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1-जीवनभर मन में भरते है फिर भी खालीपन -
हमारा मन एक गहरी खाई,के समान है जिसमें नीचे कोई तलहटी नहीं है ।जिसमें हम गिरें तो गिरते ही रहेंगे । कहीं पहुंच नहीं सकते हैं ।इस मन में जिन्दगीभर का अनुभव होने पर भी रिक्तता रहती है ।जब देखो खालीपन ।लेकिन फिर भी हम जोर से चले जाते हैं । यही तो पागलपन है ।
एक फकीर के पास एक बार एक आदमी आया उसने फकीर से कहा कि मैं परमात्मा को देखना चाहता हूं,कोई रास्ता बताओ ! मुझे लोगों ने बताया कि आप यह रास्ता बता सकते हो । उस फकीर ने कहा,अभी तो मैं कुंएं पर पानी भरने जा रहा हूं,तुम भी मेरे साथ चलो । हो सकता है कुंएं में पानी भरने में ही रास्ते का पता चल जाय । और न चले तो वापस साथ चले आयेंगे । फिर आपको रास्ता बता दिया जायेगा मगर ध्यान खना विना रास्ते का पता चले वापस न जाना । उस आदमी ने कहा क्या बात करते हैं आप मैं परमात्मा को खोजने निकला हूं वैसे ही नहीं लौटूंगा ।
फकीर दो बाल्टियॉ अपने हाथ में लीं,रस्सी उठाई और उस आदमी से कहा जब तक मैं पानी न भर लूं तब तक सवाल न उठाना बीच में । यह तुम्हारे संयम की परीक्षा होगी ,फिर लौट के सवाल पूछ लेना । उस आदमी ने सोचा मुझे क्या लगी है बीच में बोलने की, मैं तो परमात्मा को खोजने निकला हूं । वह फकीर कुएं पर पहुंचा और विना तली के वर्तन को कुएं में पानी निकालने के लिए डाल दिया ।उस आदमी के मन में खयाल आया कि यह क्या कर रहा है,क्योंकि उस वर्तन में तली ही नहीं है,लेकिन मुझे कुछ कहने के लिए मना किया है । कुछ देर रुका लेकिन फिर वह सहन शक्ति से बाहर हो गया ,वह दिये गये वचलों को भूल गया और कहने लगा यह क्या पागलपन कर रहे हो ?इस वर्तन में तो कभी पानी भरेगा ही नहीं । उस फकीर ने कहा शर्त टूट गई,अब तुम जा सकते हो ।क्योंकि मैंने कहा था कि जबतक में पानी न भर लूं और लौट कर न आऊं तबतक तुम सवाल न उठाना । उस आदमी ने कहा कि तुम जैसा पागल नहीं हूं मैं ।
वह आदमी उस फकीर को छोडकर चला गया । जाते समय उस फकीर ने कहा कि जो अभी पागल ही नहीं है वह परमात्मा की खोज करने कैसे निकलेगा । वह आदमी लौट गया मगर रात में उस फकीर का वचन कि जो आदमी पागल भी नहीं वह परमात्मा की खोज करने कैसे निकलेगा ? यह बात उसके सपनों में घुस गई ।बार-बार करवट लेता,वे शव्द उसे गूंजते सुनाई दे रहे थे । क्या इतना पागल हो सकता है कि ऐसे वर्तन से पानी भरे जिसमें पानी टिकता ही नहीं ? फिर खयाल आया कि उस फकीर ने घर से चलते वक्त यह भी कहा था कि अगर तुम मौन से मेरे साथ रहे तो हो सकता है पानी भरने में ही तुम्हारे सवाल का जबाव मिल जाय।
सुबह होते ही वह आदमी फकीर के पास गया और कहने लगा मुझे माफ कर,लगता है मुझसे भूल हो गई है । पानी भरते समय मुझे सवाल नहीं उठाना था । मुझे चुपचाप देखना था । कहीं आप मुझे शिक्षा तो नहीं दे रहे थे ?
फकीर ने कहा इससे बडी शिक्षा और क्या हो सकती है,मैं तुमसे यही कह रहा था कि तुम मुझे पागल कह रहे हो ,और अपने तरफ नहीं देखते कि जिस मन में तुम जिन्दगी भर से भरते चले जा रहे हो वह अभी तक खाली का खाली है,उसमें कुछ भी नहीं भर पाया है,इसका मतलव यह मन भी विना पेंदी के वर्तन के समान है । लेकिन हमने इस मन में बहुत सी चीजें भर दी हैं,मगर अबतक कोई भी चीज भरी नहीं है,बूढे का मन भी उतना ही खाली होता है जितना बच्चे का । हम भरते चले जाते हैं । लेकिन अगर मन खाली है और चाहो तो जोर से भर लो, तो भर जायेगा । लेकिन फिर देखते हैं कि मन फिर खाली का खा खाली है, जरा भी नहीं भरा । परमात्मा हमारे पास है लेकिन उसकी तलाश में हम कहॉ-कहॉ भटकते रहते हैं यह पागलपन नहीं तो और क्या है ।
2-क्या परमात्मा के न मिलने से हम पीढित है -
हमें परमात्मा नहीं मिल रहा है लेकिन हमारा कार्य बराबर चल रहा है,कभी-कभी किसी दुख में उसकी याद आती है ,इस आशा में कि दुख दूर हो जाय । इसलिए सुख में लोग परमात्मा को याद नहीं करते हैं । लेकिन जिस परमात्मा की याद दुख में आती है,वह याद झूठी है,क्योंकि वह दुख के कारण आती है । परमात्मा के कारण नहीं आती है । सुख में तो उसे ही याद आती है जिसे उसका अभाव खटक रहा है ।
जिसके पास महल हो,धन हो, सब कुछ हो और फिर भी कहीं कोई खाली जगह हो जो धन से भी नहीं भरती है,मित्रों से भी नहीं,पत्नी से भी नहीं,पति से भी नहीं भरती हो बस उस खाली जगह में परमात्मा के बीज का पहला अंकुर होता है । देखें अनुभव करें कि क्या वह खाली जगह आपके पास है ? क्या आपके ह्दय का कोई खाली कोना है जो किसी चीज से भरता नहीं है ? खाली ही रहता है ।
3-आपके मन का मन्दिर गिर चुका है -
यह एक तखलीफ वाली बात है कि आपके प्रॉणों का मन्दिर गिर चुका है. उस मन में सिर्फ किराये के पुजारी रह गये हैं । यही सत्य है । क्योंकि उस मन्दिर से परमात्मा निकल चुका है । उसे वापस लाने के लिए खोज में निकल पडे हैं । लेकिन बाहर के उस मंदिर का पुजारी चाहेगा कि ह्दय का परमात्मा न खोजा जाय ।क्योंकि जब ह्दय के परमात्मा को खोज लेता है तो बाहर के मंदिर के परमात्मा की फिक्र छोड लेता है । यह भी निश्चित है कि धर्म के ठेकेदार चाहेंगे कि असली प्रतिमा प्रकट हो गई तो बाजार में विकने वाली प्रतिमॉओं का क्या होगा ?आदमी बडा बेइमान है वह नकली परमात्मा से राजी होने को तैयार है । लेकिन हम सही परमात्मा को खोजने को नहीं जाते हैं जब नकली से काम चल जाता है तो कौन असली को खोजने जाए ?
इसी प्रकार धर्म भी नकली है । असली धर्म तो एक दॉव है । नकली ईश्वर के लिए तो हमें कुछ भी नहीं खोना होता है,जबकि असली ईश्वर के लिए हमें अपने को पूरा ही खो देना होता है । नकली ईश्वर से हम खुद ही कुछ मॉगने जाते हैं । असली ईश्वर को तो अपने को ही देना होता है । नकली ईश्वर आसान है,सुविजापूर्ण है जबकि असली ईश्वर खतरनाक है, जिन्दा आग है,उसमें जलना होता है,मिटना पडता है ,राख हो जाना पडता है । और बडी बात तो यह है कि वे ही अपने द्ददय के मंदिर में परमात्मा को बुला पाते हैं जो अपने को राख करने के लिए तैयार है । इस धर्म का नाम है प्रेम । प्रॉणों में जो प्रेम की आग जलाने को तैयार है,वह परमात्मा को पाने का हकदार हो जाता है ष लेकि हकदार वही होता है जो खुद को खोने को तैयार है । परमात्मा को पाने शर्त उल्टी है शायद इसीलिए हमने परमात्मा को खोजना बंद कर दिया है । वैसे खोजा तब जाता है जब खो गया हो,लेकिन तुमने परमात्मा को खोया कैसे ?क्योंकि खोने की कोई वजह होगी, कोई तरकीव होगी, तो फिर खोजने की तरकीव उससे उल्टी होती है ।
इसी संदर्भ में एक बार जब महात्मा बुद्ध सुबह के समय एक गॉव में आये वहॉ के लोग उन्हैं सुनने के लिए इकठ्ठा हुये ,वबुद्ध अपने हाथ में एक रेशमी रूमाल लेकर आये और बैठ गये । वे रेशमी रूमाल में गॉठ वाधना शुरू करने लगे पॉच गॉठें बॉधी और फिर बैठ गये । बुद्ध ने लोगों से पूछा कि इन गॉठों को कैसे खोला जाय,और रुमाल को जोर से खींच लिया , तो वे गॉठेंम औक भी अधिक कस कर बंध गई । एक आदमी ने खडे होकर कहा ,कृपया खींचिये नहीं ,वरना गॉठें और बंध जायेंगी । बुद्ध ने कहा मैं इन गॉठों को खोलने के लिए क्या करूं ? तो उस आदमी ने कहा कि पहले मुझे गॉठों को देख लेने दो कि वे गॉठें किस ढंग से बंधी हैं । क्योंकि जो उनके बॉधने का ढंग होग ,ठीक उससे उल्टा उनके खोलने का ढंग है ।और जबतक यह पता न हो कि कैसे गॉठ बॉधी गई है,तब तक खोलने का काम खतरनाक है । उसमें और अधिक गॉठ बंध सकती है,और उलझ सकती है । इसलिए पहले गॉठ को ठीक से समझ लेना जरूरी है कि वह कैसी बंधी है तभी खोलने का काम शुरू करना उचित है ।
जो लोग ईश्वर के बारे में पूछते हैं उनसे यही कहना है कि तुमने खोया कहॉ ?तुमने खोया कैसे ?और गॉठ बंधी कैसे ? लेकिन उनको इस सम्बन्ध में कोई पता नहीं ।कोई याद नहीं । उन्हैं यह भी पता नहीं कि उन्होंने परमात्मा को खोया है । जिसे हमने खोया ही नहीं ,उसे हम खोजने कैसे निकलें । खोजने कोई निकलता ही नहीं । हम उसी को खोज सकते हैं जिसके खोने की पीडा गहन हो,जिसका विरह अनुभव हो रहा हो । और मिलन का आनन्द भी तो उसी के साथ हो सकता है,जिसके विरह की पीडा हमने झेली है । हम तो ईश्वर के विरह में जरा भी पीढित नहीं हैं और कोई भी पीढित नहीं है ।
यह बात सही है कि लोग पीढित है मगर उनके पीढित होने के कारण दूसरे हैं ।कोई धन न होने से पीढित है,तो कोई यश के न होने से पीढित है किसी का कोई और कारण है ।लेकिन ऐसा कोई आदमी खोजने से कभी मिल मिल पाता है जो परमात्मा के न होने से पीढित है । उस आदमी को धार्मिक आदमी कहा जाता है ।
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