और देते हैं । 

ऐसे ही लोगो को भगवान का परिचय हम व्यक्तिगत रूप से देते हैं ।  क्लास या पब्लिक  प्रोगाम में माइक प्रयोग करते हैं ।  

इन विधियों  से हम बहुत कम संदेश दे पा  रहें हैं । 

81 वर्ष में हम करीब 20-25 लाख  लोगो को ईश्वरीय ज्ञान समझा  पाए  । 

लगभग 800 करोड़ आत्माओ को संदेश देना और उनकी पालना  करना आसान  काम नहीँ हैं । 

जो लोग योग का अभ्यास कर रहें हैं वह भी  अपना आंतरिक बदलाव बहुत कम कर पाए हैं । 

हमारे  मन में  एंटी टाइम ट्रावेलिंग तरंगे हैं जिनके द्वारा हम घर बैठे पूरे विश्व की सेवा कर सकते हैं 

Thursday, May 21, 2020

पाँच तत्व और सांस


        प्रत्येक व्यक्ति हर  घंटे जब  सांस  लेता है तो 16 मिनिट वह   जल तत्व से जुड़ा रहता है ।

         मनुष शरीर में  80 % जल है । अतः  जल का जीवन मे बहुत महत्व है । हर मनुष्य जल पीता रहता है ताकि इस की मात्रा  शरीर मे कम न  हो जाये । ज्यों  ही जल कम होता है हमें प्यास लगती है ।

         हम सांस के द्वारा भी  जल खींचते रहते है । मानव जो जल पीता  है उस मे कोई न कोई  अशुद्धि  होती है । उस मे सूक्ष्म रोगाणु  होते है जो अभी तक मनुष्य की  पकड़ मे नहीं आयें । हमारा  सूक्ष्म मन उन कीटाणुओं को पहचानता  है ।  

          इन रोगणुओ  के इलाज के लिये मन  उस जल को सांस के द्वारा   उन जड़ी  बूटियों से खींच लेता है,  जो औषधि  का काम करती है और जल से टकराती रहती है जो  झरनों के रुप मे गिरता  रहता है चाहे वह हिमालय पर हो या कहीं और  हो । 

       एक शेर को टांग पर बहुत चोट लग गई और वह  एक गुफा मे घुस गया । 2-3 दिन बाहर नहीं निकला तो शिकारियों  ने उस गुफा मे घुस कर देखा  कि गुफा मे एक नाला बह रहा  है तथा  शेर उसके पास लेटा  हुआ है और थोड़ी थोड़ी देर बाद पानी पी लेता  है । 10-15 दिन बाद जब शेर बाहर निकला तो सम्पूर्ण स्वस्थ था । इस से लोगो को पता लगा कि पानी से रोग भी  ठीक होते है । वह पानी ऐसी जड़ी बूटियों से स्पर्श करता  हुआ बह  रहा था  जो औषधि बनाने  के काम आती  थी ।

        इसी तरह मन सांस के द्वारा  आकाश  से वाष्प तथा  समुन्दर  और नदियों से  लवण, मिनरल व  नमक आदि जो शरीर के लिये ज़रूरी होते है, खींचता  रहता है । इस तरह  प्राकृति का यह अनूठा ढंग है शरीर  को  जल प्रदान करने का ।

         मन के बुरे विचार  समुन्दर  पर प्रभाव भी  डालते है । इस समय विश्व का हरेक व्यक्ति नकारात्मक सोचता है, जिस का सामूहिक प्रभाव  समुन्दर मे उतेजना पैदा कर देता  है,  इसके परिणाम स्वरूप   समुन्दरी तूफान आते है ।

        हर घंटे मे प्रत्येक व्यक्ति 12 मिनिट तक अग्नि तत्व से जुड़ा  रहता है ।

        शरीर को गर्म  रखने के लिये उर्जा की जरूरत होती है । यह उर्जा हम सूर्य तत्व से प्राप्त करते है । हम 12 मिनिट मे ही सूर्य से एक घंटे के लिये ज़रूरी उर्जा खींच लेते है ।

        हर व्यक्ति 8 मिनिट तक वायु तत्व से जुड़ा रहता  है । वायु तत्व से हम आक्सीजन लेते है   जो कि पौधों से  मिलती है । इसके इलावा  वायुमंडल मे जो आक्सीजन  होती है वहां से भी  प्राप्त कर लेते है  ।  अतिरिक्त आवश्यक तत्व भी हवा से हम लेते रहते है ।

         हम भगवान  से जीवनी शक्ति प्राप्त करते है । जैसे  नींद और कुछ  नहीं उस समय  हम भगवान से जुड़  जाते है और उस से शक्ति प्राप्त कर लेते है और एक दिन के लिये तरोताजा हो जाते  है ।  ऐसे ही इस आठ मिनिट मे हम भगवान  से बल लेते है ।  यदपि इसे विज्ञान अभी नहीं मानता ।  अध्यात्म इसे मानता है । फ़िर भी  यॆ शोध का विषय है ।

        हर घंटे मे व्यक्ति चार  मिनिट तक आकाश  तत्व से जुड़ा रहता  है । इस समय हम आकाश मे विद्युत तरंगे, चुम्बकीय तरंगे, भगवान  की शक्ति प्राप्त करते है । यह बहुत सूक्ष्म होता है, इसे योगी ही समझ सकता है । विज्ञान का कोई साधन इसे नहीं पकड़ सकता ।

     हम सभी  अपनी  सोच  के अनुसार  आकाश  मे उपलब्ध संकल्पों  से जुड़े रहते है । ये संकल्प उन व्यक्तियों के होते है जिनकी हमारे जैसी सोच है ।

Wednesday, May 20, 2020

सांस और धरती तत्व

आंतरिक बल 
सांस   और पृथ्वी तत्व 

      जो वायु बाहर से भीतर आती है उसे श्वास और जो भीतर से बाहर  जाती है उसे प्रश्वास कहते है ।

       दोनो  नथुनों  से हम बदल बदल कर सांस लेते है और एक नासिका से डेढ़ या दो घंटे तक  सांस लेते है ।

यह जो सांस लेते है इसमे हम सभी पाँचों  तत्वों से उर्जा प्राप्त करते है ।

       मान लो एक स्वर एक घंटे तक चलता  है तो उसमे हम 20 मिनिट पृथ्वी तत्व से उर्जा लेते है, जल तत्व से 16 मिनिट,  अग्नि तत्व से 12 मिनिट, वायु तत्व से 8 मिनिट और आकाश तत्व से 4 मिनिट उर्जा लेते है ।

         हमारे को जीवित रहने के लिये उर्जा भोजन से मिलती है । शरीर को विटामिन, मिनरल  और अनेकों धातुओं की  जरूरत होती है और सधारण आदमी को यह पता नहीं होता कि  उसे किन किन   पौधों से यॆ तत्व प्राप्त होंगे । अगर पता लग भी  जाये तो उन्हे प्राप्त कर पाना बहुत मुश्किल है,  क्योंकि वह बहुत महंगे  होते है ।  हमारे दिमाग मे नाक की जड़ मे ऐसे सूक्ष्म तंतु है जो प्राकृति के विभिन्न  पेड़ पौधौ  से वह तत्व  हवा के माध्यम से  खींच लेते है । वह पदार्थ चाहे पहाडी  इलाकों मे है चाहे दूसरे किसी विश्व के कोने मे है वायु जब वहां से गुजरती है तो उसके सूक्ष्म कण अपने साथ ले लेती है और हम नाक के सूक्ष्म तंतुओ  द्वारा हवा मे से उन्हे ले लेते है और शरीर को हृष्ट पुष्ट करते है । इस लिये हम हर घंटे मे 20 मिनिट पृथ्वी तत्व  से सांस के द्वारा जुड़े रहते है ।

       अगर हम दो तीन घंटे घी से पकवान आदि बनाने मे समय लगाते है तो भूख मर जाती है । इस का कारण यह है कि वह घी के सूक्ष्म कण /शक्ति सांस के द्वारा  प्राप्त कर लेते   है जो हमें भोजन करने से प्राप्त होते है । इसलिये हलवाई आदि को कम भूख लगती है । इसी तरह हर व्यक्ति शरीर के लिये ज़रूरी  तत्व   पेड़ पौधों से  सांस के द्वारा प्राप्त करता  रहता  है । 

       हमे  योग के द्वारा  नाक की  जड़ मे स्थित इस केन्द्र को जागृत करना है ताकि हम विनाश  के समय बिना भोजन भी  जिंदा रह  सके । यह खोज का विषय है ।

ऐसे अनेकों योगी हुये है जो  लम्बे  समय तक बिना कुछ  खाये तपस्या करते रहे । 

       अगर आप का स्वास्थ्य  ठीक नहीं है, तन से कमजोर है तो हर रोज़ कल्पना मे किसी पहाडी पर चले जाओ और वहां के पेड़ पौधों पर मन एकाग्र करो और कहो हे मन जो शरीर के लिये ज़रूरी तत्व है वह सम्बन्धित पौधों से प्राप्त करो । तो आप के मन मे स्थित केन्द्र वह शक्ति सांस से प्राप्त करने लगेगा । आप धीरे धीरे हृष्ट पुष्ट होने लगेगें । यह बहुत सूक्ष्म प्रक्रिया है इसे सिध्द  कर पाना मुश्किल होगा ।

Monday, May 18, 2020

साँस -नियम


             अगर दो घंटे से ज्यादा देर कोई स्वर चलता  है तो यह किसी बीमारी  का प्रतीक है ।

       जब सुषमना नाड़ी अर्थात दोनो नथुनों से एक साथ सांस   आता है तो उस समय मन सात्विक हो जाता है उस समय योग का विशेष अभ्यास करना चाहिये । यह समय 5-10 मिनिट से ज्यादा  नहीं होता ।

       अगर सुषमना नाड़ी लगातार  दो घंटे से ज्यादा चलती है तो यह कोई घातक  बीमारी की  निशानी है । सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच  तालमेल बिठा  रही है ।

        सुषमना स्वर अधिक चलने पर चिन्ता  नहीं दिनचर्या मे सुधार करो ।

        एक दम ताप या शीत  बढ़ने से, पाचन व्यवस्था के गड़बड़ाने से, लम्बे समय तक तनाव की अवस्था मे रहने से सुषमना स्वर लम्बे समय का हो जाता है । उस लम्बे काल को सीमित करने के लिये आहार, व्यवहार, विचार  मे परिवर्तन करना  चाहिये, इस से स्वर अनुकूल हो जाता  है ।

      अपना नियमित स्वर चक्र जानना  हो तो कुछ  दिन के लिये, अपनी जेब मे हर समय कागज कलम रखे ।  अपने  प्रत्येक कार्य करने के दौरान थोड़ी थोड़ी देर के बाद अपने स्वर की जांच  करें की कौन सा स्वर चल रहा  है ।

       नोट करो कि भोजन, शयन, स्नान आदि क़ी  क्रियाओं से  पहले और बाद मे कौन सा स्वर चला है । अति सर्दी अति गर्मी के समय स्वर नोट करें  । सप्ताह भर  मे अपना  औसत स्वर चक्र जान लेगें ।

       आरम्भ मे आप को स्वर का यह हिसाब किताब रखना  अजीब लगेगा लेकिन कुछ ही दिनो मे आप को इस जाँच  मे रस आने लगेगा । फ़िर  इस जांच  की  जरूरत नहीं होगी । आप का ध्यान बिना किसी यत्न के हर समय सांस की ओर लगा  रहेगा । बिना नासिका छिद्र को छुये अपने स्वर का वेग जान लेगें ।

     इस से कुछ  ही दिनो मे अपने भीतर दिव्यता प्रकट होगी । जब कभी तनाव या किसी और मनोदशा से पीडित होगें  तो अपने स्वर पर ध्यान देने से तनाव मुक्त हो  जायेगे । आप एक नये व्यक्ति के रुप मे  निखरते  चले जायेगे ।

Sunday, May 17, 2020

इ डा पिंगला नाड़ी तथा साँस


        कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

           बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

          जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

        बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

          यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

         मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

       जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

       ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

        हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Saturday, May 16, 2020

सांस और विद्युत


         जब हम गुस्से मे होते है तो सांस तेज हो जाते है और जब आराम की अवस्था मे होते है सांस धीमी हो जाती है ।

       हमारा मन हमारी सांसे, हमारे सारे ऊर्जा चक्र सभी आन्तरिक रूपों  से एक दूसरे से जुड़े हुये है ।

         हमारे मन की अवस्था शरीर  मे उपस्थित जीवनी विद्युत पर निर्भर करती है जो हम सांस लेते समय प्राप्त करते है ।

       जब हमें अचानक घबराहट,  अस्थिरता या भ्रम महसूस होने लगता है,  उत्साह की कमी, अवसाद व लक्ष्यहीनता के लक्षण सामने आते है तो  यह दर्शाता है कि हमें सांस लेते समय  कम मानसिक विद्युत  प्राप्त हो रही है ।

श्वास मन का भौतिक रुप है ।

        यदि सांस पर नियंत्रण हो जाये तो हम शरीर और मन पर  नियंत्रण कर सकते है।

        क्या आप लगातार थकान का अनुभव करते है ?  दोपहर होते होते  कार्य की शक्ति जवाब दे  जाती है । थकान होने का  कारण जानने के  लिये टेस्ट कराते  कराते थक गये है ।  सब कुछ  ठीक है परंतु थकान जाती ही नहीं ।

       हमारी सांस लेने की प्रक्रिया की कमजोरी ही इन लक्षणों को जन्म  दे रही है । पेशियों मे खिंचाव या दर्द, सीने मे दर्द, माहवारी से पहले होने वाला तनाव वा दर्द इसी श्रेणी मे आता है ।

        थकावट वा उपरोक्त लक्षणों मे गहरी गहरी सांस लो और मुख से छोडो । इस के साथ साथ मन मे कोमल भावनायें, स्नेह की भावना  रखो, स्वीकार भावना  रखो,  मधुर संगीत  मन  मे गुनगुनाते या सुनते रहो । आराम करो तथा  मन से दूसरो को तरंगे दो ।

        जब हम सांस की गति धीमी करते है तो इस से हमारे विचारो को फैलने के लिये स्थान मिलता है । हम सांस मे जितना अंतराल रखते है विचारो को उतना ही स्थान मिलता जाता है  जिस से विचारो मे बुद्विमता  और स्पष्टता आने लगती है ।

       गहरी सांस भावनाओ को शांत करती है तथा  परिस्थितियो को समझने मे मदद करती है ।

इडा तथा पिंगला नाड़ी


इडा तथा पिंगला नाड़ी और सांस 

कोई भी  स्वस्थ  व्यक्ति हर डेढ़ या दो घंटे मे या तो दायें या बायें नथुने से सांस लेता है ।

बायें नथुने से सांस द्वारा शरीर की  ऊर्जा बाहर निकलती है और ठंडक का अनुभव होता है   इसे चंद्र नाड़ी या इडा  नाड़ी कहते है ।

दायें नथुने से जो सांस लेते है इस से शरीर मे गर्मी पैदा होती है इसे सूर्य या पिंगला नाड़ी कहते है ।

        जब एक नथुने से सांस की प्रक्रिया दूसरे नथुने से शुरू होने लगती है तो कुछ  समय के  लिये दोनो नथुनों से सांस लेते है । इस समय सुषमना नाम की नाड़ी एक्टिव हो जाती है । इस समय योग मे मन बहुत एकाग्र हो जाता है । संकल्प सात्विक होते है ।

दोनो नथुनों की नसे  दिमाग से भी  जुड़ी रहती है ।

          हमारा दिमाग दो भागो  मे बंटा   हुआ है । बाया   गोलार्द्ध और दाया गोलार्द्ध ।

          बायें नथुने से दिमाग का दाया भाग  तथा  दायें नथुने से दिमाग का बाया  भाग संचालित होता है ।

        यदि हम एक करवट पर सोते है तो उस का विपरीत नथुना  खुल जाता है ।

         अगर एक नथुने से दो घंटे से ज्यादा देर सांस लेते है तो कोई ना कोई रोग का शिकार हो जाते है ।

        मधुमेह तथा  रक्तचाप की बीमारी एक हद तक  दायें नथुने की अधिक सक्रियता  है ।

          बायें नथुने से लगातार सांस लेने से दमा, सायनस, टांसिल, खाँसी का रोग हो  सकता है ।

        जब मन में कोई नाकारात्मक वृत्ति उठ  रही हो, मन बेचैन हो , उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस आ रही हो उसे उंगली से दबा लो और दूसरे नथुने से सांस लो । मन मे शांत हूं शांत हूं  रिपीट करो । थोड़ी देर मे नाकारात्मक वृत्ति ठीक हो जायेगी ।

        ऐसे ही जब थकावट महसूस होने लगे, सिर दर्द होने लगे, शरीर की मांस पेशियां  मे जकड़न महसूस होने लगे या कोई भी  शरीर मे बेचेनी होने लगे तुरंत सांस दूसरे नथुने से लेना शुरू कर दो तथा  मन मे  दयालु संकल्प चलाओ । शरीर को आराम मिलेगा ।

        अगर शरीर मे कोई भी  रोग है, उसको जल्दी ठीक करने के लिये दोनो नथुनों से बदल बदल कर  सांस ले । यह प्रक्रिया 10 मिनिट हर रोज़  सुबह सुबह करें । दिन मे भी  जब समय मिले ऐसा अभ्यास करें । मन मे कोमल भावनायें रखे । अध्यात्म यह मानता है कि जब हमारे विचार  लम्बे समय तक कठोर रहते  है तब कोई ना कोई बीमारी लग जाती है ।

      हरेक रोग मे डाक्टरी मदद भी  ज़रूर लेते रहो । क्योंकि आध्यात्मिक उपचार अभी तक पूरा विकसित नहीं है ।

Friday, May 15, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

सांस और दोष


आंतरिक बल   
सांस  और दोष 

        अग्नि मे तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं की अशुध्दता नष्ट हो जाती  है । ऐसे सांस पर नियंत्रण या योग से मन के    दोष दूर होते है ।

        निरंतर सांस नियंत्रण  तथा  प्रभु के गुणों का चिंतन करने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते है । 

सूक्ष्म और स्थूल शरीर दोनो ही शुध्द होते है ।

      जो प्राणी जिस गति से सांस लेता  है उसी के अनुसार उसकी आयु होती है ।

        कछुआ  एक मिनिट मे 4-5 सांस लेता  है उसकी आयु 200 से 400 वर्ष होती है ।

       मनुष्य औसत 12 से 18 सांस लेता है अतः  औसत सांस 16 होती है । उसकी औसत आयु 100 वर्ष होती है ।

अगर योगी औसत एक मिनिट मे 4 सांस ले तो उसकी औसत आयु 400 साल हो सकती है ।

         वायु ही जीवन है, वायु ही बल है । धीरे धीरे सांस से वायु खींचने पर सर्व रोगॊ का नाश  होता है । तेज गति से सांस लेने पर  रोग आ धमकते  है ।

        दिमाग के दो भाग  है । कुछ  कार्य या विचार   दिमाग का बाया भाग  करता  है, कुछ  विचार  दाया भाग  करता है । जब कभी हमें कोई नाकारात्मक विचार परेशान कर रहा हो तो हमें यह पता नहीं होता कि  दिमाग का कौन सा भाग  विचार  कर रहा है । 

         उस समय चेक करो कौन से नथुने से सांस ले रहे है । जिस नथुने से सांस ले रहे है उसे हाथ  की अँगुली से दबा ले तथा  दूसरे नथुने से धीरे धीरे  सांस लेने लग जाओ । इस से आप का दिमाग   दूसरे  गोलार्द्ध  से सोचने लग जायेगा । मान लो आप बायें भाग से सोच  रहे है तो दायें भाग  से सोचने लगेगें और अगर दायें भाग  से सोच  रहे है तो बायें भाग से सोचने लगेगें । इस तरह आप के नाकारात्मक विचार  बदल जायेगे ।

          सांस का सुर बदलने के लिये आप जिस नथुने से सांस ले रहे है उस करवट  लेट जाये । थोड़ी देर बाद अपने आप दूसरे नथुने से सांस चालू हो जायेगा । 

       ऐसा करते समय जो आप चाहते  है वह संकल्प सोचो । मान  लो आप को निराशा  आ रही है तो सोचो मै खुश हूं खुश हूं खुश हूं । भगवान  आप खुशीओ  के सागर है । थोड़ी देर मे नाकारात्मकता बंद  हो जायेगी ।

Wednesday, May 13, 2020

सूक्छम शरीर और दिव्य द्रष्ठि


सूक्ष्म शरीर  और दिव्य दृष्टि 

मानसिक विद्युत सूक्ष्म शरीर में अनंत मात्रा  में है ।

        हमारी आँखे सूक्ष्म शरीर तथा  मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । मन में हम जो सोचते है वह आँखो में तैरता  रहता है ।

         जब हम किसी को देखते है तो यह सूक्ष्म शक्ति प्रकाश का रुप धारण  कर लेती है और उस व्यक्ति को प्रभावित करती है, तथा  दूसरे व्यक्ति जब हमें देखते है तो उनकी आँखो से निकला  हुआ प्रकाश हमें प्रभावित करता है ।

           हम जागृत अवस्था में सारे दिन भिन्न  भिन्न  वस्तुओं एवं व्यक्तियों को देखते रहते है तथा  विभिन्न  कर्म करते रहते है  इस से हमारी मानसिक उर्जा आंखो  के द्वारा नष्ट होती रहती है ।

         स्थूल आँखे कुछ  दूरी तक देख सकती है । दूरबीन से और ज्यादा दूर  देख सकती  है । सूक्ष्म लोक में क्या हो रहा  है यह नहीं देख सकती  । दूसरे कमरे में क्या हो रहा  है, शहर  के दूसरे कोने में क्या हो रहा है, नहीं देख सकते, दूसरे  देशों में क्या हो रहा है नहीं देख सकते ।

       महा भारत  के युध्द  के समय संजय घर  बैठे बैठे युध्द  का हाल सुनाता रहा । कहते है यह सब दिव्य दृष्टि के कारण था ।

यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र दुनिया के प्रत्येक मनुष्य में है ।

      यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हमारी स्थूल आँखो के मूल में है ।

         हम एक पल में  कोलकाता  पहुंच  जाते है,  कभी समुन्दर  पर पहुँच जाते है, कभी अमेरिका कभी पाकिस्तान पहुँच जाते  है । योग लगाते समय परमधाम, कभी सूक्ष्म वतन पहुंच  जाते है यह सब हर व्यक्ति में स्थित  दिव्य दृष्टि के कारण ही हो रहा   है ।

        अच्छा  वा बुरा मन में जो हम देखते है, कल्पना करते है, यह सब दिव्य दृष्टि से हम देख रहे होते है और यह सच होता है । 

       अगर हम इस दिव्य दृष्टि के केन्द्र को जागृत करने की विधि खोज ले तो इस संसार का काया  कल्प हो जायेगा ।

Wednesday, May 6, 2020

गीता के मूल मंत्र


अध्याय १
मोह ही सारे तनाव व विषादों का कारण होता है।

अध्याय २
शरीर नहीं आत्मा को मैं समझो और आत्मा अजन्मा-अमर है।

अध्याय ३
कर्तापन और कर्मफल के विचार को ही छोड़ना है, कर्म को कभी नहीं।

अध्याय ४
सारे कर्मों को ईश्वर को अर्पण करके करना ही कर्म संन्यास है।

अध्याय ५
मैं कर्ता हूँ- यह भाव ही अहंकार है, जिसे त्यागना और सम रहना ही ज्ञान मार्ग है।

अध्याय ६
आत्मसंयम के बिना मन को नहीं जीता जा सकता, बिना मन जीते योग नहीं हो सकता।

अध्याय ७
त्रिकालज्ञ ईश्वर को जानना ही भक्ति का कारण होना चाहिये, यही ज्ञानयोग है।

अध्याय ८
ईश्वर ही ज्ञान और ज्ञेय हैं- ज्ञेय को ध्येय बनाना योगमार्ग का द्वार है ।

अध्याय ९
जीव का लक्ष्य स्वर्ग नहीं ईश्वर से मिलन होना चाहिये ।

अध्याय १०
परम कृपालु सर्वोत्तम नहीं बल्कि अद्वितीय हैं।

अध्याय ११
यह विश्व भी ईश्वर का स्वरूप है, चिन्ताएँ मिटाने का प्रभुचिन्तन ही उपाय है।

अध्याय १२
अनन्यता और बिना पूर्ण समर्पण भक्ति नहीं हो सकती और बिना भक्ति भगवान् नहीं मिल सकते।

अध्याय १३
हर तन में जीवात्मा परमात्मा का अंश है- जिसे परमात्मा का प्रकृतिरूप भरमाता है, यही तत्व ज्ञान है।

अध्याय १४
प्रकृति प्रदत्त तीनों गुण बंधन देते हैं, इनसे पार पाकर ही मोक्ष संभव है ।

अध्याय १५
काया तथा जीवात्मा दोनों से उत्तम पुरुषोत्तम ही जीव का लक्ष्य हैं ।

अध्याय १६
काम-क्रोध-लोभ से छुटकारा पाये बिना जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा नहीं मिल सकता ।

अध्याय १७
त्रिगुणी जगत् को देखकर दु:खी नहीं होना चाहिये, बस स्वभाव को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिये ।

अध्याय १८
शरणागति और समर्पण ही जीव का धर्म है और यही है गीता का सार।

आन्तरिक बल -कान


            हरेक मनुष्य में ऐसे दिव्य कान  है जो कि  कर्ण इन्द्रिय के मूल में है । जिस के द्वारा  हम कहां  क्या हो रहा  है, सूक्ष्म लोक में क्या हो रह है, यह सब सुन   सकते है ।

             परंतु यह इन्द्रिय बहुत कमजोर हो गई  है, जिस कारण से दूर की आवाज़   नहीं सुन सकते ।

          सूक्ष्म नाकारात्मकता,   सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय  को कमजोर करती है । यह कार्य बच्चे के  ज्न्म  से ही आरम्भ हो जाता है ।

            हमारे मां बाप तथा  बड़े भाई  बहिन, चाचा  चाची हमें छोटी छोटी  बातो पर डांट  डपट करते थे और हम मन मसोस कर रह  जाते थे । अन्दर ही अन्दर घुटते रहते थे ।

         बड़े होने पर मित्रों  ने या  जहां  काम किया, वहां  के बोस ने गलत व्यवहार किये, घर  में पत्नी ने जो टोका टिपणी की जो कि  अनुचित थी, उन से  सूक्ष्म कर्ण  इन्द्रिय कमजोर होती रही तथा  अब बहुत ज्यादा कमजोर हो  गई  है ।

           आज हम यदा  कदा  उपरोक्त सब अनुचित व्यवहारों को मन में रिपीट करते रहते है, जब  यॆ रिपीट करते है तो सूक्ष्म कान इन्हे सुनते रहते है, जिस से आज तक भी  इस इन्द्रिय को अनजाने में  कमजोर करते रहते है ।

          हम जो फिल्में, नाटक  आदि टी  वी पर देखते है, उस  में दूसरो पर जो अत्याचार  होता है, शोषण होता है, बुरे बोल होते है, वह हम मन में याद रखते है, सूक्ष्म में बोलते रहते है, जिसे कान सुनते रहते है और दिव्य कर्ण इन्द्रिय कमजोर होती रहती है ।

            व्यक्ति अपनी सुंदरता, अपनी सेहत को लेकर निरंतर  चिंतित रहता  है जिसे सूक्ष्म कान का केन्द्र सुन लेता है और कमजोर होता रहता है ।

              हर  व्यक्ति कोई ना कोई भूल करता है, तथा  मनचाहे  लक्ष्य प्राप्त ना कर सकने के कारण अपने बारे हीन भावना  से ग्रस्त हो जाता है । यह हीन भावना  मानव की  सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय  को कमजोर करती  है ।

            कोई हमें किसी के बारे बताता  है कि फलाना  व्यक्ति में यॆ यॆ अवगुण है और हम उसे मान  लेते है । इसे पूर्वा  आग्रह कहते है । वह व्यक्ति चाहे कितना गुणवान हो उसके मिलने पर या उसकी उपस्थिति में उसके प्रति बुरा सोचते है जिसे सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय सुनती रहती  है और कमजोर होती रहती है ।

             सार यह है कि  स्थूल वा सूक्ष्म नाकारात्मक विचार, वह चाहे अब की  परिस्थितियो या भूतकाल के कारण हो, वह चाहे सच्चे हो या झूटे  हो, वह हमारे से सम्बन्ध  रखते हो या ना रखते हो, जब जब मन में आयेंगे   उसे हम सूक्ष्म में सुनते भी  है,   जिस से  सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय कमजोर होती है और दूर  दराज की  हल चल नहीं सुन सकती ।

           अगर हमें सूक्ष्म कर्ण इन्द्रिय को जागृत करना है  तो बापू के तीन बंदरों में से तीसरे बंदर की शिक्षा  याद रखो कि  कानो से बुरा  मत सुनो ।

         याद रखो हम जो बोलते है, देखते है, पढ़ते है, महसूस करते है , उसे सूक्ष्म में सुनते भी  है । हर नकारात्मकता दिव्य कर्ण  इन्द्री  को कमजोर करती है ।