Friday, June 19, 2020

मूल आधार चक्र

आंतरिक बल 
मूल आधार  चक्र -3
         मूल आधार  चक्र धरती से जुड़ा हुआ है । इस चक्र का जागरण  ही विश्व को जीतना है  । इस चक्र का जागरण ही कुंडलनी जागरण है ।

          इस चक्र को जीतने के लिये ब्रह्मचर्य पहली शर्त  है । मन में भी  अपवित्र संकल्प न उठे जिसके लिये बहुत अटेन्शन की जरूरत है वह यह  कि  विपरीत लिंग के लोग   सिर्फ और सिर्फ हमारे भाई  है या बहिनें है केवल यह याद रखे और कर्म में लाये ।

        मान, शान  और  शोहरत पाने   की  भावना  दूसरी बडी   चुनौती   है । ये ऐसी बाधा है जैसे धरती  से ऊपर उड़ना  है । बिना हवाई जहाज या राकेट के आप   उड़  नहीं     सकते है ।

           ऐसे ही इस चक्र को  जागृत करने के  लिये नियमों  को समझना  होगा । जैसे हवाई   जहाज या राकेट के नियम  को जानते है ।

         पवित्रता के संकल्प ही बल है, पवित्रता के संकल्प ही उर्जा है, पवित्रता के  संकल्प ही ईंधन है ।

         हवाई जहाज या राकेट को उड़ाने के  लिये शुध्द ईंधन की जरूरत होती है ।

-          मूल आधार  चक्र को जागृत करने या उडाने के लिये  पवित्र  संकल्प रूपी ईंधन की  जरूरत होती है  । 

         आंधी  , तूफान, सर्दी,  गर्मी , हवा वा तापमान  सभी यान पर प्रभाव  डालते है  । परंतु शुध्द इंधन  से बल उत्पन्न होता रहता है जिस से यान  सब बाधाओ को पार कर जाता  है ।

         ऐसे ही  दुख , विरोध, पांच  विकार तथा सांसारिक व पारिवारिक परेशानिया  मूल चक्र को जागृत नहीं होने देती क्योंकि ये अपवित्रता है ।

         परंतु शांति, प्रेम, सुख व  आनंद  के संकल्प विपरीत हालात  होने पर भी अगर   हम मन में दोहराते रहें तो मन में बल  उत्पन्न होता रहेगा क्योंकि ये पवित्रता है  जिस से  मूल अधार चक्र  जागृत हो जायेगा  ।

         हम जो संकल्प करते है वही घूम कर वापिस आते है और हमारे लिये परिस्थिति का निर्माण करते हैं । हमारी सोच अनुसार व्यक्ति आते जायेगे और परिस्थिति  बनती   जायेगी और हम सफल होते जाएंगे । जितना पवित्रता   के संकल्पों  में रहेंगे उतना ही शक्तिशाली हालात बनेंगे और यह चक्र जागृत होता जायेगा ।

         मूल आधार चक्र  को  जागृत करने की  मेहनत  नहीं करो लेकिन पवित्रता के संकल्प कि  मै स्नेही  हूं और परमात्मा आप प्यार के सागर है ऐसे संकल्पों  को मन में रखो । इसे ही दृढ़ता से सिमरन करो  । संसार  की हर वस्तु व व्यक्ति को प्यार दो, तब आप को पता  ही नहीं चलेगा कि कब  यह चक्र जागृत हो गया  ।

Friday, June 12, 2020

सहस्रार -3

आंतरिक बल 
सहस्त्रार -3

सूर्य से सारे सौर मंडल को ऊर्जा मिलती है ।

         मिलों व  कारखानों में मोटर चलती है, परंतु मोटर को चलाने के लिये बिजली कहीं और से मिलती है ।

          मस्तिष्क रूपी कारखाने को बिजली  सहस्त्रार से मिलती है । इस चक्र में प्रकाश की  उछल कूद अगर बंद हो जाये  तो व्यक्ति की मृत्यु  हो जाती है ।

सहस्त्रार  में उठे संकल्प व्यक्ति का जीवन निर्धारित करते है ।

         पहाड़ो  से पानी की धारायें जब  छूटती  है तो वह पास पास होती है परंतु नीचे गिर कर नाले  नदी के रुप में बहते  हैं तब  नदी और नालो  की  आपस की दूरी बढ़ती जाती है ।

         स्टेशन पर रेल गाडियां साथ साथ खड़ी रहती है,  परंतु जब लीवर बदलने से वह अलग अलग लाइनों पर चलती है तो उन लाइनों की दूरी बढ़ती जाती है और गाडियां अलग अलग  जगह पहुंच जाती है ।

         सहस्त्रार  में अच्छे  व  बुरे संकल्प एक जगह उठते है परंतु व्यक्ति को अलग अलग परिणामों तक पहुँचा देते है ।

सहस्त्रार को दसवां  द्वार भी  कहते हैं।

         दो नथुने, दो  आंखे, दो कान, एक मुख और दो मल मूत्र  के स्थान ये 9 द्वार कहे जा सकते  है ।

        योगी जन इसी सहस्त्रार, दसवे  द्वार से प्राण  त्यागते  है ।

          गर्भ में बच्चे में आत्मा  इसी केन्द्र से प्रवेश करती है ।

       इसी केन्द्र की सीध में मस्तिष्क के रुप से ऊपर रहस्यमय  कही  जाने वाली मुख्य ग्रंथी पीनीयल   ग्लेंड  है । जिस में आत्मा का निवास है ।

         जब हम भगवान  को याद करते है तो इसी केन्द्र से शक्ति खींचते है ।

        जैसे वृक्ष अपनी चुम्बकीय शक्ति से वर्षा  खींचते है ।

Thursday, June 11, 2020

सहस्त्रार चक्र -4


सहस्त्रार  चक्र 

           धातुओ  की खदानें  अपने  चुम्बकतव से अपनी जातीय धातु कणों को अपनी ओर खींचती  और जमा करती है ।

          मन में जो संकल्प उठते है उसी अनुसार सहस्त्रार  चक्र उसी स्तर का वैभव आकाश से खींचता है । वैसा ही अनुभव वा फल मिलने लगता है ।

        इसलिये चाहे कितनी विपरीत परिस्थिति हो मन सदा सकारात्मक चीजो पर लगाये रखो ।

        सहस्त्रार को क्षीर सागर, शेष  शया वा मानसरोवर भी  कहते है ।

        खोपडी के मध्य भरा  हुआ  वाइट  और ग्रे  मैटर ही क्षीर सागर है ।

        पूरे शरीर में दौड़ने वाली विद्युत का नियंत्रण करने वाला यही सह्स्त्रांर  केन्द्र है ।

          इस केन्द्र को जितना ज्यादा जागृत करेगें  उतना ज्यादा ईश्वरीय शक्तियां  प्राप्त करेगें ।


        इस केन्द्र को जागृत करने के लिये मन में शांति, प्रेम आनंद, दया  के संकल्प दोहराते और महसूस करते रहो ।

शरीर की समस्त गति विधियों का यह मूल स्थान है ।

         मनुष्य हर समय एक विद्युत दबाव  से प्रति क्षण  प्रभावित होता रहता है ।

          पृथ्वी की  सतह से ले कर वायुमंडल के आयनो सफ़ीयेर के मध्य लगभग तीन लाख  बोल्ट की शक्ति की कुदरती विद्युत हर समय वातावरण में बहती रहती है ।

         हमारे दिमाग में जो विद्युत बहती रहती है वह कुदरती विद्युत जो हमारे आसपास बह रही है उस से मेल खाती  है ।

         हमारा मस्तिष्क इस कुदरती विद्युत को हर समय जरूरत अनुसार लेता रहता है । जिस से हमारा शरीर अपने कार्य करता है । ये विद्युत लेने का कार्य सहस्त्रार  केन्द्र ही करता  है ।
 
           एरियल या ऐनटीना  ट्रांसमीटर द्वारा भेजे  गये शब्द किरणो को पकड़ते है । ये इतने शक्तिशाली होते है कि बहुत दूर  से  आने वाली तरंगों को भी  पकड़ करने उन्हे ध्वनि में बदल देते है ।

         इसी तरह कोई व्यक्ति, चाहे विश्व में कही भी  रहता  हो, हमारे बारे जब कभी अच्छा  व  बुरा  सोचते है, हमें उसी समय प्राप्त  हो  जाते है । यह काम  सहस्त्रार  केन्द्र   करता है ।


 

Tuesday, June 9, 2020

ORAC के बारे में जानें


          ORAC का अर्थ  ऑक्सीजन रेडिकल एब्सॉरबेन्ट केपेसिटी  (Oxygen Radical Absorbance Capacity.) 
          जितना अधिक ORAC, होगा उतनी ही ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता हमारे  फेफड़ो  को और  रक्त को होगी।
          भविष्य में हमें हमारे अस्तित्व, जीवन बचाने के लिए हमे हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति(Immunity) को बढ़ानी होगी। 
           हमारे जीवन में मसालों और जड़ीबूटियों का रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत महत्व है। मसाले और जड़ीबूटियों का अमूल्य धरोहर प्रकृति से हमे मिला है।  
          आइए कुछ जड़ीबूटियों और मसालों के ORAC क्षमता (values) पर नजर डाले :
     1. लौंग Clove :
           314,446 ORAC 
    2. दालचीनी Cinnamon :
           267,537 ORAC 
     3. कॉफी Coffee. :
           243000  ORAC
     4. हल्दी Turmeric :
           102,700 ORAC 
     5. कोका Cocoa :
           80,933    ORAC 
     6. जीरा Cumin : 
          76,800  ORAC 
     7. अजवाइन Parsley :
           74,349 ORAC 
     8. तुलसी Tulsi : 
          67,553 ORAC 
     9. अजवायन के फूल Thyme : 
           27,426ORAC
     10. अदरक Ginger :
           28,811 ORAC 

          अदरक, तुलसी, हल्दी आदि के *सत्व(रस)* की ORAC की क्षमता दस गुणी ज्यादा होती है। इसलिए इनका प्रयोग करना चाहिए।
          खून में ऑक्सीजन ग्रहण की क्षमता को (OXYGEN CARRYING CAPACITY OF THE BLOOD)  प्रकृति  में मिलने वाले विभिन्न फलों, 
हरी शाकसब्ब्जी,  पत्तेदार सब्जियों, मसालों, वनस्पतियों, जड़ीबूटियों आदि से भरपूर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है।
        उत्तम क्षमता वाले ORAC खाद्यपदार्थ (आहार) और पोषक तत्व (Nutrients) जैसे कि  *Iron, Vitamin C, Zinc, Omega 3, Magnesium and Vitamin D* आदि शारिरिक क्षमता और सुरक्षा कवच को सुदृढ़ तथा मजबूत करते हैं। 
           तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, हल्दी, दालचीनी, लोंग के अतिरिक्त जड़ीबूटी जैसे *ब्राह्मी, अश्वगंधा, सतावरी, मुलेठी, अर्जुनारिष्ट, पीपर, धनिया, काला जीरा, इलाइची* आदि वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। 
          अतः यह किसी भी वेक्सीन या टीके से बहुत ज्यादा प्रभावशाली है वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट्स के।
         130 करोड़ आबादी वाले देश में सबका टेस्ट करना असंभव है। प्रति दिन यदि दस लाख टेस्ट करे तो भी 35 वर्ष लग जाएगें।
          उपरोक्त सभी बातों का निष्कर्ष निकलता है कि हमारे शरीर में इम्युनिटी उतनी ही आवश्यक है जितनी जरूरत कंप्यूटर में इंटेल (Intel) की है।

Saturday, June 6, 2020

कुछ अपने दिल की बात

कुछ अपने दिल की --

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
हम सीख न पाये 'फरेब',
और दिल बच्चा ही रह गया।।

बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे,जहां चाहा रो लेते थे,
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई।।

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से,
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में,
चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं,
तुम हमें ढुंढो,
हम तुम्हे ढुंढते हैं।।


समझ ज्ञान से ज्यादा गहरी होती है,बहुत से लोग आपको जानते हैं,
परंतु कुछ ही आपको समझते है|

हमें अक्सर महसूस होता है कि दूसरों का जीवन अच्छा है लेकिन,,,,,
हम ये भूल जाते है कि उनके लिए हम भी दूसरे ही है,,

मुस्कराना जिन्दगी का वो खुबसूरत लम्हा है,,,, 
जिसका अंदाज सब रिश्तों से अलबेला है..
जिसे मिल जाये वो तन्हाई में भी खुश,,,,,
और जिसे ना मिले वो भीड़ में भी अकेला है..

अगर आपको वह "फसल" पसन्द नहीं है,*
जो आप काट रहे हैं,,
तो बेहतर होगा उन "बीजों" की जांच करें,,,,
जो आप बो रहे हैं,,,,,,

जीवन की सफलता का
पहला राज की सबसे पहले ख़ुद पर यक़ीन करना सीखो,,,,,

सद्गुणों की शुरूआत स्वयं से ही करनी पड़ती है,,,,
क्योंकि जब तक आपकी अँगुली पर कुमकुम नहीं लगेगी तब तक सामने वाले के ललाट पर तिलक नहीं लग पायेगा,,,,

हमारी परम्पराएं और विज्ञान


       सनातन धर्म की बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जिसे हम जानते और पालन तो करते तो हैं पर उसके तार्किक महत्व को नहीं जानते।

आइए जानते हैं, अपने दैनिक जीवन के शिस्टाचार में आने वाले इन पहलुओं को।

        हिन्दू परम्पराओं के पीछे छिपे 20 वैज्ञानिक तर्क ताकि अगर भविष्य में कोई आपसे यह पूछे कि महिलाएं बिछिया क्यों पहनती हैं, तो आप उसका सही तर्क दे सकें।

हिंदू परम्पराओं के पीछे का विज्ञान:-

1. हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

2. पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

3. माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

4. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

5. कान छिदवाने की परम्परा

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

6. जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

7. दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8. सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9. सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10. व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11. चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12. क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13. तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

14. मूर्ति पूजन

हिंदू धर्म में मूर्ति का पूजन किया जाता है।

वैज्ञानिक तर्क- यरि आप पूजा करते वक्त कुछ भी सामने नहीं रखेंगे तो आपका मन अलग-अलग वस्तु पर भटकेगा। यदि सामने एक मूर्ति होगी, तो आपका मन स्थ‍िर रहेगा और आप एकाग्रता ठीक ढंग से पूजन कर सकेंगे।

15. चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएं हाथों में चूड़‍ियां पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- हाथों में चूड़‍ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़‍ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

16. मंदिर क्यों जाते हैं

मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आप इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, तो आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है। मस्त‍िष्क शांत रहता है।

17. हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है।

       वैज्ञानिक तर्क- हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआं उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़े दूर भागते हैं।

18. महिलाएं क्यों पहनती हैं बिछिया

हमारे देश में शदीशुदा महिलाएं बिछिया पहनती हैं।

         वैज्ञानिक तर्क- पैर की दूसरी उंगली में चांदी का बिछिया पहना जाता है और उसकी नस का कनेक्शन बच्चेदानी से होता है। बिछिया पहनने से बच्चेदानी तक पहुंचने वाला रक्त का प्रवाह सही बना रहता है। इसे बच्चेदानी स्वस्थ्य बनी रहती है और मासिक धर्म नियमित रहता है। चांदी पृथ्वी से ऊर्जा को ग्रहण करती है और उसका संचार महिला के शरीर में करती है।

19. क्यों बजाते हैं मंदिर में घंटा

          हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाना शुभ होता है। इससे बुरी शक्त‍ियां दूर भागती हैं।

          वैज्ञानिक तर्क- घंटे की ध्वनि हमारे मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिय एकाग्रता बनती है। घंटे की आवाज़ 7 सेकेंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है। और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं। हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।

20. हाथों-पैरों में मेंहदी

        शादी-ब्याह, तीज-त्योहार पर हाथों-पैरों में मेंहद लगायी जाती है, ताकि महिलाएं सुंदर दिखें।

           वैज्ञानिक तर्क- मेंहदी एक जड़ी बूटी है, जिसके लगाने से शरीर का तनाव, सिर दर्द, बुखार, आदि नहीं आता है। शरीर ठंडा रहता है और खास कर वह नस ठंडी रहती है, जिसका कनेक्शन सीधे दिमाग से है। लिहाजा चाहे जितना काम हो, टेंशन नहीं आता।

रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व

          भारतीय संस्कृति मे रीति-रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व है.जैसे हमारे बुजुर्ग प्रातः उठकर अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमें ईश्वर का दर्शन करते हैं। धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते हैं क्योंकि जो धरती माँ धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, हमारा पालनपोषण करती है, उसी पर हम पैर रखते हैं.इसीलिए धरती पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम कर उससे माफ़ी मांगते हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऐसा प्रसंग है।

           सूर्य ग्रहण  के समय घर से बाहर  न निकलने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा हुआ है। दरअसल सूर्य ग्रहण के समय सूर्य से बहुत ही हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तरह कहा जाता है  कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता।

        हमारे वेद पुराणों में प्रकृति को माता और इसके हर रूप को देवी -देवताओं का रूप दिया गया है-हमने कुछ पेड़ों को जैसे-बरगद,पीपल को देवताओं और तुलसी, नदियों को देवी का रूप दिया है। यह कोई अन्धविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत  बड़ा तथ्य छुपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने इन्हें देवी-देवताओं का दर्जा इसलिए दिया क्योंकि कोई व्यक्ति किसी की पूजा करता है तो वह कभी भी  उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

          घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरवत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख-ध्वनि जहाँ तक जाती  है वहां तक की वायु से जीवाणु -कीटाणु सभी नष्ट हो जाते हैं .

        हमारे यहाँ चारो धाम घूमने की परंपरा है इस परंपरा के पालन करने से हमें देश के भूगोल का ज्ञान होता है ,पर्यावरण के सौंदर्य का बोध होता है और साथ में ये यात्रायें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी  लाभकारी हैं क्योंकि इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है.

        हमारे सभी रीति-रिवाज़ और त्यौहार हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं जैसे-रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाता है.करवाचौथ दाम्पत्य जीवन  में मधुरता लाता है.ऐसे ही छठ में माँ अपने बच्चे की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है.

         विदेशी लोग भारत  आकर यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परम्पराओं को देख रहे हैं और अपना रहे हैं भारतीय संस्कृति से प्रभावित विदेशी पर्यटक मन की शांति के लिए भारत आते हैं और यहाँ आने पर उन्हें एक अजीब से सुकून का अनुभव होता है।

         हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा  है माता-पिताऔर बड़ों  को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजे बढती हैं -आयु, विद्या ,यश और बल.

अभिवादन शीलस्य नित्यं बृद्ध-उपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलंII
    
         सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल  होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों  के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ  अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं.
       
       आज हम अपनी परम्पराएँ और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं और समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है ऐसे में आवश्यकता है की हम अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बनायें.

हमारी परम्पराएं और विज्ञान


       सनातन धर्म की बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जिसे हम जानते और पालन तो करते तो हैं पर उसके तार्किक महत्व को नहीं जानते।

आइए जानते हैं, अपने दैनिक जीवन के शिस्टाचार में आने वाले इन पहलुओं को।

        हिन्दू परम्पराओं के पीछे छिपे 20 वैज्ञानिक तर्क ताकि अगर भविष्य में कोई आपसे यह पूछे कि महिलाएं बिछिया क्यों पहनती हैं, तो आप उसका सही तर्क दे सकें।

हिंदू परम्पराओं के पीछे का विज्ञान:-

1. हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

2. पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

3. माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

4. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

5. कान छिदवाने की परम्परा

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

6. जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

7. दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8. सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9. सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10. व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11. चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।

वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12. क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13. तुलसी के पेड़ की पूजा

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।

वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

14. मूर्ति पूजन

हिंदू धर्म में मूर्ति का पूजन किया जाता है।

वैज्ञानिक तर्क- यरि आप पूजा करते वक्त कुछ भी सामने नहीं रखेंगे तो आपका मन अलग-अलग वस्तु पर भटकेगा। यदि सामने एक मूर्ति होगी, तो आपका मन स्थ‍िर रहेगा और आप एकाग्रता ठीक ढंग से पूजन कर सकेंगे।

15. चूड़ी पहनना

भारतीय महिलाएं हाथों में चूड़‍ियां पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क- हाथों में चूड़‍ियां पहनने से त्वचा और चूड़ी के बीच जब घर्षण होता है, तो उसमें एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, यह ऊर्जा शरीर के रक्त संचार को नियंत्रित करती है। साथ ही ढेर सारी चूड़‍ियां होने की वजह से वो ऊर्जा बाहर निकलने के बजाये, शरीर के अंदर चली जाती है।

16. मंदिर क्यों जाते हैं

मंदिर वो स्थान होता है, जहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंदिर का गर्भगृह वो स्थान होता है, जहां पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें सबसे ज्यादा होती हैं और वहां से ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आप इस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, तो आपका शरीर स्वस्थ्य रहता है। मस्त‍िष्क शांत रहता है।

17. हवन या यज्ञ करना

किसी भी अनुष्ठान के दौरान यज्ञ अथवा हवन किया जाता है।

       वैज्ञानिक तर्क- हवन सामग्री में जिन प्राकृतिक तत्वों का मिश्रण होता है, वह और कर्पुर, तिल, चीनी, आदि का मिश्रण के जलने पर जब धुआं उठता है, तो उससे घर के अंदर कोने-कोने तक कीटाणु समाप्त हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़े दूर भागते हैं।

18. महिलाएं क्यों पहनती हैं बिछिया

हमारे देश में शदीशुदा महिलाएं बिछिया पहनती हैं।

         वैज्ञानिक तर्क- पैर की दूसरी उंगली में चांदी का बिछिया पहना जाता है और उसकी नस का कनेक्शन बच्चेदानी से होता है। बिछिया पहनने से बच्चेदानी तक पहुंचने वाला रक्त का प्रवाह सही बना रहता है। इसे बच्चेदानी स्वस्थ्य बनी रहती है और मासिक धर्म नियमित रहता है। चांदी पृथ्वी से ऊर्जा को ग्रहण करती है और उसका संचार महिला के शरीर में करती है।

19. क्यों बजाते हैं मंदिर में घंटा

          हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते वक्त घंटा बजाना शुभ होता है। इससे बुरी शक्त‍ियां दूर भागती हैं।

          वैज्ञानिक तर्क- घंटे की ध्वनि हमारे मस्त‍िष्क में विपरीत तरंगों को दूर करती हैं और इससे पूजा के लिय एकाग्रता बनती है। घंटे की आवाज़ 7 सेकेंड तक हमारे दिमाग में ईको करती है। और इससे हमारे शरीर के सात उपचारात्मक केंद्र खुल जाते हैं। हमारे दिमाग से नकारात्मक सोच भाग जाती है।

20. हाथों-पैरों में मेंहदी

        शादी-ब्याह, तीज-त्योहार पर हाथों-पैरों में मेंहद लगायी जाती है, ताकि महिलाएं सुंदर दिखें।

           वैज्ञानिक तर्क- मेंहदी एक जड़ी बूटी है, जिसके लगाने से शरीर का तनाव, सिर दर्द, बुखार, आदि नहीं आता है। शरीर ठंडा रहता है और खास कर वह नस ठंडी रहती है, जिसका कनेक्शन सीधे दिमाग से है। लिहाजा चाहे जितना काम हो, टेंशन नहीं आता।

रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व

          भारतीय संस्कृति मे रीति-रिवाज़ और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्त्व है.जैसे हमारे बुजुर्ग प्रातः उठकर अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमें ईश्वर का दर्शन करते हैं। धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते हैं क्योंकि जो धरती माँ धन-धान्य से परिपूर्ण करती है, हमारा पालनपोषण करती है, उसी पर हम पैर रखते हैं.इसीलिए धरती पर पैर रखने से पहले उसे प्रणाम कर उससे माफ़ी मांगते हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऐसा प्रसंग है।

           सूर्य ग्रहण  के समय घर से बाहर  न निकलने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा हुआ है। दरअसल सूर्य ग्रहण के समय सूर्य से बहुत ही हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तरह कहा जाता है  कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता।

        हमारे वेद पुराणों में प्रकृति को माता और इसके हर रूप को देवी -देवताओं का रूप दिया गया है-हमने कुछ पेड़ों को जैसे-बरगद,पीपल को देवताओं और तुलसी, नदियों को देवी का रूप दिया है। यह कोई अन्धविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत  बड़ा तथ्य छुपा हुआ है। हमारे पूर्वजों ने इन्हें देवी-देवताओं का दर्जा इसलिए दिया क्योंकि कोई व्यक्ति किसी की पूजा करता है तो वह कभी भी  उसको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

          घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरवत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख-ध्वनि जहाँ तक जाती  है वहां तक की वायु से जीवाणु -कीटाणु सभी नष्ट हो जाते हैं .

        हमारे यहाँ चारो धाम घूमने की परंपरा है इस परंपरा के पालन करने से हमें देश के भूगोल का ज्ञान होता है ,पर्यावरण के सौंदर्य का बोध होता है और साथ में ये यात्रायें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी  लाभकारी हैं क्योंकि इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है.

        हमारे सभी रीति-रिवाज़ और त्यौहार हमारे संबंधों को मजबूत करते हैं जैसे-रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाता है.करवाचौथ दाम्पत्य जीवन  में मधुरता लाता है.ऐसे ही छठ में माँ अपने बच्चे की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती है.

         विदेशी लोग भारत  आकर यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाजों और परम्पराओं को देख रहे हैं और अपना रहे हैं भारतीय संस्कृति से प्रभावित विदेशी पर्यटक मन की शांति के लिए भारत आते हैं और यहाँ आने पर उन्हें एक अजीब से सुकून का अनुभव होता है।

         हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा  है माता-पिताऔर बड़ों  को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजे बढती हैं -आयु, विद्या ,यश और बल.

अभिवादन शीलस्य नित्यं बृद्ध-उपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलंII
    
         सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल  होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों  के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ  अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं.
       
       आज हम अपनी परम्पराएँ और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं और समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है ऐसे में आवश्यकता है की हम अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपनाकर अपना जीवन सुखमय बनायें.