1-चरित्र निर्मॉण-
चरित्र तो एक ज्योति है,जो सूर्यास्त हो जाने और सभी के बुझ जाने पर भी आलोकित होती रहती है। चरित्र एक शक्ति है,जिसके द्वारा हम हारते हुये युद्धों को भी जीत में परिणित कर सकते हैं।यह मनुष्य में एक दिव्यता है,जिसके सामने सभी नत मस्तक हो जाते हैं।यह एक उत्प्रेरणॉ है जो कि निर्धनता के बीच भी चमकती रहती है।यह एक सुदृढ है।लुटेरे सबकुछ लूट सकते हैं मगर चरित्र को नहीं ।यदि हमने चरित्र के आलावा सबकुछ खो दिया तो वस्तुतः हमने कुछ भी नहीं खोया। मनुष्य द्वारा निर्मित हर वस्तु को मनुष्य नष्ट कर सकता है,लेकिन चरित्र को नहीं। चरित्र से हम निर्भयतापूर्वक किसी भी प्रकार के वर्तमान और भविष्य का सामना कर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इसके अभाव में तो न हमारा कोई वर्तमान है और न भविष्य।
2-शिक्षा का मुख्य उद्देश्य चरित्र निर्मॉण है-
चरित्र मिर्णॉण शिक्षा का मुख्य मूलभूत उद्देश्य है ।जो लोग अपने बच्चों को सबकुछ देकर भी चरित्र नहीं दे पाते हैं,वे मानो रोटी की जगह मिट्टी दे रहे हैं। वैसे तो मनुष्य अपना चरित्र स्वयं बना सकता है,लेकिन उसके निर्मॉण के बाद खो भी सकता है। इसलिए इस जीवन के लिए स्वॉस लेने के समान, अपने चरित्र की निरन्तर देखभाल करने की आवश्यकता होती है। किसी भी देश की शक्ति की नींव, उसका चरित्र है।
3-चरित्र हीन एक दरिद्रता का नाम है-
चरित्रहीन वह दरिद्रता है,जिससे अधिक बुरा कुछ भी नहीं है। एक सामान्य व्यक्ति को संसार के संकटों के निवारण में कठिनाई हो सकती है, मगर यदि उसने अपने चरित्र की देखभाल की है,और इसमें दूसरों की भी सहायता की है तो,अपने कर्तव्यों की पूर्ति पर स न्तोष करते हुए अन्य सभी चीजों की चिन्ता छोड सकता है।
4-चरित्र जीवन यापन के लिए आवश्यक है-
हमें अपने जवन यापन के लिए अच्छे चरित्र की आवश्यकता होती है, क्योंकि हमारे जीवन में व्यक्तिगत, सामाजिक,राष्टीय व अन्तर्राष्टीय स्तरों पर विना अच्छे चरित्र के समस्याओं का समाधान हो ही नहीं सकता। यदि हमारे पास अच्छा चरित्र न हो,तो हमारी शक्तियों की अपेक्षा दुर्वलताएं ही प्रभावी होंगी, और फिर सौभाग्य की तुलना में दुर्भाग्य अधिक प्रबल होगा। हमारे जीवन में लुख-शॉति की जगह शोक-विषाद अधिक होगा।।
5-चरित्र हीनता से नकारात्मकता सबल होंगे-
अगर हमारा चरित्र अच्छा नहीं है तो हमारे मित्रों की अपेक्षा शत्रु अधिक सबल होंगे।शॉति की अपेक्षा चुद्ध अधिक होंगे,हमारी रेलगाडियॉ समय से नहीं चलेंगी,कारखाने क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहींकरेंगे,खेतों में कम उत्पादन होगा,हमारे मनदिर व्यावसायिक केन्द्र बन जायेंगे,ऐसे कार्यों को हम टालते जायेंगे जो हमें पूर्ण बनाते हैं। हमारे बॉध बाढ को नहीं रोक सकेंगे,हमारे पुल बह जायेंगे,हमारे राजमार्ग जगह-जगह नष्ट हो जायेंगे,हमारे नेता अपने नेत्रृत्व की खरीद-फरोक्त करेंगे,राजनीतिक दलों में फूट होगी,पुरोहित दुकानदारों के समान होंगे और व्यवसायी हर एक का गला काटने में आनन्द का अनुभव करेंगे,अपराध बढेंगे,असुरक्षित स्थानों का बाहुल्य होगा,संस्कृकि कामुकता की पर्याय बन जायेगी,लडाई झगडे बढेंगे। अच्छे चरित्र के अभाव में हम निर्लज्जापूर्वक दूसरों की रोचियों पर पलते रहेंगे,हमारा ज्ञान मनुष्य की बर्वादी के लिए काम करेगा,हमारे चेहरे की चमक,नेकत्रों का तेज,ह्दय की आशा,मन का विश्वास,आत्मा का आनन्द सब चले जायेंगे।
6-चतुर आत्मघाती मनुष्य-
आज हर मनुष्य चतुर बनने की कोशिष करता है, अलग-अलग छेत्र हैं चतुराई दिखाने के, लेकिन कुछ तो आत्मघाती चतुर हैं। कुदरत के द्वारा मनुष्य को भोजन देने में कोई कमी कसर नहीं की है,मगर कुछ मनुष्य उसे अंधेरे कोने में छिपाकर मनुष्य को ही देने से वंचित कर देते हैं,इसलिए कि वह धन कमाना चाहता है,यह मानवीय आचरण नहीं है। उसे यह पता नहीं है कि एक दिन वह अपनी सारी दौलत को बैंको में छोडकर एक कीट के समान मर जायेगा। ये कुदरत खाद्य पदार्थों में मिलावट नहीं करती है,लेकिन मनुष्य को देखो, स्वयं अपने बच्चों,और अन्य लोगों को खिलाने के लिए पहले भोजन में मिलावट कर लेता है। गाय को ही देखो कितनी उदार दिल की है, हमें शुद्ध दूध देती है,लेकिन मनुष्य है कि किसी को शुद्ध दूध पीने को नहीं देता। कुदरत के बने खनिज तथा रसायन विध्वँशकारी अस्त्रों का निर्मॉण नहीं करता, लेकिन मनुष्य को देखो उसने इनकी परस्पर सॉठ-गॉठ करके विध्वंशकारी अस्त्र बना दिये हैं। इस आसमान ने कभी मनुष्य के सिर पर बम नहीं फेंका, पर मनुष्य को देखो अपनी बुद्धिमता से उस आसमान से अपने ही भाइयों के ऊपर बम फेंकता है,और सोचता है कि मैने विजय प्राप्त कर ली। कुदरत ने पृथ्वी के समस्त मनुष्यों को पृथ्वी पर पर्याप्त भूमि और संसाधन प्रदान किये हैं,लेकिन मनुष्य को देखो, उसने दूसरे मनुष्य को वंचित कर,उसे निर्धन बना दिया है। अगर देखें तो मनुष्य इस धरती पर परमात्मा का एक अभिन्न अंग है,लेकिन अपने एन कृत्यों से वह कितना सीमित हो गया है।
7-चरित्र और आनंद की अनुभूति-
अच्छा आदमी बनने से सुख की प्राप्ति नहीं हो सकतीहै। चरित्रहीन व्यक्ति कभी भी सही अर्थों में समृद्धिशाली नहींबन सकता है। सदाचार के विना आनंद और प्रशन्नता नहीं मिल सकती है।यह भी सत्य है कि प्रकृति की हरवस्तु में परस्पर ईश्वरीय सम्बन्ध है,इसलिए जबतक आप इस तथ्य को नहीं समझ लेते और इसे स्वीकार नहीं कर लेते, इसे जीवन में मान्यता नहीं देते, तबतक आनंद की खोज में आप सफल नहीं हो सकते ।
8-चिन्तन ही चरित्र का निर्माण करता है-
वर्तमान समय में एक मुख्य समस्या है-भ्रष्ट चिंतन और दुष्ट आचरण। इन दो समस्याओं के कारण असंख्य प्रकार के अनर्थ मनुष्य के मस्तिष्क में उपजे हैं, जिससे संकट की स्थितियॉ उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि मन की स्थिति के अनुसार परिस्थितियॉ का जन्म होता है । चिन्तन का निर्माण करता है जो फिर व्यवहार में उतरता है । चिंतन के द्वारा कुपथगामियों को बदलकर सन्मार्ग गामी बना सकते हैं और मकडी के की तरह फैली समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।इसलिए स्वस्थ चिंतन करें।
9-जहॉ मौत है वहॉ सुरक्षा कैसे हो सकती है-
हम जिस चीज की सुरक्षा की योजना बना रहे हैं बह बचने वाली नहीं है।क्या घर को बचाओगे,धन को बचाओगे,इस शरीर को बचाओगे जब तुम नहीं थे तब भी था और जव तुम नहीं होंगे तब भी होगा ।इस घर को हम- तुम से लेना देना नहीं है।किसको बचाओगे,न देह बचती हैऔर न धन बचता है,सब खो जाते हैं,और मौत तो एक दिन आकर सब मिटा देगी ।हमारे बनाये हुये रेत के घर सब गिरा देगी ।क्या बचाओगे,जहॉ मौत है वहॉ सुरक्षा हो ही नहीं सकती है।
10-आनंद की अनुभूति-
जिस प्रकार अंधे के लिए पूरा जगत अंधकारमय होता है और अच्छी आंखों वालेके लिए प्रकाशमय रहता है,उसी प्रकार अज्ञानियों के लिये पूरा जगत दुःखों का समूह है, और ज्ञानियों के लिये आनंदमय होता है ।
11-आपके प्रति कोई क्रूर हो तो उस क्षण प्रतिक्रया न करें-
साक्षी अवस्था में रहने वाले ऎसे सब लोगों में बहुत जल्द परिवर्तन होते हैं ।उनकी स्मरण शक्ति का ह्रास बहुत कम होता है क्योंकि जो भी चीज वे देखते हैं उसकी तस्वीर उनके मस्तिष्क में बन जाती है।वेआपको हर देखी हुई चीज का रंग और उसकी बारीकियॉ बता सकते हैं,सहजयोगी होने के नाते हमें क्या करना चाहिए। हमें तो बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। कोई गलत चीज भी आपको दिखाई देती है तो ठीक है आप बस ध्यान करें ।कोई गलत कार्य होता हुआ आप देखेंतो इस पर चित्त दें,यदि आपके प्रति कोई क्रूर होता हो तो उस क्षण उस पर प्रतिक्रिया न करें,जब शॉत हो जॉय तब आप उसे बतायें।शनैःशनैः आप उसे उसकी गलती का अहसास करवायें और उसका ह्दय जीत सकेंगे।किसी भी चीज के प्रति प्रतिक्रिया करना मूर्खता है और आत्मघातक भी ।
12-जीने की सही दृष्टि प्राप्त करें-
चरित्र तो एक ज्योति है,जो सूर्यास्त हो जाने और सभी के बुझ जाने पर भी आलोकित होती रहती है। चरित्र एक शक्ति है,जिसके द्वारा हम हारते हुये युद्धों को भी जीत में परिणित कर सकते हैं।यह मनुष्य में एक दिव्यता है,जिसके सामने सभी नत मस्तक हो जाते हैं।यह एक उत्प्रेरणॉ है जो कि निर्धनता के बीच भी चमकती रहती है।यह एक सुदृढ है।लुटेरे सबकुछ लूट सकते हैं मगर चरित्र को नहीं ।यदि हमने चरित्र के आलावा सबकुछ खो दिया तो वस्तुतः हमने कुछ भी नहीं खोया। मनुष्य द्वारा निर्मित हर वस्तु को मनुष्य नष्ट कर सकता है,लेकिन चरित्र को नहीं। चरित्र से हम निर्भयतापूर्वक किसी भी प्रकार के वर्तमान और भविष्य का सामना कर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इसके अभाव में तो न हमारा कोई वर्तमान है और न भविष्य।
2-शिक्षा का मुख्य उद्देश्य चरित्र निर्मॉण है-
चरित्र मिर्णॉण शिक्षा का मुख्य मूलभूत उद्देश्य है ।जो लोग अपने बच्चों को सबकुछ देकर भी चरित्र नहीं दे पाते हैं,वे मानो रोटी की जगह मिट्टी दे रहे हैं। वैसे तो मनुष्य अपना चरित्र स्वयं बना सकता है,लेकिन उसके निर्मॉण के बाद खो भी सकता है। इसलिए इस जीवन के लिए स्वॉस लेने के समान, अपने चरित्र की निरन्तर देखभाल करने की आवश्यकता होती है। किसी भी देश की शक्ति की नींव, उसका चरित्र है।
3-चरित्र हीन एक दरिद्रता का नाम है-
चरित्रहीन वह दरिद्रता है,जिससे अधिक बुरा कुछ भी नहीं है। एक सामान्य व्यक्ति को संसार के संकटों के निवारण में कठिनाई हो सकती है, मगर यदि उसने अपने चरित्र की देखभाल की है,और इसमें दूसरों की भी सहायता की है तो,अपने कर्तव्यों की पूर्ति पर स न्तोष करते हुए अन्य सभी चीजों की चिन्ता छोड सकता है।
4-चरित्र जीवन यापन के लिए आवश्यक है-
हमें अपने जवन यापन के लिए अच्छे चरित्र की आवश्यकता होती है, क्योंकि हमारे जीवन में व्यक्तिगत, सामाजिक,राष्टीय व अन्तर्राष्टीय स्तरों पर विना अच्छे चरित्र के समस्याओं का समाधान हो ही नहीं सकता। यदि हमारे पास अच्छा चरित्र न हो,तो हमारी शक्तियों की अपेक्षा दुर्वलताएं ही प्रभावी होंगी, और फिर सौभाग्य की तुलना में दुर्भाग्य अधिक प्रबल होगा। हमारे जीवन में लुख-शॉति की जगह शोक-विषाद अधिक होगा।।
5-चरित्र हीनता से नकारात्मकता सबल होंगे-
अगर हमारा चरित्र अच्छा नहीं है तो हमारे मित्रों की अपेक्षा शत्रु अधिक सबल होंगे।शॉति की अपेक्षा चुद्ध अधिक होंगे,हमारी रेलगाडियॉ समय से नहीं चलेंगी,कारखाने क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहींकरेंगे,खेतों में कम उत्पादन होगा,हमारे मनदिर व्यावसायिक केन्द्र बन जायेंगे,ऐसे कार्यों को हम टालते जायेंगे जो हमें पूर्ण बनाते हैं। हमारे बॉध बाढ को नहीं रोक सकेंगे,हमारे पुल बह जायेंगे,हमारे राजमार्ग जगह-जगह नष्ट हो जायेंगे,हमारे नेता अपने नेत्रृत्व की खरीद-फरोक्त करेंगे,राजनीतिक दलों में फूट होगी,पुरोहित दुकानदारों के समान होंगे और व्यवसायी हर एक का गला काटने में आनन्द का अनुभव करेंगे,अपराध बढेंगे,असुरक्षित स्थानों का बाहुल्य होगा,संस्कृकि कामुकता की पर्याय बन जायेगी,लडाई झगडे बढेंगे। अच्छे चरित्र के अभाव में हम निर्लज्जापूर्वक दूसरों की रोचियों पर पलते रहेंगे,हमारा ज्ञान मनुष्य की बर्वादी के लिए काम करेगा,हमारे चेहरे की चमक,नेकत्रों का तेज,ह्दय की आशा,मन का विश्वास,आत्मा का आनन्द सब चले जायेंगे।
6-चतुर आत्मघाती मनुष्य-
आज हर मनुष्य चतुर बनने की कोशिष करता है, अलग-अलग छेत्र हैं चतुराई दिखाने के, लेकिन कुछ तो आत्मघाती चतुर हैं। कुदरत के द्वारा मनुष्य को भोजन देने में कोई कमी कसर नहीं की है,मगर कुछ मनुष्य उसे अंधेरे कोने में छिपाकर मनुष्य को ही देने से वंचित कर देते हैं,इसलिए कि वह धन कमाना चाहता है,यह मानवीय आचरण नहीं है। उसे यह पता नहीं है कि एक दिन वह अपनी सारी दौलत को बैंको में छोडकर एक कीट के समान मर जायेगा। ये कुदरत खाद्य पदार्थों में मिलावट नहीं करती है,लेकिन मनुष्य को देखो, स्वयं अपने बच्चों,और अन्य लोगों को खिलाने के लिए पहले भोजन में मिलावट कर लेता है। गाय को ही देखो कितनी उदार दिल की है, हमें शुद्ध दूध देती है,लेकिन मनुष्य है कि किसी को शुद्ध दूध पीने को नहीं देता। कुदरत के बने खनिज तथा रसायन विध्वँशकारी अस्त्रों का निर्मॉण नहीं करता, लेकिन मनुष्य को देखो उसने इनकी परस्पर सॉठ-गॉठ करके विध्वंशकारी अस्त्र बना दिये हैं। इस आसमान ने कभी मनुष्य के सिर पर बम नहीं फेंका, पर मनुष्य को देखो अपनी बुद्धिमता से उस आसमान से अपने ही भाइयों के ऊपर बम फेंकता है,और सोचता है कि मैने विजय प्राप्त कर ली। कुदरत ने पृथ्वी के समस्त मनुष्यों को पृथ्वी पर पर्याप्त भूमि और संसाधन प्रदान किये हैं,लेकिन मनुष्य को देखो, उसने दूसरे मनुष्य को वंचित कर,उसे निर्धन बना दिया है। अगर देखें तो मनुष्य इस धरती पर परमात्मा का एक अभिन्न अंग है,लेकिन अपने एन कृत्यों से वह कितना सीमित हो गया है।
7-चरित्र और आनंद की अनुभूति-
अच्छा आदमी बनने से सुख की प्राप्ति नहीं हो सकतीहै। चरित्रहीन व्यक्ति कभी भी सही अर्थों में समृद्धिशाली नहींबन सकता है। सदाचार के विना आनंद और प्रशन्नता नहीं मिल सकती है।यह भी सत्य है कि प्रकृति की हरवस्तु में परस्पर ईश्वरीय सम्बन्ध है,इसलिए जबतक आप इस तथ्य को नहीं समझ लेते और इसे स्वीकार नहीं कर लेते, इसे जीवन में मान्यता नहीं देते, तबतक आनंद की खोज में आप सफल नहीं हो सकते ।
8-चिन्तन ही चरित्र का निर्माण करता है-
वर्तमान समय में एक मुख्य समस्या है-भ्रष्ट चिंतन और दुष्ट आचरण। इन दो समस्याओं के कारण असंख्य प्रकार के अनर्थ मनुष्य के मस्तिष्क में उपजे हैं, जिससे संकट की स्थितियॉ उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि मन की स्थिति के अनुसार परिस्थितियॉ का जन्म होता है । चिन्तन का निर्माण करता है जो फिर व्यवहार में उतरता है । चिंतन के द्वारा कुपथगामियों को बदलकर सन्मार्ग गामी बना सकते हैं और मकडी के की तरह फैली समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।इसलिए स्वस्थ चिंतन करें।
9-जहॉ मौत है वहॉ सुरक्षा कैसे हो सकती है-
हम जिस चीज की सुरक्षा की योजना बना रहे हैं बह बचने वाली नहीं है।क्या घर को बचाओगे,धन को बचाओगे,इस शरीर को बचाओगे जब तुम नहीं थे तब भी था और जव तुम नहीं होंगे तब भी होगा ।इस घर को हम- तुम से लेना देना नहीं है।किसको बचाओगे,न देह बचती हैऔर न धन बचता है,सब खो जाते हैं,और मौत तो एक दिन आकर सब मिटा देगी ।हमारे बनाये हुये रेत के घर सब गिरा देगी ।क्या बचाओगे,जहॉ मौत है वहॉ सुरक्षा हो ही नहीं सकती है।
10-आनंद की अनुभूति-
जिस प्रकार अंधे के लिए पूरा जगत अंधकारमय होता है और अच्छी आंखों वालेके लिए प्रकाशमय रहता है,उसी प्रकार अज्ञानियों के लिये पूरा जगत दुःखों का समूह है, और ज्ञानियों के लिये आनंदमय होता है ।
11-आपके प्रति कोई क्रूर हो तो उस क्षण प्रतिक्रया न करें-
साक्षी अवस्था में रहने वाले ऎसे सब लोगों में बहुत जल्द परिवर्तन होते हैं ।उनकी स्मरण शक्ति का ह्रास बहुत कम होता है क्योंकि जो भी चीज वे देखते हैं उसकी तस्वीर उनके मस्तिष्क में बन जाती है।वेआपको हर देखी हुई चीज का रंग और उसकी बारीकियॉ बता सकते हैं,सहजयोगी होने के नाते हमें क्या करना चाहिए। हमें तो बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। कोई गलत चीज भी आपको दिखाई देती है तो ठीक है आप बस ध्यान करें ।कोई गलत कार्य होता हुआ आप देखेंतो इस पर चित्त दें,यदि आपके प्रति कोई क्रूर होता हो तो उस क्षण उस पर प्रतिक्रिया न करें,जब शॉत हो जॉय तब आप उसे बतायें।शनैःशनैः आप उसे उसकी गलती का अहसास करवायें और उसका ह्दय जीत सकेंगे।किसी भी चीज के प्रति प्रतिक्रिया करना मूर्खता है और आत्मघातक भी ।
12-जीने की सही दृष्टि प्राप्त करें-
कैसे जीना चाहिए इसलिए कि हमें तो जीना ही नहीं आता है ।हमारे सामने यह एक विकट समस्या है ।ईश्वर ने तो सबको दो आंखें दी हैं इन आंखों से हमें जो देखना चाहिए था वहदेखते ही नहीं,केवल वाह्य जगत की स्थूल वस्तुओं को ही देखने में हम इनका प्रयोग करते हैं । प्रश्न है जीवन जीने की सही दृष्टि प्रप्त करने की। जब तक वह दृष्टि हमें प्राप्त नहीं हो जाती तबतक हमें जीने की राह नहीं मिल सकती ।
13-ईश्वर से साक्षात्कार-
जिस प्रकार भौंरा जबतक कमल पर बैठकर उसका मधुपान नहीं कर लेता तबतक गुन-गुन करता रहता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी तबतक तर्क- वितर्क और वाद- विवाद करता रहता है जबतक कि उसे ईश्वर से साक्षात्कार नहीं हो जाता ।
14-उत्साह जीवन और अनुत्साह मृत्यु का प्रतीक है-
उत्साह जीवन का धर्म और अनुत्साह मृत्यु का प्रतीक है।उत्साहवान मनुष्य आशवादी और सजीव कहलाने योग्य होता है। विजय,सफलता और कल्याण तो सदैव उसकी ऑखों में नाचता है। जबकि उत्साह हीन ह्दय को अशॉति ही अशॉति दिखाई देती है। उत्साह बनाये रखें ।
15-उत्साह बनाये रखें-
उत्साह सफलता को निमंत्रण देता है।यह तो प्रेम का फल है, जिसमें सच्चा प्रभु –प्रेम होता है,वही उसके दर्शन के लिए उत्सुक रहता है । उत्साही आदमी तो मान्यशीलता का पैमाना है। इसलिए जीवन में उत्साह को बनाये रखें
13-ईश्वर से साक्षात्कार-
जिस प्रकार भौंरा जबतक कमल पर बैठकर उसका मधुपान नहीं कर लेता तबतक गुन-गुन करता रहता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी तबतक तर्क- वितर्क और वाद- विवाद करता रहता है जबतक कि उसे ईश्वर से साक्षात्कार नहीं हो जाता ।
14-उत्साह जीवन और अनुत्साह मृत्यु का प्रतीक है-
उत्साह जीवन का धर्म और अनुत्साह मृत्यु का प्रतीक है।उत्साहवान मनुष्य आशवादी और सजीव कहलाने योग्य होता है। विजय,सफलता और कल्याण तो सदैव उसकी ऑखों में नाचता है। जबकि उत्साह हीन ह्दय को अशॉति ही अशॉति दिखाई देती है। उत्साह बनाये रखें ।
15-उत्साह बनाये रखें-
उत्साह सफलता को निमंत्रण देता है।यह तो प्रेम का फल है, जिसमें सच्चा प्रभु –प्रेम होता है,वही उसके दर्शन के लिए उत्सुक रहता है । उत्साही आदमी तो मान्यशीलता का पैमाना है। इसलिए जीवन में उत्साह को बनाये रखें
16-उदार बनकर आनंद की अनुभूति करें-
जीवन में परिपक्व बनने के लिए उदारता का गुण होना चाहिए इसके लिए भौतिक चीजों से मोहत्यागना होगा, उदारता का आनन्द पाने के लिए तो कुछ देना होता है। यदि एक बार आप उदारता का आनन्द लेने लगेंगे तो आप जान जायेंगे कि प्रेम और करुणॉ आपसे दूसरों तक बहने लगी है, यह प्रेम और करुणॉ सभी लोगों तक फैलनी चाहिए। आत्म निरीक्षण करें ,निसंदेह आप उदार बन सकते हो ।उदार विवेक आपमें तभी आयेगा जब आपअपने जीवन का लक्ष्य जान जान जायेंगे और यह जानेंगे कि आप किस लिए हैं?
17-उदारता का गुंण-
जीवन में परिपक्व बनने के लिए उदारता गुण होना चाहिए । इसके लिए भौतिक चीजों से मोह त्यागना होगा,उदारता का आनन्द पाने के लिए तो कुछ देना होता है।यदि एक बार आप उदारता का आनन्द लेने लगेंगे तो आप जान जायेंगे कि प्रेम और करुणॉ आपसे दूसरों तक बहने लगी है,यह प्रेम और करुणॉ सभी लोगों तक फैलनी चाहिए।आत्म निरीक्षण करें,निसंदेह आप उदार बन सकते हो।उदार विवेक आपमें तभी आयेगा जब आप अपने जीवन का लक्ष्य जान जान जायेंगे और यह जानेंगे कि आप किस लिए हैं ?
18-उदासीनता हमारा दुश्मन है-
उदासीनता हमारा वह दुश्मन है जिससे हम किसी भी कार्य से जी चुराते हैं अथवा अनमने भाव से उस कार्य को करते हैं । उदासीन लोगों की तरक्की के सभी रास्ते बन्द हो जाते हैं । आलस्य के कारण बनते- बनते कार्य बिगड जाते हैं, और कभी-कभी उदासीनता के कारण लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं।उदासीन लोग भ्रम के बन्धन में जकडे होते हैं, उनका जीवन नीरस रहता है लेकिन उन्हैं कोई परवाह नहीं रहती है।ऎसे लोगअपना नुकसान तो करते ही हैं,मगर उस समाज के लिए भी कष्टकारी होते हैं एक कम्पनी का मालिक अपनी कम्पनी के कर्मचारियों की सुस्ती से परेशान था, कारोबार मन्दा चल तहा थाजब विशेषज्ञों की राय ली गई तो ज्ञात हुआ कि एकमछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है।यदि उस आलसी को बाहर कर दिया जाय तो स्थिति सुधर सकती है। यदि मूर्तिकार विशाल पत्थर को देखकर उदास हो जाय कि इससे मूर्ति कैसे बन पायेगी तो वह मूर्तिकार नहीं कहलायेगा। अगर हम यह सोचते हैं कि छोडो कौन इतनी मेहनत करेगा या देखा जायेगा, तो ऎसे प्रश्नसोचकर हम उदासीनता से जकड जाते हैं, उदासीनता से मुक्ति के लिए हमें अपने जीवन के क्रम को उचित दिशा में नियोजित करना होगा इसके लिए उपयोगी और औचित्यपूर्ण का चुनाव करना होगा, उत्थान और पतन के रास्ते का चयन अपनी इच्छा पर निर्भर है, और ईश्वर ने तो मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता दी है कि वह अपनी इच्छा शक्ति, ज्ञानशक्ति तथा क्रिया शक्ति का उपयोग किसी भी प्रयोजन में कर सकता है तो फिर यह उदासीनता क्यों।इसलिए हमें इस तथ्य को अपनाना है कि, मैं क्या नहीं कर सकता हूं यह शक्ति या धन कार्य पूर्ण करता है। फिर देखना समय आने पर सब अपने आप ठीक होजायेगा , हमारी उदासीनता तो हमारी जड में निहित होता है ।देखा जायेगा वाली सोच भी हमें आलसी बना देता है, ।सक्रिय बनिये, जिस दिन सक्रियता का अभाव उत्पन्न हो जाता है, बस उसी दिन जिन्दगी में निष्क्रियता का आना प्रारम्भ होता है, सफलता के लिए जिन्दगी में आलस्य को किसी भी स्थिति में न आने दें । अपने मित्रों से मिले- जुलते रहने की आदत डालें, अकेलापन से भी उदासीनता आती है,पौष्टक भोजन करें,कठोर परिश्रम से आत्म विश्वास बढता है,अधिक दौड लगाने और व्यायाम करने से अधिक मात्रा में आक्सीजन प्राप्त होता है,अवसाद की स्थिति में चिकित्सा का सहारा लें ।
19-कटु वचनों के घाव-
ऎसे कुवचन रूपी बॉण जब मुंह से निकलते हैं तो दूसरा व्यक्ति इतना घायल हो जाता है कि वह रातभर शोकमग्न रहता है ।फरसी से कटा हुआ वन तो अंकुरित हो जाता है मगर कटुवचन रूपी शस्त्र सेकिया हुआ घाव तो कभी भी भरता नहीं है ।जब हम परस्पर बातचीत करते हैं तो बातें एस प्रकार क्रूरतापूर्वक नहीं करनी चाहिए जिससे किसी को नीचा देखना पडे ऎसी बातें जिससे दूसरे को उद्वेग हो बदले की भावना को जन्म देते हैं,और कई पीढियों तक यह धाव बना रहता है ।
20-कब झूठ बोलने से पाप नहीं लगता-
महर्षि वेद व्यास जी के अनुसार विवाह काल में,स्त्री प्रसंग के समय, किसी के प्राणों पर संकट आने पर,सर्वत्र लुटते देखकर तथा ब्राह्मणों के हित के लिए आवश्यकता हो तो झूठ बोल देना चाहिए.इन पॉच अवसरों पर झूट बोलने से पाप नहीं लगता है।
21-करुंणामय जीवन-
जिस व्यक्ति में करुंणा का प्रसार जितना अधिक होता है,उस व्यक्ति का भगवान के साथ उतना ही गहरा सम्बन्ध होता है। करुण से आर्द्र ह्दय वाले व्यक्ति तो अकारण बंधु होते हैं। जीवन में परस्पर सहायता के लिए उत्तेजना तो करुंणॉ से ही उत्पन्न होती है ।
22-जीवन एक रहस्य है यही जीवन का अर्थ है-
अगर आप जीवन को समझने की कोशिश करते हैं तो समझ में नहीं आयेगा,जीवन की बात भूल जाओ, जीवन तो एक रहस्य है,यही जीवन का अर्थ है ।बस सिर्फ जिओ,इससे ही सब समझ में आ जायेगा। जीवन के बारे में समझ में आने से संपूर्णता का वोध होता है, लेकिन इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है,इसलिए जीवन को रहस्य कहते हैं। बस इतना तो निश्चित है कि जीवन को जिया जा सकता है । उसे समझा नहीं जा सकता है ।
23-जीवन का आदर्श ईमानदारी-
यदि आपका ह्दय ईमान से भरा है तो एक शत्रु क्या,सारा संसार आपके सम्मुख हथियार डाल देगा। ईमानदार मनुष्य तो ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है।और वैसे भी कहा गया है कि जिसका ईमान नहीं वह इंसान नहीं,ईमान न बेचो, भले ही सब बेच दो ।जो व्यक्ति छोटे-छोटे कार्यों में ईमानदारी से कार्य करता है, वही बडे कार्यों को भी ईमानदारी से कर सकता है,ईमानदारी तो वैभव का मुंह नहीं देखती, वह तो मेहनत के पालने पर किलकारियॉ मारती है और संतोष पिता की तरह उसे देखकर तृप्त हुआ करती है ।
24-गुंणों के साथ दुर्गुंण भी होते हैं -
दीपक की लौ प्रकाश देती है तो उससे कालिख भी पैदा होती है,अर्थात जहॉ गुंण है, वहॉ कुछ न कुछ अवगुंण भी जरूर होता है ।
25-गृहणी ही घर है-
वास्तव में जिसे हम जानते हैं वह घर नहीं है बल्कि गृहणी को घर कहते हैं। जिस घर में गृहणी न हो, वह वन के समान है। अच्छी स्त्री से तो घर की रक्षा होती है। घर तो एक तीर्थ के समान है, क्योंकि गृहस्थाश्रम ही सभी धर्मों का मूल है।आदमी तो अपने घरवालों के लिए ही धन कमाता है अन्य किसी के लिए नहीं अपना पेट तो सूअर भी पालता है।
26-घर का कलह-
किसी भी स्थिति में कलह से बचें। जिसके घर को बर्बाद करना हो,उसके पीछे कलह लगा दो और आराम से सो जाओ,तुम्हारा काम शत प्रतिशत सफल हजायेगा। जहॉ कलह है बहॉ दुःख है,अशॉति है, क्लेश है,घर के कलह से तो लक्ष्मी भी भाग जाती है।गृह कलह राजा को भी ले डूबता है ।
27-काल किसी के बस में नहीं होता-
काल किसी के बस में नहीं होता-काल ऎसा कठोर शक्तिशाली है कि वह राजा–महॉराजाओं को महल के भीतर से लेकर चला जाता हैऔर कोई उसे रोक भी नहीं पाता ।यदि किसी आदमी का काल न आया हो तो सैकडों बाणों से बिंधने पर भी वह नहीं मरता ,किन्तु यदि उसका काल आ गया है तो कुशा की नोक से बिंधने से भी वह मर जाता है ।जब मनुष्य मरता है तो काल उसकी आत्मा को अकेले ही परलोक ले जाती है,उसके सब साथी यहीं छूट जाते हैं ।
28-किसी भी स्थिति में घमण्ड न करें-
मनुष्य को किसी भी कारण,घमणड नहीं करना चाहिए,क्योंकि विद्या,बुद्धि,ज्ञान, और शक्ति सबकुछ भगवान के आश्रित है।आप न्हैं अपने विकास के यंत्र की भॉति प्रयोग करें । यदि किसी कारण आपके भीतर अभिमान का संचार होता है तो विद्या भी अविद्या की तरह क्रिया करती है। इसलिए हमें मूल लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए।
29-कुकर्मी का फल राख में दबी अग्नि की भॉति होता है-
जिस प्रकार ताजा दुआ दूध शीघ्र नहीं विगडता,उसी प्रकार कुकर्मी का फल भी शीघ्र मालूम नहीं होता ।किन्तु वह दबी हुई राख में दबी हुई अग्नि की तरह विद्यमान है। कुकर्म करते समय मीठे और सुखदाई लगते हैं और कर्म फल भोगते समय दुखदायी होता है।
30-कुदरत के नियमों से सामज्जस्य-
कुदरत के नियमों से सामज्जस्य-आज के युग में जबकि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है, वैज्ञानिक आविष्कारों से यह सम्भव हो गया है कि कुदरत की दी हुई चीजों का उपयोग हम अपने आवश्यकताओं के हिसाब से कर लेते हैं। अगर धूप में चलना पड रहा है तो छाता बनाया गया है,वर्षा नही होती है तो कृत्रिम वर्षा सम्भव है, बॉध बन गये हैं,आदमी को ईश्वर ने दो पॉव चलने के लिए दिये हैं, लेकिन मानव ने चलने के लिए कितने साधन बना दिये है! ओजोन की परत को रिपेयर किया जाने लगा है। लेकिन यह भी सत्य है कि,कुदरत पर नियंत्रण की भी एक सीमा है,वरना विनाशकारी परिणॉम भुगतने होते हैं। प्रकृति पर नियंत्रण की कोशिष में अगर हिमालय का वर्फ पिघल जाता है तो परिणॉम सभी जानते हैं क्या होगा। प्रलय की जो बात कही गई है,यह भी सत्य है, कि कुदरत पर नियंत्रण की सीमॉ बहुत अधिक बढ चुकी होगी। हॉ यह बात भी सही है कि कुदरत को कोई बना नहीं सकता है,और न उसे नष्ट कर सकता है,इसके नियम स्वयं उसने बनाये हैं। मानव द्वारा उसको अपने सुविधा के अनुसार उपयोग में लाने का प्रयास किया जाता रहा है। यदि गंगा नदी को नहर द्वारा उसकी दिशा बदल दी गई है,मगर उसे रोक नहीं सकते हैं। बॉध बनाने से उस जल को एक सीमा तक ही रोका जा सकता है। कुदरत ने बच्चे को नंगा जन्म दिया, कपडे तो हमने ही पहनाये! लेकिन वे भी लोग हैं -जैन मुनि, जोकि कुदरत की दी हुई चीज में छेड खानी नहीं करते हैं। जिस तरह से किसी व्यवस्था को चलाने के लिए नियम बने होते हैं उसी प्रकार इस कुदरत के भी अपने नियम है,उसी ढंग से उसके कार्यों का संचालन होता है।दिन-रात होते हैं,अलग-अलग ऋतुएं आती हैं,कभी गर्मी तो कभी ठंड।आलीशान मकान या मंहगी गाडी भी हमने बनाये हैं,इस प्रकृति में छेडखानी करके।इनके उपयोग की भी एक सीमा है। हमें भी इस कुदरत ने बनाया है, और कुदरत के नियमानुसार हमें इस शरीर की मेहनत से अपना जीविकोपार्जन करना है।लेकिन अगर हम इस शरीर के लिए सुविधा सम्पन्न आलीशान स्थान उपलव्ध कराते हैं,जिसमें इस शरीर को जरा भी कष्ट न हो, इसमें हमें देखना होगा कहीं यह कुदरत की मर्जी के विरुद्ध तो नहीं है, अन्यथा हम अपंग हो जायेंगे,हमारा शरीर विकृत हो सकता है,हम कम उम्र में बुड्ढे हो सकते हैं,रोग ग्रस्त हो सकते हैं।मैं अपनी बात जानता हूं, प्रतिदिन 3की.मी.पैदल उतराई से चलकर अपनी ड्यूटी पर जाता हूं,रास्ते में जंगल और गॉव पडता है,रास्ते में ही आंवले और आम के पेड हैं, जिनसे स्वतः पके हुये फल गिरे हुये मिलते हैं,उठाकर बैग में रख देता हूं,गॉव के कई लोगों से मुलाकात हो जाती है,जाते-जाते पसीना आ जाता है,फिर सभी लोगों को बैग के फलों को बॉट लेता हूं,सबलोग खुश हो जाते हैं,मुझे इस बात का अहसास होता है कि यह कार्य प्रकृति केनियमों के अनुकूल है।लेकिन वापस घर लोटते समय गेट से ही गाडी से जाता हूं,क्योंकि चढाई में अधिक कठिनाई, समय की वर्वादी से बचाव, और फिर आने- जाने के साधन भी तो बने हैं। आधुनिक अर्थव्यवस्था और समाज के हिसाव से भी तो चलना है। अर्थातसाधन और कुदरत के नियमों में सामज्जस्य स्थापित करके चलने से अच्छा जीवन यापन हो सकता है।
31-कुल श्रेष्ठ कौन है-
कुल श्रेष्ठ कौन है-किसी कुल में उसी को श्रेष्ठ माना जाता है जो संपूंर्ण प्राणिर्यों को शॉत रखने का प्रयत्न करता है, हमेशा सत्य व्यवहार करता है,कोमल स्वभाव होकर सबका सम्मान करता है, सर्वदा शुद्ध भाव से रहता है।
32-क्रोध क्षणिक पागलपन है-
क्रोध क्षणिक पागलपन है-क्रोध तो एक पागलपन है,जिससे मनुष्य का विनाश होता है इसीलिए क्रोध को यमराज कहा जाता है।जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने ऊपर झेलता है, ही दूसरों के क्रोध से बच सकता है और अपने जीवन को सुखी बना सकता है । मनुष्य क्रोध को प्रेम से ,पाप को सदाचार से,लोभ को दान से, और मिथ्या-भाव को,सत्य से जीत सकेगा। जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं बल्कि क्षमा करता है वह अपनी और क्रोध करने वाले को महॉं संकट से रक्षा करता है । इस लिए क्रोध की भावना से पहले दस बार सोच लें ।
33-गतिशील रहने से अनुभव बढता है-
गतिशील रहने से अनुभव बढते हैं-जिस प्रकार समय के बदलने से रात-दिन, गर्मी-सर्दी के मध्य रिरवर्तन का एक लय बना होता है और यह लयबद्धता हमेशा बरकरार रहती है,इसमें कभी कोई रुकावट नहीं आती,हमेशा गतिशील है। उसी प्रकार आप भी गतिशील रहिए।आपके जीवन में जितनी अधिक गति रहेगी, उतना ही अधिक जीवन में अनुभव प्राप्त होगा।प्रयास करें कि सदैव गतिवान रहें परिवर्तनशील रहें,सतत् यात्रा ही जीवन का उद्देश्य है।
34-गलती छिपाना विष कण के समान है-
गलती छिपाना विष कण के समान है-यदि कोई मनुष्य अपनी गलती को छिपाता है तो वह गलती विष कण के समान अपना प्रभाव बढाती ही जायेगी। इसलिए मनुष्य को अपनी गलती निसंकोच स्वीकार कर लेनी चाहिए,हठ पकडकर और छल करके उसे छिपाना नहीं चाहिए। अपनी गलती को स्वीकार करना कोई अपमान नहीं है वैसे गलती करने के पश्यात भय पैदा होता है,यही अपराधी का दण्ड है।बस हमें तो दूसरों की गलती पर अपसोस करना चाहिए नकि गुस्सा।
35-कर्तव्यों का पालन-
हमारी बुद्धि और ह्दय को जो सत्य लगे वही हमारा कर्तव्य है।उस कर्तव्य का पालन करना चाहिए जो हमारे निकट है। कर्तव्य तो कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता,बस कर्तव्य पालन ही चित्त की शॉति का मूल मंत्र है।लेकिन हमारा पहला कर्तव्य है मनुष्य की सेवा करना ।
36-कला आत्मा का सौन्दर्य है-
जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती,वह कला नहीं है।कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौन्दर्य है।इस ब्रह्मॉड में ईश्वर से बढकर कोई दूसरा कलाकार नहीं है।जब औरत अपनी कलाकारी दिखाती है तो बडे-बडे तीसमारखॉ चित्त होजाते हैं।कला का सत्य तो जीवन की परिधि में सौंदर्य के माध्यम सेव्यक्त अखण्ड सत्य है कला अति सूक्ष्म और कोमल है,अतः अपनी गति के साथ वह मस्तिष्क को भी केमल और सूक्ष्म बना देती है।सच्चा कलाकार तो हमेशा लिप्सा रहित होता है ।
37-कल्पना आत्मा का नेत्र है-
चित्त जिस रूप में कल्पना करता है,वैसा ही हो जाता है, आज जैसा वह है, वैसी ही उसने कल्पना की थी।कल्पना तो ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है।कल्पना तो विश्व में शासन करती है। कल्पना का वह सुन्दर जगत कितना मधुर होता है, छाया में सुख–स्वप्नों का समूह पुलकित होकर जागता-सोता रहता है ।और अपवित्र कल्पना भी उतना ही बुरी होती है, जितना बुरा अपवित्र कर्म होता है।
38-कल्याण होता है त्याग से-
कल्याण होता है त्याग से-जब दान-पुण्य करते हैं तो लोग यही समझते हैं कि रुपयों से कल्याण होता है,वास्तव में रुपयों से कल्याण नहीं होता है बल्कि रुपयों में जो मोह है उसके त्याग से कल्याण होता है ।यदि रुपयों के त्याग से कल्याण होता तो धनीआदमी अपना कल्याण कर लेते और गरीबों का का कल्याण होता ही नही । उस परमात्मा को रुपयों की भाषा समझ में नहीं आती , उसका रुपयों से कोई लेना-देना नहीं होता ,बस उन रुपयों के मोह का त्याग करने से ही परमात्मा के दर्शन होते हैं ।
39-कविता आत्मा का संगीत है-
कविता आत्मा का संगीत है-कविता भावनाओं में रंगी हुई बुद्धि है। कवि जिस समय कविता कहता है, वह औलौकिक मानव बन जाता है ।है। कवि का काम है प्रकृति के विकास को खूब ध्यान से देखना। मेरे लिए तो मनुष्य ही एक सजीव कविता है,कवि की कृति तो उस सजीव कविता का शब्द मात्र हैं ।प्रणय के समय प्रत्येक व्यक्ति कवि बन जाता है। कवि केवल देखते ही नहीं बल्कि प्रकाश भी करते हैं ।कवि का सबसे बडा गुंण नईं-नईं बातों को सूझना है ।
जीवन में परिपक्व बनने के लिए उदारता का गुण होना चाहिए इसके लिए भौतिक चीजों से मोहत्यागना होगा, उदारता का आनन्द पाने के लिए तो कुछ देना होता है। यदि एक बार आप उदारता का आनन्द लेने लगेंगे तो आप जान जायेंगे कि प्रेम और करुणॉ आपसे दूसरों तक बहने लगी है, यह प्रेम और करुणॉ सभी लोगों तक फैलनी चाहिए। आत्म निरीक्षण करें ,निसंदेह आप उदार बन सकते हो ।उदार विवेक आपमें तभी आयेगा जब आपअपने जीवन का लक्ष्य जान जान जायेंगे और यह जानेंगे कि आप किस लिए हैं?
17-उदारता का गुंण-
जीवन में परिपक्व बनने के लिए उदारता गुण होना चाहिए । इसके लिए भौतिक चीजों से मोह त्यागना होगा,उदारता का आनन्द पाने के लिए तो कुछ देना होता है।यदि एक बार आप उदारता का आनन्द लेने लगेंगे तो आप जान जायेंगे कि प्रेम और करुणॉ आपसे दूसरों तक बहने लगी है,यह प्रेम और करुणॉ सभी लोगों तक फैलनी चाहिए।आत्म निरीक्षण करें,निसंदेह आप उदार बन सकते हो।उदार विवेक आपमें तभी आयेगा जब आप अपने जीवन का लक्ष्य जान जान जायेंगे और यह जानेंगे कि आप किस लिए हैं ?
18-उदासीनता हमारा दुश्मन है-
उदासीनता हमारा वह दुश्मन है जिससे हम किसी भी कार्य से जी चुराते हैं अथवा अनमने भाव से उस कार्य को करते हैं । उदासीन लोगों की तरक्की के सभी रास्ते बन्द हो जाते हैं । आलस्य के कारण बनते- बनते कार्य बिगड जाते हैं, और कभी-कभी उदासीनता के कारण लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं।उदासीन लोग भ्रम के बन्धन में जकडे होते हैं, उनका जीवन नीरस रहता है लेकिन उन्हैं कोई परवाह नहीं रहती है।ऎसे लोगअपना नुकसान तो करते ही हैं,मगर उस समाज के लिए भी कष्टकारी होते हैं एक कम्पनी का मालिक अपनी कम्पनी के कर्मचारियों की सुस्ती से परेशान था, कारोबार मन्दा चल तहा थाजब विशेषज्ञों की राय ली गई तो ज्ञात हुआ कि एकमछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है।यदि उस आलसी को बाहर कर दिया जाय तो स्थिति सुधर सकती है। यदि मूर्तिकार विशाल पत्थर को देखकर उदास हो जाय कि इससे मूर्ति कैसे बन पायेगी तो वह मूर्तिकार नहीं कहलायेगा। अगर हम यह सोचते हैं कि छोडो कौन इतनी मेहनत करेगा या देखा जायेगा, तो ऎसे प्रश्नसोचकर हम उदासीनता से जकड जाते हैं, उदासीनता से मुक्ति के लिए हमें अपने जीवन के क्रम को उचित दिशा में नियोजित करना होगा इसके लिए उपयोगी और औचित्यपूर्ण का चुनाव करना होगा, उत्थान और पतन के रास्ते का चयन अपनी इच्छा पर निर्भर है, और ईश्वर ने तो मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता दी है कि वह अपनी इच्छा शक्ति, ज्ञानशक्ति तथा क्रिया शक्ति का उपयोग किसी भी प्रयोजन में कर सकता है तो फिर यह उदासीनता क्यों।इसलिए हमें इस तथ्य को अपनाना है कि, मैं क्या नहीं कर सकता हूं यह शक्ति या धन कार्य पूर्ण करता है। फिर देखना समय आने पर सब अपने आप ठीक होजायेगा , हमारी उदासीनता तो हमारी जड में निहित होता है ।देखा जायेगा वाली सोच भी हमें आलसी बना देता है, ।सक्रिय बनिये, जिस दिन सक्रियता का अभाव उत्पन्न हो जाता है, बस उसी दिन जिन्दगी में निष्क्रियता का आना प्रारम्भ होता है, सफलता के लिए जिन्दगी में आलस्य को किसी भी स्थिति में न आने दें । अपने मित्रों से मिले- जुलते रहने की आदत डालें, अकेलापन से भी उदासीनता आती है,पौष्टक भोजन करें,कठोर परिश्रम से आत्म विश्वास बढता है,अधिक दौड लगाने और व्यायाम करने से अधिक मात्रा में आक्सीजन प्राप्त होता है,अवसाद की स्थिति में चिकित्सा का सहारा लें ।
19-कटु वचनों के घाव-
ऎसे कुवचन रूपी बॉण जब मुंह से निकलते हैं तो दूसरा व्यक्ति इतना घायल हो जाता है कि वह रातभर शोकमग्न रहता है ।फरसी से कटा हुआ वन तो अंकुरित हो जाता है मगर कटुवचन रूपी शस्त्र सेकिया हुआ घाव तो कभी भी भरता नहीं है ।जब हम परस्पर बातचीत करते हैं तो बातें एस प्रकार क्रूरतापूर्वक नहीं करनी चाहिए जिससे किसी को नीचा देखना पडे ऎसी बातें जिससे दूसरे को उद्वेग हो बदले की भावना को जन्म देते हैं,और कई पीढियों तक यह धाव बना रहता है ।
20-कब झूठ बोलने से पाप नहीं लगता-
महर्षि वेद व्यास जी के अनुसार विवाह काल में,स्त्री प्रसंग के समय, किसी के प्राणों पर संकट आने पर,सर्वत्र लुटते देखकर तथा ब्राह्मणों के हित के लिए आवश्यकता हो तो झूठ बोल देना चाहिए.इन पॉच अवसरों पर झूट बोलने से पाप नहीं लगता है।
21-करुंणामय जीवन-
जिस व्यक्ति में करुंणा का प्रसार जितना अधिक होता है,उस व्यक्ति का भगवान के साथ उतना ही गहरा सम्बन्ध होता है। करुण से आर्द्र ह्दय वाले व्यक्ति तो अकारण बंधु होते हैं। जीवन में परस्पर सहायता के लिए उत्तेजना तो करुंणॉ से ही उत्पन्न होती है ।
22-जीवन एक रहस्य है यही जीवन का अर्थ है-
अगर आप जीवन को समझने की कोशिश करते हैं तो समझ में नहीं आयेगा,जीवन की बात भूल जाओ, जीवन तो एक रहस्य है,यही जीवन का अर्थ है ।बस सिर्फ जिओ,इससे ही सब समझ में आ जायेगा। जीवन के बारे में समझ में आने से संपूर्णता का वोध होता है, लेकिन इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है,इसलिए जीवन को रहस्य कहते हैं। बस इतना तो निश्चित है कि जीवन को जिया जा सकता है । उसे समझा नहीं जा सकता है ।
23-जीवन का आदर्श ईमानदारी-
यदि आपका ह्दय ईमान से भरा है तो एक शत्रु क्या,सारा संसार आपके सम्मुख हथियार डाल देगा। ईमानदार मनुष्य तो ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है।और वैसे भी कहा गया है कि जिसका ईमान नहीं वह इंसान नहीं,ईमान न बेचो, भले ही सब बेच दो ।जो व्यक्ति छोटे-छोटे कार्यों में ईमानदारी से कार्य करता है, वही बडे कार्यों को भी ईमानदारी से कर सकता है,ईमानदारी तो वैभव का मुंह नहीं देखती, वह तो मेहनत के पालने पर किलकारियॉ मारती है और संतोष पिता की तरह उसे देखकर तृप्त हुआ करती है ।
24-गुंणों के साथ दुर्गुंण भी होते हैं -
दीपक की लौ प्रकाश देती है तो उससे कालिख भी पैदा होती है,अर्थात जहॉ गुंण है, वहॉ कुछ न कुछ अवगुंण भी जरूर होता है ।
25-गृहणी ही घर है-
वास्तव में जिसे हम जानते हैं वह घर नहीं है बल्कि गृहणी को घर कहते हैं। जिस घर में गृहणी न हो, वह वन के समान है। अच्छी स्त्री से तो घर की रक्षा होती है। घर तो एक तीर्थ के समान है, क्योंकि गृहस्थाश्रम ही सभी धर्मों का मूल है।आदमी तो अपने घरवालों के लिए ही धन कमाता है अन्य किसी के लिए नहीं अपना पेट तो सूअर भी पालता है।
26-घर का कलह-
किसी भी स्थिति में कलह से बचें। जिसके घर को बर्बाद करना हो,उसके पीछे कलह लगा दो और आराम से सो जाओ,तुम्हारा काम शत प्रतिशत सफल हजायेगा। जहॉ कलह है बहॉ दुःख है,अशॉति है, क्लेश है,घर के कलह से तो लक्ष्मी भी भाग जाती है।गृह कलह राजा को भी ले डूबता है ।
27-काल किसी के बस में नहीं होता-
काल किसी के बस में नहीं होता-काल ऎसा कठोर शक्तिशाली है कि वह राजा–महॉराजाओं को महल के भीतर से लेकर चला जाता हैऔर कोई उसे रोक भी नहीं पाता ।यदि किसी आदमी का काल न आया हो तो सैकडों बाणों से बिंधने पर भी वह नहीं मरता ,किन्तु यदि उसका काल आ गया है तो कुशा की नोक से बिंधने से भी वह मर जाता है ।जब मनुष्य मरता है तो काल उसकी आत्मा को अकेले ही परलोक ले जाती है,उसके सब साथी यहीं छूट जाते हैं ।
28-किसी भी स्थिति में घमण्ड न करें-
मनुष्य को किसी भी कारण,घमणड नहीं करना चाहिए,क्योंकि विद्या,बुद्धि,ज्ञान, और शक्ति सबकुछ भगवान के आश्रित है।आप न्हैं अपने विकास के यंत्र की भॉति प्रयोग करें । यदि किसी कारण आपके भीतर अभिमान का संचार होता है तो विद्या भी अविद्या की तरह क्रिया करती है। इसलिए हमें मूल लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए।
29-कुकर्मी का फल राख में दबी अग्नि की भॉति होता है-
जिस प्रकार ताजा दुआ दूध शीघ्र नहीं विगडता,उसी प्रकार कुकर्मी का फल भी शीघ्र मालूम नहीं होता ।किन्तु वह दबी हुई राख में दबी हुई अग्नि की तरह विद्यमान है। कुकर्म करते समय मीठे और सुखदाई लगते हैं और कर्म फल भोगते समय दुखदायी होता है।
30-कुदरत के नियमों से सामज्जस्य-
कुदरत के नियमों से सामज्जस्य-आज के युग में जबकि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है, वैज्ञानिक आविष्कारों से यह सम्भव हो गया है कि कुदरत की दी हुई चीजों का उपयोग हम अपने आवश्यकताओं के हिसाब से कर लेते हैं। अगर धूप में चलना पड रहा है तो छाता बनाया गया है,वर्षा नही होती है तो कृत्रिम वर्षा सम्भव है, बॉध बन गये हैं,आदमी को ईश्वर ने दो पॉव चलने के लिए दिये हैं, लेकिन मानव ने चलने के लिए कितने साधन बना दिये है! ओजोन की परत को रिपेयर किया जाने लगा है। लेकिन यह भी सत्य है कि,कुदरत पर नियंत्रण की भी एक सीमा है,वरना विनाशकारी परिणॉम भुगतने होते हैं। प्रकृति पर नियंत्रण की कोशिष में अगर हिमालय का वर्फ पिघल जाता है तो परिणॉम सभी जानते हैं क्या होगा। प्रलय की जो बात कही गई है,यह भी सत्य है, कि कुदरत पर नियंत्रण की सीमॉ बहुत अधिक बढ चुकी होगी। हॉ यह बात भी सही है कि कुदरत को कोई बना नहीं सकता है,और न उसे नष्ट कर सकता है,इसके नियम स्वयं उसने बनाये हैं। मानव द्वारा उसको अपने सुविधा के अनुसार उपयोग में लाने का प्रयास किया जाता रहा है। यदि गंगा नदी को नहर द्वारा उसकी दिशा बदल दी गई है,मगर उसे रोक नहीं सकते हैं। बॉध बनाने से उस जल को एक सीमा तक ही रोका जा सकता है। कुदरत ने बच्चे को नंगा जन्म दिया, कपडे तो हमने ही पहनाये! लेकिन वे भी लोग हैं -जैन मुनि, जोकि कुदरत की दी हुई चीज में छेड खानी नहीं करते हैं। जिस तरह से किसी व्यवस्था को चलाने के लिए नियम बने होते हैं उसी प्रकार इस कुदरत के भी अपने नियम है,उसी ढंग से उसके कार्यों का संचालन होता है।दिन-रात होते हैं,अलग-अलग ऋतुएं आती हैं,कभी गर्मी तो कभी ठंड।आलीशान मकान या मंहगी गाडी भी हमने बनाये हैं,इस प्रकृति में छेडखानी करके।इनके उपयोग की भी एक सीमा है। हमें भी इस कुदरत ने बनाया है, और कुदरत के नियमानुसार हमें इस शरीर की मेहनत से अपना जीविकोपार्जन करना है।लेकिन अगर हम इस शरीर के लिए सुविधा सम्पन्न आलीशान स्थान उपलव्ध कराते हैं,जिसमें इस शरीर को जरा भी कष्ट न हो, इसमें हमें देखना होगा कहीं यह कुदरत की मर्जी के विरुद्ध तो नहीं है, अन्यथा हम अपंग हो जायेंगे,हमारा शरीर विकृत हो सकता है,हम कम उम्र में बुड्ढे हो सकते हैं,रोग ग्रस्त हो सकते हैं।मैं अपनी बात जानता हूं, प्रतिदिन 3की.मी.पैदल उतराई से चलकर अपनी ड्यूटी पर जाता हूं,रास्ते में जंगल और गॉव पडता है,रास्ते में ही आंवले और आम के पेड हैं, जिनसे स्वतः पके हुये फल गिरे हुये मिलते हैं,उठाकर बैग में रख देता हूं,गॉव के कई लोगों से मुलाकात हो जाती है,जाते-जाते पसीना आ जाता है,फिर सभी लोगों को बैग के फलों को बॉट लेता हूं,सबलोग खुश हो जाते हैं,मुझे इस बात का अहसास होता है कि यह कार्य प्रकृति केनियमों के अनुकूल है।लेकिन वापस घर लोटते समय गेट से ही गाडी से जाता हूं,क्योंकि चढाई में अधिक कठिनाई, समय की वर्वादी से बचाव, और फिर आने- जाने के साधन भी तो बने हैं। आधुनिक अर्थव्यवस्था और समाज के हिसाव से भी तो चलना है। अर्थातसाधन और कुदरत के नियमों में सामज्जस्य स्थापित करके चलने से अच्छा जीवन यापन हो सकता है।
31-कुल श्रेष्ठ कौन है-
कुल श्रेष्ठ कौन है-किसी कुल में उसी को श्रेष्ठ माना जाता है जो संपूंर्ण प्राणिर्यों को शॉत रखने का प्रयत्न करता है, हमेशा सत्य व्यवहार करता है,कोमल स्वभाव होकर सबका सम्मान करता है, सर्वदा शुद्ध भाव से रहता है।
32-क्रोध क्षणिक पागलपन है-
क्रोध क्षणिक पागलपन है-क्रोध तो एक पागलपन है,जिससे मनुष्य का विनाश होता है इसीलिए क्रोध को यमराज कहा जाता है।जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने ऊपर झेलता है, ही दूसरों के क्रोध से बच सकता है और अपने जीवन को सुखी बना सकता है । मनुष्य क्रोध को प्रेम से ,पाप को सदाचार से,लोभ को दान से, और मिथ्या-भाव को,सत्य से जीत सकेगा। जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं बल्कि क्षमा करता है वह अपनी और क्रोध करने वाले को महॉं संकट से रक्षा करता है । इस लिए क्रोध की भावना से पहले दस बार सोच लें ।
33-गतिशील रहने से अनुभव बढता है-
गतिशील रहने से अनुभव बढते हैं-जिस प्रकार समय के बदलने से रात-दिन, गर्मी-सर्दी के मध्य रिरवर्तन का एक लय बना होता है और यह लयबद्धता हमेशा बरकरार रहती है,इसमें कभी कोई रुकावट नहीं आती,हमेशा गतिशील है। उसी प्रकार आप भी गतिशील रहिए।आपके जीवन में जितनी अधिक गति रहेगी, उतना ही अधिक जीवन में अनुभव प्राप्त होगा।प्रयास करें कि सदैव गतिवान रहें परिवर्तनशील रहें,सतत् यात्रा ही जीवन का उद्देश्य है।
34-गलती छिपाना विष कण के समान है-
गलती छिपाना विष कण के समान है-यदि कोई मनुष्य अपनी गलती को छिपाता है तो वह गलती विष कण के समान अपना प्रभाव बढाती ही जायेगी। इसलिए मनुष्य को अपनी गलती निसंकोच स्वीकार कर लेनी चाहिए,हठ पकडकर और छल करके उसे छिपाना नहीं चाहिए। अपनी गलती को स्वीकार करना कोई अपमान नहीं है वैसे गलती करने के पश्यात भय पैदा होता है,यही अपराधी का दण्ड है।बस हमें तो दूसरों की गलती पर अपसोस करना चाहिए नकि गुस्सा।
35-कर्तव्यों का पालन-
हमारी बुद्धि और ह्दय को जो सत्य लगे वही हमारा कर्तव्य है।उस कर्तव्य का पालन करना चाहिए जो हमारे निकट है। कर्तव्य तो कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता,बस कर्तव्य पालन ही चित्त की शॉति का मूल मंत्र है।लेकिन हमारा पहला कर्तव्य है मनुष्य की सेवा करना ।
36-कला आत्मा का सौन्दर्य है-
जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती,वह कला नहीं है।कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौन्दर्य है।इस ब्रह्मॉड में ईश्वर से बढकर कोई दूसरा कलाकार नहीं है।जब औरत अपनी कलाकारी दिखाती है तो बडे-बडे तीसमारखॉ चित्त होजाते हैं।कला का सत्य तो जीवन की परिधि में सौंदर्य के माध्यम सेव्यक्त अखण्ड सत्य है कला अति सूक्ष्म और कोमल है,अतः अपनी गति के साथ वह मस्तिष्क को भी केमल और सूक्ष्म बना देती है।सच्चा कलाकार तो हमेशा लिप्सा रहित होता है ।
37-कल्पना आत्मा का नेत्र है-
चित्त जिस रूप में कल्पना करता है,वैसा ही हो जाता है, आज जैसा वह है, वैसी ही उसने कल्पना की थी।कल्पना तो ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है।कल्पना तो विश्व में शासन करती है। कल्पना का वह सुन्दर जगत कितना मधुर होता है, छाया में सुख–स्वप्नों का समूह पुलकित होकर जागता-सोता रहता है ।और अपवित्र कल्पना भी उतना ही बुरी होती है, जितना बुरा अपवित्र कर्म होता है।
38-कल्याण होता है त्याग से-
कल्याण होता है त्याग से-जब दान-पुण्य करते हैं तो लोग यही समझते हैं कि रुपयों से कल्याण होता है,वास्तव में रुपयों से कल्याण नहीं होता है बल्कि रुपयों में जो मोह है उसके त्याग से कल्याण होता है ।यदि रुपयों के त्याग से कल्याण होता तो धनीआदमी अपना कल्याण कर लेते और गरीबों का का कल्याण होता ही नही । उस परमात्मा को रुपयों की भाषा समझ में नहीं आती , उसका रुपयों से कोई लेना-देना नहीं होता ,बस उन रुपयों के मोह का त्याग करने से ही परमात्मा के दर्शन होते हैं ।
39-कविता आत्मा का संगीत है-
कविता आत्मा का संगीत है-कविता भावनाओं में रंगी हुई बुद्धि है। कवि जिस समय कविता कहता है, वह औलौकिक मानव बन जाता है ।है। कवि का काम है प्रकृति के विकास को खूब ध्यान से देखना। मेरे लिए तो मनुष्य ही एक सजीव कविता है,कवि की कृति तो उस सजीव कविता का शब्द मात्र हैं ।प्रणय के समय प्रत्येक व्यक्ति कवि बन जाता है। कवि केवल देखते ही नहीं बल्कि प्रकाश भी करते हैं ।कवि का सबसे बडा गुंण नईं-नईं बातों को सूझना है ।