1-जीवन का संचालन सहयोग से न कि संघर्ष से-
मानव जीवन के आधार के सम्बन्ध में कई विद्वानों ने अपने-अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये, जैसे चार्ल्स

डार्विन का सिद्धान्त,या फ्रिंस क्रोपाटकिन का मनोविश्लेषण जिनमें जीवन के संघर्षों के आधार की विवेचना है, मगर हमारा मानना है कि इस जीवन में कोई भी संघर्ष नहीं है बल्कि जीवन का संचालन होता है एक सहयोग से,परस्पर सहयोग से। जिस चीज का प्रयोग हम करते हैं वह हमें हमारे कार्य में सहयोग देती है,जैसे हम पेड से सेव निकालते हैं और उसे खाते हैं तो वह सेव सेव हमें सहयोग देता है।जब हम उसे खाते हैं तो हमारे शरीर के निर्मॉण में कार्य करता है। उसी प्रकार एक शेर किसी पशु का शिकार कर उसे अपने आहार में प्रयोग करता है,और फिर शेर सन्तुष्ट होता है। अगर जीवन संघर्ष होता जैसे कि डार्विन कहते हैं, शेर द्वारा इस शिकार को खाने पर शेर के पेट में यह शिकार मुशीवत खडी कर देता। यह शिकार उस शेर को अपने मॉश को हजम करने की अनुमति नहीं देता। या सेव खाने से विकार उत्पन्न हो जाता।डार्विन का कहना है कि अगर दो मित्रों में घनिष्ठ दोस्ती है,वे दोनों एक दूसरे के लिए मर मिटने को तैयार रहते हैं तो यह सिर्फ एक बहाना है। अपनी गहराई में यह एक संघर्ष,युद्ध,प्रतियोगिता और ईर्ष्या है। यह धारणॉ उपयुक्त प्रतीत नहीं होती है,हो सकता है यह घटना उनके साथ घटी हो।
2-बच्चे का पोषण-
अगर दर्शनशास्त्र का अध्ययन करें तो पायेंगे कि एक दार्शनिक द्वारा जो कुछ भी लिखा जाता है वह उसके अनुभवों पर आधारित होता है- कि यदि बच्चा अपनी मॉ के गहरे प्रेम में रहा है और मॉ ने भी उसपर अपना प्रेम बरसाया है तो इसी से भविष्य के लिए विश्वास का प्रारम्भ हो सकेगा।फिर यह बच्चा स्त्रियों के साथ प्रेमपूर्ण सम्बन्ध बनायेगा,अपने मित्रों के साथ प्रेमपूर्ण होगा,और एकदिन सद्गुरु को समर्पण करने में सफल रहेगा- और अंतिम रूप से उस परमात्मा में घुलमिलकर एक हो जाने में सफल हो सकेगा।लेकिन यदि बालक के मूल सम्बन्ध ही से चूक हो गयी तो बुनियाद ही खोखली हो जायेगी। फिर कठोर प्रयास करना होग। जिससे जीवन अधिक से अधिक कठिन होता जाता है।
3-श्रद्धा के पालन से जीवन का पोषण होता है-
हमारे जीवन को सुगम बनाने के लिए श्रद्धा आवश्यक है,इसलिए कि श्रद्धा से जीवन का पोषण होता है,सूक्ष्म पोषक तत्व। यदि तुम श्रद्धा नहीं कर सकते हैं तो इसका मतलव हुआ कि तुम जीवन्त नहीं हो।तुम सदा भयग्रस्त रहते हो,तुम चारों ओर मृत्यु से घिरे रहते हो। लेकिन अगर तुम्हारे अन्दर गहरा विश्वास है तो फिर पूरा दृष्य ही बदल सकता है। इस स्थिति में कोई संघर्ष ही नहीं रहता,फिर तुम साश्वत अपने घर में रहते हो,यह संसार तुम्हारा ही तो है,तुम्हारे होने से यह संसार प्रशन्न है,यह संसार तो तुम्हारी रक्षा कर रहा है,और गहरी सुरक्षा का अहसास तुम्हैं देता है और तुम्हैं अनजाने रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है।इसलिए श्रद्धा को जीवन का आधार स्वीकार करना होगा,यह सफल जीवन का मूल मंत्र है। पहले दो फिर मिलेगा।जीवन में हर व्यक्ति को श्रद्धा की जरूरत होती है,जो व्यक्ति श्रद्धा नहीं करता है,उसके लिए तो इसकी नितान्त आवश्यकता है। और जो व्यक्ति श्रद्धा कर सकता है वह इसकी जरूरत के प्रति सजग नहीं रहता है। इसकी जरूरत तभी होती है जब तुम भूखे होते हो।
4-बचपन के प्रेम से आपमें विश्वास बढता है-
अगर बचपन में आपके ऊपर प्रेम की वर्षा अधिक हुई है तो आप स्वयं अपने बारे में सुन्दर छवि बना लेते हैं।यदि आपके माता-पिता एक दूसरे से गहरा प्रेम करते हैं,तुम्हैं पाकर बहुत खुश रहते हैं, क्योंकि तुम उनके प्रेम की चरम सीमा हो। आप उनके संगीत की धुन और गीत हो। इसका साक्षी सिर्फ आप हैं कि उन दोनों में कितना प्रेम रहा होगा। आप जैसे भी रहे हों,वे आपको देखकर प्रशन्नता का अनुभव करते हैं।वे प्रेमपूर्ण तरीके से आपकी सहायता करते हैं। यदि कभी वे किसी काम को करने के लिए मना करते हैं तो आपका ह्दय न तो दुखता है और न आप अपमान का अनुभव करते हैं। यही अनुभव तो आपको होता है कि आपके बारे में परवाह की जा रही है। लेकिन अगर आप उनका प्रेम नहीं पाते हैं और फिर कहते हैं इस काम को करो तो धीरे-धीरे बच्चा यह करना सीखता है। लेकिन उस समय आप जिस रूप में है उस रूप में स्वीकार नही किया जाते। और जब आप कुछ विशिष्ठ काम करते हैं, तभी आपको प्रेम किया जाता है।अगर आप विशिष्ठ कार्य नहीं करते हैं तो आपको प्रेम नहीं मिलता है। और यदि आप उनके मन के अनुसार कार्य नहीं करते हैं तो आपसे घृणॉ की जाती है। आपको सशर्त प्रेम मिलता है,इसलिए कि श्रद्धा खो गई है।उस स्थिति में आप कभी भी अपनी छवि बनाने में समर्थ नहीं हो सकोगे। क्योंकि वे मॉ की आंखें हैं,जिनमें पहली बार आप प्रतिबिम्बित होते हैं,प्रशन्नता,अनुग्रह,भावना और परमानन्द के रूप में इसलिए कि आप उसके लिए मूल्यवान हो,और स्वाभाविक रूप से उसकी दृष्टि तुम्हारा कुछ मूल्य है।फिर श्रद्धा और समर्पण होना आसान हो जाता है।
5-झुकना श्रेष्ठता का प्रतीक है-
कुछ लोग होते हैं जो आलोचना पसन्द नहीं करते हैं वे, यह नहीं चाहते हैं कि कोई उनसे कहे कि इस काम को करो। वे लोग किसी के सामने समर्पण नहीं कर सकते,इसलिए कि वे स्वयं को शक्तिशाली समझते हैं। इस प्रकार के लोग मानसिक रोगी होते हैं। जबकि समर्पण केवल शक्तिशाली स्त्री,पुरुष ही कर सकते हैं,दुर्वल व्यक्ति कभी भी समर्पण नहीं कर सकता है। क्योंकि वे सोचते हैं कि समर्पण करने से उनकी दुर्वलता सारे संसार में प्रकट हो जायेगी,वे दुर्वल हैं,जिसे वे भलीभॉति जानते हैं,जिस कारण वे झुक नहीं सकते हैं,ऐसा करना उनके लिए कठिन कार्य है। झुकने का अर्थ यह स्वीकार करना होगा कि वे हीन हैं। केवल श्रेष्ठ व्यक्ति ही झुक सकता है। ऐसे लोक किसी दूसरे का सम्मान भी नहीं कर सकते हैं,क्योंकि वे तो स्वयं का सम्मान नहीं करते हैं। वे तो यह भी नहीं जानते कि सम्मान होता क्या है। वे तो सम्मान से हमेशा भयभीत रहते हैं,वे सोचते हैं कि-समर्पण का अर्थ है उनमें दुर्वलता का होना।
हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि समर्पण तभी हो सकता है जब तुम अत्यधिक शक्तिशाली हो,इस सम्बन्ध में तुम्हैं कोई चिन्ता नहीं है इसलिए कि तुम समर्पण कर सकते हो,फिर तुम दुर्वल नहीं हो सकते। वे अपनी संकल्पशक्ति नहीं खोते,समर्पण के द्वारा तुम यह दिखला रहे हो कि तुम्हारे पास महान संकल्पशक्ति है।
6-स्वयं में सुधार के लिए अतीत की गहराई में पहुंचें-
अगर तुम यह अनुभव करते हो कि श्रद्धा करना कठिन है,तो इसके लिए तुम्हैं अपनी स्मृतियों की गहरी गोद में जाना होगा,अपने अतीत में लौटना होगा।अपने मन से अतीत के प्रभावों को साफ करना होगा।तुम्हारे पास अतीत के कूडे कर्कट का जो एक बडा ढेर है,तुम्हैं उस भार से मुक्त होना होगा। इसके लिए तुम्हें लौटकर वापस अपने उस जीवन में आना होगा,केवल स्मृतियों में नहीं बल्कि फिर वही जीवन जी सको। इस बात को अपना एक ध्यान बना लो।प्रति दिन सोने से पहले,एक घंटे अतीत में वापस लोट जाओ। वह सभी खोजने का प्रयास करो,जो तुम्हारे बचपन में घटा था,जितने गहरे में जा सको उतना ही अच्छा है-क्योंकि तुम उन बहुत सी चीजों को छिपा रहे हो,जो कभी घटी थीँ,तुम उन्हैं चेतना तल तक ऊपर आने की अनुमति नहीं देते हो। बस उन्हैं सतह तक आने की अनुमति दे दो।प्रति दिन वापस लौटते हुये गहराई में जाने का अनुभव करो। पहले तुम्हें कुछ वहॉ की घटनाएं याद आयेंगी,कि जब तुम चार पॉच वर्ष के थे तो उसपार जाने जाने में असमर्थ थे,जैसा कि चीन की दीवार जैसा अवरोध सामने आगया,इसका तुम्हें सामना करना होगा। फिर धीमे-धीमे और गहराई में जाने पर तुम देखोगे कि तुम तो दो या तीन वर्ष के हो,लेकिन लोग तो उस बिन्दु तक पहुंच जाते हैं जब उनका जन्म हुआ था। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गर्भ की स्मृतियों तक पहुंचे हैं। और कुछ लोग तो अपने पूर्व जन्म में जब उनकी मृत्यु हुई थी,तक भी पहुंचे हैं।
अगर तुम अपनी गहराई में पहुंच गये हो तो फिर तुम्हें वापस लौट आना होगा। हर शाम वहॉ जाओ और लौट आओ। कम से कम तीन से नौ माह तक का समय लगेगा,प्रत्येक दिन भार मुक्त होने का अनुभव होगा,तुम अधिक से अधिक हल्के होते जाओगे,साथ ही विश्वास का भी जन्म होगा। बस एक बार अतीत स्पष्ट हो जाय और तुम वह सब कुछ देख लो,जो पूर्व में तुम्हारे साथ घटा था,तो तुम उससे मुक्त हो जाओगे। फिर तुम अपनी स्मृति में किसी घटना के प्रति सजग हो जाते हो तो तुम उससे मुक्त हो जाओगे। यही सजगता तुम्हें मुक्त कराती है,तभी विश्वास करना सम्भव हो सकेगा।
7-प्रेम हमारा भोजन है-
मनोविज्ञान में प्रेम को एक भोजन माना गया है।जिस प्रकार बच्चे को भोजन दिया जाता है,वह उस बच्चे का पोषण करता है,और यदि उस प्रेम न दिया जाय तो उस स्थिति में उसकी आत्मॉ विकसित नहीं होगी उसकी आत्मॉ अपरिपक्व और अविकसित रह जाती है। है।मनो वैज्ञानिकों द्वारा कई विधियों का प्रयोग किया है जिनसे ज्ञात किया जा सकता है कि एक बच्चे के पोषण के लिए प्रेम दिया गया या नहीं,उसे प्रेम की ऊष्णता दी गई या नहीं,जिसकी कि उसे जरूरत थी। इसलिए बच्चे को पालन-पोषण में उसकी हर जरूरत को पूरा करें।
एक उस बच्चे के पालन का प्रयोग है- जिसमें अस्पताल में डाक्टर द्वारा उसकी देखभाल कराएं,उस समय उसकी मॉ से उस बच्चे को दूर रखना चाहिए।बच्चे को दूध,दवा,देखभाल सभी कुछ दो,लेकिन उस समय उसे न तो आलिंगन में लें और न उसे चूमो और न स्पर्श ही करो, उस दशा में बच्चा धीमे-धीमें अपने आप सिकुडने लगता है,वह रूग्ण हो जाता है,अधिकतर की मृत्यु हो जाती है। जिसका कि कोई कारण नहीं दिखता है। और यदि बच भी गया तो निम्नतम् धरातल पर जीवित रहता है,वह अल्पमति या मूढ बनकर रह जाता है वह जीवित रहेगा,लेकिन एक किनारे पर।वह तो जीवित तो रहेगा मगर जीवन की गहराइयों में नहीं पहुंच सकेगा,उसके पास ऊर्जा होगी ही नहीं। इसलिए उस बच्चे को अपने ह्दय से लगा लेना,उसे अपने शरीर की गर्मी देना,वही उसका सूक्ष्म भोजन होगा।
8-श्रद्धा जीवन में उच्च स्तर का भोजन है-
प्रेम हमारा भोजन तो है,लेकिन उससे भी उच्च स्तर का भोजन श्रद्धा है,प्रार्थना जैसी। लेकिन .ह भोजन सूक्ष्म है,इसे अनुभव कर सकते हो।यदि तुम्हारे पास श्रद्धा है तो इसका मतलब तुम एक महान साहसिक अभियान पर चल पडे हो।जिससे तुम्हारे जीवन में एक परिवर्तन होना शुरू हो जायेगा। और यदि तुम्हारे पास श्रद्धा नहीं है तो तुम वहीं खडे रहोगे।कितना ही बोलें,कोई फर्क नहीं पडेगा,तुम जड होकर खडे ही रहोगे,इस तरह हर समय तुमसे ऐसी चूक होती जायेगी। इसलिए अपने में श्रद्धा को जन्म दो यही श्रद्धा तुममें और मुझमें एक सेतु बन जायेगा। तुम दीप्तिवान बन जाओगे,तुम्हारा पुनर्जन्म हो जायेगा।
अब प्रश्न उठता है कि आपको श्रद्धा की सख्त जरूरत तो है मगर वह तुम्हारे पास है ही नहीं,तुम स्वयं में बहुत पीढित हो,इसलिए कि तुममें इतना साहस नहीं है,जिससे मरने वाले पर भी श्रद्धा किया जा सके। इसके लिए तुम्हारे लिए एक ही रास्ता है कि तुम्हें किसी खास तरह से मरना होगा,जिससे तुम्हारा पुनर्जन्म हो सके।अतीत से तुम्हें पूरी तरह कट जाना होगा,तुम्हारी जीवन कथा नष्ट करनी होगी,तभी तो तुम्हारा पुनर्जन्म हो सकेगा!
9-विश्वास करने वाले को सहारा चाहिए-
जो लोग विश्वास करते हैं,उनमें भय होता है,इसलिए वे लोग किसी के साथ बंधना चाहते हैं,सहारे के लिए किसी का हाथ का सहारा चाहते हैं।वे लोग आकाश की ओर देखकर अभय का अनुभव करने के लिए परमात्मा की प्रार्थना करते हैं। आपने उस वक्त को देखा होगा जब रात के वक्त अंधेरी सुनसान सडक से गुजरते वक्त अनायास मुंह से सीटी बजाना शिरू कर लेते हो,अथवा गाना शुरू कर लेते हो-इसलिए नहीं कि उससे तुम्हें कोई सहायता मिल जायेगी,बल्कि इसलिए कि आप ऊष्णता का अनुभव करते हो,जिससे भय का दमन हो जाता है।सीटी बजाने से तुम्हें अच्छा लगता है,तुम यह भूल जाते हो कि तुम अंधेरे में हो और यह खतरनाक है। लेकिन इससे यथार्थ में कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं होता है,क्योंकि तुम्हारे अन्दर जो भय और खतरा है वह अभी भी वहॉ है।पहले से कही अधिक है,इसलिए कि सिटी बजाने से अपने चारों ओर एक भ्रम खडा कर रहे हो। गाने में व्यस्त होने से अधिक आसानी से लूटा जा सकता है। अगर यहॉ पर ईश्वर के प्रति साहारे के लिए तुम्हारी श्रद्धा भय से उत्पन्न हुई है तो इससे यही अच्छा है कि तुम वह श्रद्धा करो ही मत,इसलिए कि वह श्रद्धा नकली है,भय के कारण उत्पन्न हुई है। श्रद्धा तो प्रेम से उत्पन्न होती है।इसके लिए तुम्हें कठोर परिश्रम करना होगा।तुम्हारे अतीत में कूडे कर्कट का ढेर है,तुम्हें उसे साफ करना होगा,भार रहित बनाना होगा।
10-विश्वास करना एक झूठी श्रद्धा है-
जी हॉ विश्वास करना एक बहाना है,किसी भी चीज में विश्वास करने से तुम्हें असहाय का अहसास कराती है,यह खतरनाक है।अगर तुमने दिव्यता जैसी किसी चीज का अनुभव नहीं किया है,तो फिर श्रद्धा करने की कोई जरूरत नहीं है,वहॉ परमात्मॉ पर भी विश्वास करने की कोई जरूरत नहीं है। जैसे मैं विशावास करता हूं कि वहॉ परमात्मॉ है तो इसका मतलव हुआ कि वहॉ कोई शक्ति जरूर होनी चाहिए, जो कि पूरे ब्रह्मॉण्ड को एक साथ संभाले हुये है।यह एक तर्क का प्रश्न है,लेकिन परमात्मॉ को एक तार्किक व्याम बनाना उपयुक्त नहीं है।ब्रह्मॉण्ड या अस्तित्व सभी चीजें एक साथ गतिशील हैं,प्रत्येक वस्तु बहुत सुन्दरता के साथ चली जा रही है लेकिन मन का तर्क है कि वहॉ कोई ऐसा जरूर होना चाहिए जो सभी को एक साथ संभाले हुये है।
11-तर्क से परमात्मॉ तक नहीं पहुंच सकते हो-
जहॉ पर परमात्मॉ तक पहुंचने के लिए तर्क होता है वहॉ फिर परमात्मॉ तक पहुंचना सम्भव नहीं है।केवल प्रेम के द्वारा ही परमात्मॉ तक पहुंचा जा सकता है।क्योंकि परमात्मॉ कोई तर्क के पार का निष्कर्ष नहीं है। इसीलिए वैज्ञानिक परमात्मॉ तक कभी नहीं पहुंचते। वास्तविक विचारक तो परमात्मॉ के स्तित्व को इंकार करते रहे हैं।यदि तुम इस बात पर चिंतन कर रहे हो तो परमात्मॉ पर विश्वाष नहीं कर सकते हो।उन्हैं परमात्मॉ निरर्थक और असम्भव प्रतीत होता है,उन्हैं यह सच नहीं लगता है।