Friday, August 17, 2012

जीवन संचार




    







1-सत्य के आधार पर पृथ्वी टिकी है-

        जब सत्य है तभी इस पृथ्वी पर जीवन है, सूर्य का तेज स्थिर रहता है,वायु का संचरण होता है यह पूरा ब्रह्माण्ड सत्य के कारण ही स्थित है ।सत्य का अर्थ है परमेश्वर, अर्थात परमेश्वर ही इस सम्पूर्ण सृष्ठि का संचालन कर्ता है।जो मनुष्य जीवन में सत्य बोलते हैं, सत्य आचरण करते हैं, उन्हैं परमेश्वर की कृपा अवश्य प्राप्त होती है ।लेकिन क्या मनुष्य को सदैव ही सत्य बोलना चाहिए ?जिन तथ्यों से देश-धर्म की रक्षा तथा उन्नति हो सके और सज्जन लोगों का हित हो सके उन्हीं का अनुपालन करना ही सत्य है,इसके अतिरिक्त सभी असत्य है ।

2-ईश्वर हमको देखकर दो बार हंसता है-

        एक बार जब भाई-भाई रस्सी लेकर जमीन के हिस्से करते हैं और कहते हैं,इधर मेरा और उधर तेरा,और दूसरी बार उस समय हंसता है जब किसी की कठिन बीमारी में उसे बन्धु तथा कुटुम्बी लोगों को रोते देख वैद्य कहता है,तुम लोग डरो मत,मैं इसे अच्छा कर दूंगा। वैद्य यह नहीं सोचता कि यदि ईश्वर किसी को मारे,तो किसकी शक्ति है जो उसकी रक्षा करे ।

 

 

3-विषयी पुरुष गोवर के कीडे के समान होते हैं-

        कहते हैं गोवर का कीडा हमेशा गोवर में रहना पसन्द करता है।यदि गोवर छोडकर उसे कुछ भी दिया जाय, तो उसे पसन्द नहीं आता ।और यदि उसे गोवर की जगह कमल में रख दिया जाय तो वह छटपटाया करता है । विषयी पुरुषों का मन भी इसी प्रकार विषय वासना की बातों के सिवाय अन्य किसी प्रकार की वार्ता में नहीं लगता । यदि ईश्वर सम्बन्धी बातें उन्हैं बतलाई जाय,तो वे उस स्थान को त्यागकर जहॉ विषय की बातें होती हैं वहीं चले जाते हैं ।

 

 

4-जीवात्मा और परमात्मा के वीच में माया का परदा है-

        जीवात्मा और परमात्मा के वीच माया का परदा होने से जीवात्मा की भेंट परमात्मा से नहीं हो पाती है।जैसे आगे राम बीच में सीता और पीछे लक्ष्मण जा रहे हैं ।यहॉ पर राम परमात्मा हैं और लक्ष्मण जीवात्मा ,बीच में सीता माया रूपी परदा है ।जबतक सीता बीच में है,तबतक लक्ष्मण रामचन्द्र जी को नहीं देख सकते हैं ।यदि सीता थोडी हट जाय तो लक्ष्मण को राम के दर्शन हो जायेंगे ।भगवान के दर्शन के लिए माया रूपी परदा का हटना आवश्यक है ।।

 

 

5-आप कैसे व्यक्ति है-

        जो व्यक्ति ऊंचे पद पर आसीन होता है वह अवश्य ही लोभी होता है धन का या पदोन्नति का ।जो व्यक्ति ऋंगारप्रिय होता है-उसमें निश्चित ही काम-वासना की अधिकता होती है ।और जो मनुष्य चतुर नहीं होता है वह समयानुकूल बोल नहीं पाता है । और इस प्रकार से मधुर वॉणी में बात नहीं कर पाता है । और जो मनुष्य स्पष्ट बात करने वाला होता है-वह किसी को धोखा नहीं दे पाता है कि उसके द्वारा कोई बात छिपाकर रखी ही नहीं जा सकती है

 

 

6-सत्य से आंख मूंदना आत्मघात है-

        अगर आपसे कोई भूल होती है और आपको अपनी यह भूल दिखाई नहीं देती है तो फिर आप अंधे हैं।अगर आप समझते हैं कि हमसे भूल होती ही नहीं है तो फिर आप मूर्ख हैं ।चूंकि अंधा और मूर्ख दोनों कठोर शब्द हैं चोट पहुंचाने वाले हैं लेकिन सत्य से आंख मूंदना आत्मघात व कडुवा होता है परन्तु सत्य का परिणाम हमेशा निस्वार्थ होता है ।

 

 

7-सदाचारी बनो -

        जिस समाज में सदाचारी नहीं,वहसमाज शीघ्र नष्ट हो जाता है।सदाचारी तो परमात्मा का प्रतिनिधि होता है, इसलिए उसकी पूजा की जानी चाहिए।वैसे सदाचार मानव धर्म है।जब सदाचारी जगता है तो सबेरा हो जाता है ।

 

 

8-सदैव स्वयं को दोशमुक्त होने की अनुभूति करें-

        आपने कोई बुराई नहीं की यह भाव आपमें होना चाहिए। स्वयं को दोषी न समझें।क्योंकि आप एक मानव हैं आप परमात्मा तो नहीं हैं,आप त्रुटियॉ कर सकते हैं। इसलिए स्वयं को दोषी समझने की जरूरत नहीं है बल्कि उसका सामना करें, और उसे दूर करें ।क्योंकि यदि आप स्वयं को दोषी समझते है तो आप उसे अपने बॉयें भाग में लिए फिरते है परिणाम स्वरूप आप ह्दय शूल के शिकार हो जाते हैं ।हम एक सहजयोगी हैं।हम आत्मा हैं । आत्मा कभी अपराध नहीं करती।अपनी गलतियों का सामना करें और उसी समय मुक्त हो जायें । कभी भी अपने को दोषी न समझें ।

 

 

9-सफलता का आनन्द और चैतन्यमय जीवन के लिए कष्ट तथा कठिनाइयॉ आवश्यक है-

        कठिनाइयों के न रहने पर मनुष्य की क्रियाशीलता, कार्यकुशलता और चैतन्यता प्रायःनष्ट हो जाती है।क्योंकि ठोकर खा- खा कर कठिनाइयॉ झेलकर अनुभव करत्रित किया जाता है।कठिनाइयों एवं कष्टों की चोट सहकर मनुष्य दृढ बलवान और साहसी बन जाता है। कठिनाइयों एवं मुसीबतों की अग्नि में तपाये जाने पर मनुष्य की बहुत सी कमजोरियॉ जलकर नष्ट हो जाती है और मनुष्य खरे स्वर्ण की तरह चमकने लगता है। हथियार की धार पत्थर पर रघडने से तेज होती है। खराद पर चढाने से हीरे में चमक आती है।बिना चोट लगे गेंद उछलती नहीं है।विना थपकी लगे ढोल नहीं बजता है।बिना एड लगाये घोडे की चाल में तीव्रता नहीं आती है। और मनुष्य भी तो इन्हीं तत्वों से बना है यदि मनुष्य के सामने कठिनाइयॉ न हों तो उसकी सुप्त शक्तियॉ जाग्रत न हो सकेंगी और वह जहॉ का तहॉ पडा दिन काटता रहेगा । सफलता का आनन्द बनाये रखने के लिए और चैतन्य होकर विकास मार्ग पर आगे बढने के लिए कष्ट और कठिनाइयों का रहना आवश्यक है,इतिहास में जिन महॉपुरुषों का उल्लेख किया जाता है,उनमें से प्रत्येक के जीवन के पीछे कष्टों और कठिनाइयों का अम्बार रहा है, उन्होंने इनका डटकर मुकाबला किया और महान कहलाये।इसलिए कष्ट आने पर घबडाइयें नहीं बल्कि उसका मुकाबला करें,फिर जो परिणाम सामने आयेगा उससे आनन्द की अनुभूति होगी ।

 

 

10-सफलता की कसौटी अनुभवों के द्वार-

        मेरे पास एक दीपक है,जो मुझे राह दिखाता है और वह सिर्फ मेरा अनुभव है। हमें क्या करना चाहिए,यह बताना तो बुद्धि का काम है,लेकिन किस तरह किया जाय यह तब,जब अनुभव बतायेगा। बुद्धि तो धन है, मगर अनुभव नकद रुपया है।और काफी समय तक ध्यानपूर्वक तथा एकाग्रचित्त होकर कार्य किये बगैर अनुभव प्राप्त नहीं होता ।बिना अनुभव के तो कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। कष्ट सहने पर ही अनुभव होता है। दुख तो अनुभवों का विद्यालय है,अपनी पीडा तो पशु-पक्षी भी महशूस करते हैं लेकिन मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करते हैं। हमें अपने बुरे अनुभव भी नहीं छिपाने चाहिए, उनसे भी लोग लाभ उठा सकते हैं। अगर हम सही अनुभव नहीं करते तो यह निश्चित है कि हम गलत निर्णय लेंगे।अनुभव तो अमूल्य कसौटी है। अगुभव से तो हमें केवल ज्ञान ही प्राप्त नहीं होता बल्कि वासनाओं से भी मुक्ति मिल जाती है।जो अनुभव के स्रोत का जल पीने की उपेक्षा करता है वह संभवतः अज्ञान रूपी मरुस्थल में प्यासा ही मर जायेगा। वैसे भी कहते हैं कि दूध का जला छॉछ को फूंक-फूंक कर पीता है। बस दसरों के अनुभव से लाभ उठाने वाला ही बुद्धिमान है ।

 

 

11-सबसे अधिक दुखी कौन है-

        हमारे महॉपुरुष भी इस बात से सहमत हैं कि संसार में सबसे दुखी व्यक्ति वह है जो गरीब है।और उससे अधिक दुखी वह है जिसने किसी का कर्ज देना है। और इन दोनों से भी अधिक दुखी वह है जो सदा रोगी रहता है ।और सबसे अधिक दुखी तो वह है जिसकी पत्नी दुष्ट है।इसलिए बहिनें ध्यान रखें कि आपके पति कितने सुखी हैं या दुखी हैं

 

 

12-सबसे उत्तम बदला क्षमा है-

        क्षमा तेजस्वियों का तेज है, तपस्वियों का ब्रह्म है,सत्यवादियों का का सत्य है।क्षमा यश है,धर्म है क्षमा ही चराचर जगत स्थित है।क्षमा से बढकर और किसी बात में पाप को पुण्य बनाने की शक्ति नहीं है। क्षमा करना दुश्मन पर विजय प्राप्त कर लेना है। तपस्वी और त्यागी की शोभा उसके क्षमाशील होने में है।जिस प्रकार दुष्टों का बल हिंसा,राजाओं का बल है सेवा उसी प्रकार गुंणवानों का बल है क्षमा करना ।

 

 

13-सबसे नजदीकी मित्र अपना मन है-

        अपने जीवन का सबसे नजदीकी मित्र अपना मन होता है। वहीं अपने उत्थान और पतन में साझीदार होता है,सबसे पहले किसी भी कार्य के लिए मन से पूछ लेना चाहिए ।इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि मन को बदला और सुधारा जाय ताकि वह उपयुक्त सलाह दे सके ।

 

 

14-मृत्यु में जीवन का निवास संतुलन है-

        यदि आप देखें तो मृत्यु में जीवन का निवास है,यदि मृत्यु न होती तो आदिकाल के लोग आज जीवित होते, और आज जीना दूभर हो जाता तो, हम भी न होते। पशुओं की मृत्यु हुई तो मानव रूप में जन्म हुआ । मरें तो फिर अन्य लोग जन्म लेंगे, पृथ्वी पर आने के लिए व्यक्ति को कुछ समय आराम करना होता है,यह मृत्यु मात्र जीवन परिवर्तन है ।मृत्यु के विना जीवन का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है। दोनों के बीच यह एक सन्तुलन है।इसलिए सहज योगी को कभी मृत्यु से नहीं डरना चाहिए।यदि उसकी मृत्यु होगी तो दूसरे को जीवन मिलेगा ।प्रकृति में यह संतुलन है । हर चीज संतुलन में है सूर्य और चॉद की दूरी संतुलन में है पृथ्वी की गति संतुलन में है,यदि ये संतुलन समाप्त हो जायें तो हम कहीं के नहीं रहेंगे ।और यह कार्य गणेश का है, वे ही सारे भौतिक पदार्थों तथा सृजित वस्तुओं की देखभाल करते हैं।मंगलमयता केवल संतुलन के माध्य से आती है ।

 

 

15-मेरी मॉ-

        मानव की जुबॉ से बोले जाने वाला सबसे सुन्दर शब्द मॉ है,सबसे सुन्दर बुलावा मेरी मॉ का है।ये शब्द आशा और प्रेम से परिपूर्ण है, मधुरता एवं करुणॉ से परिपूर्ण है,मधुरता और करुंणा से परिपूर्ण शव्द जो गहराइयों से निकलता है। मॉ सभी कुछ है –दुःख में वे हमार ढाढस है, तखलीफ के समय वे हमारी आशा हैं, और कमजोरी में हमारी ताकत,वे प्रेम,करुणॉ,हमदर्दी एवं क्षमा का श्रोत है । जो व्यक्ति अपनी मॉ खो दोता है वह निरन्तर आशीष देने वाली एवं रक्षा करने वाली पावन आत्मा को खो देता है ।प्रकृति की हर चीज मॉ की ओर संकेत करती है। सूर्य पृथ्वी की मॉ है और अपनी गर्मी से इसे पोषण प्रदान करता है।

 

 

16-अपने अन्दर पूर्ण मिठास महसूस करें-

        हे परमात्मा मेरे जीवन के लवालव भरे प्याले से आप कौन –सा दिव्य पेय लेंगे, मेरे कवि,क्या मेरी आंखों के माध्यम से अपनी सृष्टि देखना और मेरे कानों के द्वार पर खडे होकर अपने शाश्वत सामंजस्य गीत कोसुनने में ही आपको खुशी है । आपका विश्व मेरे मस्तिष्क में शव्द बुन रहा है । आपका आनंद इन शब्दों को संगीत प्रदान कर रहा है । प्रेम के क्षणों में आप स्वयं मुझे समर्पित कर देते हैं और फिर मेरे अंदर अपने पूर्ण मिठास को महसूस करते हैं ।

 

 

17-शक्ति के बिना उसका कोई अस्तित्व नहीं-

        पुरुष अवतरण गतिज पक्ष है ,सम्भाभ्य ऊर्जा मादा शक्ति है।इसी कारण कंस का वध करने के लिए श्री कृष्ण को श्री राधा की सहायता मॉगनी पडी शक्ति के विना तो कोई अस्तित्व नहीं,वैसे ही जैसे प्रकास के विना दीपक का अस्तित्व नहीं ।ये अवतरण हैं इनके पीछे शक्तियॉ हैं जिन्होंने सारे कार्यों को अन्जाम दिया । इसी प्रकार शिव क्रोधित हकर राक्षशों का वध करते हैं क्योंकि वह शक्ति उनमें प्रवेश करती है।अपने उन्दर कोई नर शक्ति लेकर कभी कोई अवतरित नहीं हुई,जिन राक्षसों का वध उन्होंने(देवी) किया उन्हीं के मुंडों की माला उन्होंने पहन ली ताकि अन्य राक्षस भयभीत हों कि मैं तुम्हारा भी वध कर दूंगी,और तुम्हारे सिर की भी माला बनाकर पहन लूंगी । केवल उन्हैं डराने के लिए।

 

 

18- पुरुष फूल है तो महिला सुगन्ध है-

        पुरुष के विना महिला स्वयं को अभिव्यक्त नहीं कर सकती है,पुरुष के विना आप जीवित नहीं रह सकती,माना पृथ्वी मॉ सभी प्रकार की सुगन्ध है लेकिन जब फूल नहीं हैं तो आप किस प्रकार जानेंगे कि पृथ्वी मॉ में सुगन्ध है।इसलिए पुरुष अत्यन्त महत्वपूर्ण है,अन्यथा उनकी पूरी शक्ति नष्ट हो जायेगी । अतः यदि महिलायें पृथ्वी मॉ का रूप हैं तो आप (पुरुष)पुष्प हैं।

 

 

19-सुख के साधन ही कभी-कभी दुख के कारण बन जाते है-

        सुःख-दुख बहुत कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है और कई बार सुख के साधन ही हमारे दुःख का कारण बन जाते हैं ।एक आदमी अपनी पत्नी के साथ एक झोपडी में रहता था,दिनभर मेहनत करके जो कमाता उससे मजे से अपना जीवन यापन करता था दोनों सुखी थे,उन्हैं न कोई लोभ या लालच था न कोई कामना थी,वह एकसीधा-सच्चा श्रमिक था।उसी के पडोस में एक सेठ रहताथा,वह हमेशा परेशानी व चिन्ता में डूबा रहता था आनन्द की अनुभूति उसने कभी नहीं की,एक दिन एक साधु ने उसे दुखी देखकर उसे समझाया कि तुम्हारी यह धन दौलत ही तुम्हारी सारी परेशानी और चिन्ता की जड है।इसने तुम्हारे स्तित्व पर अपना कव्जा जमा रखा है,तुम्हारा चित्त हरसमय एक चीज से दूसरी चीज की तरफ भटकता रहता है,जिससे तुम वेचैन रहते हो।संत ने पडोस के उस श्रमिक की ओर इशारा करते हुये कहा कि इसे देखो इसके पास कुछ भी नहीं है ,लेकिन देखो उसका मुख मणडल कैसा आनन्द से खिला है,उसका शरीर कितना सुन्दर व सुडौल है तुम्हारे भाग्य में ऎसा सुख और आनन्द कहॉ है ।उस धनी ने विचार किया साधु के कथनों की परीक्षा ली जाय। दूसरे दिन साधु के परामर्श पर धनी ने उस निर्धन के यहॉ निन्यानब्बे रुपयेकी एक थैली फेंक दिये तो शॉम को देखा कि उस निर्धन मजदूर के यहॉ चूल्हा तक नहीं जला,जबकि आज तक हमेशा ठीक समय पर खाना बना करता था.दूसरे दिन सुबह ही साधु ने सेठ को अपने साथ लेकर श्रमिक के घर पहुंचा और उस श्रमिक से रात को चूल्हा न जलने का कारण पूछा,उस निर्धन श्रमिक ने संत से झूठ बोलना उचित न समझा और कहा कि कल से पहले मैं प्रतिदिन मैं जो पैसा कमाता था उससे आटा ,दाल, शब्जी, तेल,मशाला खरीदलाता था,मगर कल हमने इसलिए चूल्हा नहीं जलाया कि मेरे घर कल एक छोटी सी थैली गिरी मिली उसमें पूरे निन्यानव्बे रुपये थे ,तो चोचा कि एक ही रुपये की कमी है,कि यदि एक रुपया हो जाता तो पूरे सौ रुपये हो जायेंगे ,बस उसी एक रुपये की कमी को पूरा करने के लिए हमने यह निश्चय किया कि हम एक दिन छोडकर खाना खायेंगे इसी कारण हमें कल भूखा रहना पडा । सुख दुख से समझौता करें।

 

 

20- – ईश्वर के एक ही रूप में विश्वास करें -

        चम्पा तेरे पास रूप,रंग व सुगन्ध तीनों गुण होने पर भी भौंरा तुम्हारे पास क्यों नहीं आता है, यह पूछने पर चम्पा का कहना था कि भौंरा जगह-जगह के फूलों का रस लेता है मुझे यह पसन्द नहीं है इसलिए मैं भौरे को अपने पास नहीं आने देती हूं मानव को भी ईश्वर के एक ही रूप में विस्वास करना चाहिए जगह-जगह ध्यान से परमात्मा प्राप्त नहीं हो सकता है ।

 

 

21 – अहंकार -

        जिस व्यक्ति में अहंकार की भावना होती है,उसका वह अहंकार अपनी उपस्थिति प्रगाढ कर दिखाना चाहता है । अहंकार से अपने भी पराये हो जाते हैं ,ध्यान रहे अहंकार से बचें ।

 

 

22– विश्वास-

        ब्यक्ति को स्वयं पर विश्वास होना चाहिए,वरन् राम भरोशा काम नहीं आता, विश्वास उस बच्चे के समान होना चाहिए जो अपनी मॉ के हाथों ऊपर उछाला जा रहा है लेकिन बच्चा ऊपर हवा में हंसते हुये तैरने की कोशिस कर रहा है उसे गिरने का कोई डर नहीं है,ङसलिए कि उसे विश्वास है कि ऊपर उछालने वाला और नहीं बल्कि सिर्फ पालनहारी मॉ है ।

 

 

23 – वासना और प्रार्थना -

        यदि वासना अधूरी है तो आदमी क्रोधी बन जाता है,और यदि वासना पूर्ण हो जाती है तो घृणा,वैराग्य उत्पन्न होता है जबकि प्रार्थना पूरी न हो तो लालसा रहती है और प्रार्थना पूर्ण होती है तो परमात्मा प्राप्त होता है ।प्रार्थना ईश्वर प्राप्ति का सरल मार्ग है।

 

 

24 – अहम् का विचार न आये -

        मन में अहम का विचार नहीं आना चाहिए,एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने आश्रम में देवी के मन्दिर की सीढी को अपनी जटा से साफ कर रहे थे शिष्यों ने पूछा गुरु जी तुम ऐेसा क्यों कर रहे हो, रामकृष्ण का कहना था ङसलिए कि ताकि ङस खोपडी को अहम का अहसास न हो ।

 

 

25 – सुख दुख से समझौता -

        हमें सबसे अधिक दुख किससे मिलता है जिससे सबसे अधिक सुख की अपेक्षा होती है, ङसलिए उससे सुख से लिप्त नहीं होना चाहिए अपने ही बेटी- बेटों द्वारा बचपन में जो सुख मिलता है बडा होने पर उतना ही दुख निलता है और अगर हम यह मानें कि यह होना ही है तो ङससे काम नहींचलेगा ङसलिए हमें सुख-दुख से समझौता करना होता है।

 

 

26 – क्षमा करने का गुंण होना चाहिए-

        गलती करने वाला अवश्य गलती करेगा,यह श्रंखला चलती रहेगी इसलिए मनुष्य में क्षमा करने का गुंण होना चाहिए ।क्षमा करना सीखें।

 

 

27 – सत्य सभी को पसन्द है -

        सभी लोग सत्य सुनना चाहते हैं, और सभी को सत्य की तलाश है, लेकिन फिर भी सत्य से दूर रहते हैं विषमता हर व्यक्ति के चारों ओर डेरा डाले है ।

 

 

28 – आत्म बल-

        जब हम अकर्मण्यता के आंचल में अपना मुंह छिपाते हैं तो हमारे सामने निराशा की एकमोटी दीवार खडी हो जाती है तब,आत्मबल से ही हम उसे पार कर सकते हैं ।

 

 

29-सौभाग्यशाली होने का अवसर प्राप्त करें-

        जीवन में हमें कई प्रकार के कार्यों को करने के अवसर मिलते हैंलेकिन सेवा का अवसर मिलने पर उसे अनदेखा और अनसुना करना बहुत बडे दुर्भाग्य की बात है ।हमें धन मिल जाय,अच्छे मित्र मिल जायें,इनसे तो हम सुखी हो सकते हैं लेकिन सौभाग्यशाली नहीं हो सकते ।यदि हमें किसी गरीब दीन दुखी की सेवा का अवसर मिलता है तो तभी हम सौभाग्यशाली हो सकते हैं । इसके सामने तो संसारके सारे सुख छोटे पडजाते हैं ।

 

 

30-क्रोध करना बुरा है की अनुभूति कब होती है-

        यदि आप कहते हैं कि मैं यह जानता हूं कि क्रोध करना बुरा है,हानि कारक है,लेकिन इस बात को आप तभी जानते हैं जब कोई दूसरा क्रोध कर रहा होता है या आप यह तभी जानते हैं जब आपका क्रोध आकर जा चुका होता है,लेकिन जब आप क्रोध में होते हैं तो आपका रोआं-रोआं कहता है कि क्रोध ही उचित है ।

 

 

31-स्वयं को पहचानने में विवाद न करें-

        जो लोग धर्म के बारे में विवाद करते हैं,वे तो स्वयं को पहचानने में विवाद करते हैं।वे स्वयं ईश्वर रूप होते हुये भी अपने ईश्वर पद को अस्वीकार करते हैं।वे पागलों की भॉति अपने को ही नहीं पहचानते हैं ।वे लोग अपनी गंदगी और अनुत्तरदायित्वपूर्ण कार्य से जगत को कुरूप बना देते हैं । इनका उपचार करना,इन्हैं समझा-बुझाकर इनके रोग को मिटाना आवश्यक हैं। नईं शिक्षा के द्वारा इन्हैं शिक्षित किया जाना चाहिए ।

 

 

32-शुभ कार्य स्वयं में शुभ मुहूर्त है-

        कोई भी शुभ कार्य करने में उसे कल पर नहीं छोडना चाहिए,और न हीं शुभ कार्य के लिए मुहूर्त की आवश्यकता होती है,इसलिए कि शुभ कार्य स्वयं में शुभ मुहूर्त है ।अशुभ को करने में जल्दवाजी नहीं करनी चाहिए ।शुभ,पुण्य कार्य को आज ही कर लो,अभी कर डालो,इसी वक्त कर डालो पता नहीं अगले क्षण तुम रहो या न रहो ।

 

 

33--श्रद्धा और विश्वास-

        विश्वास तो कई जगह किया जा सकता है, जैसे मित्र,नौकर,अपना सम्बन्धी,और यहॉ तक कि ताले पर भी ।लेकिन श्रद्धा तो केवल एक ही स्थान पर होती है और वह है इष्ट या सद्गुरु।श्रद्धा के आने से अभय का भाव आता है । लेकिन अभय का तात्पर्य यह नहीं कि तुम किसी से डरते नहीं, बल्कि इस भाव का अर्थ तब पूर्ण होगा जब तुमसे भी कोई न डरे ।

 

 

34-दुखों से मुक्ति पाने का साधन श्रेष्ठ बुद्धि है-

        ईश्वर ने जिस महान उद्देश्य के लिए हमें यह शरीर प्रदान किया है,इसके लिए श्रेष्ठ बुद्धि की आवश्यकता है। इस संसार के समस्त दुखों से मुक्ति पाने के लिए महत्वपूर्ण साधन यह श्रेष्ठ बुद्धि ही है,जिसकी सहायता से संसार का प्रत्येक प्राणी भव सागर के भंवर में उलझी हुई अपने इस तन रूपी नौका को भी पार उतार सकता है लेकिन यह तभी संभव है जब बुद्धि श्रेष्ठ हो ।

 

 

35-जब बुद्धि मलिन हो तो समझो विपत्ति आनी वाली है-

        जैसा कि कहा गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि। जब बुद्धि मलिन होने लगे और विचार अपवित्र हों तो समझ लेना चाहिए कि कोई विपत्ति आनी वाली है। उस समय योग द्वारा अपने विचारों और संकल्प को शुद्ध और पवित्र बना लेना चाहिए,तो फिर दुर्भाग्य भयभीत नहीं कर सकेगा । जिससे संकट हल्का हो जाता है । सत्य संकल्प के द्वारा कठिन आपत्ति को भी टाला जा सकता है ।दृढ संकल्प और शुद्ध विचार वाले व्यक्ति पर यदि अचानक विपत्ति आ भी जाय तो प्रकृति और आस-पास के लोग एवं वहॉ का वातावरण उसके बोझ को बॉट लेंगे । इसलिए संकल्प शक्ति इस संसार में सर्वोपरि शक्ति है ।

 

 

36-मन हंसता है तो होंठ कभी नहीं रोते-

        जिसका मन रोगी नहीं ,विकार युक्त नहीं , उसका शरीर कभी रोगी नहीं हो सकता है।जिसका मन हंसता है उसके होंठ कभी नहीं रोते ।अस्वस्थ तन में स्वस्थ मन तो रह सकता है,परन्तु अस्वस्थ मन कभी तन को स्वस्थ रहने नहीं देता ।

 

 

37--स्वस्थ चिंतन से समाज को गति मिलती है -

        स्वस्थ शरीरमें स्वस्थ विचार होते हैं स्वस्थ चिन्तन से एकाग्रता-सजगता-अन्तर्दृष्टि जागृत होती है।तब आत्मध्यान की गहराई से प्राप्त अमृत ही जीवन को शक्ति व शॉन्ति देता है।इस प्रकार के स्वस्थ चिन्तन व शॉत मानव द्वारा ही विश्व सुन्दर वनता है,उस समाज को उत्थान की ओर बढने की गति मिलती है ।बीमार व्यक्ति का चिन्तन एवं आचरण भी रुग्ण होगा। मूढ व्यक्ति तो अपना ही उपकार नहीं कर सकता ।अशॉत व्यक्ति तो दुनियॉ को कुरूप बना देता है ।

 

 

38-ईश्वर अनुभूति का विषय है -

        जिसे पाने का कोई उपाय नहीं उसका नाम है संसार, और जिसे खोने का कोई उपाय नहीं है उसका नाम है परमात्मा।लेकिन इस संसार को पाने के लिए और परमात्मा को खोने के लिए इंसान सारा जोखिम दॉव पर लगा देता है । ईश्वर तो मान्यता का नहीं अनुभूति का विषय है ।

 

 

39--सबसे बडा वशीकरण मंत्र स्वयं को वश में करना है-

        सच्चा संत कभी वशीकरण मंत्र का प्रयोग नहीं करता बल्कि संत तो स्वयं अपने आपको वश में कर देता है । और फिर पूरी दुनियॉ संत के वश में हो जाती है।स्वयं अपने को वस में करना दुनियॉ का सबसे बडा वशीकरण मंत्र है ।

 

 

40-सत्य को गंवाकर कुबेर की सम्पदा पाना घाटे का सौदा होगा-

        सत्य और न्याय के पीछे चलने में हमें सबकुछ छोडना पडता है तो इसके लिए हमें स्वयं को तैयार करना चाहिए ।क्योंकि सत्य ही परमेश्वर है, इससे बढकर इस संसार में कुछ भी नहीं है । यदि सत्य अपने हाथ रहा और उसके बदले सबकुछ चला गया तो कोई हर्ज नहीं ।लेकिन यदि सत्य को गंवाकर कुवेर की सम्पदा और इन्द्र का सिंहासन भी मिल जाता तो समझना चाहिए कि यह बहुत महंगा और बहुत घाटे का शौदा रहा है ।



 


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