Monday, December 30, 2019

शिव शक्ति का परिचय

1-भगवान का सिमरण करते ही हमें  रूहानी  शक्ति मिलने लगती है़ 

2-सब से पहले यह शक्ति हमारे  शरीर की प्रत्येक कोशिका  को मिलती है । 

3-एक संकल्प जब हम करते है तो यह  1 से 3 मिनट  के अंदर शरीर की प्रत्येक कोशिका  को पहुंच जाता  है । 

4-शरीर में अरबों कोशिकाये है ।  इसलिये  सभी कोशिकाओं  को  शक्तिशाली बनने में समय लगता है । 

5-लगभग 10 हजार  संकल्प जब हम   रिपीट कर लेते है तो इस से शरीर की सभी कौशिकायें ईश्वर की शक्ति से भरपूर हो जाती  है और वह शक्ति मन को भेजने लगती है ।  जिस से हमें अनुभूति होने  लगती है । 

6-अगर दस हजार  से कम संकल्प रह  जायेंगे  तो कम अनुभूति  होगी ।  आति इंद्रिय सुख नहीं मिलेगा । 

7-दस हजार  संकल्प करने से इतना बल बनता  है कि  एक दिन किसी भी विकार  का मन पर प्रभाव  नहीं पड़ता । 

8-अगर कोई भी विकार  मन में आता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि  दस हजार  से कम सिमरन किया है । 

9 -  ये दस हजार  संकल्प एक दिन की खुराक है,  शरीर का भोजन है ।  इतने संकल्प हर रोज करने है और तब तक करने है जब तक हम जिंदा है । 

10-हम स्थूल भोजन जीवन भर करते है ।  अगर भोजन कम करेंगे तो बीमार हो जायेंगे । 

  11-    ऐसे ही शुद्ध  संकल्पों का भी भोजन करना है । नहीं करेंगे तो मानसिक  रोग अर्थात मानसिक  परेशानी  बनी रहेगी ।

Thursday, December 26, 2019

विचारों या मानसिक तरंगों से सर्व प्राप्तियां

1-मानसिक तरंगों से   शांति और शक्ति बढ़ती है़  । 

2-हमारे सभी विचारो , भावनाओ , व्यवहार , सुख- दुःख की अनुभूति हमारे दिमाग में मौजूद न्यूरान्स  की वजह से होती है ! इन न्यूरान्स की  गतिशीलता ही हमारी मनोदशा को निर्धारित करती है !

3-अच्छी  और उच्च  तरंगो को दिमाग तक पंहुचाकर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है या यूँ  कहे की मूड को बदला जाता है !  

4-संगीत वाद्य यंत्रो की ध्वनियों को मिलाकर अलग अलग फ्रेक्वेन्सी की तरंगें बनाई जाती   है । 

5-हम जो भी क्रिया करते है या जो महसूस करते है उसके हिसाब से हमारे दिमाग में तरंगें  बदलती रहती है ! 

6-जब धीमी तरंगें  हमारे दिमाग पर हावी होती है तब हम थका हुआ , सुस्त, या नींद का अनुभव करते है ! जरा  सा  हिंसक  या विध्वंस्क विचार  आने से धीमी तरंगें बनती  हैं  । ड्रम बीट  से भी धीमी तरंगें  पैदा  होती हैं । 

7-जब तेज तरंगें  हावी होती है तब हम अति सावधान और सक्रिय महसूस करते है । 

8-अच्छी तरंगें   बहुत तेजी से चलने वाली होती है । बांसुरी जैसी  आवाज,  कोयल जैसी आवाज,  पपीहे जैसी आवाज  से ये तरंगें बनती  है  । इन तरंगों से बुद्धिमता , करुणा , मजबूत आत्म नियंत्रण , स्मरण शक्ति और ख़ुशी बढ़ती  है । 

9- जब हमारा शरीर अच्छी  तरंगो के संपर्क में आता है तब तब हमेंं  देखने , सूंघने, सुनने और खाने में अच्छे स्वाद का अनुभव होता है ! जहां और जब  हमें अच्छा  अच्छा लगता है वहां  ऐसी तरंगें होती है । 

10-जब हमारा दिमाग इन तरंगो के संपर्क में आता  है तो  हमारे दिमाग को नई नई  सूचनाये याद रखने में सहायता मिलती है !

11- ये तरंगें हमारे दिमाग तक  मेडिटेशन  के अभ्यास से भी  पहुंचती  है ।   

12- जब हम अपनी पसंद का कोई कार्य कर रहे होते है तब  भी हमारा दिमाग अपने आप ऐसी  शक्तिशाली  तरंगें पैदा करता है ! जिस काम  को हम खुशी खुशी करते है उस से अच्छी अच्छी तरंगें बनती  है । 

13-जब हम दूसरों का  कल्याण सोचते है तो उस समय मन से निकलने वाली तरंगें बहुत तेज़ और गतिशील होती है ! जब हम बहुत सजग अवस्था में किसी गंभीर समस्या का समाधान खोज रहे होते है या कोई निर्णय ले रहे होते है तब भी हमारे दिमाग की  कोशिकाओं  में ये तरंगें पैदा होती है  तथा बहुत ज्यादा उर्जा और उत्तेजना पैदा करती है । 

14-कई  बार  बाबा के गीत   या अन्य  धार्मिक  गीत हमें सकून देते है ।   उस  समय शक्तिशाली तरंगें बनती  है जिनके सुनने से हमें  लाभ होता है । जब हमें  बहुत उर्जा की आवश्यकता होती है तब भी ऐसी आवाजों के सुनने से लाभ होता है । 

15-अल्फ़ा  तरंगें  हमारे दिमाग सेल्स में तब उत्पन्न होती है जब शांति से सोच रहे होते है!  मैडिटेशन की अवस्था में भी  अल्फ़ा तरंगें बनती  है ।   अल्फा तरंगें  दिमाग को  आराम देने में सहायक होती है इसलिए अल्फा तरंगों  को पूरे मानसिक समन्वय , शांति और शरीर के सभी अंगो के  एकीकरण करने  के लिये  इस्तेमाल किया जाता है !

16-जब हम निंद्रा या गहरे ध्यान में होते है तब थीटा तरंगें  उत्पन्न होती है ! ये तरंगें कुछ नया सीखने और स्मृति को बढ़ाने वाली होती है !

17- जब हमारा दिमाग थीटा तरंगों  के संपर्क में आता है तब हमारे दिमाग का संपर्क बाहरी दुनिया से कम हो जाता है तथा हमारा ध्यान उस पर केन्द्रित हो जाता है जिस विषय पर हम सोच रहे  होते है ।

Wednesday, December 25, 2019

प्रेम और परिणाम

1-आप अपने सम्बन्धों में जो भी भावना दे रहे हो,  वही आप को वापिस मिलेगी ।

2- आप के जीवन में कोई नकारात्मक चीज़ हुई  है तो आप उसे बदल सकते है । सिर्फ उसके बदले मन चाही अच्छी  चीज़ का अहसास करो ।

3-लोग भावनाओ की शक्ति से   अनजान होते है  इस लिये अपने साथ होने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया करते रहते है ।

4-वे अपनी भावनाओ  पर लगाम नही लगाते ।

5-किसी घटना पर प्रतिक्रिया करते समय उनके मन में नकारात्मक  परिणाम  होते है ।

6-अगर प्रतिक्रिया करते समय सकारात्मक भावना  होती है तो सकारात्मक  परिणाम होते है ।

7-अपनी भावना  की वजह से बुरे चक्र में फँस जाते  है ।

8-जीवन उसी  गोले  में घूमता  रहता  है ।

9-आप के साथ जो होता है  वह मायने नही रखता  । मायने यह रखता है कि  आप प्रतिक्रिया कैसे करते है ।

10-महसूसता  को बदलने से आप अलग फ्रीक्वेंसी पर पहुँच  जाते है और ब्रह्माण्ड वैसी ही प्रतिक्रिया करता है ।

11-अफसोस करने में  एक पल भी न गंवाओ । अतीत की गलतियों के बारे गहरी भावना  रखना   अर्थात खुद को फ़िर से बीमार करना है ।

12-अगर आप के जीवन में हर प्रिय और मनचाही चीज़ नही है तो इसका  मतलब यह नही है की आप अच्छे  और प्रेमपूर्ण व्यक्ति नही है ।

13-असल में होता क्या है? वह यह कि  हम लगातार प्यार नही देते ।

14--थोड़ी देर किसी को प्यार देते है । फ़िर नही देते, क्यों कि हमे और और काम आ जाते है ।

15-निश्चित समय पर कोई नही पहुँचता है तो हम उसे दोष देने लगते है । दोष देना अर्थात प्रेम न देने का  बहाना  है ।

16-अगर आप जीवन में भिन्न  भिन्न  समय या स्थितियो में  दोष देते है तो आप को दोषपूर्ण स्थितियॉ  ही मिलेगी ।

17-दोष देना, आलोचना करना, गलती खोजना, और शिकायत  करना ये सभी नकारात्मक आदतें है ।

18-मौसम,  ट्रेफिक,  सरकार, जीवन साथी, ग्राहक शोरगुल, महँगाई  आदि हानि रहित दिखने वाली इन छोटी  छोटी बातो  की  वजह से अनेकों बुरी चीजे जीवन में आ जाती है ।

19-हम दूसरो के जीवन में जो कुछ  भेजते है वही हमारे जीवन में लौट कर आता है ।

20-ज़माना गंदा है, लोग बेइमान  है,  चरित्रहीनता  है, भ्रष्टाचार  है, ये शब्द कहने से आप का जीवन भी वैसा ही बन जायेगा ।

21-सब अच्छे  है, सब बढ़िया  है, ठीक हो जायेगा, इस में भी और सकारात्मक  विचार  लाओ  तो देखना  जीवन कितना सुंदर बन जायेगा  ।

22-आप ने किसी का नुकसान कर दिया । कुछ  दिनो बाद आप के घर  चोरी हो गई । इन दोनो घटनाओं में डायरेक्ट सम्बन्ध नही है  । परंतु यह आप के विचारो के कारण हुआ है ।  आप ने नुकसान किया  अर्थात प्यार नही दिया, आप के चोरी हो गई अर्थात दुख के बदले दुख मिला ।

Monday, December 16, 2019

शब्द और चरित्र

1-हमारे मुख और मन  से निकला हुआ प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कम्पन्न  उत्पन करता है । 

2-उस कम्पन्न  से लोगो में अद्रश्य प्रेरणाये जागृत होती है ।

3-प्रत्येक शब्द/संकल्प  को चित्रित किया जा सकता है ।

 4-ध्वनि कम्पनो  के इस चित्रण को स्पेक्ट्रोग्राफ कहते है ।

5-आप  जो   कुछ भी  बोलते है स्पेकट्रोग्राफ  उसे टेढ़ी मेढ़ी  लकीरों में दिखाता  है ।

6-हर व्यक्ति के ध्वनि तरंगो की जो रेखाये बनती है, वे चाहे एक ही वाक्य बोलें,  उस से बनी रेखाओं का रुप अलग अलग होगा ।
7-एक व्यक्ति बीमारी में, सर्दी में,  गर्मी में,  तूफान  में जब भी  बोलेंगे उन की  आवाज़  से एक जैसी रेखाये बनेगी अर्थात जो बोलते है, उन रेखाओं पर प्रकृति का प्रभाव नहीं  पड़ता   ।

8-हर व्यक्ति  अगर कोई  एक ही वाक्य बोले जैसे कोयल काली  होती है, तो इस वाक्य की हर व्यक्ति की आवाज़ से अलग अलग लाइन्स बनेगी ।

9-शरीर में कुछ  ऐसे चक्र होते है जो शव्दो वा संकल्पों को अपने अपने ढंग से प्रभावित और प्रसारित  करते है । स्वर की  लहरों को रोग निवारण  में प्रयोग किया  जा सकता है ।

10-हम जो कुछ  भी पढ़ते सुनते या  करते है़ दिमाग उन सब के चित्र बना कर स्मृति में रख लेता है़ । 

11-अगर हम सभी चीजो का बातों का सोच कर कोई चित्र बनाते है़ तो उसे  सहज ही याद रख सकते हैं  । 

12-`दो लड़ते हुए व्यक्ति ज्यादा याद रहते है़ ।  खड़ा हुआ  व्यक्ति ज्यादा याद नहीं आता । 

13-फिल्मे ज़्यादा याद रहती है़ ।  नाटक ज्यादा याद रहते है़ । 

14-चलते हुए जीव जंतु,  चलती हुई गाड़ियां ज्यादा याद रहती हैं  । 

15-आप जीवन मेंं जो भी याद रखना चाहते है़ उसे पांच इन्द्रियों से जोड़े । 

16-ये इन्द्रियां हैं,  आंख,  नाक,  कान,  मुख और स्पर्श । 

17-जो चीजे हम आंखो से देखते है़ वह हमें सहज ही याद आती रहती है़ ।  उसके लिये मेहनत नहीं करनी  पड़ती । 

18-जो चीज याद रखनी है़, उसे देखते ही  दिमाग में कोई शक्ल बना लो,  या  कोई फूल,  पेड़,  कार आदि बना लें । 

19-कोई भी बुक पढ़ें उसके अंदर सभी पायंट्स क़ी आकृति बना लें । 

20-अगर आप योगी हैं तो  आध्यात्मिक  शक्तियों  का  मन में  चित्र बना लें । 

21-सर्व गुण सम्पन्न बनना है़ तो मन में  लक्ष्मी नारायण  का चित्र देखते रहो । 

22-स्वर्ग का चित्र मन में देखते रहो । 

23-शिव बाबा,  ब्रह्मा बबा या  किसी ईष्ट का चित्र मन में देखते रहो । 

24-जो भी चित्र स्थूल या   मन में देख  रहे हैं , आप को उस जैसा बनने क़ी  प्रेरणा  मिलेगी ।

Monday, December 9, 2019

मन की शक्ति

   मन  के केन्द्र 

       प्रत्येक  व्यक्ति  एक पल मेंं  क्रोध,  दूसरे पल   लोभ, तीसरे पल  मोह और ऐसे ही  अहंकार,  ईर्ष्या ,  द्वेष या  अन्य कोई न कोई नकारात्मक विचार या बोल बोलता रहता हैं या सोचता रहता हैं  और उनकी पीड़ा महसूस करता रहता है़  । 

      इसी तरह  हम   कभी शांति,  कभी प्रेम,  कभी  आंनद,  कभी खुशी कभी दया के बोल बोलते या सोचते  रहते हैँ, और सुखद अनुभुति करते रहते है़ । 

       समझ नहीं आता  एक पल मेंं विचार और बोल  कैसे बदल जाते हैं  और कैसे उन से अलग अलग महसूसता होने लगती हैँ । 

      आज T  V , पंखा, कूलर, हीटर, A C ,   कंप्यूटर, मोबाइल  आदि   अनेकों यंत्र लगभग सभी घरो मेंं  हैं ।  ।

  ये सभी यंत्र विद्युत से चलते है ।

      विद्युत वही होती है परंतु  यंत्र अपनी बनावट अनुसार प्रभाव छोड़ने  लगते  है ।

      विद्युत पंखे को देते तो हवा होने लगती है,  यही विद्युत हीटर में देते है तो गर्मी होने लगती है, यही विद्युत टेप  रेकोर्डेर में देते तो संगीत बजने लगता  है....... आदि आदि.।

       क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य आदि और कुछ  नही हमारे मन में ऐसी कोशिकाएं है़ जिन्हें हम  यंत्र या  केन्द्र कह सकते है़ । 

      विचार विद्युत है़ । 

-       जब हमे क्रोध  का संकल्प   उठता  है तो वह  विचार क्रोध वाली कोशिका/ केन्द्र से गुजरने लगता है ।  इस केन्द्र से  जब विचार गुजरते हैं तो ये  केन्द्र   हीटर की तरह गर्मी  अर्थात   क्रोध रूपी आग उगलने लगता  है । 

-        संकल्प जब लोभ केन्द्र  से गुजरता  है तो ऐसी तरंगे निकलने लगती जिस से हम  लोभ मेंं आ जाते है़ और फंस जाते हैं । 

-        विचार जब  ईर्ष्या -द्वेष का होता है  तो यह उस केन्द्र से गुजरता है जिस  से मिर्ची के जलने जैसी दुर्गंध निकालती है और   हम बेचैन   होने लगते  है़  । 

        जब आलस्य के विचार होते है़ तो यह उस कोशिका/ केन्द्र से निकलते है़ जिस से सूक्ष्म रस्सियां  बनती है़ जो हमें जकड़ देती है़ और हम जकड़ जाते हैं उठा  नहीं जाता जिसे हम आलस्य कहते हैं । 

      हमारे मन में शांति, प्रेम, सुख, आनंद, दया वा करुणा  आदि के केन्द्र बने हुए है । जब विचार  इन से गुजरते है तो  वैसा ही प्रभाव छोड़ते है और हम उमंग उत्साह मेंं रहते हैं । 

      मन समय और परिस्थिति अनुसार अपने आप नये नये केन्द्र बनाता रहता  है । 

       योग और कुछ  नही सिर्फ शांति, प्रेम, सुख व  आनंद के केन्द्रों को  सक्रिय (activate )  करना है अर्थात उन का अधिकतम प्रयोग बढाना  है ।  हमे हर समय इन केन्द्रों से काम लेना है । अगर इन अच्छे  केन्द्रों  का हर समय प्रयोग करते है तो बाकी सब बुरे केन्द्र बँद हो जाते  है ।

        सतयुग  में पाँच विकार और उन से सम्बन्धित बुरे केन्द्र एक दम बंद हो जाते  है और सिर्फ अच्छे  केन्द्र जागृत रहते है ।

         जैसे ही हमे कोई विचार  उठता  है वह स्वयमेव (  automatically ) सम्बन्धित केन्द्र पर चला  जाता है और उसी अनुसार तरंगे प्रवाहित होने  लगती   हैं  ।

        आज मनुष्य का विचार  स्थिर   नही है़  । वह एक मिनिट में कभी शांति,  कभी दुख,  कभी नाराजगी,  कभी निराशा,   कभी कमजोरी के विचार  करता  है । 

       अगर हम   कूलर,   पंखा, एयर कंडीशनर,    हीटर,  ओवन सब इकठा  चला  दें  तो न हवा का सूख न   ठंडक का सूख  न  ही गर्मी का  सुख ख पा  सकेंगे क्योंकि पर्याप्त समय तक कोई भी यंत्र  नही चलाया  जिस से अनुकूल वातावरण बन सके । 

       ऐसे ही कोई भी श्रेष्ट संकल्प  जब तक पर्याप्त समय तक नही चलाएगे तो उससे सम्बन्धित बल पैदा  नही होगा ।

       अगर कोई भी साकारात्मक   संकल्प हम दस हजार  बार लगातार दिमाग में दोहराते   है तो उस से इतना मानसिक बल पैदा हो जाता है जो उस एक दिन कोई भी नकारात्मकता का हमारे पर प्रभाव नहीं होगा  । 

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